सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के समक्ष अनुच्छेद 370 की कार्यवाही के सातवें दिन, वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे, शेखर नफाड़े और दिनेश द्विवेदी ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकान्त, की पीठ के समक्ष अपनी दलीलें रखीं। कार्यवाही के दौरान, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और, सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट, दुष्यंत दवे के बीच, इस विंदु पर चर्चा हुई कि, क्या अनुच्छेद 370(3) का अस्तित्व समाप्त हो गया है या नहीं? छठवें दिन की कार्यवाही में, दुष्यंत दवे द्वारा उठाया गया तर्क यह था कि, "अनुच्छेद 370(3) का अस्तित्व समाप्त हो गया है क्योंकि इसने अपना उद्देश्य पहले ही हासिल कर लिया है। संदर्भ के लिए, अनुच्छेद 370(3) जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सिफारिश पर अनुच्छेद 370 को निष्क्रिय घोषित करने का माध्यम प्रदान करता है।"
सातवें दिन की कार्यवाही में, बहस की शुरुआत करते हुए, दुष्यंत दवे ने कहा कि, "चूंकि जम्मू-कश्मीर संविधान सभा अब अस्तित्व में नहीं है, इसलिए अनुच्छेद 370(3) का भी अस्तित्व समाप्त हो गया है।"
हालाँकि, दुष्यंत दवे ने जोर देकर कहा कि, "अनुच्छेद 370(1) कायम रहेगा क्योंकि, यदि अब भारत के संविधान में संशोधन किया गया और एक नया अनुच्छेद डाला गया, तो अनुच्छेद 370(1) का उपयोग इसे जम्मू-कश्मीर में लागू करने के लिए किया जाएगा।"
इस दलील पर सीजेआई ने कहा, "आप कहते हैं कि, जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा द्वारा अपना काम पूरा कर लेने के बाद अनुच्छेद 370 अपने आप समाप्त हो गया और, उसने अपना, उद्देश्य हासिल कर लिया। लेकिन यह संवैधानिक इतिहास के तथ्यों से तो झूठ ही होगा, क्योंकि 1957 के बाद भी, संविधान को, क्रमिक रूप से संशोधित करने के आदेश जारी किए गए थे। इसका मतलब है कि, धारा 370 उसके बाद भी लागू रही।"
आगे सीजेआई ने कहा, "यदि आपका यह तर्क सही है, तो 1957 में संविधान सभा द्वारा अपना निर्णय लेने के बाद, जम्मू-कश्मीर के संबंध में संविधान के पास, किसी भी प्रावधान को बदलने की कोई शक्ति ही नहीं रही।"
तब दुष्यंत दवे ने स्पष्ट किया कि, "केवल अनुच्छेद 370(3) प्रभावी नहीं रहा और अनुच्छेद 370(1) अभी भी जारी है।"
हालाँकि, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि, "संविधान को असंगत तरीके से नहीं पढ़ा जा सकता है।"
उन्होंने आगे कहा कि, "निष्क्रिय धाराओं को हटाए और बिना किसी संवैधानिक संशोधन के, न्यायालय या तो सभी धाराओं की व्याख्या कर सकता है कि, सभी धाराएं शेष हैं या फिर सभी धाराएं खत्म हो गई हैं।"
इस पर दवे ने कहा कि, "फिर सभी को खत्म हो जाने दीजिए।"
हालाँकि, सीजेआई, इस दलील से, आश्वस्त नहीं हुए और उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि, "1958 से 2018 तक अनुच्छेद 370 को लागू करने की 64 वर्षों से अधिक की संवैधानिक प्रथा रही है, इसलिए यह अनुच्छेद स्पष्ट रूप से, खत्म नहीं हुआ था।"
अपनी दलीलों को जारी रखते हुए, दवे ने कहा कि, "वह केवल अपनाई गई प्रक्रिया से चिंतित हैं, और इस अनुच्छेद को केवल संवैधानिक संशोधन की प्रक्रिया द्वारा ही हटाया जा सकता था।"
० संधि की व्याख्या, अनुच्छेद 370 के आलोक में की जानी चाहिए
वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने, द बेरुबारी यूनियन बनाम अननोन (1960) के फैसले का हवाला देते हुए अपनी दलीलें शुरू कीं और कहा कि "विधायिका की संधि बनाने की शक्ति का प्रयोग, संविधान द्वारा निर्धारित तरीके से और इसके अधीन किया जाना चाहिए। इसके द्वारा लगाई गई सीमाएँ हैं।"
