गुजरात के धनी जौहरियों का एक मेहता परिवार लंबे समय से रंगून में बसा हुआ था। यह परिवार, व्यापार की संभावनाओं की तलाश में, बर्मा जो अब म्यांमार है, गया था। इस परिवार ने वहां सोने चांदी और रत्नों का व्यापार किया तथा, पर्याप्त धन अर्जित किया। इसी परिवार के एक सदस्य थे, डॉ. प्राण जीवन मेहता। महत्व, महात्मा गांधी के सहयोगी और आजादी के आंदोलन से जुड़े एक व्यक्ति थे। डॉ मेहता, जब गांधी जी, लंदन में वकालत पढ़ रहे थे तो, उनके सहपाठी भी थे। गांधी उनके मित्र जरूर थे, पर मेहता के विचारों पर गांधी जी का गहरा प्रभाव पड़ा था।
उन्होंने कई बार गांधी जी की आर्थिक मदद भी की। खुद भी धन दिया और बॉम्बे के प्रसिद्ध बैरिस्टर, तथा, कांग्रेस के शीर्ष नेता, गोपाल कृष्ण गोखले को पत्र लिख कर आर्थिक मदद करने का आग्रह भी किया। गोखले के अनुरोध पर, तब जमशेद जी टाटा ने, गांधी जी को, दक्षिण अफ्रीका में उनके अभियानों के लिए, दो बार पच्चीस पच्चीस हजार रुपए की आर्थिक सहायता भेजी थी। इसका उल्लेख, रामचंद्र गुहा की किताब, गांधी, द ईयर्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड, में है।
इस किताब के अनुसार, डॉ प्राणजीवन मेहता पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने, गांधी जी को महात्मा कह कर संबोधित किया था। यह संबोधन उन्होंने गोखले को, गांधी जी के दक्षिण अफ्रीका में किए जा रहे आंदोलनो के संदर्भ में जानकारी देते हुए कहा था। लेकिन यह एक निजी पत्र और निजी संबोधन था, जो बहुत लोकप्रिय नही हुआ। गांधी ने उनकी मृत्यु पर अपना सबसे प्रिय दोस्त बताया था। डॉ मेहता ही वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने गांधी जी को, दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौटने के लिए कहा था।
मेहता परिवार के पास लोअर बर्मा के पयापोन जिले में लगभग 3,000 एकड़ ज़मीन थी। इन्ही डॉक्टर मेहता के बेटे, छगन लाल प्राणजीवन मेहता और उनके पूरे परिवार ने, नेताजी सुभाष और आज़ाद हिंद सरकार और आजाद हिन्द फौज का समर्थन किया था। छगनलाल मेहता की पत्नी श्रीमती लीलावती मेहता, अपनी दो बेटियों नीलम मेहता और रमा मेहता के साथ बर्मा में रानी झाँसी रेजिमेंट में शामिल होने वाली पहली महिलाएं थीं।
छगनलाल की दोनों बेटियां अपनी मां, लीलावती से प्रेरित थीं, जिन्हें कैप्टन डॉ लक्ष्मी स्वामीनाथन जो बाद में, डॉ लक्ष्मी सहगल बन गई और कानपुर में रहती थीं, ने एक 'दुर्जेय महिला' के रूप में, अपने संस्मरणों में, उल्लेख किया है। डॉ लक्ष्मी के अनुसार, लीलावती मेहता ने, "एक आईएनए अधिकारी से उधार ली गई तलवार भी लहराई थी"। फौज का उन्होंने प्रशिक्षण भी लिया और देश की सेवा करने का गौरव महसूस किया।" लीलावती मेहता ने रानी झाँसी रेजिमेंट के लिए कई अन्य लड़कियों और महिलाओं की भी भर्ती की।
जब रानी झाँसी रेजिमेंट को भंग कर दिया गया तो रमा मेहता और नीलम मेहता दोनों अपने घर, वापस चली गईं, उन्होंने इस दिन को अपने जीवन का सबसे दुखद दिन माना था। बर्मा पर, ब्रिटिश के दुबारा कब्जे के बाद, उनके घर पर उनसे, आजाद हिन्द फौज के बारे में, पूछताछ की गई। लेकिन, ब्रिटिश अधिकारियों ने उनके दृढ़ उत्तरों को देखकर कि, वे आजादी की लड़ाई के लिए देश की सेवा करने के लिए भर्ती हुई थी, उन्हें अकेला छोड़ दिया और फिर कोई पूछताछ नहीं की।
स्रोत: नेताजी, आज़ाद हिंद सरकार और फ़ौज (1942-47)
विजय शंकर सिंह
Vijay Shanker Singh
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