Friday, 30 June 2023

दिल्ली अध्यादेश को दिल्ली सरकार ने, सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी / विजय शंकर सिंह

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) ने अपने आधीन नियुक्त  सिविल सेवा के अधिकारियों का ट्रांसफर पोस्टिंग और सेवागत नियंत्रण करने के लिए, दिल्ली सरकार की शक्तियों को,  छीन लेने के लिए, हाल ही में लाए गए,  केंद्र सरकार के अध्यादेश को, सुप्रीम कोर्ट में, चुनौती दी है। यह वही अध्यादेश है जो यदि अगले छह महीनों तक संसद द्वारा कानून में नहीं बदल जाता तो रद्द हो जायेगा। सरकार की पूरी कोशिश होगी कि, यह अध्यादेश , कानून में बदल जाय। 

बीजेपी  सरकार को, लोकसभा में इस संबंध में पेश विधेयक को पास कराने में कोई दिक्कत पेश नहीं आयेगी, लेकिन राज्यसभा में, सरकार को बहुमत नहीं है तो वहां, उसे समस्याएं आ सकती हैं। इसलिए, दिल्ली के मुख्यमंत्री, सभी विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात कर के, उन्हे इस विधेयक के विरुद्ध, संसद में वोट देने के लिए लामबंदी कर रहे है। इसी उद्देश्य से, वे 23 जून को, पटना में आयोजित, विपक्षी दलों की बैठक में शामिल भी हुए थे। 

इस रिट याचिका ने, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार (संशोधन) अध्यादेश 2023 को चुनौती दी है, जिसे 19 मई को राष्ट्रपति द्वारा जारी किया गया था। यह अध्यादेश, दिल्ली सरकार को "सेवाओं" पर उसके अधिकार से वंचित करती है। इस याचिका में कहा गया है कि, "यह अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले के एक हफ्ते बाद लाया गया, जिस फैसले में यह कहा गया है कि, दिल्ली सरकार के पास सूची II (सेवाओं) की प्रविष्टि 41 पर अधिकार है।" दिल्ली सरकार की, दलील है कि 'अध्यादेश के जरिए, केंद्र सरकार ने एक तरह से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया है।' 

यह दलील सर्वथा उचित भी है, क्योंकि फैसले के बाद ही यह अध्यादेश लाया गया है। अध्यादेश की टाइमिंग, बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच चल रहे राजनीतिक रस्साकशी को स्पष्ट रूप से रेखांकित करती है। अध्यादेश को संविधान के अनुच्छेद 239एए में एनसीटीडी के लिए स्थापित संघीय, लोकतांत्रिक शासन की योजना का उल्लंघन करने के रूप में चुनौती दी गई है। यह भी तर्क दिया गया है कि, अध्यादेश संघवाद के सिद्धांत और निर्वाचित सरकार की प्रधानता को नकारता है। संघवाद, संविधान के मूल ढांचे का अंग है। 

याचिका में कहा गया है, "लोकतंत्र में सामूहिक जिम्मेदारी का सिद्धांत - अनुच्छेद 239AA(6) में शामिल है - यह आवश्यक है कि निर्वाचित सरकार को अपने डोमेन में तैनात अधिकारियों पर नियंत्रण निहित हो। संघीय संदर्भ में, इसके लिए यह आवश्यक होगा कि ऐसा नियंत्रण क्षेत्रीय में निहित हो  सरकार - यानी अनुच्छेद 239एए के तहत जीएनसीटीडी - अपने डोमेन के मामलों के लिए। यह आवश्यक सुविधा इस माननीय न्यायालय के 2023 संविधान पीठ के फैसले द्वारा जीएनसीटीडी के लिए सुरक्षित की गई थी, और अब विवादित अध्यादेश द्वारा इसे पूर्ववत करने की मांग की गई है",  

अध्यादेश में यह व्यवस्था है कि, मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में, दो वरिष्ठ नौकरशाहों की एक समिति सिविल सेवकों के स्थानांतरण और पोस्टिंग के संबंध में उपराज्यपाल को सिफारिशें करेगी;  हालाँकि, निर्णय लेने में एलजी के पास 'एकमात्र विवेक' होगा। यहां एक  महत्वपूर्ण पेंच यह है कि, समिति के दोनो सदस्य, वरिष्ठ नौकरशाह होंगे और उनका चयन, उपराज्यपाल करेंगे। ऐसे में उनकी निष्ठा, एलजी यानी केंद्र सरकार की तरफ रहेगी और यदि कोई मत वैभिन्यता होगी तो एलजी का विवेक निर्णय करेगा। एलजी यानी भारत सरकार यानी गृह मंत्रालय यानी गृहमंत्री।  

दिल्ली सरकार का कहना है, "इस प्रकार, विवादित अध्यादेश निर्वाचित सरकार, यानी जीएनसीटीडी को उसकी सिविल सेवा पर नियंत्रण से पूरी तरह से अलग कर देता है", यह इंगित करते हुए कि केंद्र सरकार ने 2015 की अधिसूचना के माध्यम से इसी तरह का लक्ष्य हासिल करने की मांग की थी, जो कि  सुप्रीम कोर्ट ने अमान्य कर दिया था.  उसी स्थिति को, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक पाया था, अध्यादेश के माध्यम से बहाल करने की मांग की गई है।

याचिका में, यह भी बताया गया है कि अनुच्छेद 239AA के अनुसार, दिल्ली सरकार के पास तीन निर्दिष्ट विषयों - कानून और व्यवस्था, पुलिस और भूमि को छोड़कर राज्य सूची के सभी मामलों पर अधिकार हैं।  हालाँकि, अध्यादेश में संवैधानिक संशोधन के बिना, छूट प्राप्त श्रेणियों में "सेवाओं" के विषय को जोड़ने का प्रभाव है।

दिल्ली सरकार का कहना है कि, यह एक स्थापित कानून है कि विधायिका के लिए, संविधान पीठ या सुप्रीम कोर्ट के, किसी निर्णय को आसानी से खारिज करना अस्वीकार्य है। यह अध्यादेश, सुप्रीम कोर्ट के फैसले को, सीधे खारिज कर देता है। याचिका के अनुसार, "आक्षेपित अध्यादेश इन दोनों पहलुओं में से प्रत्येक पर माननीय न्यायालय के फैसले को उलटने का प्रयास करता है, केवल जीएनसीटीडी अधिनियम में संशोधन करके, फैसले के आधार यानी संविधान में संशोधन किए बिना। जहां तक ​​विवादित अध्यादेश इस माननीय न्यायालय के फैसले को उलट देता है  निर्णय, यह एक अस्वीकार्य 'प्रत्यक्ष अधिनिर्णय' या 'समीक्षा' के समान है और इसे रद्द किया जा सकता है", याचिका में कहा गया है।

अध्यादेश को स्पष्ट मनमानी के आधार पर भी चुनौती दी गई है, क्योंकि यह सेवाओं पर नियंत्रण हटाकर, एक चुनी हुई सरकार द्वारा उसके गवर्नेंस के कार्य को,  असंभव बना देता है। इस प्रकार, इस अध्यादेश द्वारा, दिल्ली की चुनी हुई सरकार, निरर्थक हो गई है। अध्यादेश के प्रावधान सचिवों, जो कि वरिष्ठ अफसर होते हैं के विवेक और कृत्य को, एक जनता द्वारा निर्वाचित सरकार पर,  अधिभावी शक्तियाँ देते हैं और इससे प्रशासन में अव्यवहारिक गतिरोध पैदा हो सकता है। याचिका में, इसे निम्न प्रकार से स्पष्ट किया गया, "सिविल सेवकों पर नियंत्रण संघ के हाथों में सौंपकर, और फिर जीएनसीटीडी को ओवरराइड करने के लिए सिविल सेवकों को व्यापक विवेकाधीन शक्तियां प्रदान करके, लागू अध्यादेश प्रभाव और डिजाइन में संघ को दिल्ली का शासन संभालने की अनुमति देता है।" 

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

बर्मा का मेहता परिवार, स्वाधीनता संग्राम और आजाद हिन्द फौज / विजय शंकर सिंह

        लीलावती,  नीलम और रमा मेहता 

गुजरात के धनी जौहरियों का एक मेहता परिवार लंबे समय से रंगून में बसा हुआ था। यह परिवार, व्यापार की संभावनाओं की तलाश में, बर्मा जो अब म्यांमार है, गया था। इस परिवार ने वहां सोने चांदी और रत्नों का व्यापार किया तथा, पर्याप्त धन अर्जित किया। इसी परिवार के एक सदस्य थे, डॉ. प्राण जीवन मेहता। महत्व, महात्मा गांधी के सहयोगी और आजादी के आंदोलन से जुड़े एक व्यक्ति थे। डॉ मेहता, जब गांधी जी, लंदन में वकालत पढ़ रहे थे तो, उनके सहपाठी भी थे। गांधी उनके मित्र जरूर थे, पर मेहता के विचारों पर गांधी जी का गहरा प्रभाव पड़ा था। 

उन्होंने कई बार गांधी जी की आर्थिक मदद भी की। खुद भी धन दिया और बॉम्बे के प्रसिद्ध बैरिस्टर, तथा, कांग्रेस के शीर्ष नेता, गोपाल कृष्ण गोखले को पत्र लिख कर आर्थिक मदद करने का आग्रह भी किया। गोखले के अनुरोध पर, तब जमशेद जी टाटा ने, गांधी जी को, दक्षिण अफ्रीका में उनके अभियानों के लिए, दो बार पच्चीस पच्चीस हजार रुपए की आर्थिक सहायता भेजी थी। इसका उल्लेख, रामचंद्र गुहा की किताब, गांधी, द ईयर्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड, में है। 

इस किताब के अनुसार, डॉ प्राणजीवन मेहता पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने, गांधी जी को महात्मा कह कर संबोधित किया था। यह संबोधन उन्होंने गोखले को, गांधी जी के दक्षिण अफ्रीका में किए जा रहे आंदोलनो के संदर्भ में जानकारी देते हुए कहा था। लेकिन यह एक निजी पत्र और निजी संबोधन था, जो बहुत लोकप्रिय नही हुआ। गांधी ने उनकी मृत्यु पर अपना सबसे प्रिय दोस्त बताया था। डॉ मेहता ही वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने गांधी जी को, दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौटने के लिए कहा था। 

मेहता परिवार के पास लोअर बर्मा के पयापोन जिले में लगभग 3,000 एकड़ ज़मीन थी। इन्ही डॉक्टर मेहता के बेटे,  छगन लाल प्राणजीवन मेहता और उनके पूरे परिवार ने, नेताजी सुभाष और आज़ाद हिंद सरकार और आजाद हिन्द फौज का समर्थन किया था। छगनलाल मेहता की पत्नी श्रीमती लीलावती मेहता, अपनी दो बेटियों नीलम मेहता और रमा मेहता के साथ बर्मा में रानी झाँसी रेजिमेंट में शामिल होने वाली पहली महिलाएं थीं। 

छगनलाल की दोनों बेटियां अपनी मां, लीलावती से प्रेरित थीं, जिन्हें कैप्टन डॉ लक्ष्मी स्वामीनाथन जो बाद में, डॉ लक्ष्मी सहगल बन गई और कानपुर में रहती थीं, ने एक 'दुर्जेय महिला' के रूप में, अपने संस्मरणों में, उल्लेख किया है। डॉ लक्ष्मी के अनुसार, लीलावती मेहता ने,  "एक आईएनए अधिकारी से उधार ली गई तलवार भी लहराई थी"। फौज का उन्होंने प्रशिक्षण भी लिया और देश की सेवा करने का गौरव महसूस किया।" लीलावती मेहता ने रानी झाँसी रेजिमेंट के लिए कई अन्य लड़कियों और महिलाओं की भी भर्ती की।  

जब रानी झाँसी रेजिमेंट को भंग कर दिया गया तो रमा मेहता और नीलम मेहता दोनों अपने घर, वापस चली गईं, उन्होंने इस दिन को अपने जीवन का सबसे दुखद दिन माना था।  बर्मा पर, ब्रिटिश के दुबारा कब्जे के बाद, उनके घर पर उनसे, आजाद हिन्द फौज के बारे में, पूछताछ की गई। लेकिन, ब्रिटिश अधिकारियों ने उनके दृढ़ उत्तरों को देखकर कि, वे आजादी की लड़ाई के लिए देश की सेवा करने के लिए भर्ती हुई थी, उन्हें अकेला छोड़ दिया और फिर कोई पूछताछ नहीं की। 
स्रोत: नेताजी, आज़ाद हिंद सरकार और फ़ौज (1942-47)

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

Wednesday, 28 June 2023

ओडिशा ट्रेन हादसा: स्टेशन मास्टर ‘शरीफ़’ की पिटाई के झूठे दावे से दो साल पुराना वीडियो वायरल / विजय शंकर सिंह

ऑल्ट न्यूज के अनुसार, सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल है जिसमें एक शख्स को निर्वस्त्र करके हथकड़ी पहना कर पीटा जा रहा है. दावा किया जा रहा है कि ये व्यक्ति बालासोर ट्रेन दुर्घटना मामले का मुख्य आरोपी और स्टेशन मास्टर मोहम्मद शरीफ़ है. यूज़र्स ने ये भी दावा किया है कि शरीफ पश्चिम बंगाल के एक मदरसे में छुपा हुआ था जहां से उसे सीबीआई ने गिरफ़्तार किया. ऑल्ट न्यूज़ के व्हाट्सऐप नंबर पर इस वीडियो के फ़ैक्ट-चेक के लिए कई रिक्वेस्ट मिलीं.

इस वीडियो को फ़ेसबुक पर भी इसी दावे के साथ शेयर किया गया है. ये वीडियो ट्विटर पर भी इसी दावे के साथ वायरल है. 

ऑल्ट न्यूज वेबसाइट की तरफ से, शिंजिनी मजूमदार के लेख के अनुसार,  इस वीडियो में ध्यान देने वाली पहली चीज़ ये है कि बैकग्राउंड में एक आदमी को पिटाई की गिनती गिनते हुए सुना जा सकता है. उन्हें स्पेनिश में “…सिन्को, कुआत्रो, ट्रेस..” कहते हुए सुना जा सकता है, जिसका हिंदी मतलब है “…पांच, चार, तीन…” इससे पता चलता है कि वीडियो भारत का नहीं है.

वीडियो के की-फ़्रेम का रिवर्स इमेज सर्च करने पर हमें Reddit पर r/NarcoFootage सबरेडिट में वायरल वीडियो के कई उदाहरण मिले. उनमें से एक उदाहरण से पता चलता है कि वीडियो दो साल पहले अपलोड किया गया था, और दूसरे उदाहरण में वीडियो को एक साल पहले अपलोड किया गया था. दोनों वीडियो के टाइटल से पता चलता है कि वीडियो में दिख रहा आदमी एक चोर था जिसे कार्टेल द्वारा पीटा जा रहा था.

हमें वीडियो का एक लंबा वर्जन मिला जिसमें हथकड़ी पहने व्यक्ति और कमरे में मौजूद अन्य लोगों के बीच स्पेनिश भाषा में बातचीत सुनी जा सकती है. वेबसाइट के हिंसक विजुअल्स की वजह से हमने वीडियो को हाइपरलिंक नहीं किया है. पीड़ित से पूछा गया, “हमने तुम्हें बोर्ड से क्यों मारा?” जिस पर उसने जवाब दिया, “क्योंकि मैंने कुछ ले लिया था.” उन्होंने आगे पूछा, “तुमने क्या लिया था” जिसका जवाब साफ नहीं है.

यानी, ये स्पष्ट है कि इस घटना का ओडिशा ट्रेन दुर्घटना से कोई संबंध नहीं है.

गौरतलब है कि बीते दिनों ये दावा वायरल था कि भानागा बाज़ार रेल स्टेशन के स्टेशन मास्टर मोहम्मद शरीफ इस हादसे के बाद से फरार है. हालांकि, ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि शरीफ़ नाम का कोई भी व्यक्ति बहनागा बाज़ार में रेलवे स्टेशन के कर्मचारियों का हिस्सा नहीं था.

पहले ये ख़बर आई थी ड्यूटी पर मौजूद सहायक स्टेशन मास्टर एसबी मोहंती दुर्घटना के बाद मौके से भाग गए थे. इसके बाद मोहंती दुर्घटना की जांच में शामिल भी हो गए थे.

ऑल्ट न्यूज़ ने ये भी पाया कि वीडियो के नीचले कोने में जिस तस्वीर को मोहम्मद शरीफ़ का बताया जा रहा है, वो डिजिटल निर्माता विकास चंदर द्वारा मार्च 2004 के एक ब्लॉग पोस्ट में इस्तेमाल की गई थी. इस पोस्ट के टाइटल में लिखा है: “कोट्टावलसा किरंदुल केके लाइन.” वायरल पोस्ट में जिस शख्स की तस्वीर का इस्तेमाल किया गया है, उसकी पहचान ब्लॉग में बोर्रा गुहालु रेलवे स्टेशन के स्टेशन मास्टर के रूप में की गई है.

