Thursday 15 June 2023

बीजेपी एमपी बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पॉक्सो एक्ट का मुकदमा और उसकी विवेचना / विजय शंकर सिंह

बीजेपी एमपी, बृज भूषण शरण सिंह जिनपर यौन शौषण का आरोप है के खिलाफ, दिल्ली पुलिस द्वारा आरोप पत्र दायर करने की खबर है। लेकिन उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई है और न ही उन्होंने, इस अवधि में किसी अदालत के समक्ष हाजिर होकर अपनी जमानत ही कराई है। 

यदि कानून की बात करें तो, सीआरपीसी में ऐसा कोई प्राविधान नहीं है, जिसमे आरोप पत्र देने के पहले मुल्जिम की गिरफ्तारी की ही जाय। गिरफ्तारी, विवेचना का एक अंग है, जिसे पुलिस तब करती है, जब उसे लगता है कि, मुल्जिम भाग जायेगा या वह फरियादी पर कोई बेजा दबाव डाल कर, सुबूतों से छेड़छाड़ कर सकता है। 

हो सकता है इस मामले में भी पुलिस को यह भरोसा रहा हो कि, मुल्जिम एक जनप्रतिनिधि है और अपने रसूख के बावजूद, एक भी ऐसा कृत्य नहीं करेगा, जिससे, फरियादी दबाव में आएगी और वह पीछे हट जाएगी। हो सकता है मुल्जिम के अच्छे, चालचलन के कारण दिल्ली पुलिस ने सीआरपीसी के इस प्राविधान का पालन किया हो। 

सुप्रीम कोर्ट का भी, एक निर्देश है कि, जिन अपराधों में, सात साल की सजा है, उसमे गिरफ्तारी न की जाय। लेकिन, गिरफ्तारी करने या न करने का निर्णय, पुलिस के विवेचक पर निर्भर है। लेकिन, आमतौर पर, आपराधिक मामले में, गिरफ्तारी न करना, भले ही सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार, एक नियम हो, पर ऐसा होता, अपवादस्वरूप ही है। 

बृजभूषण शरण सिंह के मामले में, गिरफ्तारी न करने का निर्णय, सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्देश के आधार पर है या किसी अन्य कारण से, यह तभी बताया जा सकता है जब चार्ज शीट और पुलिस विवेचना की पूरी जानकारी सार्वजनिक हो जाय। 

बीजेपी सांसद, बृजभूषण शरण सिंह के मामले में, नाबालिग फरियादी की उम्र और उसकी वयस्कता को लेकर, मीडिया में एक चर्चा यह भी है कि, पीड़िता बालिग है, और यह बात उसके चाचा ने बताई थी।

पहली बात, किसी की वयस्कता का निर्धारण, उसके माता, पिता, चाचा, ताऊ के बयान पर निर्भर नहीं होता है। यह निर्धारित होता है, उसके जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर, जो अस्पताल या नगर निगम आदि से मिलता हैं।
दूसरी बात, जब कोई अभिलेख उपलब्ध ही न हो, तो इसका निर्धारण, डॉक्टर, मेडिकल जांच के आधार पर कर सकता है और उस निष्कर्ष के आधार पर, उम्र तय होती है।

अब सवाल उठता है कि, जब वयस्कता निर्धारित ही नहीं थी, तो पुलिस ने POCSO एक्ट के अंतर्गत मुक़दमा कैसे दर्ज कर लिया?
इसके उत्तर में यह कहा जा सकता है कि, प्रथम दृष्टया, जो तथ्य सामने आए, उन पर एफआईआर दर्ज कर ली गई। और यह तर्क अनुचित भी नहीं है।

लेकिन POCSO एक्ट में तफ्तीश की शुरुआत ही इस विंदु से होती है कि, पीड़िता, नाबालिग है या नहीं। यदि वह नाबालिग नहीं है तो, जांच के बाद, पुलिस POCSO एक्ट का केस खत्म कर देती है। लेकिन यदि पीड़िता नाबालिग है तो फिर पॉस्को एक्ट में कार्यवाही की जाती है।

अब थोड़ा इस केस की क्रोनोलॉजी भी देख लें।
० 28 अप्रैल को, सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद, दिल्ली पुलिस मुल्जिम के खिलाफ, दो मुकदमे दर्ज करती है।
एक, POCSO एक्ट का,
दूसरा, यौन शौषण की आईपीसी की अन्य धाराओं के अंतर्गत
० 10 मई, को पीड़िता का बयान, मैजिस्ट्रेट के समक्ष, धारा 164 सीआरपीसी के अंतर्गत, कलमबंद कराया गया।
० अब कहा जा रहा है कि, पीड़िता अपने कलमबंद बयान से पलट गई है।
० फिर, पहलवानों और गृहमंत्री के बीच वार्ता होती है।
० फिर यह खबर आती है कि, 15 जून तक, पुलिस जांच में कोई न कोई प्रभावी कार्यवाही करेगी।
० अब खबर आई है कि, पुलिस ने POCSO में, फाइनल रिपोर्ट जिसे क्लोजर रिपोर्ट कहते हैं, दाखिल करेगी और आईपीसी के अंतर्गत दर्ज, यौन शौषण के मुकदमे में चार्ज शीट दाखिल की है।

अब यहीं यह सवाल उठता है कि, क्या जब मजिस्ट्रेट, सीआरपीसी की धारा 164 के अंतर्गत, पीड़िता का कलमबंद बयान, दर्ज कर रहे थे, तब, क्या पीड़िता की उम्र उक्त बयान के समय नोट नहीं की गई थी?
बयान की शुरुआत ही, पीड़िता के नाम, पिता के नाम, और उसकी उम्र के साथ शुरू होती है। उसी समय, पीड़िता की वयस्कता का पता चल जाता है और उसी धारा 164 सीआरपीसी के बयान पर, ही यदि पीड़िता वयस्क थी, तो, पॉस्को एक्ट की धारा खत्म हो जानी चाहिए थी।

अक्सर न्यायालय के फैसले के लिए कहा जाता है कि, फैसला न्याययुक्त तो हो ही, पर वह न्याययुक्त दिखे भी। यही सूत्र पुलिस विवेचना के लिए भी है कि, पुलिस तफ्तीश, नियमानुकूल तो हो ही, वह नियमानुकूल दिखे भी।

यह मामला भी, किसी दूर दराज गांव के थाने का नहीं, बल्कि देश की राजधानी दिल्ली के दिल, कनॉट प्लेस थाने में दर्ज एक महत्वपूर्ण फरियादी की एफआईआर पर, जिसमें मुल्जिम भी महत्वपूर्ण और असरदार जनप्रतिनिधि है, के खिलाफ दर्ज मामले का है।

और जब मुकदमा से लेकर, थाना, फरियादी, पीड़िता और मुल्जिम सभी महत्वपूर्ण हस्तियां हैं, तो ऐसे मुकदमे की तफ्तीश पर सबकी निगाह स्वाभाविक रूप से रहेगी ही।

इस पूरे घटनाक्रम में, सबसे अधिक यदि किसी संस्था की साख गिरी है तो वह दिल्ली पुलिस है। इस केस में दिल्ली पुलिस की भूमिका से यह संदेश जनता में स्पष्ट रूप से गया है कि, यदि कोई मुल्जिम, राजनीतिक और अन्य तरह से असरदार है तो, देश की सबसे साधन संपन्न पुलिस भी उस का कुछ बिगाड़ नहीं सकती है और राजनीतिक आका, पुलिस की हर तफ्तीश को, अपनी भ्रू भंगिमा से, नचा सकते हैं।

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh

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