Friday 28 January 2022

नीति धुँधता की शिकार है, सरकार की आर्थिक नीति / विजय शंकर सिंह


2014 के बाद के आरएसएस/भाजपा शासन ने एक बात स्पष्ट कर दी है कि, धर्म आधारित राष्ट्र में आर्थिक विकास, रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य के मुद्दे प्राथमिकता में आते ही नही है। समाज भय और उन्माद में जीने लगता है और पल पल, हर बात पर आहत होते रहने का मनोभाव, उसका  स्थायी भाव बन जाता है।

इन सात सालो में आरएसएस/भाजपा के आर्थिक चिंतन और उनके नीतियो की दरिद्रता अब सामने आ गयी है।  बढ़ती बेरोजगारी, उछाल मारती महंगाई, मंदी की तरफ जाती आर्थिकी के समाधान के लिये जिस आर्थिक दृष्टि की आज जरूरत है, वह इनके पास है ही नहीं।

भाजपा आरएसएस का कोई आर्थिक एजेंडा कभी रहा ही नहीं है। इस विंदु पर इन्होंने कभी सोचा ही नही। इसका कारण इनकी दृष्टिहीनता और विचार धुँधता रही है। बस इन्होंने यह सीखा है कि इनकी आर्थिक नीति, समाजवादी आर्थिकी के विपरीत चलनी चाहिए, और वह भी कैसी होगी, इस पर भी यह स्पष्ट नहीं है।

संघ को असल मुद्दों से कोई सरोकार नहीं है, और उसे नियंत्रित करने वाले  कॉरपोरेट की चिंता में, लोगों की रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य है ही नहीं। संघ का उद्देश्य, एक ऐसा समाज बनाना है, जो धर्मांध और अनुदार हो, औऱ कॉरपोरेट का उद्देश्य है, अनियंत्रित मुनाफा वाली आर्थिकी का विस्तार।

रेलवे, बैंक, बड़ी बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ीं इकाइयों सहित तमाम पब्लिक सेक्टर संस्थान, सरकारी नियंत्रण में रहें या निजी संपत्तियों में तब्दील हो जाएं, इससे आरएसएस को कोई लेना देना नही है और देश की बहुलतावादी संस्कृति रहे या नष्ट होती रहे, इससे कॉरपोरेट को कोई सरोकार नहीं है।

आज यही हो रहा है। एक तरफ अनियंत्रित धर्मांधता है तो दूसरी तरफ सर्वग्रासी कॉरपोरेट देश की समस्त सम्पदा को निगलता जा रहा है। सरकार, जनहित के एजेंडे पर कम और कॉरपोरेट के एजेंडे पर अधिक चल रही है। इसीलिए सरकार रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य के मसले पर न तो कुछ कहती है, न सुनती है।

जनता को भरमाने और बरगलाने के लिये कॉरपोरेट नियंत्रित मीडिया का उपयोग जिस  सुनियोजित षडयंत्र के साथ किया जा रहा है वह अब अयां हो गया है। देश मे धर्मांधता और उन्माद फैलाने तथा जनहित के मुद्दों पर निर्लज्ज खामोशी ओढ़ लेने वाला यह मीडिया, गौएबेलिज़्म का भारतीय संस्करण बन कर सामने आ गया है।

जिस आर्थिक नीति पर सरकार आज चल रही है, दरअसल वह कोई नीति है ही नहीं। वह नीति है, जनता को धर्म के नशे में बेसुध कर, देश की समस्त कम्पनियों को कॉरपोरेट के हांथो बेच देना और फिर रोजगार, आर्थिक तरक़्क़ी और सब कुछ बाजार तय करता है, यह कह कर सारी जन समस्याओं से पल्ला झाड़ लेना।

(विजय शंकर सिंह)

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