बहनागा रेलवे के कुछ कर्मचारियों के फरार होने का दावा करने वाले भ्रामक सोशल मीडिया पोस्ट के बारे में बात करते हुए, दक्षिण पूर्व रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी आदित्य चौधरी ने स्पष्ट किया कि सभी कर्मचारी सदस्य मौजूद हैं और पूछताछ में सहयोग कर रहे हैं.
साभार, ऑल्ट न्यूज और प्रतीक सिन्हा Pratik Sinha  जी। 

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

सरकार यूसीसी का ड्राफ्ट जारी करे / विजय शंकर सिंह

आजकल यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी की चर्चा है। यूसीसी कोई नया मुद्दा नहीं है और न ही यह पहली बार उठाया गया है। संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में इसका उल्लेख है यह अपेक्षा की गई है कि, इसे देर सबेर लागू किया जाएगा। 

लेकिन, इस यूसीसी का ड्राफ्ट अभी तक सामने नहीं आया है इसलिए इस पर यह चर्चा संभव नहीं है कि, यह समान नागरिक संहिता, समाज में कौन सी समानता लाने जा रही है। विधि आयोग अभी इसका ड्राफ्ट तैयार कर रहा है और उसने लोगों से इसके बारे में मशविरे भी मांगे हैं। अब जब तक पूरा ड्राफ्ट सामने न आ जाय, तब तक यूसीसी पर कोई भी बहस, सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठम लट्ठा ही होगा l

आप को याद होगा, तीन साल पहले सरकार ने नागरिकता संशोधन विधेयक कानून लाया था। इस सीएए को लेकर, दिल्ली सहित कई जगह कानून व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न हुई। दिल्ली में लंबे समय तक शाहीन बाग में धरना चला और अंत में दिल्ली में दंगा भी भड़क गया। 

पर आज तक CAA की नियमावली नहीं बन पाई है। कानून को बनाया जाना ही पर्याप्त नहीं होता है, उक्त कानून को कैसे लागू किया जाना है,  इसकी नियमावली भी जरूरी होती है। बिना किसी विधिक नियमावली के कोई कानून कैसे लागू किया जा सकता है? 

CAA से सांप्रदायिक तनाव बढ़ा और आरएसएस बीजेपी का प्रिय एजेंडा, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण भी हुआ। पर आज तक इस नए CAA को कैसे लागू किया जाए, यह तय नहीं हो पाया। हो सकता है, विधि मंत्रालय इसकी नियमावली अभी ड्राफ्ट कर रहा हो। 

यह साल चुनाव का साल है। तेलंगाना, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और मिजोरम में इसी साल नवंबर तक चुनाव हो जायेंगे और फिर अगले साल, अप्रेल मई तक लोकसभा के चुनाव होने लगेंगे। मोदी सरकार अपने टेस्टेड और तयशुदा मूल मुद्दे, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण से अलग हट कर कुछ सोच ही नहीं सकती तो, यूसीसी बीजेपी के लिए, जनता के मूल मुद्दे, रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य से ध्यान भटकाने का एक उचित मुद्दा बन सकता है। 

लेकिन यहीं यह सवाल भी उठता है कि, सरकार जो यूसीसी लागू करना चाहती है, वह गोवा मॉडल है या कोई नया ड्राफ्ट है। जब तक कोई ड्राफ्ट दस्तावेज सामने नहीं आ जाता तब तक इस मुद्दे को केंद्र में रख कर बहस करना, रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य के मूल मुद्दों से भटकना ही होगा। 

मूल मुद्दों पर सरकार या आरएसएस बीजेपी बात करने से सदैव कतराते रहे हैं। उनका पसंदीदा क्षेत्र ही साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण और विभाजनवादी एजेंडा है। अतः खुद को इन्ही मूल मुद्दों पर केंद्रित रखिए और सरकार पर जोर दीजिए कि, वह यूसीसी का ड्राफ्ट जारी करे। 

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

Tuesday, 27 June 2023

नेताजी सुभाष के सहयोगी - इमदाद साबरी / विजय शंकर सिंह

स्वाधीनता आंदोलन के एक मजबूत सेनानी, मौलाना इमदाद साबरी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सबसे निकट अनुयायियों और साथियों में से एक थे। जब तक नेताजी कांग्रेस में रहे, तब तक वे भी कांग्रेस में बने रहे और साथ ही वे कांग्रेस में महत्वपूर्ण पदों पर भी रहे।

कांग्रेस के, सन 1938 के  हरिपुरा अधिवेशन में, इमदाद साबरी साहब,  नेताजी के प्रति वफादार रहे और जब सुभाष बाबू ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया और ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक नाम से एक नई पार्टी का गठन किया तो, साबरी  साहब, फॉरवर्ड ब्लॉक में शामिल हो गये। जब नेताजी सुभाष  कलकत्ता में अपने घर में नजरबंद थे तो, कई बार साबरी ने, नेताजी तक, महत्वपूर्ण सूचनाएं पहुंचाते थे।

राष्ट्रीय और स्वाधीनता आंदोलन में इमदाद साबरी की गतिविधियों पर, ब्रिटिश हुकूमत की नजर थी और अंग्रेजों ने उन्हें, कई बार जेल में भी रखा। अगस्त 1945 में, इमदाद साबरी को, दिल्ली स्थित अपने घर पर, आजाद हिन्द फौज के अधिकारियों और जासूसों  को आश्रय देने और, मेजबानी के लिए,  गिरफ्तार किया गया था।  उन पर दिल्ली में आज़ाद हिन्द फौज को रसद तथा अन्य सहायता प्रदान करने का आरोप भी लगाया  गया था।

दिल्ली जेल में उनकी मुलाकात, आजाद हिन्द फौज एएचएफ के पांच सैनिकों, कनौल सिंह, सुजीत राय, सरदार करतार सिंह, भागवत गौतम उपाध्याय और राम दुलारे, से हुई,  जिन्हें अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी।  साबरी ने, आईएनए के इन पांच सैनिकों के लिए जनता का समर्थन जुटाया और सजा पर अमल नहीं होने दिया। 1947 में भारत के आजाद होने के बाद इन सभी को रिहा कर दिया गया।

इमदाद साबरी ने नेताजी और आजाद हिन्द फौज के खिलाफ, ब्रिटिश दुष्प्रचार  की पोल खोलने के लिए तारीख-ए-आजाद हिंद फौज, मुकद्दमा आजाद हिंद फौज, आजाद हिंद फौज का एल्बम, सुभाष बाबू की तकरीरे, सुभाष बाबू जापान किस तरह गए आदि जैसी कई किताबें लिखीं।  पेशे से पत्रकार रहे, इमदाद, ने नेताजी के नेतृत्व में मुक्ति संग्राम को लोकप्रिय बनाने में अपनी सारी ऊर्जा समर्पित कर दी थी।

1988 में अपनी आखिरी सांस तक उन्होंने कभी भी, नेताजी की मृत्यु से जुड़ी, 'विमान दुर्घटना सिद्धांत' पर विश्वास नहीं किया।  

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

प्रसिद्ध पत्रकार स्व. एसपी सिंह जी को याद करते हुये./ विजय शंकर सिंह

आज 27 जून है और आज ही, प्रसिद्ध  पत्रकार एसपी सिंह जी, ( सुरेंद्र प्रताप सिंह ) जिन्होंने आजतक को शुरू किया था की पुण्यतिथि है  उनके साथ रहे उनके सभी मित्र और सहयोगी पत्रकार बंधु, उनको स्मरण कर रहे हैं। उनसे जुड़ी मेरी भी कुछ पारिवारिक और घरेलू स्मृतियां हैं जिन्हें आप सब से साझा कर रहा हूं।

मेरा बचपन कलकत्ता में बीता है, पर कलकत्ता शहर में नहीं, बल्कि कलकत्ता के उत्तर लगभग 20 किमी दूर श्यामनगर रेलवे स्टेशन के पास गरुलिया नामक एक कस्बे में। मेरे पिता वहां स्थित एक कॉटन मिल डनबर मिल्स में परसनल मैनेजर थे और उसी गरुलिया कस्बे में ही एसपी सिंह जी के पिता जी और उनका परिवार रहता था। कुछ दूर की रिश्तेदारी भी थी और मेरे पिताजी से उनके पिताजी की कुछ घनिष्ठता भी तो आना जाना लगा रहता था। तब मेरा बचपन था। पिता जी के साथ कई बार उनके घर गया हूँ। तब एसपी सिंह जी से मिला भी खूब हूँ, पर एक दूरी बनी रही क्योंकि वे उम्र में बड़े थे और बात भी कम करते थे। मिलने पर कुछ न कुछ पढ़ाई के बारे में पूछने लगते थे।

जब में बीएचयू में पढ़ता था, तब छुट्टियों के बीच इम्तिहान देकर नियमित कलकत्ता चला जाता था तो गरुलिया स्थित मिल कैम्पस के आवास में मन नहीं लगता था। जब भी मन होता श्यामनगर से लोकल ट्रेन पकड़ कर कलकत्ता चला जाता था। श्यामनगर से लोकल ट्रेन मिलती थी, और चालीस मिनट में सियालदह। उन्ही दौरान वे हिंदी पत्रिका रविवार के संपादक हो गये थे। तब आनंद बाजार ग्रुप में दो  पत्रिकाएं निकलना शुरू हुयी थी, एक हिंदी की रविवार और दूसरी अंग्रेज़ी की संडे। संडे के सम्पादक एमजे अकबर थे और रविवार के एसपी सिंह जी। एमजे अकबर से भी मेरी मुलाकात तभी हुयी थी। पर उनसे मेरा कोई अधिक संपर्क नहीं रहा।

एसपी सिंह जी को यह पता था मैं प्रतियोगी परीक्षाएं दे रहा हूँ तो उन्होंने वहां की नेशनल लाइब्रेरी में अपने एक मित्र के माध्यम से मेरा कार्ड बनवा दिया था और मैंने उस लाइब्रेरी का जो भी लाभ उठा सकता था उठाया। उसी दौरान उनकी पत्रिका में कुछ रिक्तियां निकली तो उन्होंने मेरे पिता जी को यह बात बतायी और बनारस में मेरे पते पर उन रिक्तियों का विवरण देते हुए आवेदन करने को कहा और यह भी कहा कि यहीं आकर आवेदन भर दो।

मैं कलकत्ता गया और उन रिक्तियों के संदर्भ में आवेदन किया और फिर वापस बनारस और इलाहाबाद चला आया। इलाहाबाद में मैं पढा नहीं हूं बल्कि प्रतियोगी परीक्षाओं के लिये वहां के मम्फोर्डगंज मुहल्ले में मेरे मामा जी जो इलाहाबाद में ही एजी ऑफिस में अधिकारी थे, के यहां रहता था। 1977 में पीसीएस का इम्तहान देकर मैं कलकत्ता गया तो लंबे समय तक वहां रुका और तब बराबर उनसे मुलाकात होती रहती थी।

मैं जब बनारस में था तो मेरा रिजल्ट निकल गया और मेरा चयन पुलिस सेवा में हो गया। रिजल्ट के बाद एक निश्चिंतता सी हुयी और मैं बनारस से कलकत्ता पिता जी के पास चला गया। वहां पहुंच कर, खुशी खुशी  मैं यह खबर देने दूसरे ही दिन श्यामनगर से लोकल ट्रेन पकड़ कर कलकत्ता चला गया।  धर्मतल्ला पर स्थित केसी दास की दुकान से रसगुल्ला लेकर एसपी सिंह जी को अपने चयनित होने की खुशी में शामिल करने, उनके दफ्तर पहुंचा तो वे अपने केबिन में व्यस्त थे। थोड़ी ही देर में उन्होंने मुझे बुलाया और रसगुल्ला देखते हुये आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता से पूछा यह किस खुशी में ? मैंने उन्हें कारण बताया तो,  उन्होंने प्रसन्न मुद्रा में रसगुल्ला एक तरफ रखते हुए पूछा कि
" हमारे साथ अखबार में काम करोगे या पुलिस की नौकरी में जाओगे ? "

मैं चुप रहा। उनसे मैं अक्सर कहता था कि, आप के साथ ही काम करूंगा। यह लिखना पढ़ना मुझे बहुत अच्छा लगता है। अब जब एक अच्छी नौकरी में चयन हो गया है तो क्या कहूँ।
फिर मैंने कहा, "अभी मेरे पास यूपीएससी का एक अवसर और शेष है। अब इलाहाबाद जाकर उसी की तैयारी करूंगा। इसमे तो हो ही गया है। "

उन्होंने अपने दफ्तर से चपरासी को बुलाया। फिर मिठाईयां तथा नाश्ते का सामान अलग से मंगाया और अपने अन्य कुछ सहकर्मियों को भी बुला लिया और एक बड़े भाई की तरह मेरे जीवन मे आये उन खुशी के पलों को जीवंत बना दिया। फिर मैं एक महीना निर्द्वन्द्व हो कर कलकत्ता रोज घूमता था और अक्सर उनके यहां जाता रहता है।

वे फिर कब नवभारत टाइम्स में आ गए यह मुझे नहीं पता है। मैं फिर ट्रेनिंग और नौकरी में व्यस्त हो गया। 1980 में पिता जी भी अपने पद से रिटायर होकर बनारस आ गए। यह सम्पर्क लगभग टूट गया। जब मुझे पता चला कि वे नवभारत टाईम्स में कार्यकारी सम्पादक हैं तो दिल्ली उनसे मिलने गया था। बहादुर शाह जफर मार्ग स्थित कार्यालय में उनसे भेंट हुयी। उस दौरान जब मैं एक हफ्ता दिल्ली में था तो दो तीन बार भेंट हुयी। वे मेरे अग्रज थे, मित्र नहीं, तो बात भी बहुत औपचारिक ही होती थी।

1995 - 96 में मैं लखनऊ में डीजीपी का पीआरओ था। प्रेस से नियमित संपर्क रखना ही मेरा काम था। तब मैं दिल्ली और लखनऊ के प्रेस के मित्रों से नियमित भेंट होती थी और उनमें से कुछ से जो मित्रता हुयी वह अब तक बनी हुयी है। मेरे डीजीपी थे डॉ गिरीश बिहारी। उन्होंने मुझसे कहा कि
' दिल्ली से उनके एक पत्रकार मित्र जहाज से अमौसी आएंगे और सप्रू मार्ग स्थित पुलिस अफसर मेस में रुकेंगे। उन्हें लेकर सीधे डीजीपी मुख्यालय लाना है और फिर मेस में ले जाकर छोड़ना है। उनके साथ अजय सोलंकी भी होंगे। '
मुझे उनका नाम नहीं बताया गया। उनके साथ एक और सज्जन अजय सोलंकी भी आ ही रहे थे तो मैंने डीजीपी साहब से अधिक पूछना उचित नहीं समझा।

मैं अमौसी एयरपोर्ट पहुंचा। जब एसपी सिंह जी, सोलंकी के साथ बाहर निकल रहे थे तो उन्हें देख कर खुशी और हैरानी दोनों हुयी। मैंने उनके पांव छुए तो उन्होंने कहा कि "तुम यहाँ कैसे ? "
तब सोलंकी ने उनसे कहा कि " यह तो डीजीपी के पीआरओ हैं ।"
फिर कुछ खास बात नहीं हुयी। सोलंकी की यह आदत थी कि जब वे साथ रहते थे तो किसी को बोलने नहीं देते थे। तब एसपी सिंह जी 'आज तक'  मे आ चुके थे। तब से उनके दिवंगत होने तक सम्पर्क बना रहा। फिर मैं, 1996 अगस्त में  पीआरओ से  एसपी ट्रैफिक के पद पर स्थानांतरित होकर कानपुर आ गया।

बाद में आज तक पर उनका प्रोग्राम नियमित देखता था। उपहार सिनेमा अग्निकांड जिसमे 50 से अधिक लोग मर और सैकड़ों घायल हो गए थे पर उनकी स्टोरी आज भी याद है। इस कांड का उनपर बहुत गहरा असर पड़ा।  मितभाषी थे वे। और बेहद संवेदनशील भी। अग्निकांड की यह रिपोर्टिंग और उनकी ऐंकरशिप कमाल की थी। उस दुःखद कांड  के प्रति यह उनकी समानुभूति थी। तब मेरी बात हुयी थी। तब मोबाइल का जमाना नहीं था। उनसे बात भी फोन पर बहुत कम होती थी। होती भी थी तो बस पारिवारिक, हाल चाल। किसी खबर पर नहीं और राजनीति पर तो बिलकुल नहीं।

आज जब 27 जून को उनकी पुण्यतिथि से जुड़ी खबरें उनके पत्रकार और गैर पत्रकार मित्रों द्वारा फेसबुक पर देखा तो वह सब याद आया जो धूल और गर्द के नीचे कहीं पड़ा था।

पुण्य प्रसून बाजपेयी का उनके बारे में एक कथन इसी फेसबुक पर मिला है। मुझे अच्छा लगा । उसे भी जोड़ दे रहा हूँ। यह अंश पत्रकारिता पर है, 

" सच को बताने निकलते हैं तो आपकी साख बनती है और झूठ को बताने निकलते हैं तो वो ब्रांड हो जाता है। पत्रकार सिर्फ..पत्रकार होता है इनका उनका नहीं होता..चाहे दौर कोई भी हो। मीडिया का एक बड़ा समंदर हो गया है जिसमें पत्रकार गायब हो गया है। अगर पत्रकार थम गया, यदि पत्रकारिता रूक गयी तो अच्छा नेता,अच्छा शिक्षक, अच्छा वकील,अच्छा समाज नहीं दे पायेंगे । "

स्व. एसपी सिंह जी  को स्मरण करते हुए उनका विनम्र स्मरण !!

