Monday 24 January 2022

प्रवीण झा - दक्षिण भारत का इतिहास - दो (16)


       (चित्र: जिन्ना, पेरियार और अंबेडकर)

“मैं चाहता हूँ कि शुक्रवार, 22 दिसंबर को देश के मुसलमान ‘डिलिवरेंस डे’ की तरह मनाएँ। कांग्रेस की सरकारों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। हमें कांग्रेस से मुक्ति मिल गयी है।”

- मोहम्मद अली जिन्ना, 1939 

द्वितीय विश्वयुद्ध का छिड़ना भारत के भविष्य के लिए अच्छा भी था, या बुरा भी। अच्छी बात यह कि भारत को स्वतंत्रता की उम्मीद थी। बुरी बात यह कि आज़ादी मिले न मिले, बँटवारा पहले शुरू हो रहा था। 

अल्लामा इक़बाल 1930 में पाकिस्तान का आइडिया दे चुके थे, जो 1937 के चुनाव तक मुसलमानों को कुछ हद तक एकीकृत करने में काम आया। वहीं, 1938 में पेरियार ने द्रविड़ नाडु की प्रस्तावना रखी। उनकी चिंता आर्य-शासित भारत में द्रविड़ों को लेकर थी। अंबेडकर की चिंता दलितों को लेकर थी। हिंदू महासभा के विनायक सावरकर की चिंता हिंदू राष्ट्र को लेकर थी। कम्युनिस्टों की भी कुछ चिंता थी। 

इन सभी परस्पर विरोधी समूहों में एक बात कॉमन थी कि ये सभी कांग्रेस और गांधी-विरोधी हो रहे थे। इस कारण अगले दशक में इनके मध्य अलग-अलग गठबंधन या कुछ सहमतियाँ बनी। पहली सहमति तो यह कि ये युद्ध में अंग्रेज़ों के साथ थे। कुछ को यह आश्वासन मिल रहा था कि युद्ध में सहायता के बदले उन्हें मनचाहा प्रांत मिल जाएगा, कुछ को यकीन था कि स्वतंत्रता मिल जाएगी, कुछ यूँ ही कांग्रेस-विरोधी होने के नाते अंग्रेज़ों के साथ थे, और कुछ तब साथ आए जब रूस युद्ध में आया।

जैसे ही कांग्रेस की सभी सरकारों ने इस्तीफ़ा दिया, जिन्ना ने ‘डिलवरेंस डे’ की घोषणा कर दी कि देश कांग्रेस-मुक्त हो रहा है। राजाजी मुश्किल से दो साल मद्रास की गद्दी पर बैठे थे, और उसमें भी हिंदी-विरोधी आंदोलन ही चलते रहे। इस्तीफ़े के कुछ समय बाद तमाम कांग्रेसी नेताओं की तरह उनको भी जेल भेज दिया गया। वह नाराज़ हो गए कि कांग्रेस यह आत्म-हंता निर्णय क्यों ले रही है। अगर सभी जेल चले गए, तो मुस्लिम लीग और तमाम ग़ैर-कांग्रेसी अपनी मर्जी चलाएँगे। उनकी शंका उचित थी। 

डिलिवरेंस डे मनाने के बाद वर्ष 1940 की पहली तारीख को जिन्ना ने गांधी को चिट्ठी लिखी, “हमें डिलिवरेंस-डे मनाने में ग़ैर-कांग्रेसी हिंदुओं, जस्टिस पार्टी के नेताओं, पारसियों और अनुसूचित जाति का समर्थन मिला है”

उनकी बात हवा में नहीं थी। अंबेडकर और तमाम पारसी तो उस मुक्ति-दिवस (डिलिवरेंस डे) पर उनके साथ बंबई में ही थे। 6 जनवरी को सुबह दस बजे मद्रास से एक ट्रेन दादर स्टेशन आकर रुकी। 

उस ट्रेन से पेरियार, अन्नादुरइ और कुछ सहयोगी निकले। उनके लिए अंबेडकर ने सजा-धजा कर घोड़ा-गाड़ी भेजी थी। 8 जनवरी को अंबेडकर उन्हें जिन्ना के बंगले पर ले गए, जहाँ तीनों में यह सहमति बनी कि वे एक-दूसरे का साथ देंगे। चूँकि पेरियार को हिंदी या अंग्रेज़ी ढंग से नहीं आती थी, अन्नादुरइ ने दुभाषिये का कार्य किया। जिन्ना ने दक्षिण के मुसलमानों को ध्यान में रखते हुए ‘द्रविड़स्तान’ नाम का सुझाव दिया।

इस मीटिंग के दो महीने बाद 25 मार्च, 1940 को मुस्लिम लीग ने औपचारिक रूप से पाकिस्तान की माँग का प्रस्ताव पारित किया; और अगस्त, 1940 में तिरुवरूर में पेरियार ने द्रविड़स्तान की घोषणा कर दी। हालाँकि जिन्ना कुछ वर्ष बाद ऐसे किसी समझौते से मुकर गए, क्योंकि उन्हें पेरियार के जन-समर्थन पर भरोसा नहीं रहा। 

जिन्ना भी ग़लत नहीं थे। कांग्रेस ने पिछला चुनाव बड़े आराम से जीता था। जनता कांग्रेस से कुछ नाराज़ होकर भी भारत से अलग अस्तित्व नहीं सोच सकती थी। ग़ैर-तमिल द्रविड़ जनता यानी कन्नडिगा, तेलुगु और मलयाली तो कभी साथ थे ही नहीं। पेरियार कोई दिवा-स्वप्न देख रहे थे। 

जब मुसलमानों से समझौते के बाद तमिल हिंदू उनसे नाराज़ हुए तो अन्नादुरइ ने कहा,

“जिस शोध से यह पता लगा कि अंग्रेज़ और आर्य एक नस्ल हैं, उसी शोध से यह भी पता लगा कि द्रविड़ों और मुसलमानों का भी नस्ल एक है। इसलिए हम उनके साथ है।”

यह एक हास्यास्पद और कमजोर तर्क था, जिसे जिन्ना ने भी कोई तवज्जो नहीं दी। उन्हें लगने लगा कि ये हवाबाज़ हैं और इनके फेर में उनका पाकिस्तान का स्वप्न अधूरा रह जाएगा। कांग्रेस की ग़ैरमौजूदगी में मुस्लिम लीग ने बंगाल, सिंध और फ्रंटियर प्रांत में हिंदू महासभा के साथ सरकार चलायी, लेकिन पेरियार से उस तरह का समीकरण नहीं बना। 1942 में जब स्टाफोर्ड क्रिप्स कांग्रेस और अन्य दलों से मिलने आए, तो उन्होंने भी द्रविड़स्तान का प्रस्ताव ख़ारिज कर दिया। 

पेरियार अब भी किसी और दुनिया में थे। कांग्रेस ने ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ का नारा लगाया, तो पेरियार ने भी नारा लगाया- ‘आर्यने वेलीयरू’ (आर्यों बाहर जाओ!)। इस नारे के साथ ही पेरियार ने एक ऐसी ग़लती की, जो उन्हें महंगी पड़ी। 

उन्होंने वैष्णवों के प्रिय ग्रंथ ‘रामायण’ और शैवों के प्रिय ग्रंथ ‘पेरियापुराणम’ जलाने का आह्वान कर दिया। 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

दक्षिण भारत का इतिहास - दो (15)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/01/15_23.html
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