उन्होंने तर्क दिया कि, "भारत में सशर्त विलय के लिए, महाराजा हरि सिंह द्वारा, भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल के साथ, हस्ताक्षरित भारत और जम्मू-कश्मीर आइओए (विलय के साधन या इंस्ट्रूमेंट) के बीच संधि को "अब अनुच्छेद 370 में बदल दिया गया है। इसलिए, संधि की व्याख्या, महाराजा और भारत द्वारा सहमत सीमाओं के आलोक में की जानी थी, जो अनुच्छेद 370 के तहत भारतीय संविधान में जोड़ी गई।"
फिर दुष्यंत दवे ने, इस बात पर जोर दिया कि, "किसी संधि को विशिष्ट तरीके से लागू करने के लिए 'घटक शक्ति' की आवश्यक थी और यह काम 'विधायी शक्ति' द्वारा नहीं किया जा सकता था। उक्त घटक शक्ति, अनुच्छेद 368 के तहत प्रदान की गई थी। इसका मतलब यह भी था कि, कार्रवाई को अनुच्छेद 368 के तहत निर्धारित आवश्यकताओं को पूरा करना था, जिसमें सदन के एक बड़े हिस्से की सहमति प्राप्त करना शामिल था, जिसका सामान्य रूप से सदन के प्रमुख दलों की सहमति हो सकती है। इसलिए, IoA (आईओए) के उद्देश्यों को बदलने के लिए (जो अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से संबंधित था), संसद अनुच्छेद 356 के तहत शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकती थी।"
दुष्यंत दवे का तर्क है कि, संसद, अनुच्छेद 370 के ही प्राविधान के अनुसार, अनुच्छेद 370 को शिथिल या खत्म नहीं कर सकती है। यह मामला संविधान के अनुच्छेद 368 के अनुसार, संविधान का संशोधन लाकर ही किया जा सकता है। और, वह भी तब, जब राज्य, अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राष्ट्रपति/राज्यपाल के शासन के अंतर्गत न हो। राज्य की विधानसभा जीवित हो और लोकप्रिय निर्वाचित सरकार भी अस्तित्व में हो।
आगे अपनी दलीलें स्पष्ट करते हुए दुष्यंत दवे ने कहा, "दो प्रस्तुतियाँ हैं,
० एक, कि संधि की व्याख्या संविधान द्वारा दिए गए प्रावधानों के आलोक में की जानी चाहिए;
० दो, यदि आप उस संधि को छूना चाहते हैं, तो आप इसे एक विधायी अधिनियम के रूप में नहीं कर सकते, आपको इसे, संवैधानिक संशोधन की कवायद के रूप में करना होगा।"
० अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर के परिप्रेक्ष्य में अस्थायी था, न कि, भारत का के नजरिए से।
वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने अपनी दलील में कहा कि, अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर के नजरिए से अस्थायी था, न कि, भारतीय गणतंत्र के नजरिए से। ऐसा इसलिए, क्योंकि अनुच्छेद 370 को बनाए रखने या हटाने का विकल्प जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा और एक विस्तार के रूप में जम्मू-कश्मीर के लोगों पर छोड़ दिया गया था।"
उन्होंने कहा कि "अनुच्छेद का उद्देश्य कभी भी स्थायी होना नहीं था और इसे लागू करने के निर्णय की पूरी शक्ति संविधान सभा पर छोड़ दी गई थी। इस प्रकार, राष्ट्रपति अब यह नहीं कह सकते कि अनुच्छेद 370 निरस्त हो गया है।"
आगे तर्क देते हुए कहा कि, "अनुच्छेद 370 को जारी रखना है या नहीं, इस पर निर्णय लेना जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा द्वारा 'एक बार की प्रक्रिया' थी और इसे बार-बार नहीं किया जा सकता है।"
उन्होंने इसे स्पष्ट करते हुए कहा, "यह एक बार की कवायद थी। इसका बार-बार उपयोग करने का इरादा नहीं था। यहां तक कि संविधान सभा भी इसे दोबारा नहीं कर सकती थी। मान लीजिए कि उन्होंने बाद में एक प्रस्ताव पारित किया कि अब हम भारत से बाहर जाना चाहते हैं? क्या यह स्वीकार्य था? नहीं, कदापि नहीं ।"
० अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए संविधान की एक अनिवार्य विशेषता थी।
दुष्यंत दवे ने अपनी दलीलों का अगला चरण शुरू करते हुए कहा, "जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए यह (अनुच्छेद 370) संविधान की अनिवार्य विशेषता थी।"
