Friday, 11 August 2023

जोश मलीहाबादी की आत्मकथा, 'यादों की बारात का' अंश (20) कुछ व्यक्तिचित्र (1) पंडित जवाहर लाल नेहरू / विजय शंकर सिंह

चित्र : एक मुशायरे की सदारत करते नेहरू। जोश भी इस चित्र में हैं।

जोश मलीहाबादी की आत्मकथा 'यादों की बारात' में, जवाहरलाल नेहरू का जिक्र कई बार और प्रमुखता से आया है। जोश ने नेहरू को पहली बार तब देखा था जब वे अपने पिता के साथ इलाहाबाद गए थे और वे आनंद भवन में ठहरे थे। मोतीलाल नेहरू, जोश के पिता और दादा के वकील भी थे और उनकी जमीदारी के मुकदमे देखते थे। फिर जोश कांग्रेस से जुड़े पर वे पूरी तरह राजनीति में शामिल नहीं हो पाए। लेकिन, नेहरू से उनकी दोस्ती बनी रही और यह दोस्ती नेहरू की मृत्यु तक बनी रही। जोश का लिखा, जवाहरलाल नेहरू का यह व्यक्तिचित्र, पठनीय है। जोश के ही शब्दों में यह अंश पढ़े... 
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वह अपनी मोहिनी सूरत के आकर्षण, अपने रंग की चमक-दमक, अपनी तीखी की मुरव्वत अपने लहजे की कड़ाई, अपने उच्चारण के संगीत अपनी मुस्कुराहट की मृदुता, अपनी कुल प्रतिष्ठा, अपने हृदय की असीम विशालता, अपने स्वभाव की अद्वितीय शालीनता और अपने चरित्र की बेजोड़ दृढ़ता के एतबार से एक ऐसे इंसान थे जो इस धरती पर सदियों के बाद पैदा होते है और जो यह आवाज बुलंद कर सकते हैं, 
मत सहल हमें समझो फिरता है फलक बरसों 
तब ख़ाक के पर्दे से इंसान निकलते हैं।

उनका अस्तित्व हिन्दुस्तान का गौरव एशिया की प्रतिष्ठा और समूची मानव जाति का विश्वास है। यह शरीरधारियों की दुनिया के ऐसे सजीव ताजमहल थे, जिसे शाम अवध की लालिमा और सुबहे बनारस की उषा ने इलाहाबाद के अर्थपूर्ण संगम पर छेनियों से तराशकर तामीर किया था।

उन्हें उर्दू जबान से बड़ी मुहब्बत थी। उन्होंने मुझसे एक दिन कहा था कि उर्दू के बारे में मेरी जाती राय और है, और मेरी गवर्नमेंट की राय और है। लेकिन में गवर्नमेंट पर अपनी राय थोपना नहीं चाहता, इसलिए कि यह मामला डेमोक्रेसी के खिलाफ़ है।

एक रोज़ लखनऊ स्टेशन पर उन्होंने रेलवे अफसरों को बुलाकर बहुत बुरी तरह फटकारकर कहा कि आप लोगों ने मुझे निरा जाहिल बनाकर रख दिया है। हर तरफ हिन्दी के बोर्ड लगे हुए हैं। कुछ पता नहीं चलता कि यह खाने का कमरा है या लेवेटरी।

एक बार पाकिस्तान से रुखसत लेकर में जब दिल्ली में उनसे मिला तो उन्होंने बड़े तंज के साथ मुझसे कहा था, "जोश साहब, पाकिस्तान को इस्लाम, इस्लामी कल्चर और इस्लामी जवान यानी उर्दू की सुरक्षा के लिए बनाया गया था, लेकिन अभी कुछ दिन हुए, मैं पाकिस्तान गया और वहाँ यह देखा कि में शेरवानी और पायजामा पहने हुए हैं, लेकिन वहाँ की गवर्नमेंट के तमाम अफसर, सौ फीसदी अंग्रेजों का लिबास पहने हुए हैं। मुझसे अंग्रेज़ी बोली जा रही है और हद यह है कि मुझे अंग्रेज़ी में संबोधित भी किया जा रहा है। मुझे इस सूरतेहाल से बेहद सदमा हुआ और मैं समझ गया कि 'उर्दू-उर्दू-उर्दू' के जो नारे हिन्दुस्तान में लगाए गए थे, ये सारे ऊपरी दिल से और खोखले थे। जब में खड़ा हुआ तो मैंने उसका उर्दू में जवाब देकर सबको हैरान और परेशान कर दिया, और यह बात साबित कर दी कि मुझे उनके मुक़ाबिले में उर्दू से कहीं ज़्यादा मुहब्बत है। जोश साहब, माफ कीजिए, आपने जिस उर्दू के लिए अपना वतन तंज दिया, पाकिस्तान में उसे कोई मुँह नहीं लगाता। और जाइए पाकिस्तान?" मैने शर्म से आँखें नीची कर ली। उनसे तो कुछ नहीं कहा, लेकिन उनकी बातें सुनकर मुझे एक घटना याद आ गई। मैने पाकिस्तान के एक बड़े शानदार मिनिस्टर साहब को जब उर्दू मैं ख़त लिखा और उन साहब़ बहादुर ने अंग्रेजी में जवाब भेजा तो मैंने जवाबुल जवाब में यह लिखा था कि जनाबे वाला मैंने आपको अपनी मादरी जबान में ख़त लिखा था, लेकिन आपने उसका जवाब अपनी पिदरी (बाप की) जवान में तहरीर फ़रमाया।

