Monday, 14 August 2023

जोश मलीहाबादी की आत्मकथा, 'यादों की बारात का' अंश (21) कुछ व्यक्तिचित्र (2) सरोजनी नायडू / विजय शंकर सिंह

सरोजिनी नायडू (13 फरवरी 1879 - 2 मार्च 1949) का जन्म भारत के हैदराबाद नगर में हुआ था। इनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय एक नामी विद्वान तथा माँ कवयित्री थीं और बांग्ला में लिखती थीं। बचपन से ही कुशाग्र-बुद्धि होने के कारण उन्होंने बारह वर्ष की अल्पायु में ही बारहवीं की परीक्षा अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण की और तेरह वर्ष की आयु में लेडी ऑफ दी लेक नामक कविता रची। सर्जरी में क्लोरोफॉर्म की प्रभावकारिता साबित करने के लिए हैदराबाद के निज़ाम द्वारा प्रदान किए गए छात्रवृत्ति से सरोजिनी नायडू को इंग्लैंड भेजा गया  सरोजिनी नायडू को पहले लंदन के किंग्स कॉलेज और बाद में कैम्ब्रिज के गिरटन कॉलेज में अध्ययन करने का मौका मिला। 

वे 1895 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड गईं और पढ़ाई के साथ-साथ कविताएँ भी लिखती रहीं। गोल्डन थ्रैशोल्ड उनका पहला कविता संग्रह था। उनके दूसरे तथा तीसरे कविता संग्रह बर्ड ऑफ टाइम तथा ब्रोकन विंग ने उन्हें एक सुप्रसिद्ध कवयित्री बना दिया।1898 में सरोजिनी नायडू, डॉ॰ गोविंदराजुलू नायडू की जीवन-संगिनी बनीं। 19914 में इंग्लैंड में वे पहली बार गाँधीजी से मिलीं और उनके विचारों से प्रभावित होकर, स्वाधीनता आंदोलन में शामिल हो गयीं। उन्होंने अनेक राष्ट्रीय आंदोलनों का नेतृत्व किया और जेल भी गयीं। संकटों से न घबराते हुए वे एक धीर वीरांगना की भाँति गाँव-गाँव घूमकर ये देश-प्रेम का अलख जगाती रहीं और देशवासियों को उनके कर्तव्य की याद दिलाती रहीं। उनके वक्तव्य जनता के हृदय को झकझोर देते थे और देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए प्रेरित कर देते थे। वे बहुभाषाविद थी और क्षेत्रानुसार अपना भाषण अंग्रेजी, हिंदी, बंगला या गुजराती में देती थीं। लंदन की सभा में, उत्कृष्ट अंग्रेजी में बोलकर इन्होंने वहाँ उपस्थित सभी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था।

अपनी लोकप्रियता और प्रतिभा के कारण 1925 में कानपुर में हुए कांग्रेस अधिवेशन की वे अध्यक्षा बनीं और 1932 में इंडियन नेशनल कांग्रेस की प्रतिनिधि बनकर दक्षिण अफ्रीका भी गईं। भारत की स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद वे उत्तरप्रदेश की पहली राज्यपाल बनीं। श्रीमती एनी बेसेन्ट की प्रिय मित्र और गाँधीजी की इस प्रिय शिष्या ने अपना सारा जीवन देश के लिए अर्पण कर दिया। 2 मार्च 1949 को उनका देहांत हुआ। 13 फरवरी 1964 को भारत सरकार ने उनकी जयंती के अवसर पर उनके सम्मान में एक डाकटिकट भी जारी किया।

अब जोश मलीहाबादी के शब्दों में सरोजनी नायडू पर उनका व्यक्ति चित्र पढ़े....
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लहजे में असान, बातों में जादू, मैदाने जंग में झाँसी की रानी, गोकुलवन की गोवा मधुर बीन, बुलबुले हिन्दुस्तान। अगर यह दौर मदों में जवाहरलाल और औरतों में सरोजनी की सी हस्तियाँ पैदा न करता तो पूरा हिन्दुस्तान अंधा होकर रह जाता।

मैंने उन्हें सबसे पहले 1926 के लगभग हैदराबाद दकन मैं देखा था और उनके व्यक्तित्व के चुम्बकीय आकर्षण ने मुझे हमेशा के लिए मोह लिया था। 

उनके गले में रंगें नहीं सारंगी के खनकते हुए तार थे। उनके लहजे में इस क़यामत का उतार-चढ़ाव था कि उसके सामने
रागिनियाँ पानी भरती थी और उनके दिलो-दिमाग़ के भवन में शायरी की वह संगीतमय लहर उठती थीं कि उनके सामने चांदनी रातों में समुद्र का राग शर्मिंदा होकर रह जाता था।

