Friday, 19 January 2018

फ़िल्म पद्मावत का विरोध - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह

करणी सेना ने पद्मावत की रिलीज पर कहा है कि यह राजपूती अस्मिता का प्रश्न है, राजपूत महिलाएं पुनः जौहर करेंगी।

यह बात मेरी समझ से बाहर है कि अस्मिता को बचाने के लिये जौहर भी अस्मिता को ही करना पड़ेगा ! राजपूतों ने महिलाओं की आड़ ले कर तो कभी युद्ध नहीं किया और जौहर भी तब हुआ जब यह निश्चित हो गया कि अब कोई भी पुरुष राजपूत योद्धा खेत होने से शेष नहीं रहेगा । तब महिलाओं ने आत्मसम्मान को बचाने के लिये स्वयं को अग्नि को सपर्पित कर दिया । जौहर अगर हुआ भी है तो वह अपवाद स्वरूप ही हुआ है। यह कोई परम्परा का अंग नहीं था।

पर आज न तो कोई युद्ध हो रहा है और न ही महिलाओं के आत्मसम्मान पर कोई मध्ययुगीन  संकट आया है। एक फ़िल्म है जो कल्पना और इतिहास का घालमेल है। प्रोड्यूसर कहता है यह जायसी के महाकाव्य पद्मावत पर आधारित है और अफवाह यह है कि यह एक इतिहास का विकृति करण है। इस फ़िल्म में यह कहा जा रहा है कि कुछ दृश्य जो चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी और अलाउद्दीन खिलजी से जुड़े हैं इतिहास के विरुद्ध हैं और जैसे फिल्माए गए हैं उन से राजपूती अस्मिता आहत होती है। फ़िल्म करणी सेना ने देखी है या नहीं यह तो नहीं पता पर जिन पत्रकारों ने देखी है उन्होंने इसे आपात्तिजनक नहीं बताया। फिर इस फ़िल्म को सेंट्रल बोर्ड ऑफ फ़िल्म सिर्टीफिकेशन #CBFC ने देखा और कुछ संशोधन सुझाये तथा इन संशोधनों के बाद को U/A प्रमाणपत्र जारी किया।

फिर शुरू हुआ राजनीतिक खेल। पहले राजस्थान फिर गुजरात, फिर मध्य प्रदेश और हरियाणा ने इसका दिखाया जाना प्रतिबंधित किया। यह चारो सरकारें एक ही दल भाजपा की है। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट गया। सुप्रीम कोर्ट में यह संवैधानिक नुक्ता रखा गया कि किसी भी राज्य सरकार को फ़िल्म का प्रदर्शन रोकने का अधिकार संघीय ढांचे के विरुद्ध है। राज्य सरकारों ने कहा कि कानून व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इस पर कोर्ट का कहना है कि कानून व्यवस्था बनी रहे यह सरकार का प्रथम दायित्व है। अब फ़िल्म 25 जनवरी को रिलीज होगी।

25 जनवरी , फ़िल्म की रिलीज़ की तिथि को ले कर फेसबुक पर ' फूंक डालूंगा,' ' जला दूँगा ' ' काट दूंगा' ' मार दूंगा '  जैसी पोस्ट्स की भरमार है और यह प्रतिक्रिया मेरे विचार से  बचकानी है। फ़िल्म के प्रदर्शन के बाद ही पता लगेगा कि यह फ़िल्म अस्मिता को कितनी आहत करती है। अगर सचमुच में कोई गम्भीर ऐतिहासिक भूल संदर्भ से हट कर इस फ़िल्म में की गयी है तो फिर उसका भी समाधान निकाला जा सकता है और तब फ़िल्म रोकी जा सकती है। लेकिन, फ़िल्म में अगर कुछ भी आपात्तिजनक नहीं है तब तो यह सारी प्रतिक्रियाएं अपरिपक्व औऱ मूर्खतापूर्ण प्रलाप ही लगेंगी। फ़िलहाल तो स्थिति यही है कि फ़िल्म का प्रदर्शन तो होगा ही।

आज जौहर करेगा कौन ? वे कौन सी वीरांगनायें हैं जो आज जौहर की ज्वाला में कूदने जा रही हैं ? उनके पति किस युद्ध मे युयुत्सु भाव से गये हैं ? और अब वे ज़ीवित नहीं लौटने या जीत कर ही आने का संकल्प ले कर गये हैं?  वे क्या सिनेमा हॉल को ही युद्ध का मैदान समझ कर तलवार भांजने गये हैं ? दर असल यह जौहर का मज़ाक़ बनाना हुआ ।

जौहर का यह मूर्खतापूर्ण प्रलाप आत्मदाह के लिये महिलाओं को उकसाना है और यह एक संज्ञेय अपराध है। जो भी व्यक्ति और समाज अस्मिता के मिथ्याभिमान में जौहर यानी आग में कूद कर आत्मदाह ( आत्महत्या, खुदकुशी ) कर लेने की बात करता है उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिये। यह एक प्रकार से अराजकता फैलाना है। इक्कीसवीं वीं सदी की आवश्यकताएं, प्रतिमान, इच्छाएं और लक्ष्य आदि आदि अलग होते हैं। हमें उनके अनुसार बदलना होगा। हम 13 वीं सदी के मिथ्याभिमान में जी कर उस मानसिकता से उन्नति नहीं कर सकते हैं। अतीत पर गर्व करना और बात है पर उस से चिपके रहना मूढ़ता है।  हमें आगे बढ़ना है। हमें चलते रहना है। चरैवेति चरैवेति !!

© विजय शंकर सिंह

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