एडवोकेट दवे ने, भारत की संविधान सभा द्वारा अनुच्छेद 370 को शामिल करने और 2019 में भारत की संसद द्वारा इसे निरस्त करने के बीच अंतर स्थापित कर देखने की मांग की। उन्होंने कहा कि, "संविधान सभा की बहस में सबसे प्रतिभाशाली पुरुषों और महिलाओं ने भाग लिया और इसमें, कई साल लग गए।"
"जबकि", दवे ने इस बात पर जोर डालते हुए कहा कि, "अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन की प्रक्रिया एक या दो दिन के भीतर ही कर दी गई।"
उन्होंने कहा, "5 अगस्त को राष्ट्रपति एक उद्घोषणा जारी करते हैं। फिर इसे राज्यसभा को भेजा जाता है। राज्यसभा उसी दिन सिफारिश भेजती है। फिर राज्यसभा उसी दिन पुनर्गठन विधेयक को मंजूरी देती है। अगले दिन लोकसभा में इसे मंजूरी दे दी जाती है।"
यह कहते हुए कि, "अनुच्छेद सिर्फ एक प्राविधान नहीं था बल्कि "जम्मू-कश्मीर के लोगों की भावनाएं" थीं।"
उन्होंने आगे कहा कि "हालांकि कानून और व्यवस्था की समस्या निश्चित रूप से, वहां मौजूद थी, लेकिन यह जम्मू-कश्मीर में, भारतीय संविधान की प्रयोज्यता या अन्यथा के कारण नहीं थी।"
० अनुच्छेद 370 को हटाने का कोई औचित्य नहीं।
दुष्यंत दवे ने तर्क दिया कि, "अनुच्छेद को निरस्त करने का कोई औचित्य नहीं था और इसे भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत जवाबी हलफनामे में देखा जा सकता है।"
उन्होंने कहा कि काउंटर हलफनामे में ही सरकार ने यह कहा है कि, "जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा किसी भी तरह से भारत के संविधान से विचलित नहीं हुई थी और राष्ट्रपति ने बिना किसी सामग्री या किसी औचित्य के अपनी शक्ति का प्रयोग किया।"
इस पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा, "क्या आप अदालत को, अनु. 370 को निरस्त करने के निर्णय पर, सरकार के फैसले की बुद्धिमत्ता की समीक्षा करने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं? आप कह रहे हैं कि न्यायिक समीक्षा में सरकार के फैसले के आधार का पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिए कि अनुच्छेद 370 को जारी रखना राष्ट्रीय हित में था या नहीं? लेकिन, न्यायिक समीक्षा में इसे संवैधानिक उल्लंघन के विंदु तक ही सीमित रखा जाएगा।"
तब दुष्यंत दवे ने जवाब देते हुए कहा कि, "यदि संविधान या संसद द्वारा शक्ति का प्रयोग संविधान के तहत ही किया जाना है, तो संवैधानिक अर्थ, व्याख्याएं और प्रावधान राष्ट्रपति और संसद दोनों को अनुच्छेद 370(3) को किसी भी तरह से छूने से रोकते हैं।"
० 2019 बीजेपी चुनाव घोषणापत्र अवैध।
अपनी दलीलों में, दुष्यंत दवे ने 2019 के भाजपा चुनाव घोषणापत्र के बारे में भी अपनी दलीलें रखीं, जिसमें यह वादा किया गया था कि, "यदि मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया, तो वह अनुच्छेद 370 को निरस्त कर देंगे।" इस संदर्भ में, दवे ने कहा कि "चुनाव घोषणापत्र संवैधानिक योजना के विपरीत नहीं बनाए जा सकते हैं। 2015 में, चुनाव आयोग ने भी यह सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे कि घोषणापत्र संवैधानिक योजना और मर्यादाओं के अनुसार होना चाहिए।"
दवे ने आगे कहा, "आज, क्योंकि संसद में आपके (बीजेपी) पास बहुमत है, आपने ऐसा किया है। ऐसा करने का एकमात्र कारण यह है कि आपने (बीजेपी) भारत के लोगों से कहा था कि मेरे लिए वोट करें और मैं 370 को निरस्त कर दूंगा। इससे पता चलता है कि सत्ता का प्रयोग, किसी खास विचारों के लिए किया गया है ।"
विजय शंकर सिंह
Vijay Shanker Singh
'सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 के संबंध में सुनवाई (6.2) / विजय शंकर सिंह '.
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2023/08/370-62.html
No comments:
Post a Comment