Sunday, 29 March 2015

Adeem Hashmi - Dil Ajab Gumbad / दिल अजब गुम्बद / अदीम हाशमी



यह ग़ज़ल अदीम हाशमी की है। वह 1 अगस्त 1946 को पाकिस्तान के फैसलाबाद में पैदा हुए थे।  पूरा जीवन उनका पाकिस्तान और अमेरिका में बीता। अमेरिका के शिकागो शहर में ही उनका निधन 5 नवम्बर 2001 को हुआ था। उनका लेखन लाहौर से शुरू हुआ , 70 से 90 के दशक के वे उर्दू के सब से विवादास्पद शायर थे।  उनको प्रसिद्धि मिली उनकी दो काव्य पुस्तकों से , ' कट ही गए जुदाई भी " और ' फासले ऐसे भी होंगे " से । पाकिस्तान के तानाशाही के युग में उनकी शायरी में सत्ता का विरोध भी ढूंढा गया। और इसका उन्हें उठाना पड़ा। उनकी आख़िरी किताब , ' बहुत नज़दीक आते जा रहे हो ' थी जो उन्होंने अपनी बीमारी में अस्पताल में लिखी थी।

उन्होंने पाकिस्तान टेलीविजन के लिए भी काफी लिखा और वह " गेस्ट हाउस ' , 'आगोश ' और ' कॉमेडी थियेटर ' जैसे पाकिस्तानी सीरियलों के लिए बहुत सराहे गए।  पाकिस्तान का सबसे प्रसिद्द माना जाने वाला गीत , ' देखा न था कभी हम ने यह समाँ ' इन्ही द्वारा लिखा गया था।

उनकी कृतियाँ हैं ,
1 . तरकश 1992
2 . मुक़लमा 1995
3 . चेहरा तुम्हारा याद रहता है 1996
4 . फासले ऐसे भी होंगे 2000
5 . डायना , द प्रिंसेस ऑफ़ लव,  2000
6 . बहुत नज़दीक आते जा रहे हो ,2001



दिल  अजब  गुम्बद  कि जिस  में  इक  कबूतर  भी  नहीं 

दिल  अजब  गुम्बद  कि  जिस  में  इक  कबूतर  भी  नहीं
इतना  वीरान  तो  मुरदारों  का  मुक़द्दर  भी  नहीं

डूबती  जाती  हैं  मिट्टी  में  बदन  की  कश्तियाँ
देखने  में  ये  ज़मीन  कोई  समंदर  भी  नहीं,

जितने  हंगामे  थे  सूखी  टहनियों  से  झड  गए
पेड़  पर  फल  भी  नहीं  आँगन  में  पत्थर  भी  नहीं

खुश्क  टहनी  पर  परिंदा  है  कि  पत्ता  है,
आशियाना  भी  नहीं  जिस  का  कोई  पर  भी  नहीं,

जितनी  प्यारी  हैं  मेरी  धरती,
इतना  प्यारा  तो  किसी  दुल्हन का  जेवर  भी  नहीं 
( अदीम हाशमी )

Dil ajab gumbad ki jis mein ek kabootar bhee naheen

Dil ajab gumbad ki jis mein ek kabootar bhee naheen
itanaa weeraan to murdaaron kaa muqaddar bhee naheen

Doobatee jaatee hain mittee mein badan kee kashtiyaan,
dekhane mein ye zameen koyee samandar bhee naheen

jitane hangaame the sookhee tahaniyon se jhard gaye
perd par phal bhee naheen aangan mein patthar bhee naheen

Khushq tahanee par parindaa hai ki pattaa hai,
aashiyaanaa bhii nahiin jis kaa koyi par bhee naheen

Jitanee pyaaree hai merii dharatee jo zanjiiren 'Adeem'
itanaa pyaaraa to kisii dulhan kaa zewar bhee naheen.


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