अनुच्छेद 370 के संशोधित करने के आदेश के खिलाफ, चुनौती दी गई कई याचिकाओं की सुनवाई, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा, ग्यारहवें दिन भी जारी रही। ग्यारहवें दिन की मुख्य बहस, भारत सरकार (यूनियन ऑफ इंडिया) की ओर से, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जारी रखी और अटॉर्नी जनरल, आर वेंकटरमणी भी अदालत में उपस्थित थे और उन्होंने भी अपनी दलील रखी। आज की बहस मुख्यतः अनुच्छेद 35A के संदर्भ में हुई। इसकी चर्चा, पीठ के प्रमुख सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने ही शुरू की।
कार्यवाही के ग्यारहवें दिन, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि, "अनुच्छेद 35A, जो जम्मू और कश्मीर (J&K) के स्थायी निवासियों को विशेष अधिकार और विशेष दर्जा प्रदान करता था, का असर, भारतीय नागरिकों के तीन मौलिक अधिकारों पर पड़ा था। अर्थात्, अनुच्छेद 16(1) (राज्य के अंतर्गत रोजगार के अवसर की समानता), पूर्ववर्ती अनुच्छेद 19(1(एफ) (अचल संपत्ति अर्जित करने का अधिकार, जो अब अनुच्छेद 300ए के तहत प्रदान किया गया है) और अनुच्छेद 19(1)(ई) (भारत के किसी भी हिस्से में रहने और बसने का अधिकार)।"
अदालत के अनुसार, ये मौलिक अधिकार, हटाए गए 35A के कारण, नागरिकों को प्राप्त नहीं थे। यह मौखिक टिप्पणी सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत की पीठ के समक्ष केंद्र सरकार द्वारा रखी गई दलीलों के दौरान की गई थी।
अनुच्छेद 35A पर, यह टिप्पणी करते हुए, सीजेआई ने बताया कि, "1954 के संविधान आदेश ने भारतीय संविधान के भाग III (मौलिक अधिकार) की संपूर्णता को जम्मू-कश्मीर पर लागू किया था। हालाँकि, राज्य सरकार के तहत रोजगार, अचल संपत्ति का अधिग्रहण, और राज्य में निपटारे आदि के संदर्भ में, अनुच्छेद 35ए ने तीन क्षेत्रों के तहत एक अपवाद के रूप में था।"
इस संदर्भ में सीजेआई ने कहा, "हालांकि भाग III लागू है, लेकिन, जब आप अनुच्छेद 35A पेश करते हैं, तो आप 3 मौलिक अधिकार छीन लेते हैं, जैसे, अनुच्छेद 16(1), अचल संपत्ति हासिल करने का अधिकार जो तब 19(1)(एफ) के तहत एक मौलिक अधिकार है, और, इन मामलों में, राज्य के अंतर्गत निपटारे का अधिकार, जो 19(1)(ई) के तहत एक मौलिक अधिकार है। अनुच्छेद 35A को लागू करके, आपने वस्तुतः, मौलिक अधिकार छीन लिये...और इस आधार पर किसी भी चुनौती से प्रतिरक्षा भी प्रदान कर दी, जो, आपको एक और मौलिक अधिकार से वंचित कर दे रहा और वह है, अनुच्छेद 16 के तहत, न्यायिक समीक्षा की शक्ति या अधिकार, जिसे छीन लिया गया था।।"
भारत संघ की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस पर सहमति जताई। उन्होंने जोड़ा, "जो कुछ भी यहां विवादित कहा गया है, वह शक्ति का एक संवैधानिक प्रयोग है जो मौलिक अधिकार प्रदान करता है, संपूर्ण संविधान को लागू करता है, जम्मू-कश्मीर के लोगों को अन्य नागरिकों के बराबर लाता है। यह उन सभी कानूनों को लागू करता है जो जम्मू-कश्मीर के लिए कल्याणकारी कानून हैं, और जो पहले लागू नहीं किए गए थे। इनकी सूची मेरे पास है। अब तक, लोगों को, उनकी रहनुमाई करने वालों द्वारा आश्वस्त किया गया था कि, यह (अनुच्छेद 370 और 35A) आपकी प्रगति में बाधा नहीं है, बल्कि, यह एक विशेषाधिकार है, जिसके लिए आप लड़ते हैं। योर लॉर्डशिप, कम से कम, दो प्रमुख राजनीतिक दल, अनुच्छेद 370 का बचाव कर रहे हैं, जिसमें अनुच्छेद 35ए भी शामिल है! अब लोगों को एहसास हो गया है कि उन्होंने क्या खोया था।”
एसजी ने, यह भी कहा कि, "अनुच्छेद 35A हटने से जम्मू-कश्मीर में निवेश आना शुरू हो गया है और पुलिस व्यवस्था केंद्र के पास होने से, राज्य में पर्यटन भी शुरू हो गया है।"
एसजी तुषार मेहता ने बताया कि, "370 हटने के बाद से लगभग 16 लाख पर्यटकों ने जम्मू-कश्मीर का दौरा किया है और राज्य में, नए होटल खोले गए हैं, जिससे बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिला है।"
भारत के अटॉर्नी जनरल ने बताया कि, "1954 के राष्ट्रपति आदेश, जिसके द्वारा, अनुच्छेद 35A पेश किया गया था, का प्रभाव संविधान में एक नये अनुच्छेद बनाने के रूप में पड़ा।"
उन्होंने पूछा कि, "क्या पूर्ववर्ती अनुच्छेद 370 के तहत भारतीय संविधान को "संशोधनों और अपवादों" के साथ जम्मू-कश्मीर में लागू करने की राष्ट्रपति की शक्ति का प्रयोग संविधान में एक बिल्कुल नया प्रावधान जोड़ने के लिए किया जा सकता है?"