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

पुलिस को प्रियांक खड़गे के संबोधन का क्लिप्ड वीडियो 'गोहत्या को बढ़ावा देने' के झूठे दावे के साथ साझा किया गया ~ ऑल्ट न्यूज

ऑल्ट न्यूज की ओइशानी भट्टाचार्य की पड़ताल के अनुसार,  कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खड़गे की पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक की 30 सेकंड की एक वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर इस दावे के साथ साझा की जा रही है कि, मंत्री प्रियांक खरगे, कर्नाटक पुलिस को गायों को बचाने की कोशिश करने वाले लोगों को, जेल में डालने का निर्देश दे रहे हैं। इस क्लिप पर, कई लोगों ने उल्लेख किया कि यह प्रियांक खरगे का हिंदू विरोधी रुख है, क्योंकि उनका मानना ​​है,  कि यह विडियो गोहत्या को बढ़ावा दे रहा है और मंत्री का 'आदेश' कर्नाटक  में अघोषित आपातकाल के समान है।

बीजेपी कर्नाटक के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट ने यह विडियो क्लिप साझा की गई है उसके कैप्शन में उल्लेख किया गया है कि, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 48, विशेष रूप से सार्वजनिक स्थानों पर जानवरों के वध पर प्रतिबंध लगाता है और प्रियांक खड़गे अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रहे हैं, गोहत्या को बढ़ावा दे रहे हैं और पुलिस पर उन लोगों को गिरफ्तार करने का दबाव डाल रहे हैं जो, गौरक्षक हैं और जिन्होंने गौवध का विरोध किया। 

आंध्र प्रदेश बीजेपी के राज्य महासचिव विष्णु वर्धन रेड्डी (@SVishnuReddy) ने भी इसी तरह के दावे के साथ यह विडियो क्लिप साझा किया। 

@MitaVamsiभाजपा, @Aish17aer सहित कई अन्य सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने वीडियो को समान दावों के साथ साझा किया।

ऑल्ट न्यूज ने इस तथ्य की जांच की और निम्न तथ्य पाए गए। 

ऑल्ट न्यूज के अनुसार, 
०  हमने देखा कि वायरल वीडियो पर कन्नड़ न्यूज चैनल न्यूज फर्स्ट का वॉटरमार्क है।  हमें पूरा वीडियो उनके यूट्यूब चैनल पर मिला।  वायरल क्लिप मूल वीडियो के 0.29 अंक पर कट करती है जिसके बाद मंत्री को अपने शुरुआती बयान में और संदर्भ जोड़ते हुए सुना जा सकता है।

० इसके अलावा, एक कीवर्ड खोज से हमें 21 जून को प्रकाशित कन्नड़ दैनिक वर्था भारती की एक समाचार रिपोर्ट मिली। रिपोर्ट में कहा गया है कि खड़गे ने विशेष रूप से तीन चीजों का उल्लेख किया है।  
1. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को सोशल मीडिया पर गलत सूचना फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया.  
2. उन्होंने सांप्रदायिक तनाव को रोकने की आवश्यकता पर जोर दिया और 
3. उन्होंने कहा कि 'गौ रक्षक' होने का दावा करने वाले और हिंसा भड़काने का प्रयास करने वाले व्यक्तियों को गिरफ्तार किया जाना चाहिए और उन पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए।

० वार्ता भारती के यूट्यूब चैनल पर हमें एक अलग एंगल से वायरल वीडियो क्लिप का लंबा संस्करण मिला।  कन्नड़ में वीडियो के शीर्षक का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है: "सांप्रदायिक जहर बोने वालों पर अंकुश लगाया जाना चाहिए: प्रियांक खड़गे"।

० वीडियो के 0.18 अंक पर वह बकरीद के बारे में बात करते हैं और पुलिस को निर्देश देते हैं।  हमने वीडियो के उस हिस्से का कन्नड़ से अंग्रेजी में अनुवाद किया।

“अब बकरीद आ रही है.. कानून के अनुसार, सभी पीएसआई और डीएसपी कृपया सुनें.. जो लोग गौ रक्षा करते हैं, कहते हैं कि हम इस दल से हैं, उस दल से… वे नहीं जानते कि किसान कितना संघर्ष कर रहे हैं।  अगर कोई शॉल ओढ़कर कहे कि हम इस दल या संगठन से हैं और कानून अपने हाथ में लें तो उसे लात मारो और सलाखों के पीछे डाल दो।  कानून बहुत स्पष्ट है.  पशुधन के सभी परिवहन चाहे वह शहर की सीमा के भीतर हो या ग्रामीण क्षेत्रों में, यदि उनके पास अनुमति और दस्तावेज हैं, तो उत्पीड़न रोकें।  क्या आप उन्हें (गौरक्षकों को) अपना काम देकर पुलिस स्टेशन में बैठेंगे?  यह नया उत्पीड़न पिछली सरकार के दौरान शुरू हुआ था.  पिछली बार गुलबर्गा में ये लोग घरों में गए थे, किसानों के जानवर उठा लाए थे।  कानून के अनुसार कार्य करें.  अगर कोई कानून अपने हाथ में लेता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।  यदि कोई अवैध रूप से जानवरों की तस्करी कर रहा है, चाहे वह पशुधन हो या कोई अन्य जानवर, उसे सलाखों के पीछे डालें।  इससे इनकार नहीं किया जा सकता.  लेकिन सभी अनुमतियों के बाद भी अगर किसी को परेशान किया जाता है, तो आप उनसे पूछते हैं कि वे (गौ रक्षक गुंडे) कौन होते हैं पूछने वाले?”

इस पड़ताल से यह स्पष्ट है कि, प्रियांक खड़गे अपने संबोधन में पुलिस से उन गौरक्षकों के खिलाफ सख्त और कानूनी कार्रवाई करने को कह रहे हैं जो खुद को किसी संगठन से होने का दावा करके कानून अपने हाथ में लेते हैं। उन्होंने कहा कि यदि किसी के पास पशुधन परिवहन की अनुमति और आवश्यक दस्तावेज हैं तो पुलिस को उनका उत्पीड़न रोकना चाहिए।  उन्होंने यह भी कहा कि यदि कोई अवैध रूप से पशुओं की तस्करी कर रहा है तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई की जाए।

प्रियांक खड़गे ने भी इस मामले पर ट्वीट करते हुए बताया कि "कैसे उनके भाषण का गलत मतलब निकाला गया.  बीजेपी कर्नाटक के ट्वीट को कोट-ट्वीट करते हुए उन्होंने लिखा, “प्रिय @बीजेपी4कर्नाटक, आपकी उस एजेंसी को बर्खास्त करने का समय आ गया है जो पार्टी का ट्विटर हैंडल संभाल रही है।  स्पष्टतः वे कन्नड़ नहीं समझते, संविधान को समझना तो दूर की बात है।  क्या भाजपा सुझाव दे रही है कि गौरक्षकता कानूनी है और किसी भी प्रकार के गौरक्षकों को कानून तोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए?  कोशिश करो मेरे दोस्तों, कर्नाटक सरकार तुम्हें संविधान की ताकत दिखाएगी।”

इसलिए, बीजेपी कर्नाटक और अन्य बीजेपी नेताओं का यह दावा कि प्रियांक खड़गे ने गोहत्या को बढ़ावा दिया, झूठा है।  कांग्रेस नेता ने पुलिस से यह सुनिश्चित करने को कहा कि कोई भी गौरक्षा के नाम पर कानून अपने हाथ में न ले और सांप्रदायिक तनाव पैदा न करे।

वेबसाइट ऑपइंडिया ने इस मुद्दे पर एक लेख प्रकाशित किया जहां शीर्षक और उप-शीर्षक दोनों भ्रामक प्रतीत होते हैं।  शीर्षक में कहा गया, "कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे ने पुलिस को कर्नाटक में 'गौरक्षकों' को लात मारने का निर्देश दिया...", जबकि उप-प्रमुख ने कहा, "प्रियांक खड़गे ने कहा था, "जो लोग शॉल पहनते हैं, वे कानून अपने हाथ में लेते हैं और कहते हैं  वे इन दल (बजरंग दल) से हैं, उन्हें लात मारो और उन्हें सलाखों के पीछे डालो।  दूसरा पैराग्राफ यह कहकर आवश्यक संदर्भ जोड़ता है कि खड़गे ने पुलिस से उन मामलों में कार्रवाई करने के लिए कहा जहां "वैध दस्तावेज होने के बावजूद मवेशियों के परिवहन में बाधा उत्पन्न हो रही है"।  मंत्री द्वारा यह कहा गया कि यदि कोई अवैध रूप से जानवरों की तस्करी कर रहा है तो उन्हें सलाखों के पीछे डाल दिया जाना चाहिए, इसका 'रिपोर्ट' में उल्लेख नहीं किया गया था।  
साभार ऑल्ट न्यूज और प्रतीक सिन्हा जी।

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

Sunday, 25 June 2023

जोश मलीहाबादी की आत्मकथा, यादों की बारात का अंश (9) निजाम हैदराबाद की सेवा में जोश मलीहाबादी / विजय शंकर सिंह

              चित्र हैदराबाद 1930 मै।

पिछले अंश में आप पढ़ चुके हैं, कि, एक रात जनाब जोश साहब को ख्वाब आया कि, उनसे उस ख्वाब में नमूदार एक बुजुर्ग पीर, यह कह रहे हैं कि, वे दकन की ओर जाएं, उनका दानापानी वहीं उनका इंतजार कर रहा है। जोश के अनुसार, वे पीर कोई अन्य नहीं, बल्कि पैगम्बर मुहम्मद खुद थे। उन्होंने इस ख्वाब का जिक्र अपनी पत्नी से किया और पत्नी तो इसी चिंता में घुली जा रही थीं कि, जोश की नौकरी कैसे लगेगी। अब जब ख्वाब की बात उन्होंने सुनी तो, जोश को दकन जाने की जिद कर बैठीं। जोश भी धार्मिक खयाल से तो उतना नहीं, बल्कि इस ख्वाब की असलियत परखने की नीयत से दकन के लिए रवाना हुए और दकन जा पहुंचे। 

दकन, माने हैदराबाद। है8दराबाद मांने, निजाम शाही। निजाम माने देश की सबसे धनी रियासतों में से एक रियासत। लेकिन धनी निजाम भी देश के कंजूसों में अव्वल थे। उनके महल, उनके व्यक्तित्व और उनकी रियासत का जिक्र जोश की भाषा शैली में आप आगे पढ़ेंगे। जोश के दादा, उत्तर भारत के उर्दू फारसी के एक ख्यातनाम शायर थे और उनकी शौहरत, दक्षिण तक फैली हुई थी। जोश के साथ, उनके पिता और दादा का नाम, अवध के ताल्लुकेदारी की सरमाया तो थी ही, साथ ही उनके पास अल्लामा इक़बाल का एक सिफ़ारिशी ख़त भी था। लेकिन, असर, उनके दादा के ही नाम का, दकन में पड़ा। 

उनकी सिफारिश निजाम तक तो पहुँच गई थी, पर, अभी महल से कोई संकेत उन्हें मिला नाहीं था। वे दिन दिन भर इंतजार करते पर न कोई पैगाम मिलता और न कोई संदेशवाहक ही नज़र आता। लेकिन, एक दिन, महल से निजाम का बुलावां आ ही गया। अब आप यह विवरण, जोश साहब के ही शब्दों में पढ़िए...
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एक रोज़ में इस बात पर गौर कर रहा था कि नवाब अमादुल मलिक के खत को भी लगभग एक महीना गुज़र चुका है, लेकिन निजाम ने अब तक मुझे तलब नहीं किया है। शायद वह तीर भी खता कर गया कि उसी आन दरवाज़े पर मोटर आ गई जन-जन करती, और बरामदे में ताली बजने लगी ठन-ठन।

बाहर आया तो देखा कादिर नवाज़जंग खड़े हैं। मुझे देखते ही उन्होंने कहा, "मुबारक हो जोश साहब, सरकार ने आपको याद फरमाया है। अभी तैयार हो जाइए। "

किंग कोठी की काई लगी काली काली दीवारों और उसके शाहाना फाटक के पुराने पदों पर इबरत से निगाह डालता हुआ मैं, जब महल-सरा के अन्दर पहुंचा तो य हसरतनाक तमाशा देखा कि यहाँ सब्जे का फर्श है न क्यारियों, फूलों के पौधे हैं न सरु व चिनार-सूखा-खा सेहत है और उस बुझे-बुझे सेहन में हजारों चीजें निहायत बेकायदगी के साथ इधर-उधर बिखरी पड़ी हैं। सामने एक निहायत छोटा-सा तीन सीढ़ियों का बरामदा है। बरामदे में एक बे-पॉलिश छोटी-सी कुर्सी पर एक अधेड़ और खुश्क चेहरे का दुबला-पतला आदमी, मैले और पैबन्द लगे कपड़े पहने अकड़ा हुआ बैठा है और उसकी बेफंदे की बोसीदा तुर्की टोपी के किनारों पर मैल की एक चौड़ी तह जमी हुई है। उसके सामने तीस-चालीस रईस और अहलकार दस्ता बकलोस लगाए ऊधी मुर्गाबियों की मानिंद हाथ जोड़े सर झुकाए खड़े हुए हैं और उनके पीछे बहुत-से चीड़ के नाकारा बक्स पड़े हुए हैं।

मेरी नजर क़बूल करके उस दुबले आदमी ने अपने दस्त-बस्तार हाज़िरीन से कहा "इन्हें पछानते (पहचानते हो! अमादुल मलिक ने लिखा है कि यह फ़क़ीर मुहम्मद खाँ गोया के मोते हैं। अगर अवध की सल्लनत बरबाद न हो जाती तो यह दकन क्यों आते? आधे मुसलमानों को अवध संभाल लेता, आधे मुसलमानों को दकन।"

इसके बाद निज़ाम ने अपने उस्ताद हज़रत जलील मानिकपुरी को मुखातिब करके कहा, "उस्ताद, इनके खानदान से तुम तो खूब वाकिफ होंगे।" उस्ताद ने हाथ जोड़कर कहा, "खुदाबंद, इनके वालिद नवाब बशीर अहमद खाँ ने उस वक्त मेरी इमदाद की थी, जबकि मेरे उस्ताद अमीर मीनाई के इतकाल के बाद कोई मेरा सरपरस्त बाकी नहीं रहा था।" जलील साहब की इस शराफ़त पर मेरी आंखें डबडबा गई। निजाम ने कहा, "उस्ताद, तुम और जोश दोनों बड़े शरीफ़ आदमी हो। तुमने सबके सामने यह बात बेझिझक कह दी कि उनके वालिद ने तुम्हारी मदद की थी। और तुम्हारा यह एतराफ़ सुनकर जोश साहब की आँखों में आँसू आ गए। मुझे तुम दोनों की यह बात बहुत पसंद आई।" फिर मुझसे मुखातिब होकर निज़ाम ने कहा, "अमादुल मलिक ने यह भी लिखा है कि नौजवान होने के बावजूद तुम्हारी शायरी में उस्तादों की सी पुख्तगी पाई जाती है। अपनी कोई चीज़ सुनाओ।'

मैंने मतला सुनाया.. 
मिला जो मौका तो रोक दूँगा जलाल रोजे-हिसाब तेरा
पढ़ूंगा रहमत का वह क़सीदा कि हंस पड़ेगा अताब तेरा।
निज़ाम के चेहरे पर पसन्दीदगी का रंग दौड़ गया। आहिस्ता से "वाह' कहा और जब मैंने यह शेर पढ़ा..
जड़ें पहाड़ों की टूट जाती फलक तो क्या अर्श काप उठता
अगर मैं दिल पर न रोक लेता तमाम ज़ोरे शबाब
तेरा। 

तो निज़ाम ने झूमकर कहा, 'बहुत अच्छा! बहुत अच्छा। बहुत अच्छा ! और तमाम हाज़िरीन जोर-जोर से दाद देने लगे। मेरी ग़ज़ल के इख़्तताम (अंत) पर निजाम ने कहा, "उस्ताद जलील, इनके तेवर बता रहे हैं कि बुढ़े होकर यह तुम्हारे दर्जे के हो जाएंगे।

इसके बाद उन्होंने पूछा, "जोश, तुम्हारी शादी हो चुकी है ? मैंने कहा, "मेरी शादी हो चुकी है और मेरी बीवी यहाँ आ भी चुकी है। "यहाँ आ चुकी है ?" उन्होंने हैरत से कहा और फ़रमाया, "तुम्हारी मुलाज़िमत से पहले यह यहां क्यों चली आई। अगर तुमको मुलाज़िमत न मिल सकी तो उनका यहाँ आना बेकार हो जाएगा।"

मैंने कहा, "सरकार, मेरी बीवी को इस बात का यकीन है कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि मुझे यहाँ मुलाज़िमत न मिले।"

निजाम ने पूछा, "तुम्हारी बीबी की इस बात का यकीन क्यों था?" मैं चुप हो गया। सोचने लगा कि उस ख्वाब का माजरा कहूँ या न कहूँ।

मेरे इस असमंजस को देखकर निजाम ने कहा, "बोलो जी बोलते क्यों नहीं?"