हरचन्द उर्दू उनकी मादरी ज़बान नहीं थी लेकिन हैदराबाद की उर्दू आबो-हवा ने उन्हें उर्दू और फारसी के मज़ाक़ में इस तरह ढाल दिया था कि केवल यही नहीं कि वह बड़ी रवानी के साथ उर्दू बोलतीं बल्कि बड़ी आसानी के साथ उर्दू शायरी को समझ लेती और अलफाज पकड़कर इस तरह दाद देती थी कि उन्हें शेर सुनाकर जी खुश हो जाता था। आज तक याद है मुझे वह रात जब मैंने उन्हें अपनी नज्म अंगीठी' सुनाई थी और वह हिचकियाँ ले लेकर रोने लगी थीं।

उन्होंने मेरी उस नज्म और उसके साथ ही मेरी और भी तीस-चालीस नज़्मों का अंग्रेजी में बहुत अच्छा अनुवाद किया था। अफ़सोस कि इस यादगार सरमाये को मेरी लापरवाही ने गुम कर
दिया। 

उनकी यू.पी. की गवर्नरी के ज़माने में एक बार में लखनऊ गया और सुबह के वक्त गवर्नमेंट हाउस में फोन किया कि मैं मिसेज़ नायडू से बात करना चाहता है। उनके सेक्रेटरी ने मुझसे कहा कि आप उनके नाम पैगाम दे दें। मैं पहुंचा दूंगा। वह खुद बात नहीं कर सकती। मैंने जवाब दिया कि मेरे उनके दरमियान यह रस्म नहीं है। में रिसीवर उठाए हुए हैं. आप उनसे जाकर यह कह दें कि वह मुझसे बात कर लें। सेक्रेटरी ने कहा, "आप अपना फोन नम्बर दे दें, मैं थोड़ी देर में आप को रिंग करूँगा। 

दस मिनट के बाद घंटी बजी और सरोजनी की आवाज ने मेरे कान में रस घोल दिया। उन्होंने पूछा, "आप कब आए मैंने जवाब दिया, "अभी आया और सबसे पहले आपको फोन कर रहा है।" उन्होंने कहा, "सबसे पहले मुझे मिलने आप यहाँ आ जाइए। मैं बाथरूम जा रही हूँ। अगर आप मेरे बाथरूम से निकलने से पहले यहाँ आ जाएँ तो दो-चार मिनट इन्तज़ार करें। ऐसा न हो कि मुँह फुलाकर चले जाएँ। "

यह था सरोजनी का व्यवहार। अब उन शराफ़तों को दूरबीन लगा-लगाकर ढूँढता फिरता हूँ, लेकिन कहीं पता नहीं चलता। हाय, किधर चले गए वे लोग। 

ज़िन्दगी के आखिरी दौर में वह बार-बार बीमार पड़ने लगी और मैं बार-बार पूछता था कि इस बार बार बीमार पड़ने की वजह क्या है वह हर बार मुख्तलिफ सबब बताकर टाल दिया करती थीं। लेकिन एक बार जब मैंने जोर देकर बार-बार बीमार पड़ने की वजह पूछी तो वह उदास होकर कहने लगी, "जोश साहब, आप नहीं मानते तो मुझे यह कहना पड़ रहा है कि इसका सबब है मेरा बुढ़ापा " औरत के मुँह से बुढ़ापे का एतराफ़ सुनकर मेरा दिल गमगीन हो गया। उन्होंने मेरी उदासी को भापकर कहा, "आप गमगीन न हो मेरे बाल तो सफ़ेद हो रहे हैं, मगर आप यकीन रखे, मेरा दिल अभी तक सियाह है और जब तक दिल सियाह है जवानी बाकी है। "
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कुल 53 व्यक्ति चित्र जोश साहब ने लिखे हैं। इनमें उनकी जिंदगी में आए तमाम लोग शामिल हैं। मैं, जवाहरलाल नेहरू पर लिखा उनका व्यक्ति चित्र आप सबसे साझा कर चुका हूं। यह दूसरी राजनीतिक हस्ती सरोजनी नायडू के बारे में जोश के खयालात थे। सरोजनी नायडू ने ही, जोश का परिचय, उनकी एक नज़्म का अंग्रेजी अनुवाद करके, रबींद्रनाथ टैगोर को सुनाकर, टैगोर से कराया था। जोश कुछ हफ्ते गुरुदेव के सानिध्य में शांति निकेतन में रहे भी। आत्मकथा का वह अंश आप पढ़ चुके हैं। अगला अंश और व्यक्तिचित्र मशहूर शायर, फिराक गोरखपुरी पर होगा। 
(क्रमशः)

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

'जोश मलीहाबादी की आत्मकथा, 'यादों की बारात का' अंश (20) कुछ व्यक्तिचित्र (1) पंडित जवाहर लाल नेहरू / विजय शंकर सिंह '.
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2023/08/20-1.html

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