Tuesday 1 August 2023

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, मणिपुर कानून व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त, डीजीपी मणिपुर, शुक्रवार को हाज़िर हों और, जांच के लिए एसआईटी गठित करने का संकेत / विजय शंकर सिंह

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जातीय हिंसा के संबंध में मणिपुर पुलिस द्वारा की गई जांच को "सुस्त" बताया और यहां तक ​​कहा कि "राज्य की कानून-व्यवस्था और मशीनरी पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है"।
अदालत यह जानकर हैरान थी कि घटनाओं के बाद, लगभग तीन महीने तक एफआईआर दर्ज नहीं की गई थी और हिंसा पर दर्ज 6000 एफआईआर में से अब तक केवल कुछ ही गिरफ्तारियां हुई हैं। शीर्ष कोर्ट ने मणिपुर के पुलिस महानिदेशक को शुक्रवार दोपहर 2 बजे व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित होने का निर्देश दिया।

लीगल वेबसाइट, लाइव लॉ के अनुसार, 
"प्रारंभिक आंकड़ों के आधार पर, प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि, जांच में देरी की गई है। घटना का दिन और समय, तथा, एफआईआर दर्ज करने की तारीख और समय, दर्ज एफआईआर पर,cगवाहों के बयान दर्ज करने और यहां तक ​​कि, मुल्जिमों की गिरफ्तारियों के बीच काफी अंतर है और यह एक बड़ी चूक है। इस क्रम में, अदालत को आवश्यक जांच की प्रकृति के सभी आयामों का अध्ययन करने के लिए, हम मणिपुर के डीजीपी को निर्देश देते हैं कि, वह शुक्रवार (04/08/23) दोपहर 2 बजे अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हों और अदालत के सवालों का जवाब देने की स्थिति में हों।'' 
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा.

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ, मणिपुर हिंसा से संबंधित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसमें यौन हिंसा के पीड़ितों द्वारा दायर याचिकाएं भी शामिल थीं।  हिंसा की प्रणालीगत प्रकृति पर प्रकाश डालने के बाद, कल पीठ ने राज्य से कई प्रश्न पूछे थे।

राज्य की ओर से पेश हुए भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आज पीठ को सूचित किया कि 6532 एफआईआर दर्ज की गई हैं और उनमें से 11, महिलाओं के खिलाफ अपराधों से संबंधित हैं।

सीजेआई ने पूछा कि "इनमें से कितनी 'शून्य', एफआईआर हैं?"  सीजेआई ने उन तारीखों के बारे में भी पूछा जिन पर 'शून्य' एफआईआर को नियमित एफआईआर के रूप में परिवर्तित किया गया था।  एसजी ने, इसपर कहा कि, "वह तत्काल प्रतिक्रिया देने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि 6532 एफआईआर से संबंधित चार्ट अधिकारियों द्वारा रात भर में तैयार किया गया था और उन्हें दिन के दौरान जानकारी दी गई थी।"

सीजेआई ने यौन हिंसा वीडियो से जुड़े मामले में गिरफ्तारी की तारीख के बारे में भी पूछा   एसजी कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दे सके लेकिन, उन्होंने कहा, "ऐसा प्रतीत होता है कि वीडियो सामने आने के बाद इसमें कुछ कार्यवाही की गई है।"

एफआईआर दर्ज करने में काफी देरी;  कानून एवं व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो गई, राज्य पुलिस ने नियंत्रण खो दिया है।

पीठ ने कहा, "एक बात बहुत स्पष्ट है। एफआईआर दर्ज करने में इतनी अधिक देरी हुई है", सीजेआई ने एसजी द्वारा प्रस्तुत नोट को देखने के बाद कहा।  
सीजेआई ने एक महिला को कार से बाहर खींचने और उसके बेटे की पीट-पीटकर हत्या करने की घटना का जिक्र करते हुए कहा, "4 मई की घटना के संबंध में 7 जुलाई को एफआईआर दर्ज की गई थी। जबकि, यह एक गंभीर घटना थी।"
सीजेआई ने कहा, "ऐसा प्रतीत होता है कि एक या दो मामलों को छोड़कर, अन्य किसी मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है।"

सीजेआई ने कहा, "जांच बहुत सुस्त है। दो महीने के बाद एफआईआर दर्ज की गई। गिरफ्तारी नहीं हुई। लंबे समय के बाद बयान दर्ज किए गए।"  एसजी ने कहा कि जमीन पर हालात खराब थे और जैसे ही केंद्र को पता चला, कार्रवाई की गई।
"इससे हमें यह आभास होता है कि मई की शुरुआत से लेकर जुलाई के अंत तक, राज्य में कोई कानून था ही नहीं। मशीनरी पूरी तरह से ध्वस्त हो गई थी कि, आप एफआईआर तक भी दर्ज नहीं कर सके? क्या यह इस तथ्य की ओर इशारा नहीं करता है कि लॉ एंड ऑर्डर मशीनरी पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है।" सीजेआई ने पूछा।