इस मौके पर नवाब मेहदीवार जंग हाथ जोड़कर खड़े हो गए और चूंकि मैं उनसे अपना ख्वाब बयान कर चुका था, उन्होंने कहा, "ख़ुदाबंद की इजाजत हो तो फिदवी इसका सबब चयान कर दे। और जब मेहदी साहब ने मेरा तमाम ख्वाब बयान कर दिया तो निज़ाम की आँखों में आँसू भर आए और कहा, "तो यह बोलों कि सरकारे-दोआलम ने जोश को मेरे सुपुर्द फ़रमाया है। " वह अपने दोनों हाथ अपने सीने पर रखकर झुक गए और तमाम दरबार पर गहरी ख़ामोशी छा गई।

एक हफ़्ते के बाद उस्मानिया यूनिवर्सिटी के शोबा-ए-दारुल तरजुमा के नाज़िम (अनुवाद विभाग के निदेशक) इनायतुल्ला साहब ने जो मालवी जकाउल्लाह साहब के बेटे और अकबर हैदरी व राय मसऊद के परस्तार होने के कारण मेरे बदख्वाह बन चुके थे, मुझे बुलाकर कहा, "जोश साहब, मुबारक यह लीजिए शाही फ़रमान। सरकार ने पॉलिटिकल इकोनॉमी के अनुवादक की हैसियत से आपका तकर्रुर फ़रमाया है।

मैंने कहा कि पॉलिटिकल इकोनॉमी से मेरा कोई तअल्लुक नहीं। उन्होंने खुश होकर कहा, "तो फिर आप इनकार लिख दें। "मैंने फ़रमान के हाशिया पर यह लिख दिया कि सरकारे-वाला- बतार का बेहद शुक्रिया। लेकिन चूँकि पॉलिटिकल इकोनॉमी मेरा सब्जेक्ट नहीं रहा है, इसलिए मुझे अफ़सोस है कि मैं इस काम को अच्छी तरह नहीं कर सकूँगा। अलबत्ता अगर अंग्रेज़ी अदब के तरजुमे का काम मेरे सुपुर्द किया जाए तो उसे बड़ी खूबी के साथ अन्जाम दे सकूँगा।"

इनायतुल्ला ने कहा कि अंग्रेज़ी अदब तो अंग्रेज़ी ही में पढ़ाया जाता है; इसलिए उसके तरजुमे की जरूरत ही नहीं है। आप यह इबारत काट दें। मैंने कहा, "क्या मज़ायका है, रहने दीजिए। काटूंगा तो, बदानुमाई पैदा होगी।"

इनायतुल्ला ने कहा, "नाज़िमे-शोबा की हैसियत से मेरा यह फ़र्ज़ है कि मैं आपकी इबारत के नीचे यह नोट लिख दूँ कि अंग्रेज़ी अदब सीधा अंग्रेज़ी ही में पढ़ाया जाता है, उसका तरजुमा बेकार होगा, आपको कोई एतराज तो नहीं होगा?" मैंने कहा- "बड़े शौक से लिख दें, आप।"

उसके चौथे पाँचवें दिन इनायतुल्ला खुद मेरे पास आए और कहने लगे, "जोश साहब, मुबारक हो। सरकार ने अंग्रेजी अदब के अनुवादक की हैसियत से आपका तक़रुर फ़रमा दिया है। यह लीजिए फरमान और लिख दीजिए इस पर अपनी मंजूरी। "

फ़रमान में लिखा हुआ था कि "हरचंद इस नये ओहदे की जरूरत नहीं है; लेकिन अभी जोश मलीहाबादी का मुतरज्जम अंग्रेज़ी अदब के ओहदे पर फौरन तक्ररुर किया जाए और जब उन्हें तरक्की मिल जाए तो इस ओहदे को तोड़ दिया जाए।" मैंने शुक्रिये के साथ इस फ़रमान पर दस्तखत कर दिए।

शुक्रिये की नज्र लेकर पहुंचा। एक नज्र अपनी तरफ से और दो बीवी-बच्चों की तरफ से पेश की। निज़ाम ने कहा, 'अभी क्या है, मैं तुम्हें इतना दूंगा कि घर में रखने की जगह बाक़ी नहीं रहेगी। के बीवियों हैं तुम्हारी?" मैने कहा, "मेरी तो सिर्फ एक ही बीवी है। उन्होंने कहा, "मैंने तो सुना है कि अवध के तअल्लुकेदारान की बहुत सी बीवियां होती हैं। मैने कहा सरकार आला, पहली बात तो यह है कि, हम मियां बीवी एक दूसरे से बेहद मुहब्बत करते है। और दूसरी बात यह है कि, मेरी बीवी भी मेरी ही तरह, पठान नस्ल की है। और फिर वह बेचारी, कई बरस से, दिल के दौरे के मुब्तिला है। अगर मैं दूसरी शादी कर लूंगा तो, पठानों का मोहल्ला और उसका रोग, दोनों मिल कर, मुझे हलाक कर देंगे।"
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तो इस तरह से जोश पर निजाम हैदराबाद की कृपा हुई और उनकी नौकरी वहां लग गई। लेकिन, जोश जैसी नोकरी चाहते थे, वैसी नौकरी उन्हें नहीं मिल पाई। वे एक साहित्यिक रुचि के अदबी व्यक्ति थे और चाहते थे कि, उर्दू अदब से जुड़ी कोई नौकरी उन्हें मिलती। पर ऐसा नहीं हो पाया। शुरू में वे पोलिटिकल साइंस विभाग में अनुवाद से जुड़े रहे, फिर उनके कहने पर ही, उन्हें अंग्रेजी विभाग में कर दिया गया। नौकरी में भी सुकून, नहीं था। अब नौकरी से उनकी दुश्वारियों की बात, उन्हीं के शब्दों में पढ़े...
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अनुवाद विभाग- यह मुकाम दफ़्तर कम और उपहास विभाग ज्यादा था। हम तमाम लोग (सैयद अबुल मौदूदी के अलावा) रोज़ हाशिमी साहब फरीदाबादी के कमरे में जमा होकर गप्पें उड़ाते और शायरी किया करते थे। मैन वहाँ तकरीबन डेढ़ बरस काम किया और जब अल्लामा अली हैदर साहब तबातबाई को पेंशन मिल गई तो नवाब अकबरयार जंग की कोशिश से मुझे तरक्की मिल गई। मेरा ओहदा तोड़ दिया गया और में अल्लामा तबातबाई की जगह 'मशीरे-अदब' के ओहदे पर काम करने लगा। मेरी यह बड़ी अदबी नमकहरामी होगी अगर मैं यह स्वीकार न करूँ कि अनुवाद विभाग में रहने से मुझे बेहद इल्मी फ़ायदा हुआ। खासतौर पर अल्लामा अमादी, अल्लामा तबातबाई और मिर्ज़ा मुहम्मद हादी रुसवा की संगत में मैंने बहुत कुछ सीखा और मुझमें अध्ययन की सही लगन पैदा हुई। शब्दों के सही उच्चारण और उपयुक्त प्रयोग का जो पौधा मेरे बाप और मेरी दादी ने मेरे वजूद की सरजमीं पर लगाया था, अगर तबातबाई, मिर्ज़ा मुहम्मद हादी और अमादी की दस बरस की सोहबत का मौका मुझे न मिलता, वह कभी न फूलता-फलता।

मिर्ज़ा मुहम्मद हादी साहब मेरे पड़ोसी थे। मैं दकन आकर फिर उनसे पढ़ने लगा और इस बार फ़ारसी के साथ उनसे अंग्रेज़ी अदब और फ़िलसफे (दर्शन) का भी बाक़ायदा सबक़ लेना शुरू कर दिया। हरचंद 1918 से में शराब के लुक से आगाह हो चुका था, इसलिए कभी-कभी किसी दावत में तो पी लेता था लेकिन तनख्वाह से खरीदकर कभी नहीं पीता था। इसलिए मुझे यह फुरसत थी कि रोज रात को ग्यारह बारह बजे तक पढ़ा करता था।
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लेकिन, जोश का मन वहां लगा नही और वे दकन में टिक नहीं पाए, और फिर उत्तर प्रदेश की ओर निकल पड़े। यह आप पढियेगा, अगले अंश में।
(क्रमशः)

विजय शंकर सिंह
Vijay Shanker Singh 

'जोश मलीहाबादी की आत्मकथा, यादों की बारात का अंश (8) नौकरी के लिए हैदराबाद की यात्रा / विजय शंकर सिंह '.
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2023/06/8.html

Thursday, 22 June 2023

नरेंद्र मोदी की तारीफ़ में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के कथित ट्वीट्स, जांच के बाद फर्ज़ी पाये गये / विजय शंकर सिंह

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नाम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ के ट्वीट जांच के बाद फर्जी पाये गए। ऑल्ट न्यूज़ की ओशियानी भट्टाचार्य की यह रिपोर्ट पढ़ें। 

उक्त रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के 2 कथित ट्वीट्स की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल है. वायरल तस्वीर में दिख रहे ट्वीट के टेक्स्ट में पूर्व पीएम कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए हाल के पीएम नरेंद्र मोदी की तारीफ कर रहे हैं और कह रहे हैं कि जब वो पीएम थे तो उन्हें मोदी की तरह खुद निर्णय लेने की स्वतंत्रता नहीं थी। 

वायरल तस्वीर मनमोहन सिंह के 2 कथित ट्वीट्स का एक कोलाज है और दो ट्वीट्स के बीच वाले हिस्से में लिखा है: “मुझे प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी पर गर्व है.” इन ट्वीट्स में लिखा है:

पहला ट्वीट, “बड़े बड़े फैसले मैं भी कर सकता था लेकिन कांग्रेस कभी भी मुझे अपनी इच्छा से कोई काम नहीं करने देती थी, नरेन्द्र मोदी खुद फैसले लेता है इसलिए देश तरक्की कर रहा है।”

दूसरा ट्वीट, “आज मैं खुलकर बोलता हूं मोदी जैसा नेता व प्रधानमंत्री पूरे विश्व में दुबारा पैदा नहीं होगा।”

फ़ेसबुक यूज़र लोकेश कुमार आर्य ने 6 जून को ये तस्वीर इस कैप्शन के साथ पोस्ट की: “मैं क्या बोलूं मनमोहन सिंह जी खुद बोल दिए, अब तो देखो कांग्रेसियों तुम्हारे पूरे परदे खोल दिए ll”

मैं क्या बोलूं मनमोहन सिंह जी खुद बोल दिए,
अब तो देखो कांग्रेसियों तुम्हारे पूरे परदे खोल दिए ll
तुम्हारे दुकान हमने बंद…

Posted by Lokesh Kumar Arya on Tuesday, 6 June 2023

ये तस्वीर व्हाट्सऐप पर भी वायरल है। कुछ ट्विटर यूज़र्स ने भी इसे ट्वीट किया है वहीं फ़ेसबुक पर भी ये तस्वीर पोस्ट की गई है। ऑल्ट न्यूज़ को इस तस्वीर की सच्चाई का पता लगाने के लिए कई रिक्वेस्ट मिलीं। 

ऑल्ट न्यूज़ द्वारा, जब इन ट्वीट्स का फ़ैक्ट-चेक किया गया तो निष्कर्ष निकला कि डॉ मनमोहन सिंह का तो कोई ट्विटर अकाउंट ही नहीं है। यह सारे ट्वीट एक फर्जी अकाउंट से किये गये हैं। 

फैक्ट चेक के अनुसार, इस वायरल तस्वीर में दिख रहे ट्वीट्स की जांच करने के लिए ऑल्ट न्यूज़ ने कथित ट्विटर हैंडल के बारे में सर्च किया। ये ट्वीट्स ‘@manmohan_5’ हैन्डल से किये गए थे. हमने देखा कि ऐसा कोई अकाउंट मौजूद नहीं है। 

आगे, की-वर्ड्स सर्च करने पर हमें 2021 की कुछ रिपोर्ट्स मिलीं जिसमें कुछ फ़ैक्ट-चेक वेबसाइट्स ने इस दावे की पड़ताल की थी. इनमें से कुछ रिपोर्ट्स में कांग्रेस नेता सरल पटेल के 2020 का एक ट्वीट भी था। ट्वीट में उन्होंने ज़िक्र किया कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के नामे से फर्ज़ी अकाउंट्स चलाए जा रहे थे। उन्होंने कहा कि अगर ये असली ट्विटर हैंडल नेताओं के होते तो उनके पास वेरीफ़ाईड बैज होता। (आर्काइव)

द टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने भी इस मामले पर रिपोर्ट पब्लिश की थी। 

हमें ट्विटर हैन्डल ‘@manmohan_5’ से साल 2021 तक के कई ट्वीट्स के आर्काइव्ड वर्ज़न मिले जिनमें वायरल तस्वीर भी शामिल है। आर्काइव्स में भी ब्लू टिक मार्क नहीं है जिससे ये पता चलता है कि ये अकाउंट वेरीफ़ाइड नहीं था। 

हमें मनमोहन सिंह के ऑफ़िशियल फ़ेसबुक पेज का 2012 का एक फ़ेसबुक पोस्ट भी मिला। इसमें पूर्व पीएम के कार्यालय के ऑफ़िशियल ट्विटर अकाउंट को लॉन्च करने की घोषणा की गई थी। इसमें @PMOIndia के ट्विटर पेज का लिंक भी था जो भारत के वर्तमान पीएम नरेंद्र मोदी से संबंधित जानकारी पोस्ट करता है। 

Official Twitter account of the Prime Minister’s office launched today. Follow Him on@PMOIndia | https://twitter.com/#!/PMOIndia

Posted by Dr. Manmohan Singh on Monday, 23 January 2012

इस फैक्ट चेक से यह स्पष्ट है कि, पूर्व प्रधानमंत्री का कोई ट्विटर अकाउंट है ही नहीं। साथ ही वायरल तस्वीर में बताए गए यूज़रनेम का कोई मौजूदा ट्विटर अकाउंट भी नहीं है। यानी, यह स्पष्ट है कि इस तस्वीर को एडिट करके शेयर किया गया है ताकि ऐसा लगे कि मनमोहन सिंह, नरेंद्र मोदी की तारीफ़ कर रहे थे। जबकि ये ट्वीट फर्ज़ी हैं। साभार ऑल्ट न्यूज़ और Pratik Sinha प्रतीक सिन्हा जी। 

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

योग और योगासनों पर जवाहरलाल नेहरू का एक उद्धरण / विजय शंकर सिंह

"योग स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद है। मैं स्वयं इस प्रणाली के तहत कुछ आसनों का अभ्यास करता रहा हूं। मैं चाहता हूं कि, लोग बड़े पैमाने पर कुछ चयनित आसनों को आजमाएं। हालांकि कुछ व्यायाम कठिन हो सकते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें करने में कोई अधिक मेहनत नहीं पड़ती हैं। शारीरिक व्यायाम के अन्य रूप, थकान का कारण बनते हैं और वे व्यक्ति को थका देते हैं। हालांकि वे शारीरिक विकास में मदद भी करते हैं। लेकिन योग व्यायाम, अगर ठीक से किया जाए, तो पसीना नहीं आता है, या सांस लेने के लिए हांफना नहीं पड़ता है, या अंगों में थकान नहीं होती है। यह व्यायाम शरीर और दिमाग को पूर्ण आराम देते हैं और बीमारियों को दूर करते हैं। मेरा अपना अनुभव है कि कुछ योग आसन मुझे हल्का और आराम महसूस कराते हैं।''

~ जवाहरलाल नेहरू
योग और योगासनों पर।
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"Yoga is very beneficial for health. I have myself been practicing a few exercises under this system. I would like the people by and large to try some of the selected exercises. While some exercises may be difficult, there are others which do not involve any great effort. The other forms of physical exercise cause fatigue and tire out the individual,  though they do help in one's physical development. But yogic exercises, if done properly, do not cause sweating, or panting for breath, or tiredness to the limbs. These exercises give perfect rest to body and mind, and remove ailments. My own experience is that some of the yoga asanas make me feel lighter and relaxed."