एजी आर वेंकटरमणी ने कहा, "अनुच्छेद 35ए अनुच्छेद 35 का संशोधन नहीं है। यह एक नए अनुच्छेद का निर्माण है।"
० अनुच्छेद 370 के कारण भारतीय संविधान के विभिन्न प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं हुए।
आज अपनी दलीलों में एसजी मेहता ने जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान के लागू होने पर अनुच्छेद 370 के प्रभावों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि "भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 को इस प्रावधान के साथ लागू किया गया था कि कोई भी संवैधानिक संशोधन स्वचालित रूप से जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होगा जब तक कि इसे अनुच्छेद 370 के तहत प्रदान की गई प्रक्रिया के माध्यम से पारित नहीं किया जाता है। इसके परिणामस्वरूप भारतीय संविधान के प्रावधानों के बीच, देश और राज्य के भीतर लागू होने वाले प्रावधानो में असमानताएं पैदा हुईं, जो बाकी हिस्सों पर लागू होती हैं।"
उन्होंने तर्क दिया कि निम्नलिखित प्रावधानों का जम्मू-कश्मीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा,
1. शिक्षा का अधिकार प्रदान करने के लिए भारत के संविधान में संशोधन किया गया और अनुच्छेद 21ए डाला गया। हालाँकि, यह प्रावधान 2019 तक जम्मू-कश्मीर पर कभी लागू नहीं किया गया था।
2. भारतीय संविधान की प्रस्तावना संबंधी 1976 का संशोधन, संशोधनों के साथ लागू किया गया। इस प्रकार, जम्मू-कश्मीर में 'धर्मनिरपेक्षता' और 'समाजवाद' शब्द कभी नहीं अपनाए गए। इसके अलावा, "अखंडता" शब्द का भी प्रयोग नहीं किया गया।
3. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत लागू नहीं किये गये।
4. 2019 तक जम्मू-कश्मीर में आदिवासी लोगों के लिए आरक्षण लागू नहीं किया गया था। अनुच्छेद 15(4) से अनुसूचित जनजातियों का संदर्भ हटा दिया गया था।
5. अनुच्छेद 19 में, संशोधन के माध्यम से एक उप-अनुच्छेद (7) जोड़ा गया जो 1979 तक रहा। इसके अनुसार, "उचित प्रतिबंध" शब्द का अर्थ "ऐसे प्रतिबंध जिन्हें उपयुक्त विधायिका उचित समझती है" के रूप में लगाया गया।"
इस संदर्भ में, एसजी ने कहा, "नागरिक राज्य के खिलाफ मौलिक अधिकार का आनंद प्राप्त करते हैं, लेकिन अब विधायिका तय करेगी कि उचित प्रतिबंध क्या हैं।"
6. निवारक निरोध के संदर्भ में, अनुच्छेद 21 और 22 लागू नहीं होंगे।
उपरोक्त पृष्ठभूमि का उल्लेख करते हुए, एसजी ने आगे कहा, "अनुच्छेद 367 के साथ अनुच्छेद 370 का प्रभाव यह है कि, राष्ट्रपति और राज्य सरकार के एक प्रशासनिक कार्य द्वारा संविधान के किसी भी भाग में संशोधन किया जा सकता है, बदला जा सकता है, यहां तक कि नष्ट किया जा सकता है और लागू नहीं किया जा सकता है, और नए प्रावधान लागू किए जा सकते हैं यहां तक कि भारत के संविधान में भी यही स्थिति बनाई गई है। जैसे, अनुच्छेद 35A बनाया गया था, जो भारत के संविधान का एक हिस्सा है, और इसे केवल जम्मू-कश्मीर राज्य पर लागू किया गया था। इस 370(1) के माध्यम और 367 तंत्र का उपयोग एक से अधिक बार किया गया है, क्योंकि, यह कवायद, 5 अगस्त, 2019 के बाद ही थम सकी। अन्यथा, कोई भी प्रावधान, कोई भी अनुच्छेद (हटाया जा सकता था)।"
अभी सुनवाई जारी है।
विजय शंकर सिंह
Vijay Shanker Singh
'सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 के संबंध में सुनवाई (10) / विजय शंकर सिंह '.
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2023/08/370-10.html
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