रिटायर्ड नौकरशाहों को मंत्री नहीं बनाया जाना चाहिए। वे न तो, जनता से जुड़े होते हैं और न ही जनता में पैठे होते हैं। ब्रिटिश हुकूमत की ठसक लिए, उनका माइंडसेट भी औपनिवेशिक और एक अलग वर्ग का हो जाता है, जो खुद को माई बाप समझने की मानसिकता से संक्रमित भी होता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि, वे काबिल होते हैं, मेहनती होते हैं और अनुभव तो उनमें होता ही है।
साथ ही, तय समय पर वे, सौंपे गए कार्यों का निष्पादन भी करने में सक्षम होते हैं, पर विचारधारा के रूप में उनकी प्रतिबद्धता, अपने दल, जिसकी सरकार में, वे मंत्री बनाए गए होते हैं, के प्रति नहीं रहती है। वे दल और दल की विचारधारा के बजाय, व्यक्ति विशेष, जो दल का नेता हो सकता है, या वह व्यक्ति, जिसने उन्हें दल में लाकर मंत्री पद सौंपा हो के प्रति, प्रतिबद्ध रहते हैं, क्योंकि उसके अलावा, न तो उनका कोई जनाधार रहता है और न ही उम्र के इस पड़ाव पर वे संघर्ष करके, अपना जनाधार ही विकसित कर सकते हैं।
नौकरशाह की मूल प्रवृत्ति, आज्ञापालक की होती है। वह यह जानते हुए भी, जो कुछ भी उससे करने के लिए कहा जा रहा है, कानूनन और नैतिक रूप से उचित नहीं है, फिर भी वह उसे, सिर्फ इसलिए, पूरा करते हैं, क्योंकि, उससे वह करने के लिए कहा गया है। कभी कभी इस कृत्य को लेकर अपराध बोध उपजता भी रहता है तो, कभी कभी, इसे आदर्श आज्ञा पालन के तर्क में ढाल कर,वे इसका औचित्य भी ढूंढ निकाल लेते है।
लेकिन, नौकरशाही जी इस सामान्य मनोवृत्ति का अपवाद भी होता है और, नौकरशाह, प्रतिवाद तथा प्रतिरोध भी करते हैं। पर, ऐसे अपवाद नौकरशाहों की इस साफगोई को, उनकी ढीढता के रूप में भी, राजनीतिक बॉस द्वारा समझ और मान लिया जाता है। इसका उन्हे खामियाजा भी भुगतना पड़ता है। रिटायर्ड नौकरशाह की विशेषज्ञता का उपयोग, राजकार्य के अन्य क्षेत्रों में, एक सलाहकार के रूप में तो किया जा सकता है, पर उन्हे सरकार का अंग यानी मंत्री मंडल में नहीं लिया जाना चाहिए।
मंत्री का कार्य, नीति निर्माण का है, जनता की जरूरतों और जन अपेक्षा को भांपने और उन्हे पूरा करने का है, अपने दल की वैचारिकी के आधार पर नीतियां गढ़ने का है। जबकि नौकरशाह पूरी नौकरी, जनता के बीच करने के बावजूद, जनता से उतना तालमेल नहीं बैठा पाता है, जितना एक राजनीतिक व्यक्ति। राजनीतिक व्यक्ति का जीवन ही, जनता की इच्छा अनिच्छा पर निर्भर है, जब कि, नौकरशाह, सरकार के आदेश, कानून, रूल ऑफ बिजनेस के नियमों उपनियमों के प्रति प्रतिबद्ध रहता है।
ऐसा भी नहीं है कि उसे जनता का दुखदर्द पता नहीं होता है, लेकिन वह उस दुख दर्द का निवारण कैसे वे करें, इसे लेकर वह राजनीतिक नीति नियंतताओ तक अपनी बात पहुंचा तो सकते हैं, पर, उसे लागू किया ही जाय, यह दबाव देने की हैसियत में, वे कम ही रहते हैं। राजनीतिक विचारधारा और जनाधार के अभाव में, मंत्री बना हुआ नौकरशाह, अपने गॉडफादर के प्रति ही समर्पित रहता है और, सरकार का एक अंग रहते हुए भी, एक सुपर नौकरशाह के रूप में रूपांतरित हो जाता है।
विजय शंकर सिंह
Vijay Shanker Singh
सहमत
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