राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) ने अपने आधीन नियुक्त सिविल सेवा के अधिकारियों का ट्रांसफर पोस्टिंग और सेवागत नियंत्रण करने के लिए, दिल्ली सरकार की शक्तियों को, छीन लेने के लिए, हाल ही में लाए गए, केंद्र सरकार के अध्यादेश को, सुप्रीम कोर्ट में, चुनौती दी है। यह वही अध्यादेश है जो यदि अगले छह महीनों तक संसद द्वारा कानून में नहीं बदल जाता तो रद्द हो जायेगा। सरकार की पूरी कोशिश होगी कि, यह अध्यादेश , कानून में बदल जाय।
बीजेपी सरकार को, लोकसभा में इस संबंध में पेश विधेयक को पास कराने में कोई दिक्कत पेश नहीं आयेगी, लेकिन राज्यसभा में, सरकार को बहुमत नहीं है तो वहां, उसे समस्याएं आ सकती हैं। इसलिए, दिल्ली के मुख्यमंत्री, सभी विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात कर के, उन्हे इस विधेयक के विरुद्ध, संसद में वोट देने के लिए लामबंदी कर रहे है। इसी उद्देश्य से, वे 23 जून को, पटना में आयोजित, विपक्षी दलों की बैठक में शामिल भी हुए थे।
इस रिट याचिका ने, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार (संशोधन) अध्यादेश 2023 को चुनौती दी है, जिसे 19 मई को राष्ट्रपति द्वारा जारी किया गया था। यह अध्यादेश, दिल्ली सरकार को "सेवाओं" पर उसके अधिकार से वंचित करती है। इस याचिका में कहा गया है कि, "यह अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले के एक हफ्ते बाद लाया गया, जिस फैसले में यह कहा गया है कि, दिल्ली सरकार के पास सूची II (सेवाओं) की प्रविष्टि 41 पर अधिकार है।" दिल्ली सरकार की, दलील है कि 'अध्यादेश के जरिए, केंद्र सरकार ने एक तरह से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया है।'
यह दलील सर्वथा उचित भी है, क्योंकि फैसले के बाद ही यह अध्यादेश लाया गया है। अध्यादेश की टाइमिंग, बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच चल रहे राजनीतिक रस्साकशी को स्पष्ट रूप से रेखांकित करती है। अध्यादेश को संविधान के अनुच्छेद 239एए में एनसीटीडी के लिए स्थापित संघीय, लोकतांत्रिक शासन की योजना का उल्लंघन करने के रूप में चुनौती दी गई है। यह भी तर्क दिया गया है कि, अध्यादेश संघवाद के सिद्धांत और निर्वाचित सरकार की प्रधानता को नकारता है। संघवाद, संविधान के मूल ढांचे का अंग है।
याचिका में कहा गया है, "लोकतंत्र में सामूहिक जिम्मेदारी का सिद्धांत - अनुच्छेद 239AA(6) में शामिल है - यह आवश्यक है कि निर्वाचित सरकार को अपने डोमेन में तैनात अधिकारियों पर नियंत्रण निहित हो। संघीय संदर्भ में, इसके लिए यह आवश्यक होगा कि ऐसा नियंत्रण क्षेत्रीय में निहित हो सरकार - यानी अनुच्छेद 239एए के तहत जीएनसीटीडी - अपने डोमेन के मामलों के लिए। यह आवश्यक सुविधा इस माननीय न्यायालय के 2023 संविधान पीठ के फैसले द्वारा जीएनसीटीडी के लिए सुरक्षित की गई थी, और अब विवादित अध्यादेश द्वारा इसे पूर्ववत करने की मांग की गई है",