~ Jawaharlal Nehru.
On Yoga and Asans 

विजय शंकर सिंह
Vijay Shanker Singh 

Wednesday, 21 June 2023

भावनाएं भी सेलेक्टिव रूप से आहत होती हैं / विजय शंकर सिंह

आज फिल्म अदिपुरूष के आपत्तिजनक संवादों पर मनोज मुंतशिर निशाने पर हैं। उनकी जबरदस्त आलोचना हो रही है और फिल्म आदिपुरुष को बैन करने की बात उठ रही है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि, न केवल इस फिल्म के संवाद स्तरहीन और लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले हैं, बल्कि पूरी फिल्म, रामकथा को एक भोंडे मजाक के रूप में प्रदर्शित करती है। 

लेकिन क्या आप को, बीजेपी के एक नेता का वह ट्वीट याद है जिसमे एक पेंटिंग ट्वीट की गई थी, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राम को उनकी अंगुली पकड़ कर उनके 'घर' में ले जाते हुए दिख रहे हैं। इस चित्र ने, बीजेपी आरएसएस के कितने मित्रों को आहत किया, इसका आप उस ट्वीट पर आए हुए, कमेंट्स से अनुमान लगा सकते हैं। इस ट्वीट में, बीजेपी महासचिव शोभा करांदलजे ने पीएम मोदी को भगवान राम को मंदिर ले जाते दिखाया था। पेंटिंग में भगवान राम का कद पीएम मोदी से छोटा दिखाया गया था और वह पीएम का हाथ पकड़े हुए दिख रहे हैं। 

लेकिन, चूंकि इस पेंटिंग में, साक्षात नरेंद्र मोदी जी राम को, उनकी अंगुली पकड़ कर ले जाते हुए दर्शाए गए हैं तो, भला आरएसएस और बीजेपी के किस नेता और कार्यकर्ता की हैसियत और साहस है कि, वह यह भी कह सके कि, ऐसे पेंटिंग बनाने वालों पर कार्यवाही हो, या ऐसा ट्वीट नहीं करना चाहिए था। हालांकि, बाद में बीजेपी नेता शोभा करांदलजे ने शायद डैमेज कंट्रोल के लिए एक और पेंटिंग ट्वीट किया जिसमें भगवान राम को हाथी पर सवार होकर आते और पीएम मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को उनकी अगुआनी करते दिखाया गया है।

लेकिन, उस ट्वीट के बारे मे, सबसे पहली आपत्ति उठाई, कांग्रेस नेता और तिरुअनंतपुरम से सांसद, शशि थरूर ने। उन्होंने इस ट्वीट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि, "खुद को राम से बड़ा दिखाना राम चरित मानस के किस हिस्से से सीखा है।" 

आज जब मनोज मुंतशिर कह रहे हैं कि, हनुमान तो भक्त थे, उन्हे भगवान हमने बनाया तो हंगामा खड़ा हो गया। वही हंगामा, इस पेंटिंग और ट्वीट पर, इसलिए खड़ा नहीं हुआ कि, क्योंकि राम किसी मुंतशिर के साथ अपने घर में नहीं जा रहे थे, वे जा रहे थे मोदी जी के साथ, जिनके बारे में निर्लज्जता से यह धारणा फैलाई गई है कि, राम को घर तो उन्ही की कृपा से मयस्सर हुआ है। 

जिस हिंदुत्व की बात आरएसएस बीजेपी करते नहीं थकते, वह न तो सनातन धर्म है और न ही हिंदुइज्म। यह धर्मांधता की चाशनी में पगाकर, उन्माद की आइसिंग से युक्त एक राजनीतिक विचारधारा है जो धर्म को राष्ट्र के पर्यायवाची के रूप में रख कर देखती है। इस विचारधारा का ही एक नाम फासिस्ट राष्ट्रवाद है जो, प्रथम विश्वयुद्ध के बाद, यूरोप की फासिस्ट सोच से उपजी हुई राजनीतिक सोच है। इसी संकीर्ण सोच को भारत में आरएसएस के रूप में रोपा गया और फिर सावरकर और गोलवलकर ने हिंदुत्व की नई परिभाषा गढ़ी जिसे सनातन धर्म का पर्याय माना जा रहा है। 

यह भी एक विडंबना है कि, आजादी के समय, धर्म केंद्रित राजनीति और धर्म आधारित राष्ट्रवाद की बात करने वाले, सावरकर और जिन्ना दोनों ही अधार्मिक व्यक्ति थे। जिन्ना तो, रोजा नमाज से ही परहेज करते थे और सावरकर तो घोषित रूप से नास्तिक थे। पर उनके राजनीतिक स्वार्थ ने, धर्मांधता की ऐसी आग लगाई जिसने, न केवल आपसी सद्भाव, सहिष्णुता, सांझी विरासत और संस्कृति को झुलसा दिया बल्कि, भारत विभाजन की नीव डाल दी और दुनिया के इतिहास में ऐसी बर्बर हिंसा, जलावतानी सुनी तक नहीं गई थी। उन्होंने मिलकर, एक ऐसी विचारधारा की विषबेल फैलाई जिसका खामियाजा आज तक भारत भुगत रहा है। 

जब भावनाएं, सेलेक्टिव रूप से आहत होने लगें तो वे भवानाओ के आहत होने का मामला नहीं रहता है, उसका उद्देश्य अपनी राजनीतिक सोच को, स्थापित करना होता है। आरएसएस बीजेपी से जुड़ा साहित्य आप पढ़िए आप को इनके इरादे साफ साफ दिखने लगेंगे। धर्म, आस्था उपासना आदि चीजें, जिसे आस्था हो वह जरूर करें। किसी की भी आस्था का मजाक नहीं बनाना चाहिए। धर्म और धर्मांधता में स्पष्ट अंतर है। धर्मांधता, अपने आप में ही एक अधर्म है। 

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

Tuesday, 20 June 2023

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा / विजय शंकर सिंह


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की यात्रा पर हैं। उनकी यात्रा के संदर्भ में, यूएस कांग्रेस के कुछ सदस्यों ने, अमेरिकी राष्ट्रपति से, भारत में लोकतंत्र और प्रेस की आजादी की स्थिति और अल्पसंख्यक समुदाय के उत्पीड़न की घटनाओं पर, अमेरिकी समाज की चिंता से अवगत कराने और इस संबंध में भारत के प्रधानमंत्री से, वार्ता करने का अनुरोध किया है। पत्र का अनुवाद मैने कर दिया है जो इस प्रकार है। 

संयुक्त राज्य अमेरिका की कांग्रेस
वाशिंगटन, डीसी 20315
 20 जून, 2023

संयुक्त राज्य अमेरिका के माननीय, राष्ट्रपति, जोसेफ आर. बिडेन, व्हाइट हाउस 1600 पेंसिल्वेनिया एवेन्यू, एनडब्ल्यू वाशिंगटन, डीसी 20500

प्रिय राष्ट्रपति बिडेन,

हम भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के संयुक्त राज्य अमेरिका की आगामी यात्रा के दौरान आपकी मुलाकात के बारे में पहले से ही लिख रहे हैं।  दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में, संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत ने रणनीतिक हितों और साझा लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर घनिष्ठ संबंध बनाए हैं।  भारत चतुर्भुज सुरक्षा संवाद ("क्वाड") का एक महत्वपूर्ण सदस्य है और भारत-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार है।  हम रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन की उस यात्रा का समर्थन करते हैं जो इस महीने की शुरुआत में हमारी रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने के लिए "अमेरिका-भारत रक्षा औद्योगिक सहयोग के लिए रोडमैप" को अंतिम रूप देने हेतु नई दिल्ली गई थी।  संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच व्यापार और निवेश लगातार बढ़ रहा है, और हमारे आर्थिक संबंधों को व्यापक रूप से विस्तारित करने का अवसर है।  हम सेमीकंडक्टर्स और फार्मास्यूटिकल्स जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए सुरक्षित आपूर्ति श्रृंखलाओं का समर्थन करने में भारत की संभावित बढ़ी हुई भूमिका का स्वागत करते हैं और मजबूत सांस्कृतिक जुड़ाव हमारी दोस्ती के केंद्र में है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में भारतीय-अमेरिकी डायस्पोरा समुदाय के अपार योगदान से रेखांकित होता है। जिनमें से कई अभी भी भारत में करीबी और विस्तारित परिवार रहते हैं।  हमें भरोसा है और उम्मीद है कि, जब आप सीधे प्रधानमंत्री मोदी से मिलेंगे तो अमेरिका-भारत साझेदारी के ये महत्वपूर्ण आयाम-रणनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक- आपकी चर्चा का हिस्सा होंगे।

लंबे समय से अमेरिका-भारत के मजबूत संबंधों के समर्थक के रूप में, हम यह भी मानते हैं कि दोस्तों को अपने मतभेदों पर ईमानदार और स्पष्ट तरीके से चर्चा करनी चाहिए।  इसलिए हम सम्मानपूर्वक अनुरोध करते हैं कि, भारत और अमेरिका के बीच साझा हितों के कई क्षेत्रों के अलावा- आप सीधे प्रधानमंत्री मोदी के साथ, चिंता के इन बिंदुओं को भी उठाएं।

आपने सही कहा है कि अमेरिका को "न केवल अपनी शक्ति के उदाहरण से बल्कि अपने उदाहरण की शक्ति से नेतृत्व करना चाहिए।"  आपने एक बार फिर मानवाधिकारों, प्रेस की स्वतंत्रता, धार्मिक स्वतंत्रता और बहुलतावाद को अमेरिकी विदेश नीति का मूल सिद्धांत बनाया है।  इसके अलावा, ये सिद्धांत सच्चे लोकतंत्र के कामकाज के लिए आवश्यक हैं।  विश्व मंच पर विश्वसनीयता के साथ इन मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए, हमें उन्हें मित्र और शत्रु पर समान रूप से लागू करना चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे हम यहां संयुक्त राज्य अमेरिका में इन्हीं सिद्धांतों को लागू करने के लिए काम करते हैं।
स्वतंत्र, विश्वसनीय रिपोर्टों की एक श्रृंखला भारत में राजनीतिक स्थान के सिकुड़ने, धार्मिक असहिष्णुता के बढ़ने, नागरिक समाज संगठनों और पत्रकारों को लक्षित करने, और प्रेस की स्वतंत्रता और इंटरनेट के उपयोग पर बढ़ते प्रतिबंधों की ओर परेशान करने वाले संकेतों को दर्शाती है।  विशेष रूप से, भारत में मानवाधिकार प्रथाओं पर स्टेट डिपार्टमेंट की 2022 कंट्री रिपोर्ट में राजनीतिक अधिकारों और अभिव्यक्ति के कड़े होने का दस्तावेज है।  इसी तरह, विदेश विभाग की 2022 की रिपोर्ट मै, भारत में अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में, अल्पसंख्यकों के प्रति धार्मिक असहिष्णुता की चिंताजनक वृद्धि और निजी तथा राज्य दोनों ही स्तर पर, धार्मिक रूप से प्रेरित हिंसा के अनेक विवरण हैं। इसके अलावा, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा संकलित आंकड़ों के, वार्षिक आकलन से पता चलता है कि भारत, एक ऐसा देश है, जो अतीत में अपने जीवंत और स्वतंत्र प्रेस के लिए जाना जाता था, आज प्रेस की स्वतंत्रता के लिए की गई रैंकिंग में चिंताजनक  रूप से नीचे गिर गया है और एक्सेस नाउ के मुताबिक, लगातार पांचवे साल, सबसे ज्यादा इंटरनेट शटडाउन के मामले में भारत आज दुनिया में, पहले स्थान पर है

संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत दोनों ने अपने संविधानों में मानवाधिकारों को स्थापित किया है-जिसमें बोलने की आज़ादी, प्रेस की आज़ादी और धार्मिक आज़ादी शामिल है और हम अपने नेताओं के माध्यम से एक विशेष बंधन को साझा करते हैं जिन्होंने हमारे इतिहास को आकार दिया। डॉ. मार्टिन लूथर किंग, जूनियर, जिन्होंने यहां संयुक्त राज्य अमेरिका में सहिष्णु समुदाय के निर्माण के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया, वे महात्मा गांधी की शिक्षाओं के एक उत्साही छात्र थे, जिन्हें भारत में"राष्ट्रपिता" के रूप में जाना जाता है। किंग और गांधी दोनों के पास अलग-अलग पृष्ठभूमि, नस्लों और धर्मों के लोगों के बीच एक अधिक परिपूर्ण सहभागिता बनाने की दृष्टि थी। भारत में गांधी और संयुक्त राज्य अमेरिका में किंग, हम उन दोनों की दृष्टि साझा करते हैं।

हम संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रधान मंत्री मोदी का स्वागत करने में आपके साथ हैं।  हम संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के लोगों के बीच घनिष्ठ और मधुर संबंध चाहते हैं।  हम चाहते हैं कि दोस्ती न केवल हमारे कई साझा हितों पर बल्कि साझा मूल्यों पर भी बनी रहे।  हम किसी विशेष भारतीय नेता या राजनीतिक दल का समर्थन नहीं करते हैं, यह भारत के लोगों का निर्णय  है, लेकिन हम उन महत्वपूर्ण सिद्धांतों के समर्थन में खड़े हैं जो, अमेरिकी विदेश नीति का एक प्रमुख हिस्सा होना चाहिए।  और हम चाहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ आपकी बैठक के दौरान, आप हमारे दो महान देशों के बीच एक सफल, मजबूत और दीर्घकालिक संबंध के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों की पूरी श्रृंखला पर चर्चा करें।

भवदीय 
क्रिस वैन होलेन यूनाइटेड स्टेट्स सीनेटर
प्रमिला जयपाल कांग्रेस सांसद हैंl

https://www.reuters.com/world/us/dozens-us-lawmakers-urge-biden-raise-rights-issues-with-modi-letter-2023-06-20/

विजय शंकर सिंह
Vijay Shanker Singh 

जोश मलीहाबादी की आत्मकथा, यादों की बारात का अंश (8) नौकरी के लिए हैदराबाद की यात्रा / विजय शंकर सिंह

जोश साहब भले ही एक रईस और ताल्लुकेदार परिवार में पैदा हुए थे, पर अर्थाभाव उन्हे भी झेलना पड़ा। अब उनकी रिहाइश, लखनऊ हो गई थी और मलीहाबाद कम ही आना जाना होता था। उनकी पढ़ाई पूरी नहीं हो पाई थी और वे स्वतंत्रता आंदोलन में शरीक हो चुके थे। शायरी बदस्तूर जारी थी और वे एक शायर के रूप में नाम भी कमा रहे थे। उनकी नज़्म का अनुवाद, सरोजनी नायडू ने अंग्रेजी में किया और इस तरह से उनकी साहित्यिक प्रतिभा की गूंज रबींद्रनाथ टैगोर तक पहुंची और उन्हे गुरुदेव के शांतिनिकेतन में कुछ दिन आने और रहने का न्योता मिला और जोश ने अपना कुछ समय, शांति निकेतन में बिताया भी। यह सब आप पिछले भाग में पढ़ चुके हैं। 

जोश ठहरे, जमीदार और दिल दिमाग तो सामंती था ही। लेकिन खर्चे बढ़ने लगे और आमदनी का जरिया जमींदारी भी संकुचित होने लगी। उनकी शादी तो हो चुकी थी और परिवार भी बढ़ने लगा था। उनकी पत्नी ने उन पर दबाव दिया कि वे कहीं नौकरी कर लें। एक दिन जोश साहब की पत्नी ने उनसे कहा कि, मलीहाबाद की ज़मीदारी का सारा इंतज़ाम जिस आले हसन को सौंपा है, वे बहुत ही नालायकीयत के साथ इंतज़ाम संभाल रहे हैं। जोश के यह कहने पर कि, हमारे तुम्हारे लिए धन की कमी नहीं होगी। इस पर उनकी पत्नी ने कहा, कि हमारे बच्चे जब वड़े होंगे तो क्या पता, तब क्या हो। इसीलिए उन्होंने जोश को नौकरी करने का मशविरा दिया। 

पत्नी की बात से जोश फिक्रमंद भी हुये पर वे नौकरी करें भी तो कहां, यह एक अहम सवाल उनके सामने था। ठहरे ज़मीदार, तो मिजाज भी किसी की नौकरी का नहीं था और उनकी शिक्षा भी कम थी। शायरी का हुनर ज़रूर था। पर सिर्फ शायरी से कौन सी नौकरी मिलती। उत्तर भारत में बड़ी रियासतें कम थी, और ब्रिटिश राज की नौकरी वे कर नहीं सकते थे। इसी बीच उनकी आत्मकथा के एक अजीब सा किस्सा सामने आता है, जब उन्हे सपने में कोई पीर आते हैं, और उनसे हैदराबाद के निजाम के यहां, नौकरी करने के लि जाने का मशविरा देते हैं। 

