सरकारें न तो पहली बार गिराई और बनाई जा रही है, और न ही पहली बार, दलबदल हो रहा है। यह लंबे समय से चलता रहा है और आगे भी चलता रहेगा। राजनीति का खेल ही, साम दाम दण्ड भेद पर आधारित है और सत्ता पाने के लिए यह सब आदि काल से होता रहा है और अनंत काल तक चलता रहेगा। जो इनमे कुशल है या कुशल सिद्ध होंगे, वह सत्ता हासिल करेंगे अन्यथा सत्ता खो देंगे। सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट का सिद्धांत कहीं और लागू हो या न हो, राजनीति के खेल में वह बखूबी लागू होता है।
पर इस राजनीति और सरकार गिराने बनाने के खेल में जिस तरह से ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय को लेकर लगातार मजाक उड़ रहा है, उससे देश की इस महत्वपूर्ण जांच एजेंसी की साख पर, सवाल खड़ा हो रहा है। इसके लिए, कहीं न कही ईडी को, अपनी साख को लेकर आत्ममंथन करना होगा।
सीबीआई/ईडी/सतर्कता विभाग/पुलिस/नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो/आयकर/जीएसटी विभाग आदि जो भी लॉ इनफोर्समेंट एजेंसियां होती हैं, उन सब में एक इंटेलिजेंस यूनिट होती है, जिसका काम ही है कि अपराध/आर्थिक अपराध/टैक्स चोरी आदि के बारे में, मुखबिर तैयार करना और उनकी अग्रिम सूचनाएं एकत्र कर उनकी तहकीकात करना।
यह इकाई सीधे डायरेक्टर के अधीन होती है, और जनता से भी, सूचना देने वाले की गोपनीयता बनाए रखने के वादे पर, सीधे सूचना मांग सकती है। इन सूचनाओं की पुष्टि होती है और यदि सूचनाएं सही लगती है तो उसकी विस्तृत जांच की जाती है। ऐसी सूचनाएं, सारी एजेंसियां एक दूसरे से शेयर करती रहती हैं।
सूचना एकत्रीकरण में गोपनीयता भंग न हो, इसलिए कभी भी सूचना स्रोत का नाम नहीं बताया जाता है, यहां तक कि, अदालत को भी नहीं। कभी कभी विभाग में भी यह बेहद गोपनीय रखा जाता है। आयकर विभाग तो, ऐसी सूचना पर, जो कर चोरी से बचा कर रखी गई रकम के अनुसार, सूचना देने वाले को पुरस्कृत भी करता है।
ऐसी ही सूचनाओं के आधार पर, एजेंसियां छापे डालती हैं, और भारी संख्या में छुपाया हुआ धन बरामद करती हैं। इसमें भ्रष्टाचार में लिप्त लोकसेवक भी होते हैं और धन के लेनदेन में लिप्त व्यापारी और राजनीतिक लोग। इधर, महाराष्ट्र, झारखंड और अन्य गैर बीजेपी शासित राज्यों के जिस तरह से ईडी या अन्य सेंट्रल एजेंसीज की गतिविधियां बढ़ी हैं, वैसी गतिविधियां, साल 2014 से, बीजेपी शासित राज्यों या बीजेपी से जुड़े नेताओ के खिलाफ नहीं हुई हैं।
अब या तो इन एजेंसियों ने बीजेपी से जुड़ी नेताओं के बारे में कोई सूचना एकत्र नही की या तो वे सब के सब किसी भी आर्थिक अपराध में लिप्त नहीं हैं। अभी महाराष्ट्र में शिंदे गुट में शामिल अनेक विधायकों को, ED, प्रवर्तन निदेशालय ने नोटिस भेजा पर जब से वे बीजेपी के साथ सरकार में आ गए, उनको भेजे नोटिस पर क्या कार्यवाही हुई, यह पता नहीं है। कार्यवाही हुई या नहीं यह भी पता नहीं है।
ऐसी कार्यशैली से, राजनीति का कुछ भी बनता बिगड़ता नहीं है, पर जांच एजेंसी की क्षवि पक्षपात रहित नहीं रह जाती है, जिससे उसकी साख पर असर पड़ता है। ईडी का इधर जो मजाक बनने लगा है वह इन जांच एजेंसी को तमाम अख्तियारात के बाद भी तमाशा बना कर रख देगा। जांच एजेंसी की साख बनाना और बचाए रखना, जांच एजेंसी के प्रमुख और वरिष्ठ अधिकारियों का दायित्व है।
(विजय शंकर सिंह)
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