चूं कुफ अज काबा बरखेज़द कुजा मानद
मुसलमानी ।
(अगर काबा ही से कुछ उठने लगे तो इस्लाम कहाँ जाए?)

अब चंद घटनाएँ उनकी अदबनवाजी, उनकी गैरमामूली शराफ़त और उनकी बेनजीर नाज़बरदारों की भी सुन लीजिए।

जब केंद्रीय सरकार के सूचना विभाग में मेरी नियुक्ति सरकारी रिसाले 'आजकल' में हो गई तो मैंने उन्हें खत लिखा कि मेरे पर्चे (पत्रिका) के वास्ते अपना पैगाम जल्द भेज दीजिए। अगर आपने सुस्ती से काम लिया तो मेरी आपसे जबरदस्त जंग हो जाएगी। एक हफ्ते के अन्दर उनका पैगाम आ गया। अपने पयाम के आखिर में उन्होंने यह भी लिखा था कि में जल्दी में पयाम इसलिए भेज रहा हूँ कि जोश साहब ने मुझे धमकी दी थी कि अगर देर हो गई तो वह मुझसे लड़ पड़ेंगे। जब मैंने पैगाम के शुक्रिये में उन्हें खत लिखा तो दबी जबान से यह शिकायत भी कर दी कि आपने मेरे ख़त का जवाब खुद अपने हाथ से लिखने के एवज सेक्रेटरी से लिखवाया है। मेरे साथ आपको यह बरताव नहीं करना चाहिए था।

उनकी शराफत देखिए कि मेरी इस शिकायत पर उन्होंने खुद अपने हाथ से मुझे यह लिखा कि "अधिक व्यस्तता के कारण मैं सेक्रेटरी से खत लिखवाने पर मजबूर हो गया। आप मेरी इस गलती को माफ करें।"

एक बार में उनके यहाँ पहुँचा तो देखा कि वह दरवाजे पर खड़े किदवई साहब (रफी अहमद किदवई) से बातें कर रहे हैं। लेकिन जैसे ही मैंने बरामदे में क़दम रखा और उन से, आँखें चार हुई तो यह एक सेकेंड के अन्दर, गायब हो गए।

मैने किदवई साहब से कहा कि मैं तो अब यहाँ नहीं ठहरूंगा। आप पंडित जी से कह दीजिएगा कि लीडरी और प्राइम मिनिस्टरी को लीडरी और प्राइम मिनिस्टरी तक सीमित रखें और उसे इस कंदर न बढ़ाए कि वह मोनार्की बादशाही से टक्कर लेने लगे। किदवई साहब ने मुस्कुराकर पूछा कि आप किस बात पर इस कदर बिगड़ गए हैं? मैंने कहा, "अरे आप अभी तो खुद देख चुके हैं कि मेरे आते ही यह गायब हो गए हैं। मिज़ाजपुरसी तो बड़ी चीज है, उन्होंने मुझसे साहब-सलामत तक नहीं की।" इतने में जवाहरलाल आ गए। मैं मुँह मोड़कर खड़ा हो गया। उन्होंने कहा, "जोश साहब, मामला क्या है?" किदवई साहब ने सारा माजरा बयान कर दिया। वह मेरे करीब आए और मेरे कान में कहा, "मुझे इस कदर ज़ोर से पेशाब आ गया था कि अगर एक मिनट की भी देर होती तो पायजामे ही में निकल जाता। "यह बहाना सुनकर मैंने उन्हें गले से लगा लिया।