अध्यादेश में यह व्यवस्था है कि, मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में, दो वरिष्ठ नौकरशाहों की एक समिति सिविल सेवकों के स्थानांतरण और पोस्टिंग के संबंध में उपराज्यपाल को सिफारिशें करेगी; हालाँकि, निर्णय लेने में एलजी के पास 'एकमात्र विवेक' होगा। यहां एक महत्वपूर्ण पेंच यह है कि, समिति के दोनो सदस्य, वरिष्ठ नौकरशाह होंगे और उनका चयन, उपराज्यपाल करेंगे। ऐसे में उनकी निष्ठा, एलजी यानी केंद्र सरकार की तरफ रहेगी और यदि कोई मत वैभिन्यता होगी तो एलजी का विवेक निर्णय करेगा। एलजी यानी भारत सरकार यानी गृह मंत्रालय यानी गृहमंत्री।
दिल्ली सरकार का कहना है, "इस प्रकार, विवादित अध्यादेश निर्वाचित सरकार, यानी जीएनसीटीडी को उसकी सिविल सेवा पर नियंत्रण से पूरी तरह से अलग कर देता है", यह इंगित करते हुए कि केंद्र सरकार ने 2015 की अधिसूचना के माध्यम से इसी तरह का लक्ष्य हासिल करने की मांग की थी, जो कि सुप्रीम कोर्ट ने अमान्य कर दिया था. उसी स्थिति को, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक पाया था, अध्यादेश के माध्यम से बहाल करने की मांग की गई है।
याचिका में, यह भी बताया गया है कि अनुच्छेद 239AA के अनुसार, दिल्ली सरकार के पास तीन निर्दिष्ट विषयों - कानून और व्यवस्था, पुलिस और भूमि को छोड़कर राज्य सूची के सभी मामलों पर अधिकार हैं। हालाँकि, अध्यादेश में संवैधानिक संशोधन के बिना, छूट प्राप्त श्रेणियों में "सेवाओं" के विषय को जोड़ने का प्रभाव है।
दिल्ली सरकार का कहना है कि, यह एक स्थापित कानून है कि विधायिका के लिए, संविधान पीठ या सुप्रीम कोर्ट के, किसी निर्णय को आसानी से खारिज करना अस्वीकार्य है। यह अध्यादेश, सुप्रीम कोर्ट के फैसले को, सीधे खारिज कर देता है। याचिका के अनुसार, "आक्षेपित अध्यादेश इन दोनों पहलुओं में से प्रत्येक पर माननीय न्यायालय के फैसले को उलटने का प्रयास करता है, केवल जीएनसीटीडी अधिनियम में संशोधन करके, फैसले के आधार यानी संविधान में संशोधन किए बिना। जहां तक विवादित अध्यादेश इस माननीय न्यायालय के फैसले को उलट देता है निर्णय, यह एक अस्वीकार्य 'प्रत्यक्ष अधिनिर्णय' या 'समीक्षा' के समान है और इसे रद्द किया जा सकता है", याचिका में कहा गया है।
अध्यादेश को स्पष्ट मनमानी के आधार पर भी चुनौती दी गई है, क्योंकि यह सेवाओं पर नियंत्रण हटाकर, एक चुनी हुई सरकार द्वारा उसके गवर्नेंस के कार्य को, असंभव बना देता है। इस प्रकार, इस अध्यादेश द्वारा, दिल्ली की चुनी हुई सरकार, निरर्थक हो गई है। अध्यादेश के प्रावधान सचिवों, जो कि वरिष्ठ अफसर होते हैं के विवेक और कृत्य को, एक जनता द्वारा निर्वाचित सरकार पर, अधिभावी शक्तियाँ देते हैं और इससे प्रशासन में अव्यवहारिक गतिरोध पैदा हो सकता है। याचिका में, इसे निम्न प्रकार से स्पष्ट किया गया, "सिविल सेवकों पर नियंत्रण संघ के हाथों में सौंपकर, और फिर जीएनसीटीडी को ओवरराइड करने के लिए सिविल सेवकों को व्यापक विवेकाधीन शक्तियां प्रदान करके, लागू अध्यादेश प्रभाव और डिजाइन में संघ को दिल्ली का शासन संभालने की अनुमति देता है।"
विजय शंकर सिंह
Vijay Shanker Singh
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