जोश कोई नियमित नमाज पढ़ने वाले मजहबी खयाल के मुस्लिम नहीं थे और धर्म कर्म पर उनका कोई विश्वास भी बहुत अधिक नहीं था। पर इस सपने का उनके इरादे पर बहुत असर पड़ा। उन्होंने अपनी पत्नी से सुबह उठ कर, इस सपने के बारे में बताया और उनकी धर्म भीरू पत्नी ने, इस सपने के अनुसार अमल करने को कहा। जोश का कहना है कि, वे यह देखना चाहते थे कि, क्या यह सपना सचमुच में कोई ईश्वरीय परामर्श था या महज एक फितूर। जोश को यकीन हो गया कि, सपने में आने वाले पीर कोई और नहीं, खुद पैगम्बर मुहम्मद हैं, जो उन्हें नौकरी के लिए दक्कन जाने की बात कह रहे हैं। 

अंत में वे इस सपने के अनुसार वे दक्कन के निजाम हैदराबाद के यहां, एक अदद नौकरी की तलाश में, रवाना हो गए। निजाम के यहां जाने और नौकरी पाने का यह दिलचस्प किस्सा पढ़े...
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धमभीरु बीवी मेरे पीछे पड़ गई कि तुमको रसूल अल्लाह ने हुक्म दिया है दकन जाने का, जाओ और जल्दी जाओ।

बीवी बेचारी को तो मैंने खट से 'धर्मभीरु' कह दिया; लेकिन अपने गरेबान में मुंह डालकर यह बात नहीं सोची कि उस वक्त मैं भी कौन-सा बुकराते-आजम था। में खुद इस बशारत के इम्तहान के लिए हैदराबाद जाना चाहता था। यानी बीवी के दिल में ही नहीं मेरे दिल में भी चोर था, जो रंग लाए बगैर न रह सका।

यह स्पष्ट कर देना भी जरूरी है कि दकन का सफ़र खाली रोजी ही का मसअला नहीं था, बल्कि मेरी एक रुमानी गुत्थी भी ऐसी थी जो हैदराबाद जाए बगैर खुल ही नहीं सकती थी।

हैदराबाद जाने की बात मेरे दिल में उग चुकी थी; मगर सोचता था कि यहाँ मुझे पूछेगा कौन? न एमए. हूं न सदरुल फाजिला। ले-देकर मेरी सिर्फ एक किताब रूहे-अदब छपकर लोकप्रिय हो चुकी थी। मगर एक टुटरुट्टै किताब से होता क्या है? व्यक्तित्व तो बनता है एक जुग बीत जाने और सालहा-साल खूने-जिगर थूकने के बाद।

खैर, उस्मानिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर वहीदुलदीन साहब सलीम से पत्र-व्यवहार करके और महाराजा किशन प्रसाद के नाम हज़रत इक़बाल, मौलाना अब्दुल माजिद दरियाबादी, हजरत अकबर इलाहाबादी और मौलाना सुलेमान नदवी से सिफारिशी खत हासिल करके में 1924 के शुरू में हैदराबाद पहुँच गया।

वहाँ में सबसे पहले महाराजा किशनप्रसाद से मिला। मुझे देखते ही उन्होंने कहा, "जोश साहब, आपका मजमून-ए-कलाम रूहे-अदब देखकर मैने तमन्ना की थी कि अल्लाह इस दरवेश- सिफ़त रईसजादे से मिलाए सो मेरो यह तमन्ना आज पूरी हो गई। "मैंने ये सिफारिशी खत पेश किए। उन्हें पढ़कर वह कुछ सोचने लगे और मुझे अलग ले जाकर कहा, "जोश साहब, यह बात अपने तक रखिएगा कि सरकार आजकल मुझसे नाराज है। अगर आप मेरे ज़माने में तशरीफ लाते तो में उसी दिन आपका इंतज़ाम कर देता। बहरहाल में फायनांस मिनिस्टर अकबर हैदरी के नाम अभी खत लिखे देता हूँ। यह मुझे बहुत मानते हैं। मुझे उम्मीद है कि यह आपकी खिदमत में कोताही नहीं करेंगे। " यह कहते ही कोई तीन सफे का लम्बा चौड़ा ख़त लिखकर मेरे हवाले कर दिया और उसी वक्त फोन करके उन्होंने हैदरी से मेरी जबरदस्त सिफारिश भी की। साथ ही सर राय मसऊद को भी फोन पर हिदायत कर दी कि वह मुझे अपने साथ लेकर हैदरी से मिला दें। राय मसऊद मुझे हैदरी के पास ले गए और कहा कि हमारी कौम के यह एक उभरते हुए शायर हैं। हमारा फर्ज है कि हम इनकी हौसला अफजाई करें। आपके दोस्त हज़रत इकबाल ने भी इनकी जबरदस्त सिफारिश की है और महाराजा ने भी यह ख़त आपको भेजा है। हैदरी साहब ने ख़त पड़कर कहा, "इनके मुतअल्लिक महाराजा मुझे फोन भी कर चुके हैं। फिर मेरी तरफ मुँह करके हैदरी साहब ने कहा, "आप आईंदा जुमेरात के दिन सुबह दस बजे मेरे पास आ जाइएगा, में आपको सरकार से मिला दूंगा।

अभी जुमेरात में दो दिन बाक़ी थे कि हैदरी साहब ने मुझे बुला भेजा राय मसऊद भी वहाँ मौजूद थे। निहायत नफीस चाय पिलाई और इधर-उधर की बातें करके उन्होंने मुझे उन कतआत का बंडल दिया, जो शायरों ने उनके ख़िताब 'सर' की मुबारकबाद  के तौर पर कहकर उनकी खिदमत में पेश किए थे। मैं यह
कतआत पढ चुका तो हैदरी ने कहा, "जोश साहब, आप भी एक 'कता' कर दें।

एक तरफ तो लफ्ज़ क़ता को 'कता' सुनकर मैं भन्ना गया और दूसरी तरफ चूक, मैं फिरंगी हुकूमत से बेजार था, मेरे चेहरे का रंग बदल गया। हैदरी साहब ने मुझसे पूछा कि आप यकायक इस क़दर सीरियस क्यों हो गए। मैंने कहा, "आप बुरा न माने तो कहूँ कि फिरंगी जिस शख्स को ख़िताब देता है, उस पर माँ की गाली पड़ जाती है।" यह सुनकर राय मसऊद और हैदरी चिराग-पा (गुस्से में लाल पीले) होकर खड़े हो गए मुझे तनहा छोड़कर दूसरे कमरे में चले गए और में अपने ठिकाने पर लौट आया।

जब यह बात सुनी तो नवाब मेहदीयारजंग मेरे पास आए और कहा कि में आपको अपने वालिद अमादुल मलिक के पास ले जाना चाहता हूँ। मेरे वालिद सिफारिश के मामले में इस कदर सख़्त है कि जब में कैम्ब्रिज से इम्तहान पास करके आया था तो उन्होंने मेरी सिफारिश तक करने से इनकार कर दिया था।
बहरहाल में आपको उनके पास लिए चलता है, हरचंद मुश्किल से दो फ़ीसदी उम्मीद है। लेकिन अगर उन्हान सिफारिश कर दी तो हैदरी साहब की लाख सिफारिशों पर भारी होगी। उनके साथ वहाँ पहुंचा तो देखा कि एक अस्सी-पचासी बरस के बुजुर्ग बरामदे की बड़ी-सी आरामकुर्सी पर दराज़ है और उनके चेहरे पर विद्वत्ता और दृढ चरित्र की आभा बरस रही है।
मेहदी साहब ने परिचय दिया। दिलचस्पी की एक धारा भी उनके चेहरे पर नहीं दौड़ी। मेरे दिल पर जबरदस्त चोट लगी। लेकिन पी गया। मेरी अहमियत जाहिर करने के लिए मेहदी साहब ने कहा, "अब्बा, यह जोश साहब हुस्सामुलदौला तहव्वरजंग नवाब फकीर मुहम्मद खाँ 'गोया' के पोते हैं।" यह सुनकर वह चौंक पड़े और कहने लगे, "उत्तरी हिन्दुस्तान का ऐसा कौन-सा बाशिंदा है जो इनके दादा के नाम से वाकिफ न हो। लेकिन इनकी जात में भी कोई जौहर है?" मेहदी साहब ने कहा, "यह बहुत अच्छे शायर है। आप इजाजत दें तो जोश साहब कुछ सुनाएँ। "

उन्होंने कहा, "अच्छा। " महदी साहब ने मुझसे कहा, "जोश साहब, इरशाद " और जब मैंने छह पंक्तियों की कविता के तीन-चार बन्द सुनाए तो वह उठकर बैठ गए और कहने लगे, इस नीजवान में तो अनीस (उर्दू के एक प्रसिद्ध शायर) की रूह बोल रही है यह उस और इस क़दर पुख्तगी में तो समझता था कि आजकल के नौजवानों की तरह यह भी आयें-बाय- शायं कहते होंगे। मगर इनके कलाम में रवानी भी है और मानी भी। मेहदी, ख़त लिखने का कागज लाओ।" मेहदी की बाँछे खिल गई। जल्दी से अन्दर जाकर कागज़ और कलम ले आए। आरामकुर्सी के दोनों हत्थों पर एक तख्ता रख दिया। नवाब अमादुल मलिक ने पूरे एक सफे का सिफारिशी खत लिखा और कहा कि, मेहदी, तुम यह खत सर अमीनजंग के हवाले करके मेरी तरफ से कह देना कि सरकार के रू-ब-रू पेश कर दें।
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निजाम हैदराबाद के यहां, नौकरी के लिये की गई सिफारिशें अभी तक कामयाब नहीं हो पाई थी, तब तक, उनकी पत्नी मय बच्चों के साथ हैदराबाद आ गई। हुआ यह कि, जोश साहब के एक रिश्तेदार ने, यह अफवाह उड़ा दी थी कि, जोश साहब ने, हैदराबाद में एक दूसरी शादी कर ली है। इसी बात पर नाराज़ होकर उनकी पत्नी हैदराबाद अचानक आ धमकीं। हालांकि यह खबर झूठी थी, और शरारतन उड़ाई गई थीं। यह दिलचस्प अंश अब आप आगे पढ़ें..
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नवाब अमादुल मलिक के मकान से गेस्ट हाउस आया। छोटे दादा ने तार दिया। तार खोलकर पढ़ा तो मालूम हुआ कि मेरी बीवी परसों शाम की गाड़ी से हैदराबाद आ रही हैं। मैं हैरान हो गया कि आखिर यह माजरा क्या है। मुलाज़मत तो दरकनार, मैंने तो अभी तक निज़ाम को देखा भी नहीं और बीवी हैं कि चली आ रही हैं।

तीसरे दिन मेरी बीवी दोनों बच्चों और अपने मामू को साथ लिए हैदराबाद आ गई और गेस्ट हाऊस पहुँचते ही बिगड़कर बोली, "मैं यहाँ इसलिए आई हूँ कि तुम्हारे दोनों बच्चे तुम्हारे हवाले कर दूँ और खुद अपनी हीरे की अंगूठी कुचलकर खा लूँ और इस दुनिया से सिधार जाऊं।" यह सुनते ही मेरे होश उड़ गए। कहा, "मामू को बुलाकर पूछ लो।"

और इस दुनिया से सिधार जाऊ। "यह सुनते ही मेरे होश उड़ गए और घबराकर पूछा, "अशरफ़जहाँ, ख़ुदा के वास्ते जल्दी बताओ कि आखिर बात क्या है।" उन्होंने रोते हुए कहा, "मायूँ को बुलाकर पूछ लो

मायूँ ने जेब से एक तार निकाला। मैंने तार पढ़ा तो मालूम हुआ कि किसी अल्लाह के बन्दे ने उनके पास यह तार भेजा है कि तुम्हारे शौहर दूसरी शादी कर रहे हैं। तुरन्त हैदराबाद पहुँच जाइए। मैंने कहा, "अशरफ़जहाँ, यह तार बिलकुल झूठा है। " बीवी ने कहा कि अगर यह तार झूठा और तुम सच्चे हो तो अपने बच्चों के बाजू पकड़कर क़सम खा लो कि तुम दूसरा निकाह नहीं कर रहे हो।" जब मैंने बड़े बलवले के साथ कसम खा ली तो उनका चेहरा बहाल हुआ।

इतने में छोटे दादा हँसते हुए आए और मेरी बीबी के दिल पर अपनी खेरवाही का सिक्का बिठाने की खातिर कहा, "भाई शब्बीर हसन ख़ाँ की बीबी, यह तार मैंने दिया था।" मैंने बुरा मानकर कहा, "छोटे दादा, आपको हरगिज़ ऐसा नहीं करना चाहिए था।" उन्होंने कहा, "मेरे भाई बुरा न मानो मुझसे यह कब हो सकता था कि तुम्हारा घर बिगड़े और मैं बैठा तमाशा देखता रहूँ। " मैंने कहा, "आप कैसी बातें कर रहे हैं, मेरा घर बिगड़ कब रहा था?" उन्होंने कहा, "वह शौक़ वाली बात याद करो जो एक लड़की का पयाम लेकर तुम्हारे पास आए थे। बीवी ने बिगड़कर मुझे देखा और कहा, "लो, अब तो बात खुल गई। हाय, तुम कैसे बाप हो कि तुमने अपने दोनों बच्चों की बाँहें पकड़कर झूठी कसम खा ली।

मैंने झल्लाकर कहा, "अपने बच्चों की झूठी कसम खाने बाले कसाई पर मैं हज़ार लानत भेजता हूँ। अब पूरी बात मुझसे सुन लो यहाँ एक बहुत बड़े जागीरदार हैं। उनकी साहबजादी ने ख़ुदा जाने मुझे कैसे देख लिया और वह मुझ पर आशिक़ हो गई। अपनी खादिमा के हाथ खत भेजा कि मेरी माँ ने मेरे बाप को इस बात पर राजी कर लिया है कि वह आपसे मेरी शादी कर दें। कल अब्बा के मुसाहिब शौक़ साहब आएंगे आपके पास। चुनांचे दूसरे रोज ही शौक़ साहब ने आकर मुझसे यह कहा कि अगर आप साहबज़ादी से निकाह करने पर आमादा हो तो आपके रहने के लिए एक कोठी और एक कार का इन्तज़ाम कर दिया जाएगा। आपके घर का तमाम खर्च जागीर से अदा होगा और पन्द्रह सौ रुपये महीना जेब खर्च भी आपको दिया जाएगा।" बीवी ने बड़ी घबराहट के साथ बात काटकर पूछा, "और फिर तुमने क्या जवाब दिया?" मैंने कहा कि मैंने यह जवाब दिया कि "शौक़ साहब, मेरी शादी हो चुकी है। मैं दो बच्चों का बाप है। हम मिया बीवी को एक-दूसरे से बेहद मुहब्बत करते है और मैं गवारा नहीं कर सकता कि उन पर सौत लाऊं। इसके बाद मैंने छोटे दादा से कहा, "क्यों साहब, मैंने आपसे यही बात कही थी या कुछ और?" छोटे दादा ने कहा, "नहीं, यही बात कही थी। " मैने कहा, "जब आपको यह मालूम हो चुका था तो आपने मेरी बीवी को तार क्यों दे दिया?" छोटे दादा ने कहा, "मेरे भाई, आदमी को बदलते देर नहीं लगती। मैंने सोचा कि तुम्हारी बीवी को बुलाकर तुम पर मुसल्लत कर दूं।"

यह बात सुनकर मेरी बीवी के दिल का काँटा निकल गया। कहने लगी कि "उस भडुबे शौक़ को अब कभी अपने घर में न आने देना अली की तेग़ टूटे उस निगोड़े पर मेरा लाख का घर खाक करने आया था मुँआ।"
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जोश को नौकरी तो मिल गई पर वे बहुत समय तक निज़ाम की नौकरी कर नहीं पाए और एक ऐसी समस्या में घिर गए कि उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी। उन्होंने ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। यह अंश आप आगे पढ़ेंगे। 

विजय शंकर सिंह  
Vijay Shanker Singh 

'जोश मलीहाबादी की आत्मकथा, यादों की बारात का अंश (7) राष्ट्रीय आंदोलन से लगाव, रवींद्रनाथ टैगोर से मुलाकात और शांतिनिकेतन में कुछ महीने का प्रवास / विजय शंकर सिंह '.
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2023/06/7.html

Sunday, 18 June 2023

भ्रष्टाचार और अपराध के आरोप और क्लीन चिट का नया न्यायशास्त्र / विजय शंकर सिंह


हाल ही में, खबर आ रही है कि, केदारनाथ के गर्भगृह की दीवारों पर मढ़ा गया सोना, सोना है ही नहीं। वह पीतल है। यह आरोप भी स्थानीय लोगों ने ही लगाया है। इस आरोप पर जांच की मांग की गई। और अब भी आरोप लगाने वाला, आरोपों पर कायम है। इस पर बद्री केदार मंदिर समिति ने, एक बयान जारी कर कहा कि, वहां सोना ही लगाया गया है, पीतल नहीं। यह बयान समिति से अपेक्षित भी था और बयान आया भी। 