सीजेआई ने कहा, "राज्य पुलिस, जांच करने में असमर्थ है। उन्होंने नियंत्रण खो दिया है। वहां बिल्कुल भी कानून-व्यवस्था नहीं है।"  
सीजेआई ने कहा, "6000 एफआईआर में आपने 7 गिरफ्तारियां की हैं!"  
एसजी ने स्पष्ट किया कि 7 गिरफ्तारियां वायरल वीडियो घटना के संबंध में की गईं और कुल मिलाकर 250 गिरफ्तारियां की गईं और 12000 गिरफ्तारियां निवारक उपायों के रूप में की गईं।"
एसजी ने कहा, "मी लॉर्ड, आप द्वारा, अदालत में, कहे शब्दों के भी परिणाम हो सकते हैं, इसका उपयोग या दुरुपयोग उन तरीकों से किया जा सकता है जिनका इरादा भी नहीं था।"

सीजेआई ने यह भी पूछा कि क्या महिलाओं को भीड़ के हवाले करने वाले पुलिसकर्मियों से पूछताछ की गई?" "महिलाओं के बयान हैं जो कह रहे हैं कि, पुलिसवालों ने उन्हें भीड़ के हवाले कर दिया। क्या उन पुलिसकर्मियों से पूछताछ की गई है? क्या डीजीपी ने पूछताछ की है? डीजीपी क्या कर रहे हैं? यह उनका कर्तव्य है", सीजेआई ने कहा।

सीजेआई ने कहा, "यह स्पष्ट है कि दो महीनों के लिए, राज्य पुलिस प्रभारी नहीं थी। उन्होंने प्रदर्शनात्मक गिरफ्तारियां की होंगी, लेकिन वे प्रभारी नहीं थे। या तो वे ऐसा करने में असमर्थ थे या इसमें, उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं थी।"

० एफआईआर को अलग अलग करें

पीठ ने यह भी कहा कि, "सभी एफआईआर को सीबीआई को स्थानांतरित करना असंभव है क्योंकि इससे केंद्रीय एजेंसी टूट जाएगी।"  
एसजी ने कहा कि "फिलहाल मौजूदा प्रस्ताव यौन हिंसा के 11 मामलों को सीबीआई को ट्रांसफर करने का है।"

सीजेआई ने कहा, "इसलिए इन 6500 एफआईआर को विभाजित करने के लिए एक तंत्र की आवश्यकता है। क्योंकि सभी 6500 का बोझ सीबीआई पर नहीं डाला जा सकता है अन्यथा इसके परिणामस्वरूप सीबीआई का तंत्र भी टूट जाएगा।"

अपराधों की प्रकृति के आधार पर एफआईआर के विभाजन पर पीठ के सवाल के संबंध में, एसजी ने एक्सरसाइज शुरू करने के लिए शुक्रवार तक का समय देने का अनुरोध किया।  पीठ ने राज्य को यह बताने का निर्देश दिया कि, कितनी प्राथमिकी,
० हत्या और बलात्कार,
० आगजनी;  
० गृह संपत्ति का विनाश;  
० शील का अपमान;  
० धार्मिक स्थलों का विनाश;  और 
० गंभीर चोट. आदि से संबंधित है। 

पीठ ने एक विवरण दाखिल करने को कहा, जिसमें कहा गया-
1. घटना की तारीख
2. जीरो एफआईआर दर्ज करने की तारीख
3. नियमित एफआईआर दर्ज करने की तारीख
4. वह तारीख जिस दिन गवाहों के बयान दर्ज किए गए हैं
5. दिनांक जिस दिन 164 के बयान दर्ज किये गये
6. गिरफ़्तारी की तारीख

० कोर्ट ने एसआईटी, समिति गठित करने की अपनी योजना का खुलासा किया

सीजेआई ने संकेत दिया कि न्यायालय उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों की एक समिति गठित करने के बारे में सोच सकता है जो स्थिति, पुनर्वास, घरों की बहाली का समग्र मूल्यांकन करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि बयान दर्ज करने से संबंधित पूर्व-जांच प्रक्रिया उचित तरीके से चले।  

सीजेआई ने संबंधित पक्षों से उस इकाई पर भी राय मांगी जिसे मामलों की जांच सौंपी जानी चाहिए।  उन्होंने कहा कि सभी मामलों को "लॉक, स्टॉक और बैरल" सहित, सीबीआई को स्थानांतरित करना अव्यावहारिक है। साथ ही राज्य पुलिस जांच करने की स्थिति में नहीं है.  इसलिए एक स्वतंत्र संस्था के गठन की जरूरत है।

सीजेआई चंद्रचूड़ ने यह भी स्पष्ट किया कि पीड़ितों की पहचान की परवाह किए बिना एक समान दृष्टिकोण अपनाया जाएगा, "मैं दोहराता हूं, हमारा दृष्टिकोण इस बात की परवाह किए बिना है कि अपराध किसी ने भी किया है। अपराध तो अपराध है, भले ही पीड़ित/अपराधी कोई भी हो।"

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

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