प्रधान
मंत्री जी का इतिहास ज्ञान , कभी कभी असहज स्थिति में ला देता है। प्रधान मंत्री देश का चेहरा और देश की आवाज़ होता है। उसकी एक एक बात पर , एक एक भाव भंगिमा पर लोगों की नज़र रहती यही , और उस पर टीका टिप्पणियाँ होती है। आलोचनाएँ और प्रशंसा होती है। ऐसे में जब इतिहास की कुछ बड़ी तथ्यात्मक भूलें हो जाती हैं तो वह चर्चा का कारण बनती हैं , और उस से जग हंसाई भी होती हैं। फिर इसके बाद
बचकाने
बचाव का रास्ता शेष बचता है , कि मिडिया ने बयान को तोड़ मोड़ कर प्रस्तुत किया। ऐसी असहज और हास्यास्पद स्थिति से बचने के लिए , प्रधान मंत्री के प्रेस सलाहकार , या उनका भाषण लिखने वाले लोगों को अधिक सतर्क और सावधान होना चाहिए। क्यों कि प्रधान मंत्री के पास न तो इतना समय होता है और न ही उन्हें इतनी ज़रुरत है कि वह इन सब में अपनी ऊर्जा खपाएं।
अभी प्रधान मंत्री जी , हुसैनीवाला गए थे। हुसैनीवाला में ही भगत सिंह और साथियों को फांसी देने के बाद चुपके से उनका दाह संस्कार
कर दिया गया था। प्रधान मंत्री का जाना , और देश की तरफ से कृतज्ञता ज्ञापन कर शहीदों को स्मरण करना , यह एक बड़ी बात है। स्मारक पर पुष्प चढाने के बाद उन्होंने जनता को सम्बोधित भी किया। उसी सम्बोधन में उन्होंने भगत सिंह के बारे
में जो कहा , वह तःथ्यों से बिलकुल उलट था। उन्होंने कहा , भगत
सिंह को पहले अंडमान जेल ले जाया गया था , और तब उन्हें फांसी दी गयी थी। यह कथन तथ्यों के बिलकुल विपरीत है। भगत सिंह , कभी भी अंदमान जेल नहीं भेजे गए थे। असेम्बली बम काण्ड के बाद भी वह मौके से भागे नहीं थे ,बल्कि वहीं गिरफ्तार हुए थे। लाहौर जेल में वे रहे। मुक़दमा चला और उन्हें फांसी की सज़ा हुयी। भगत सिंह सभी क्रांतिकारियों में सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। उनपर बहुत कुछ लिखा गया है और आगे भी लिखा जाता रहेगा। ऐसे लोकप्रिय और बहुज्ञात व्यक्तित्व के साथ जब ज्ञात तथ्यों से विपरीत कोई बात , और भी प्रधान मंत्री जी के मुंह से निकलती है तो स्थिति बहुत असहज हो जाती है।
आवश्यक नहीं है कि , प्रधान मंत्री को
इतिहास के हर घटना क्रम की जानकारी हो ही। वह इतिहास के न तो विद्यार्थी हैं और न ही इतिहास उन्हें पढ़ाना है। पर सार्वजनिक मंच पर जिसके सम्मान में हम लोगों को कुछ बता रहे हैं , उनके बारे में ऐसी भूल, प्रधान मंत्री को उपहास का ही पात्र बनाएगी। प्रधान मंत्री बनने के पूर्व भी अपनी चुनाव सभाओं में भी श्री मोदी ने इतिहास की तथ्यात्मक भूलें की है। तक्षशिला को बिहार में होना बताया और श्यामा प्रसाद मुखेर्जी को इंडिया हाउस से जोड़ दिया। ये सारी बातें अखबारों में प्रकाशित हुईं हैं और सोशल मिडिया
पर खूब मज़ाक भी बना है। लेकिन , इन सब से भी उनका भाषण लिखने वाले लोग सतर्क
नहीं हुए।
प्रधान
मंत्री जी लम्बे समय तक संघ के प्रचारक रहे हैं। संघ बौद्धिक भी चलाता रहता है। जिसमें वे ज्ञान वर्धन की बातें अक्सर बताते रहते हैं। साथ ही वे अपने प्रचारकों को नियमित प्रशिक्षण भी देते रहते हैं। या तो ऐसे बौद्धिकों में इतिहास का सम्यक और तथ्य पूरक ज्ञान नहीं दिया जाता , या आवश्यकता नहीं समझी जाती। जो भी हो, कुछ न कुछ तो कहीं त्रुटि है ही। स्वाध्याय एक आदत है। अगर वह आदत आप में नहीं है तो आप पुस्तकों से खुद ज्ञान नहीं ले सकते हैं। प्रधान मंत्री
बनने के बाद स्वाध्याय का कोई समय मिले यह संभव भी नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि राजनीतिक हस्तियों ने साहित्य या इतिहास के क्षेत्र में कुछ रचा नहीं है।
नेहरू ने इतिहास पर अद्भुत लेखन किया है। डॉ लोहिया ने इतिहास
और दर्शन के साथ, अपने राजनीतिक विचारों पर बहुत व्यापक लेखन किया है। द्वारिका प्रसाद मिश्र ने कृष्णायन के रूप में कृष्ण पर तो एक महाकाव्य ही लिख दिया है। वीरप्पा मोइली ने अभी कन्नड़ में एक महाकाव्य लिखा है , जो राम कथा पर आधारित है , और उन्हें अभी इस कृति के लिए पुरस्कृत भी किया गया है। और भी लोग होंगे , पर जो याद आया उनका मैंने यहां उल्लेख कर दिया है। लेकिन हम सभी प्रधान मंत्रियों से या राजनीतिक व्यक्तियों से यह अपेक्षा भी नहीं कर सकते कि सभी इतिहास लेखन में ही अपना योगदान दें।
प्रधान मंत्री जी अक्सर बिना लिखा भाषण पढ़ते हैं। पर जब कोई महत्वपूर्ण गोष्ठी या सम्मलेन होता है तो लिखित भाषण भी पढ़ा जाता है। वह एक अच्छे वक्ता हैं। आरोह और अवरोह भी उनकी वक्तृता शैली में बहुत सुघड़ता से मिलता है। पर इस प्रकार की तथ्यात्मक भूलें पूरे भाषण के प्रभाव और महत्व को निगल जाती हैं। उनके भाषण लेखक को चाहिए , कि किसी भी सार्वजनिक भाषण के पूर्व वह स्वयं उन तथ्यों का अनुसंधान कर लें , जिनके बारे में प्रधान मंत्री जी को बोलना है , और प्रधान मंत्री जी को इसकी ब्रीफिंग भी कर दें। हो सकता वह करते भी हों। इतिहास की व्याख्या पर विचार वैभिन्य हो सकता है पर इतिहास के तथ्यों पर नहीं। अगर प्रधान मंत्री जी की इतिहास व्याख्या मेरी व्याख्या ने नहीं मिलती है तो , कोई बात नहीं। विचार वैभिन्य रहेगा , पर इतिहास के तथ्य तो वही रहेंगे। भारत को आज़ादी 15 अगस्त को मिली , यह एक ऐतिहासिक तथ्य है। पर किन कारणों से मिली , इस पर तरह तरह की बातें कही जा सकती है , कहीं गयी है और आगे भी कही जाती रहेंगी । पर यह ऐतिहासिक तथ्य कभी नहीं बदलेगा कि भारत 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुआ था । मैं इन्ही तथ्यात्मक भूलों की ओर इंगित कर रहा हूँ।
( विजय शंकर सिंह )
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