पर मूल प्रश्न है, इस आरोप की जांच के बाद, यह विज्ञप्ति जारी की गई या यह विज्ञप्ति आरोप लगते ही जारी कर दी गई। आरोप लगाने वाले से तो कम से कम यह पूछा जाता कि, उनके आरोप का आधार क्या है। आखिर भ्रष्टाचार कोई ऐसा कृत्य तो है नहीं, गर्भगृह में ऐसा घपला नहीं हो सकता है। 

इसके पहले उज्जैन के, महाकाल लोक में आंधी से शिव सहित सप्तऋषियों में से 6 ऋषियों की मूर्तियां, ध्वस्त होकर भूलूंठित्त हो गई। महाकाल लोक के निर्माण में भ्रष्टाचार का आरोप लगा। यह भी कहा गया कि, एक जांच भी, महाकाल लोक में हुए निर्माण में भ्रष्टाचार और अनियमितता के, आरोपों की चल रही थी,  तब कहा गया कि, असली मूर्तियां तो पत्थर की लगने वाली हैं, जो अभी बन रही हैं। तब तक के लिए, चूंकि, उद्घाटन के लिए जल्दी की जा रही थी तो, फाइबर के शिव और सप्तर्षि खड़े कर दिए गए। इसमें भी साठ प्रतिशत से अधिक के कमीशन की बात की उठी है। 

लेकिन यह बात, उद्घाटन के समय, तब नहीं बताई गई कि, यह मूर्तियां, नकली हैं, और उद्घाटन के लिए आतुर महानुभाव की आतुरता के शमन के लिए तैयार कर खड़ी कर दी गई हैं और असल प्रतिमाएं, पत्थर की कहीं बन रही हैं, बाद में लगेंगी। उद्घाटनोत्सुक महानुभाव का मन, मलिन नहीं होना चाहिए, शिव और ऋषिगण भले ही आंधी में भूलूंठित हो जाय। इस मामले में भी, भ्रष्टाचार के आरोप लगे, अखबारों में भी खबरें छपी पर, महाकाल लोक के प्रबंधन ने भी इस मामले में फिलहाल भ्रष्टाचार के आरोप से इंकार कर दिया। 

अब एक और मामला है अयोध्या का। अयोध्या में राम मंदिर के निर्णय के बाद, मंदिर बनना शुरू हुआ है। लेकिन, साथ ही भूमि घोटाले की खबरें भी आने लगीं। महत्वपूर्ण लोगों द्वारा जमीनों के दाम, मनमाफिक रेट पर, मनमर्जी से तय करके खरीदे जाने लगे। ट्रस्ट के सचिव चंपतराय का भी इन घोटालों में आया। यह मामला संसद में भी उठा। पर इसपर भी ट्रस्ट ने एक खंडन जारी कर दिया। अब क्या स्थिति है, कोई मित्र बता सकें तो बताएं।

देश में भ्रष्टाचार के मामले में, निर्णायक अदालती लड़ाई लड़ने वाले, मथुरा के वरिष्ठ पत्रकार विनीत नारायण ने, मथुरा, वृंदावन, गोवर्धन के अनेक तीर्थों पर निर्माण कार्यों में हुए भ्रष्टाचार पर, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर विभिन्न सक्षम अधिकारियों को पत्र लिखे, सोशल मीडिया में भी आवाज उठाई, पर इस मामले में भी कुछ नहीं हुआ। न तो जांच, न पड़ताल, न पूछताछ और न हो कोई परिणाम सामने आया। 

फिलहाल तो अभी यही कुछ मामले हैं, पर इन तीनों मामलों में आरोप पर, कोई जांच कराकर, उसका समाधान करने के बजाय, इन्ही संस्थाओं के ही बयानों और विज्ञप्ति जारी कराकर, यह घोषणा कर दिया कि, शिव और राम से जुड़ी इन परियोजनाओं में कोई भ्रष्टाचार नहीं है। जैसे ही यह बयान आया, इसे ही देव वाक्य मान लिया गया और इस तरह के भ्रष्टाचार पर सवाल उठाने वालों की ही मंशा पर सवाल उठाए जाने लगे। मैने तीर्थों में भ्रष्टाचार का उल्लेख इसलिए किया है कि, यह सरकार और सत्तारूढ़ दल, धार्मिक मामलों में अपना एकाधिकार समझते हैं। 

पिछले नौ सालों में न्यायशास्त्र या साक्ष्य दर्शन पर एक नई परंपरा विकसित की जाने लगी है। आरोपों पर किसी भी प्रकार की कोई जांच कराने के बजाय, आरोपित के ही कथन या पक्ष लेकर, उसी के आधार पर, यह निष्कर्ष निकाल लिया जाता है कि, सबकुछ ठीक है और इसे ही क्लीन चिट कह कर, ढिढोरा पीट दिया जाता है। पहले यह टेक्निक राजनीतिक भ्रष्टाचार जैसे, राफेल और मोदी अडानी रिश्तों के संदर्भ में अपनाई गई, अब यही तकनीक देवस्थान पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर अपनाई जा रही है। 

भाजपा की रणनीति स्पष्ट है कि, आरोपों पर कोई जांच कराने के बजाय, आरोप इंगित करने वालों को ही घेरे में लिया जाय, उन्हे ट्रोल किया जाय, उन्हे हतोत्साहित किया जाय और, फिर जनता में यह मिथ्या धारणा फैला दी जाय कि, आरोप, दुर्भावना से लगाए गए हैं। इसका सबसे ताजा उदाहरण है, आरएसएस के राम माधव द्वारा ₹300 करोड़ की दलाली करने का आरोप, जिसमें, राम माधव के खिलाफ जांच एजेंसियों ने कुछ किया या नहीं, यह नहीं पता, पर पूछताछ, ऐसा आरोप लगाने वाले जम्मू कश्मीर के पूर्व गवर्नर सत्यपाल मलिक और उनके स्टाफ से जरूर होने लगी। 

ताजा मामला कर्नाटक का है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता, अब पूर्व बीजेपी सरकार के सीएम, जिनपर 40% कमीशन लेकर कार्य कराने का आरोप, बीजेपी के ही एक ठेकेदार ने लगाया था, और ऐसा आरोप लगाने के बाद, उक्त ठेकेदार ने आत्महत्या भी कर ली थी, और इसे लेकर पेसीएम अभियान भी चला, जो, हाल ही में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मुख्य मुद्दा भी बना था, की जांच की मांग करने के बजाय, बीजेपी, ऐसा आरोप लगाने और भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने वाले लोगों के खिलाफ अदालती नोटिस जारी करने की बात कर रही है। यहां भी भ्रष्टाचार का समर्थन बीजेपी कर रही है। 

अडानी घोटाले के विंदु पर तो आरएसएस भी खुलकर अडानी के साथ खड़ी है। जबकि मोदी जी और अडानी समूह के बीच निकटता और घनिष्ठता, एक खुला रहस्य है। सरकार ने, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, इजराइल तक अडानी समूह के हित साधक के रूप में अपनी भूमिका निभाई और पीएम मोदी जी की, अडानी समूह इस व्यापारिक उपलब्धि पर, निभाई गई भूमिका पर, इन देशों के अखबारों और भारतीय अखबारो में भी काफी कुछ सुबूतों के साथ कहा गया। जब इन्ही सब मुद्दों पर राहुल गांधी ने लोकसभा में अपनी बात रखी तो, उनका और अन्य विपक्षी सांसदों के इस मुद्दे पर दिए गए भाषण को लोकसभा की कार्यवाही से, रातोरात हटा दिया गया। कौन घेरे में आ रहा था, इस खुलासे से, यह बात पूरी दुनिया को पता है। 

यही रणनीति, आईपीसी और पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत दर्ज, बीजेपी के एमपी, बृजभूषण शरण सिंह के मामले में भी, अपनाई गई। पहले यौन शौषण और पॉक्सो के अंतर्गत मुकदमा दर्ज न करना, फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मुकदमा दर्ज हुआ तो, उसमे कार्यवाही न करना। मुल्जिम को इस बात का पूरा मौका देना कि, वह पीड़िता पर दबाव डाल कर, अपने पक्ष में ला सके। और जब मुल्जिम का मकसद पूरा हो गया तो, पिसान पोत कर भंडारी बनते हुए, आरोप पत्र अदालत में दाखिल कर देना। क्या देश में दर्ज पॉक्सो के, अन्य मुकदमे में, भी ऐसी ही रणनीति अपनाई गई है? शायद नहीं। दिल्ली पुलिस के इतिहास में, यह केस और इसकी जांच, एक बदनुमा धब्बे के रूप में याद किया जाएगा। यह कोई नहीं देखेगा कि, सरकार का दबाव था या नहीं, पर यह जरूर याद किया जाएगा कि दिल्ली पुलिस के मुखिया एक कमज़ोर मेरुदंड के अफसर थे। 

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर, जीत कर आई सरकार ने, अपने वादों के मुताबिक, न तो काले धन के बारे में कुछ किया, न ही, एक भी ऐसा कानून पारित किया जिससे, भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसी जा सकें। इसके विपरीत, पॉलिटिकल फंडिग के रूप में इलेक्टोरल बॉन्ड्स प्रक्रिया ला कर, पॉलिटिकल फंडिग के सिस्टम को, भ्रष्टाचार से युक्त कर दिया। आरटीआई एक्ट को कमज़ोर करने के लिए सीईसी की नियुक्ति प्रक्रिया में, ऐसे बदलाव किए जिससे यह महत्वपूर्ण संस्था और कमज़ोर हो जाय। अदालतों में बंद लिफाफा दाखिल करने की अन्यायिक प्रथा की शुरुआत की, जो सिर्फ अपना पाप छुपाने के लिए लाई गई थी। हालांकि सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के सख्त कदमों से, यह प्रक्रिया रुक गई। पनामा पेपर्स से लेकर मनी लांड्रिंग से अडानी निवेश के मामले में सरकार, घोटालेबाजों के साथ खड़ी दिखी और अब, कर्ज लो, भाग जाओ, फिर आओ यार इसे सेटल कर लो, की एक ऐसी योजना लेकर आई है, जो भ्रष्टाचार और कर्ज लेकर भाग जाओ की प्रवृत्ति को ही बढ़ावा देगी। 

जब भ्रष्टाचार और अपराध के मामले में सरकार और जांच एजेंसियों का रुख, नरम और समझौतावादी दिखने लगता है तो, न तो, भ्रष्टाचार नियंत्रित होता है और न ही अपराध का शमन हो सकता है। आज यही हो रहा है। और भ्रष्टाचार का विकराल दैत्य, देवस्थान को भी लीलने की और बढ़ चुका है और सरकार, इन घटनाओं और आरोपों की जांच कराने के बजाय, इन्ही से बयान दिला कर, अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर ले रही है। एक, सजग, सतर्क और सचेत नागरिक के रूप में, सरकार की कमियों के खिलाफ आवाज उठाते रहिए, सरकार आप के दम से है, आप, सरकार की कृपा पर नहीं जी रहे हैं। 

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

Saturday, 17 June 2023

दिल्ली पुलिस ने, बृजभूषण शरण सिंह को बचाने के लिए क्या क्या किया / विजय शंकर सिंह

अब तक यौन शौषण के सबसे महत्वपूर्ण मामले में, जिसमे बीजेपी के सांसद, बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ, ओलंपिक पदक विजेता महिला पहलवानों ने, यौन शौषण और पॉक्सो एक्ट का मुकदमा दर्ज कराया था, का अंततः,  निस्तारण हो ही गया। दिल्ली पुलिस ने, पॉक्सो एक्ट हटा कर, मुल्जिम बृजभूषण शरण सिंह को, राहत दे दी। जिस तरह से इस महत्वपूर्ण मामले में, दिल्ली पुलिस, जानबूझकर विलंब कर रही थी, उसे देखते हुए, दिल्ली पुलिस के निष्कर्षों पर, मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। 

जनवरी से लेकर मई तक, फरियादी और पीड़िता महिला पहलवान,  सिस्टम से, इस बात के लिए कुश्ती लड़ रहे थे कि, मुकदमा दर्ज हो। आखिरकार, मुकदमा दर्ज तो हुआ, पर, सबसे बड़ी अदालत के हस्तक्षेप के बाद। फिर चला रस्साकशी का दौर। मुल्जिम को, कुछ ढील दी गई। निर्लज्जता भरी यह ढील सबको दिख भी रही थी। नतीजा, फरियादी  पीड़िता, ऊब कर घर बैठ गई। अब रास्ता साफ दिखा और चार्ज शीट दायर कर, पुलिस ने चैन की सांस ली। कमाल है, सरकार का इकबाल बुलंद है।

इंडियन एक्सप्रेस ने, कुछ दिनों पहले, 
कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ, दो बयानों में यौन उत्पीड़न और पीछा करने का आरोप लगाने के बाद, एक पुलिस के सामने और दूसरा एक मजिस्ट्रेट के सामने, सात महिला पहलवानों में से अकेली नाबालिग ने अपने आरोपों को वापस लेने संबंधी एक खबर छापी थी। सूत्रों के हवाले से छपी इस खबर में अंकित है कि, "17 वर्षीय पीड़िता ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत एक मजिस्ट्रेट के सामने एक नया बयान दर्ज कराया है जिसमें उसने अपने पहले बयान को बदला है।" धारा, 164 सीआरपीसी के अंतर्गत दिया गया बयान, न्यायालय के समक्ष साक्ष्य माना जाता है।  अब, यह तय करना अदालत का कार्य है कि, 164 के तहत दिए गए, किस बयान को प्राथमिकता दी जाए।

अखबार के अनुसार, नाबालिग के पिता ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' के इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि, पीड़िता की वायस्कता के बारे में उन्हे संशय कब हुआ। संयोग से, दिल्ली पुलिस में दर्ज प्राथमिकी और द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, नाबालिग के पिता ने कहा था कि, वह "पूरी तरह से परेशान थी और शांति से नहीं रह सकती थी.. आरोपी (बृजभूषण शरण सिंह) उसे परेशान करते रहते है।" शिकायत में, विस्तृत रूप से यह कहा गया है कि, बृजभूषण शरण सिंह ने, "उसे कसकर पकड़कर, एक तस्वीर क्लिक करने का नाटक करते हुए," "उसे अपनी ओर खींचा, उसके कंधे पर जोर से दबाया और फिर जानबूझकर ... उसके स्तनों पर हाथ फेरा।" इंडियन एक्सप्रेस ने यौन शौषण के सभी एफआईआर पर उसके उद्धरणों को देते हुए एक लंबी स्टोरी छापी थी। जिन्हे रुचि है, वे उसे पढ़ सकते हैं।

पीड़िता नाबालिग ने, 10 मई को मजिस्ट्रेट के सामने मुल्जिम, बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न की घटनाओं का विवरण देते हुए अपना पहला बयान दर्ज कराया था।  प्राथमिकी के अनुसार, बृजभूषण शरण सिंह पर यौन अपराधों से बच्चों के कड़े संरक्षण (POCSO) अधिनियम की धारा 10 और IPC की धारा 354 (महिला की शील भंग करने के इरादे से उस पर हमला या आपराधिक बल), 354A (यौन उत्पीड़न), 354D के तहत मामला दर्ज किया गया था।  (पीछा करना) और 34 (सामान्य आशय) जिसमें एक से तीन साल तक की जेल हो सकती है।

कानून के अनुसार, पॉस्को एक्ट की धारा 10, एक नाबालिग के खिलाफ गंभीर यौन हमले से संबंधित है जिसमे, सात साल तक की जेल की सजा का प्राविधान है।  POCSO अधिनियम की धारा 9, जो गंभीर यौन हमले को परिभाषित करती है, एक ऐसे व्यक्ति द्वारा बच्चे के खिलाफ यौन हमले को अपराध बनाती है जो भरोसे या अधिकार की स्थिति में है।  सेक्शन 9(ओ) और 9(पी) गंभीर यौन हमले को परिभाषित करते हैं, "जो कोई भी, बच्चे को सेवाएं प्रदान करने वाली किसी संस्था के स्वामित्व या प्रबंधन या स्टाफ में होने के नाते, ऐसी संस्था में बच्चे पर यौन हमला करता है;"  या "जो कोई भी, किसी बच्चे के भरोसे या अधिकार की स्थिति में होते हुए, बच्चे के संस्थान या घर में या कहीं और बच्चे पर यौन हमला करता है।"

बीजेपी एमपी, बृजभूषण शरण सिंह जिनपर यौन शौषण का आरोप है के खिलाफ, दिल्ली पुलिस द्वारा आरोप पत्र दायर करने की खबर है। लेकिन उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई है और न ही उन्होंने, इस अवधि में किसी अदालत के समक्ष हाजिर होकर अपनी जमानत ही कराई है। यदि कानून की बात करें तो, सीआरपीसी में ऐसा कोई प्राविधान नहीं है, जिसमे आरोप पत्र देने के पहले मुल्जिम की गिरफ्तारी की ही जाय। गिरफ्तारी, विवेचना का एक अंग है, जिसे पुलिस तब करती है, जब उसे लगता है कि, मुल्जिम भाग जायेगा या वह फरियादी पर कोई बेजा दबाव डाल कर, सुबूतों से छेड़छाड़ कर सकता है। 