एक बार कुँवर महेंद्रसिंह बेदी ने मुझसे कहा कि मेरे वज़ीर श्री सच्चर ने दिल्ली से मेरा तबादला कर दिया है। मैंने कहा, यह श्री सच्चर है या मिस्टर खच्चर?" वह हँसने लगे, कहा, "क्या खूब काफिया मिलाया है। तो में आपसे यह कहने आया हूँ कि आप और बेगम पटौदी दोनों मिलकर पंडित जी के पास जाएं और मेरा तबादला रुकवा दें।

दूसरे ही दिन हम दोनों प्रधानमंत्री की कोठी पहुंचे। अपने आने की सूचना दी। बेगम पटौदी को तुरन्त बुला लिया गया और मैं मुह देखता रह गया। जवाहरलाल की इस अशिष्टता पर मुझे बड़ा ताव आया और यह सोचकर कि मैं वहाँ से उसी वक्त चला जाऊ, कि उनसे फिर कभी न मिलूं, मैं उठा ही था कि उनके सेक्रेटरी शायद प्यारेलाल साहब आ गए। उन्होंने मेरी तरफ आँख उठाकर कहा, 'क्या बात है जोश साहब? इतना पानी बरस रहा है और आप आगबबूला बने खड़े हैं?" मैने उनसे सारा माजरा बयान करके कहा, "अब में यहां नहीं ठहरने का। सेक्रेटरी ने कहा,आप सिर्फ दो मिनट मेरी खातिर ठहर जाए में ठहर गया। यह सीधे उनके कमरे में दाखिल हो गए। और दो मिनट के अन्दर-अन्दर मैंने यह देखा कि यह मुस्कुराते चले आ रहे हैं। उन्होंने कहा, जोश साहब, आपके तशरीफ लाने की मुझे किसी ने सूचना नहीं दी। आपने किससे सूचना देने को कहा था?" मैंने कहा, बिमला कुमारी जी को।" उन्होंने विमला कुमारी को बुलाकर पूछा कि "तुमने मुझे जोश साहब के आने की सूचना क्यों नहीं दी?" विमला कुमारी ने कहा कि "लेडीज फर्स्ट के खयाल से मैंने जोश साहब का नाम नहीं लिया।" पंडित जी ने डांटकर कहा, "नॉनसेंस" और मेरा हाथ पकड़कर अन्दर ले गए और कहा, "आप भी महेंद्र सिंह का तबादला रुकवाने के ख्वाहिशमंद है?"  मैने कहा जी हां। उन्होंने जवाब दिया कि, "यह डेमोक्रेट उसूल के खिलाफ है कि मैं इस मामले में दखल दूँ।" मैंने कहा, "पंडित जी में जानता हूँ कि आपका दिमाग मेड इन इंगलैंड है, लेकिन कुछ अपवाद भी जरूरी होते हैं। मैं जानता हूं प्राइम मिनिस्टर से किसी के तबादले के रद्द करने की इच्छा प्रकट करना ऐसा ही है जैसे हम किसी हाथी से कहें कि मेज़ पर से जरा मेरी दियासलाई उठा ला। लेकिन आज तो में हाथी से दिवासलाई उठवाकर दम लगा।" वह हँसने लगे और तबादला रद्द कर दिया।

एक मर्तबा गर्मी की छुट्टियाँ मनाने के लिए में शिमले गया हुआ था। तीन-चार रोज़ के बाद मालूम हुआ कि पंडित जवाहरलाल भी आ गए हैं। मैंने फोन किया और बदकिस्मती से रिसीवर उठाया उनके ऐसे नये सेक्रेटरी ने, जो लहजे से मदरासी मालूम हो रहा था। मैने अपना नाम बताकर कहा कि मैं पंडित जी से मिलना चाहता हूँ। आप उनसे टाइम लेकर मुझे सूचना दें। उसने बार-बार मेरा नाम पूछा। मैने कहा, जोश मलीहाबादी। लेकिन उसकी समझ में नहीं आया। आखिर मैंने झल्लाकर कहा, जे. ओ. एस. एच. उसने कहा, "मिस्टर जोश, आपके पर्टीकुलर्स" मैंने कहा, "जो शख्स मेरे पर्टीकुलर्स नहीं जानता उसे यह हक नहीं है कि हिन्दुस्तान में रहे। " यह सुनकर उसने कहा, "ओह ऐसा बोलगा।" मैंने कहा, "इससे ज्यादा बोलेगा।" उसने कहा, 'आप होल्ड किए रहें हम पंडित जी से पूछकर बताएगा। दो मिनट के बाद उसने कहा, 'पंडित जी ऐसा बोलता है कि हम यहाँ मजे करने आया है, आप दिल्ली में मिली।"

मेरे तन-बदन में आग लग गई। मैंने बीवी से कहा कि मैं अभी उन्हें ऐसा ख़त लिखूंगा कि तिगनी का नाच नाचने लगेंगे। बीवी ने कहा कि "हमारे सर की कसम, अभी खत न लिखो। इस वक़्त गुस्से में भरे हुए हो जाने क्या-क्या लिख मारोगे पानी पीकर थोड़ी देर लेट जाओ।"

पानी पीकर में लेट तो गया; मगर दिल की आग भड़कती रही। आध घंटे से ज्यादा लेट नहीं सका। बिस्तर पर अंगारे दहकने लगे। में उठ बैठा और ऐसा ख़त लिखा कि अगर उस किस्म का खत किसी थानेदार को लिख भेजता तो वह भी तमाम उम्र मुझे माफ़ न करता।"

दूसरे दिन इंदिरा गांधी का फोन आया कि आज तीन बजे सह पहर को मेरे साथ चाय पीजिए। मैंने कहा, "बेटी, वहां तुम्हारे बाप मौजूद होंगे। में उनसे मिलना नहीं चाहता।" उन्होंने कहा, "मैं पिताजी को अपने कमरे में बुलाऊँगी ही नहीं।" में तैयार हो गया।

शाम को जब बरामदे में पहुंचा तो एक चपरासी ने अन्दर की तरफ इशारा कर दिया। जब में उनके कमरे की तरफ बढ़ा तो पंडित जी ने पीछे से मेरा हाथ पकड़कर कहा, "आइए मेरे कमरे में" में ठिठक्कर खड़ा हो गया, उन्होंने मेरा हाथ खींचा और मुहब्बत के दबाव में आकर में उनके साथ हो गया।

उनके कमरे में पहुँचा तो देखा मेरे बुजुगों के मिलने वाले सर महाराज सिंह बैठे हुए हैं। पंडित जी ने कहा, "महाराज, यह वही जोश साहब है, जिन्होंने मुझे ऐसा गर्म खत लिखा कि शिमले की ठंडक में भी पसीना आ गया। " महाराज सिंह ने कहा, गनीमत समझिए कि यहाँ तक नौबत आई। इनके बुजुगों से आप वाकिफ नहीं। वे जिस पर गर्म हो जाते थे, उसे ठंडा कर दिया करते थे।" पंडित जी हँसने लगे। घण्टी बजाई, उस मदरासी सेक्रेटरी को बुलाया और जैसे ही उसने कमरे में क़दम रखा, यह उस पर बरस पड़े कि "तुमने मुझसे पूछे बगैर जोश साहब को ऐसा बेहूदा जवाब क्यों दिया। मैं अभी तुम्हारा ट्रांसफर किए दे रहा हूँ। कल से तुम मिनिस्टरी ऑफ कॉमर्स में चले जाओ।"

उनका यह बताँव देखकर में पानी-पानी हो गया और उनकी बेमिसाल रवादारी और शराफत पर निगाह करके में उन्हें गले लगाकर रोने लगा।

अब एक आखिरी घटना और सुन लीजिए।

उनके इंतकाल से चंद महीने पहले में हिन्दुस्तान गया और उनसे दरख्वास्त की कि आप किसी दिन मेरी जाए-कयाम (निवास स्थान) पर आकर मेरे साथ खाना खाएँ। हरचन्द में उनका दिल तोड़कर पाकिस्तान आ गया था, लेकिन इसके बावजूद वह आए, खाना खाया और दो घण्टे से ज्यादा बैठे रहे। इस दावत में उनकी आवाज़ की कमज़ोरी और मुस्कुराहट के फीकेपन से यह अंदाज़ा करके मेरा दिल बैठने लगा कि अब वह अपनी ज़िन्दगी के दिन पूरे कर चुके हैं। चुनांचे वही हुआ। मेरे पाकिस्तान वापस आने के दो-तीन महीने बाद वह शराफत के आसमान का सूरज डूब गया और हिन्दुस्तान ही में नहीं सारे एशिया में अंधेरा छा गया।
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अगला व्यक्तिचित्र, सरोजनी नायडू पर है। कुल 53 व्यक्तियों पर जोश ने व्यक्तिचित्र लिखे हैं पर मैने उनमें से चार महत्वपूर्ण व्यक्तियों को ही इस सीरीज के चुना है। जिनमे दो राजनेता हैं, और दो महान शायर। 
(क्रमशः)

विजय शंकर सिंह
Vijay Shanker Singh 

'जोश मलीहाबादी की आत्मकथा, 'यादों की बारात का' अंश (19) जोश की आखिरी भारत यात्रा और पाकिस्तान वापसी के बाद, वहां उठा विवाद / विजय शंकर सिंह '.
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2023/08/19.html



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