हो सकता है इस मामले में भी पुलिस को यह भरोसा रहा हो कि, मुल्जिम एक जनप्रतिनिधि है और अपने रसूख के बावजूद, एक भी ऐसा कृत्य नहीं करेगा, जिससे, फरियादी दबाव में आएगी और वह पीछे हट जाएगी। हो सकता है मुल्जिम के अच्छे, चालचलन के कारण दिल्ली पुलिस ने सीआरपीसी के इस प्राविधान का पालन किया हो। सुप्रीम कोर्ट का भी, एक निर्देश है कि, जिन अपराधों में, सात साल की सजा है, उसमे गिरफ्तारी न की जाय। लेकिन, गिरफ्तारी करने या न करने का निर्णय, पुलिस के विवेचक पर निर्भर है। लेकिन, आमतौर पर, आपराधिक मामले में, गिरफ्तारी न करना, भले ही सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार, एक नियम हो, पर ऐसा होता, अपवादस्वरूप ही है। लेकिन, ऐसे मामलों में गिरफ्तारी में सोची-समझी देरी शिकायतकर्ता को दबाव में डालती है।  इस तरह के संघर्ष लंबे और दर्दनाक होते हैं।  जब महिलाएं ऐसे मामलों में सामने आती हैं, तो वे अपना जीवन और करियर दांव पर लगा देती हैं।

बृजभूषण शरण सिंह के मामले में, गिरफ्तारी न करने का निर्णय, सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्देश के आधार पर है या किसी अन्य कारण से, यह तभी बताया जा सकता है जब चार्ज शीट और पुलिस विवेचना की पूरी जानकारी सार्वजनिक हो जाय। बीजेपी सांसद, बृजभूषण शरण सिंह के मामले में, नाबालिग फरियादी की उम्र और उसकी वयस्कता को लेकर, मीडिया में एक चर्चा यह भी है कि, पीड़िता बालिग है, और यह बात उसके चाचा ने बताई थी। 

पहली बात, किसी की वयस्कता का निर्धारण, उसके माता, पिता, चाचा, ताऊ के बयान पर निर्भर नहीं होता है। यह निर्धारित होता है, उसके जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर, जो अस्पताल या नगर निगम आदि से मिलता हैं।
दूसरी बात, जब कोई अभिलेख उपलब्ध ही न हो, तो इसका निर्धारण, डॉक्टर, मेडिकल जांच के आधार पर कर सकता है और उस निष्कर्ष के आधार पर, उम्र तय होती है।

अब सवाल उठता है कि, जब वयस्कता निर्धारित ही नहीं थी, तो पुलिस ने POCSO एक्ट के अंतर्गत मुक़दमा कैसे दर्ज कर लिया?
इसके उत्तर में यह कहा जा सकता है कि, प्रथम दृष्टया, जो तथ्य सामने आए, उन पर एफआईआर दर्ज कर ली गई। और यह तर्क अनुचित भी नहीं है। लेकिन POCSO एक्ट में तफ्तीश की शुरुआत ही इस विंदु से होती है कि, पीड़िता, नाबालिग है या नहीं। यदि वह नाबालिग नहीं है तो, जांच के बाद, पुलिस POCSO एक्ट का केस खत्म कर देती है। लेकिन यदि पीड़िता नाबालिग है तो फिर पॉस्को एक्ट में कार्यवाही की जाती है।

अब थोड़ा इस केस की क्रोनोलॉजी भी देख लें।
० 28 अप्रैल को, सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद, दिल्ली पुलिस मुल्जिम के खिलाफ, दो मुकदमे दर्ज करती है।
एक, POCSO एक्ट का,
दूसरा, यौन शौषण की आईपीसी की अन्य धाराओं के अंतर्गत
० 10 मई, को पीड़िता का बयान, मैजिस्ट्रेट के समक्ष, धारा 164 सीआरपीसी के अंतर्गत, कलमबंद कराया गया।
० अब कहा जा रहा है कि, पीड़िता अपने कलमबंद बयान से पलट गई है।
० फिर, पहलवानों और गृहमंत्री के बीच वार्ता होती है।
० फिर यह खबर आती है कि, 15 जून तक, पुलिस जांच में कोई न कोई प्रभावी कार्यवाही करेगी।
० अब खबर आई है कि, पुलिस ने POCSO में, फाइनल रिपोर्ट जिसे क्लोजर रिपोर्ट कहते हैं, दाखिल करेगी और आईपीसी के अंतर्गत दर्ज, यौन शौषण के मुकदमे में चार्ज शीट दाखिल की है।

अब यहीं यह सवाल उठता है कि, क्या जब मजिस्ट्रेट, सीआरपीसी की धारा 164 के अंतर्गत, पीड़िता का कलमबंद बयान, दर्ज कर रहे थे, तब, क्या पीड़िता की उम्र उक्त बयान के समय नोट नहीं की गई थी?
बयान की शुरुआत ही, पीड़िता के नाम, पिता के नाम, और उसकी उम्र के साथ शुरू होती है। उसी समय, पीड़िता की वयस्कता का पता चल जाता है और उसी धारा 164 सीआरपीसी के बयान पर, ही यदि पीड़िता वयस्क थी, तो, पॉस्को एक्ट की धारा खत्म हो जानी चाहिए थी।

कुछ दिनों पहले यह खबर छपी थी कि, पीड़ित महिला पहलवान, अपने यौन शौषण से संबंधित, ऑडियो वीडियो क्लिप, सुबूत के रूप में दें। यह निर्देश ही हैरान करने वाला है। लगभग 90% यौन शौषण से जुड़े अपराध, मुल्जिम की तय की हुई जगहों पर ही होते हैं। पीड़िता, वहां अकेली होती है। पीड़िता की मनःस्थिति की कल्पना, यदि आप संवेदनशील हैं तो कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में, कोई भी पीड़िता, मुल्जिम के ठिकाने पर हुए इस दुष्कर्म की ऑडियो और वीडियो क्लिप कैसे बना सकती है या उसे सुबूत के रूप में रख सकती है। 

गजब है, POCSO एक्ट और यौन शौषण मामले में, न्यायशास्त्र और साक्ष्य अधिनियम के एक नए सिद्धांत को दिल्ली पुलिस ने, कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष, बीजेपी सांसद और यौन शौषण के मुल्जिम बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दर्ज मामले में, तफ्तीश करते हुए, गढ़ा है। वे हैं, 
1. यौन अपराध के संभावित पीड़ितों को वास्तविक घटना समय, यौन शौषण को सुबूत के लिए, रिकॉर्ड करने के लिए हर समय बॉडी कैमरा पहनना चाहिए। गौरतलब है कि, दुनिया भर में पुलिसकर्मी पारदर्शिता के लिए बॉडी कैमरा पहनते हैं।
 2. मुल्जिम का अपराध तय करने के लिए, मुल्जिम के इरादे से अधिक, पुलिस तफ्तीश की नीयत, मायने रखती है। इसके लिए पीड़िता से अपेक्षा की जाती है कि वह अभियुक्तों को दोषमुक्त करने के लिए जितने आवश्यक हो उतने बयान देगी!
 3. एक दीर्घ आपराधिक इतिहास के अपराधी और मुल्जिम को, गिरफ्तार करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि उसे जांच को प्रभावित करने और पीड़ितों को डराने-धमकाने के लिए अपने आदेश पर संरक्षण के सभी अवसरों और पसंद के प्लेटफार्मों का लाभ उठाने की आवश्यकता होगी।
है न, मित्रों, कमाल का सिद्धांत यह !! 

अक्सर न्यायालय के फैसले के लिए कहा जाता है कि, फैसला न्याययुक्त तो हो ही, पर वह न्याययुक्त दिखे भी। यही सूत्र पुलिस विवेचना के लिए भी है कि, पुलिस तफ्तीश, नियमानुकूल तो हो ही, वह नियमानुकूल दिखे भी। यह मामला भी, किसी दूर दराज गांव के थाने का नहीं, बल्कि देश की राजधानी दिल्ली के दिल, कनॉट प्लेस थाने में दर्ज एक महत्वपूर्ण फरियादी की एफआईआर पर, जिसमें मुल्जिम भी महत्वपूर्ण और असरदार जनप्रतिनिधि है, के खिलाफ दर्ज मामले का है।

और जब मुकदमा से लेकर, थाना, फरियादी, पीड़िता और मुल्जिम सभी महत्वपूर्ण हस्तियां हैं, तो ऐसे मुकदमे की तफ्तीश पर सबकी निगाह स्वाभाविक रूप से रहेगी ही। इस पूरे घटनाक्रम में, सबसे अधिक यदि किसी संस्था की साख गिरी है तो वह दिल्ली पुलिस है। इस केस में दिल्ली पुलिस की भूमिका से यह संदेश जनता में स्पष्ट रूप से गया है कि, यदि कोई मुल्जिम, राजनीतिक और अन्य तरह से असरदार है तो, देश की सबसे साधन संपन्न पुलिस भी उस का कुछ बिगाड़ नहीं सकती है और राजनीतिक आका, पुलिस की हर तफ्तीश को, अपनी भ्रू भंगिमा से, नचा सकते हैं।

विजय शंकर सिंह
Vijay Shanker Singh 


Thursday, 15 June 2023

बीजेपी एमपी बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पॉक्सो एक्ट का मुकदमा और उसकी विवेचना / विजय शंकर सिंह

बीजेपी एमपी, बृज भूषण शरण सिंह जिनपर यौन शौषण का आरोप है के खिलाफ, दिल्ली पुलिस द्वारा आरोप पत्र दायर करने की खबर है। लेकिन उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई है और न ही उन्होंने, इस अवधि में किसी अदालत के समक्ष हाजिर होकर अपनी जमानत ही कराई है। 

यदि कानून की बात करें तो, सीआरपीसी में ऐसा कोई प्राविधान नहीं है, जिसमे आरोप पत्र देने के पहले मुल्जिम की गिरफ्तारी की ही जाय। गिरफ्तारी, विवेचना का एक अंग है, जिसे पुलिस तब करती है, जब उसे लगता है कि, मुल्जिम भाग जायेगा या वह फरियादी पर कोई बेजा दबाव डाल कर, सुबूतों से छेड़छाड़ कर सकता है। 

हो सकता है इस मामले में भी पुलिस को यह भरोसा रहा हो कि, मुल्जिम एक जनप्रतिनिधि है और अपने रसूख के बावजूद, एक भी ऐसा कृत्य नहीं करेगा, जिससे, फरियादी दबाव में आएगी और वह पीछे हट जाएगी। हो सकता है मुल्जिम के अच्छे, चालचलन के कारण दिल्ली पुलिस ने सीआरपीसी के इस प्राविधान का पालन किया हो। 

सुप्रीम कोर्ट का भी, एक निर्देश है कि, जिन अपराधों में, सात साल की सजा है, उसमे गिरफ्तारी न की जाय। लेकिन, गिरफ्तारी करने या न करने का निर्णय, पुलिस के विवेचक पर निर्भर है। लेकिन, आमतौर पर, आपराधिक मामले में, गिरफ्तारी न करना, भले ही सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार, एक नियम हो, पर ऐसा होता, अपवादस्वरूप ही है। 

बृजभूषण शरण सिंह के मामले में, गिरफ्तारी न करने का निर्णय, सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्देश के आधार पर है या किसी अन्य कारण से, यह तभी बताया जा सकता है जब चार्ज शीट और पुलिस विवेचना की पूरी जानकारी सार्वजनिक हो जाय। 

बीजेपी सांसद, बृजभूषण शरण सिंह के मामले में, नाबालिग फरियादी की उम्र और उसकी वयस्कता को लेकर, मीडिया में एक चर्चा यह भी है कि, पीड़िता बालिग है, और यह बात उसके चाचा ने बताई थी।

पहली बात, किसी की वयस्कता का निर्धारण, उसके माता, पिता, चाचा, ताऊ के बयान पर निर्भर नहीं होता है। यह निर्धारित होता है, उसके जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर, जो अस्पताल या नगर निगम आदि से मिलता हैं।
दूसरी बात, जब कोई अभिलेख उपलब्ध ही न हो, तो इसका निर्धारण, डॉक्टर, मेडिकल जांच के आधार पर कर सकता है और उस निष्कर्ष के आधार पर, उम्र तय होती है।

अब सवाल उठता है कि, जब वयस्कता निर्धारित ही नहीं थी, तो पुलिस ने POCSO एक्ट के अंतर्गत मुक़दमा कैसे दर्ज कर लिया?
इसके उत्तर में यह कहा जा सकता है कि, प्रथम दृष्टया, जो तथ्य सामने आए, उन पर एफआईआर दर्ज कर ली गई। और यह तर्क अनुचित भी नहीं है।

लेकिन POCSO एक्ट में तफ्तीश की शुरुआत ही इस विंदु से होती है कि, पीड़िता, नाबालिग है या नहीं। यदि वह नाबालिग नहीं है तो, जांच के बाद, पुलिस POCSO एक्ट का केस खत्म कर देती है। लेकिन यदि पीड़िता नाबालिग है तो फिर पॉस्को एक्ट में कार्यवाही की जाती है।

अब थोड़ा इस केस की क्रोनोलॉजी भी देख लें।
० 28 अप्रैल को, सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद, दिल्ली पुलिस मुल्जिम के खिलाफ, दो मुकदमे दर्ज करती है।
एक, POCSO एक्ट का,
दूसरा, यौन शौषण की आईपीसी की अन्य धाराओं के अंतर्गत
० 10 मई, को पीड़िता का बयान, मैजिस्ट्रेट के समक्ष, धारा 164 सीआरपीसी के अंतर्गत, कलमबंद कराया गया।
० अब कहा जा रहा है कि, पीड़िता अपने कलमबंद बयान से पलट गई है।
० फिर, पहलवानों और गृहमंत्री के बीच वार्ता होती है।
० फिर यह खबर आती है कि, 15 जून तक, पुलिस जांच में कोई न कोई प्रभावी कार्यवाही करेगी।
० अब खबर आई है कि, पुलिस ने POCSO में, फाइनल रिपोर्ट जिसे क्लोजर रिपोर्ट कहते हैं, दाखिल करेगी और आईपीसी के अंतर्गत दर्ज, यौन शौषण के मुकदमे में चार्ज शीट दाखिल की है।

अब यहीं यह सवाल उठता है कि, क्या जब मजिस्ट्रेट, सीआरपीसी की धारा 164 के अंतर्गत, पीड़िता का कलमबंद बयान, दर्ज कर रहे थे, तब, क्या पीड़िता की उम्र उक्त बयान के समय नोट नहीं की गई थी?
बयान की शुरुआत ही, पीड़िता के नाम, पिता के नाम, और उसकी उम्र के साथ शुरू होती है। उसी समय, पीड़िता की वयस्कता का पता चल जाता है और उसी धारा 164 सीआरपीसी के बयान पर, ही यदि पीड़िता वयस्क थी, तो, पॉस्को एक्ट की धारा खत्म हो जानी चाहिए थी।

अक्सर न्यायालय के फैसले के लिए कहा जाता है कि, फैसला न्याययुक्त तो हो ही, पर वह न्याययुक्त दिखे भी। यही सूत्र पुलिस विवेचना के लिए भी है कि, पुलिस तफ्तीश, नियमानुकूल तो हो ही, वह नियमानुकूल दिखे भी।

यह मामला भी, किसी दूर दराज गांव के थाने का नहीं, बल्कि देश की राजधानी दिल्ली के दिल, कनॉट प्लेस थाने में दर्ज एक महत्वपूर्ण फरियादी की एफआईआर पर, जिसमें मुल्जिम भी महत्वपूर्ण और असरदार जनप्रतिनिधि है, के खिलाफ दर्ज मामले का है।

और जब मुकदमा से लेकर, थाना, फरियादी, पीड़िता और मुल्जिम सभी महत्वपूर्ण हस्तियां हैं, तो ऐसे मुकदमे की तफ्तीश पर सबकी निगाह स्वाभाविक रूप से रहेगी ही।

इस पूरे घटनाक्रम में, सबसे अधिक यदि किसी संस्था की साख गिरी है तो वह दिल्ली पुलिस है। इस केस में दिल्ली पुलिस की भूमिका से यह संदेश जनता में स्पष्ट रूप से गया है कि, यदि कोई मुल्जिम, राजनीतिक और अन्य तरह से असरदार है तो, देश की सबसे साधन संपन्न पुलिस भी उस का कुछ बिगाड़ नहीं सकती है और राजनीतिक आका, पुलिस की हर तफ्तीश को, अपनी भ्रू भंगिमा से, नचा सकते हैं।

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh