Monday 8 April 2019

चुनाव से दूर होते जीवन के असल मुद्दे / विजय शंकर सिंह

लोकसभा चुनाव 2019, 11 अप्रैल के प्रथम चरण के मतदान से प्रारंभ होकर 23 अप्रैल की मतगणना तक चलेगा। अगले पांच साल तक देश पर कौन राज करेगा यह 23 अप्रैल को तय हो जाएगा। एनडीए सरकार 2014 को सत्तारूढ़ हुयी थी और अब अपना कार्यकाल पूरा करके पुनः जनादेश के लिये जनता द्वार आयी है और 2014 में सत्ता से विमुख कर दी गयी कांग्रेस फिर एक बार जनादेश चाहती है।


2014 के चुनाव को याद कीजिये तो वह चुनाव भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से उपजे जनसमर्थन पर लड़ा गया था। यूपीए 2 के शासनकाल के अंतिम दो साल घोटालों के पर्दाफाश की सनसनीखेज खबरों से भरे पड़े थे। दस साल का एन्टी इनकंबेंसी फैक्टर भी यूपीए सरकार के खिलाफ था, और मनमोहन सिंह की तुलना में नरेंद्र मोदी एक बेहतर वक्ता थे, परिणामस्वरूप जब चुनाव हुए तो कांग्रेस ने अपने इतिहास का सबसे बुरा प्रदर्शन किया और भाजपा जिसके कभी लोकसभा में दो सदस्य थे ने अपने दम पर बहुमत हासिल कर लिया।

आज लोकसभा चुनाव के सिलसिले में भाजपा ने अपना घोषणापत्र जिसे वे संकल्पपत्र कहते हैं जारी कर दिया है। उसके मुख्य अंश इस प्रकार हैं,
* राष्ट्रवाद के प्रति हमारी पूरी प्रतिबद्धता है. आतंकवाद के प्रति किसी तरह की नरमी बर्दाश्त नहीं.
* यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करेंगे
* अवैध घुसपैठ रोकेंगे
* सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल पास कराएंगे, किसी राज्य की पहचान पर आंच नहीं आने देंगे
* देश की सुरक्षा के साथ हमारी सरकार किसी भी सूरत में समझौता नहीं करेगी
* राम मंदिर पर हम सभी संभावनाओं को तलाश करेंगे, जल्दी से जल्दी राम मंदिर का निर्माण करेंगे
* किसानों की आमदनी दोगुना करेंगे, पिछले पांच वर्षों में तेजी से आगे बढ़े हैं.
* 1 लाख तक का किसान क्रेडिट कार्ड पर जो लोन मिलता है, उस पर पांच साल तक कोई ब्याज नहीं होगा।
* 25 लाख करोड़ रुपए अगले पांच साल में ग्रामीण विकास क्षेत्र पर खर्च होंगे
* देश के छोटे दुकानदारों को भी पेंशन की सुविधा 60 साल के बाद मिलेगी
* क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करेंगे.
* मिडिलमैन के माध्यम से जो सब्सिडी पहुंचती थीं, उससे एक लाख 10 हजार करोड़ रुपए की बचत हुई है.
* सिंचाई के जितने भी प्रोजेक्ट अधूरे पड़े हैं, उन्हें पूरा करेंगे
* जमीनों के सभी रिकॉर्ड ऑनलाइन किए जाएंगे.
* इंजीनियरिंग कालेजों में सीटों की संख्या को बढ़ाई जाएंगी.
* कानूनी कॉलेजों में सीटों को बढ़ाया जाएगा
* प्रत्येक परिवार को पक्का मकान मिलेगा
* सभी गरीब परिवारों को एलपीजी गैस सिलेंडर मुहैया कराएंगे
* प्रत्येक घरों में शौचालय होगा, 90% का लक्ष्य हासिल हो चुका है
* सभी घरों में स्वच्छ पीने का पानी उपलब्ध कराया जाएगा
* नेशनल हाइवे की लंबाई को दोगुना किया जाएगा
* 2022 तक अधिकांश रेल पटरियों का विद्युतीकरण पूरा कर लिया जाएगा.
* 75 नए मेडिकल और पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल कॉलेज खोले जाएंगे
* डॉक्टर्स की संख्या को बढ़ाया जाएगा. 
* 1400 लोगों पर एक डॉक्टर तैनात किया जाएगा।
यही वादे हैं जिनके आधार पर भाजपा जनता के बीच वोट मांगने के लिये जाएगी।

इन मुद्दों पर चर्चा के पहले 2014 में जारी भाजपा  संकल्पपत्र के प्रमुख वादों पर भी एक नज़र डालना ज़रूरी है।
* 100 स्मार्ट सिटी बनाये जाएंगे।
* बुलेट ट्रेन चलायी जाएगी।
* गंगा की सफाई की जाएगी।
* संविधान के दायरे में रामजन्मभूमि के विवाद को दूर किया जाएगा।
* 2022 तक किसानों की आय दुगुनी की जाएगी।
* 2 करोड़ रोजगार हर साल दिया जाएगा।
मैंने मुख्य अंश यहां लिखे हैं पूरा संकल्पपत्र लंबा है उसे आप गूगल या भाजपा की साइट से जाकर पढ़ सकते हैं।

अगर 1952 से अब तक के सभी चुनाव घोषणापत्रों का अध्ययन करें तो यह पाएंगे कि ये दस्तावेज महज एक औपचारिकता है और शायद ही किसी सरकार ने अपने घोषणापत्र में किये सभी वादों पर अमल किया हो। फिर भी जनता इन्ही वादों पर सरकार चुनती है। पहले सोशल मीडिया नहीं था। समाचार सम्प्रेषण के अधिक साधन नहीं थे तो चुनावी वादों को जनता भूल जाती थी और जब नए वादों की फेहरिस्त आ जाती थी तो उसे नयी उम्मीद दिखने लगती थी। लेकिन सोशल मीडिया की पहुंच ने अब एक ऐसा जनमानस बना दिया जो भूत के वादों को भूलने नहीं देता और जनता खुद ही मुखर हो अपनी बात कहने और सवाल उठाने लगती है। संकल्पपत्र 2014 और संकल्पपत्र 2019 में तुलनात्मक स्थिति क्या है उसकी एक झलक देखें।
* 2014 की तुलना में इस बार दो करोड़ रोजगार की बात किसी ने भी नहीं की !
* काला धन लाने की बात भी गोल कर दी गई या तो उस काले धन में से उचित हिस्सा मिल गया है या पहले फिजूल की बकलोल की गई थी।
* बैंकिंग सेक्टर की बिगड़ती सेहत को लेकर चुप्पी है।
* लघु एवम मध्यम वर्गीय उद्योगों के लिए कोई दिशा निर्देश नही है।
* पाकिस्तान से सम्बन्ध एवम सार्क देशों के बारे मे कुछ नहीं बोला।
* 2022 तक किसानों की आय दोगुनी होगी लेकिन फिलहाल कुछ नहीं हुआ ।

राजनैतिक दल क्या यह मान के चलते हैं कि जनता उनके वादों को गंभीरता से नहीं लेती है ? यह बात बिल्कुल सच है कि जनता उनके वादों को गम्भीरता से नही लेती पर सरकार और तंत्र का तकाजा है कि जनता उन वादों और कृत्यों को जानना चाहती है जो राजनीतिक दल कह रहे हैं। अब मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के घोषणापत्र के मुख्य वादों को देखें।
* 22 लाख रिक्तियां केंद्र सरकार और पंचायतों में 10 लाख नौकरियां खाली हैं जो अप्रैल 2020 तक भरी जाएंगी।
* युवाओं को 3 साल तक नए व्यापार पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। मेक इन इंडिया के एंजेल टैक्स की वसूली बंद।
* करोड़पतियों का कर्ज न चुकाना दीवानी अपराध है तो किसानों का कर्ज न चुकाना भी दीवानी अपराध होगा। 
* शिक्षा पर बजट का 6 प्रतिशत व्यय होगा।
* अलग रेल बजट की तर्ज पर किसानों के लिये अलग से किसान बजट की परंपरा शुरू की जाएगी।
* आईपीसी की धारा 124A sedition सेडिशन कानून रद्द होगी।
* मानहानि के मुक़दमे दीवानी श्रेणी Civil Nature के होंगे।
* इलेक्टोरल बांड समाप्त होंगे। 
* मॉडल पुलिस एक्ट लागू किया जाएगा। यह पुलिस सुधारों की शुरुआत होगी। 
* मीडिया घरानों से पूंजीपतियों के एकाधिकार पर रोक लगेगी।
* आंध्रप्रदेश को विशेष श्रेणी दी जाएगी। यह वादा यूपीए 2 की सरकार का है जो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में कहा था।
* पुड्डुचेरी को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा। 
* न्यूनतम आय ( न्याय ) योजना पर उतने ही का वादा किया है जितना अर्थशास्त्रियों से बातचीत कर संभव पाया है. ये भारत की अर्थव्यवस्था को रिमोनेटाइज करेगा जो नोटबंदी से शिथिल हो गयी है।

अब दोनों प्रमुख दल, भाजपा और कांग्रेस के 2019 के वादों का अध्ययन करें तो दोनों ही दलों के वादों के केंद में किसान हैं। कांग्रेस जहां 22 लाख रिक्त पदों को भरने, इलेक्टोरल बांड को खत्म करने, शिक्षा पर बजट 6 % करने, और न्यूनतम आय योजना में 6000 रुपये देश की सबसे गरीब आबादी के 20 % को देने की बात कर रही है वहीं भाजपा के संकल्पपत्र में रोजगार, रिक्त स्थानों की भर्ती, शिक्षा, आदि पर कोई स्पष्ट वादा नहीं है। भाजपा ने यह ज़रूर कहा है कि वह कानून और इंजीनियरिंग कॉलेजेस में सीटों की वृद्धि करेगी पर इस बात पर उसने सन्नाटा खींच लिया है कि बेरोजगार या उचित रोजगार से वंचित बेरोजगार इंजीनियर के बारे में सरकार की क्या योजना है।

अगर देश की मूल समस्याओं पर नज़र डालें तो सबसे बड़ी समस्या रोजी, रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य से जुड़ी है। चुनाव में यही मुद्दे अक्सर प्रमुखता पाते रहे हैं। अपने बचपन से हम यह नारा सुनते आए हैं कि रोजी रोटी दे न सके वह सरकार निकम्मी है और जो सरकार निकम्मी है वह सरकार बदलनी है। सरकारें बदलती भी रही, पर रोजी रोटी की समस्या से आज भी हम रूबरू हैं। इसके अतिरिक्त शिक्षा, स्वास्थ्य, बढ़ती जनसंख्या आदि बड़ी समस्याओं के निदान की बात तो की जाती है पर उनके समाधान का मार्ग ढूंढने में राजनीतिक दलों को आलस्य आ जाता है।

यह चुनाव जनहितकारी मुद्दों से मुंह छिपाते हुये उन मुद्दों की ओर मुड़ गया है जिनपर शायद ही किसी को असहमति हो। ये मुद्दे हैं सीमापार से प्रायोजित आतंकवाद और पाकिस्तान से आने वाले खतरे। सभी दलों की सरकारें इन खतरों से वाकिफ हैं और इस मुद्दे पर सरकार के साथ हैं। दलीय प्रतिबद्धता जब भी देश पर विदेशी हमले हुए हैं, शिथिल हो जाती है और सभी एकजुट हो एक साथ सरकार के साथ खड़े होते हैं। चाहे 1962, 1965, 1971, 1999, के युद्ध,या अक्सर होने वाली आतंकी घटनाएं। खुद पुलवामा हमले के समय भी देश के सभी दल सरकार के साथ थे। लेकिन चुनाव में जब केवल यही एक मुद्दा जीवन से जुड़े मुद्दे को दरकिनार कर के प्रस्तुत किया जाएगा तो विपक्षी और जनता भी इन मुद्दों के कारणों और परिणाम पर बहस करेंगे और तब सेना की आड़ में छुप जाना एक प्रकार की क्लीवता है। सरकार कोई भी हो, किसी भी मुद्दे पर वह जवाबदेही से बच नहीं सकती है।

क्या जब तक पाकिस्तान रहेगा तब तक सरकार देश मे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार आदि जनहित के मुद्दों पर कुछ नहीं करेगी ? क्या ऐसी मानसिकता जानबूझकर कर नहीं बनायी जा रही है कि जब तक पाकिस्तान है हम असल मुद्दों पर बात ही नहीं करेंगे। हम सोते जागते पाकिस्तान से एक अज्ञात भय की ही पिनक में रहेंगे ? यह तो चीन में कभी हुये अफीम युद्ध की तरह होगा। 

क्या कोई भी विचार जो शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार की तरफ बढ़ रहा होगा उसे हतोत्साहित किया जाएगा ? ऐसे विचारों को हतोत्साहित करने का एक आसान उपाय है उन्हें गद्दार कह दिया जाय, देशद्रोही कह दिया जाय, जो जीवन से जुड़े मुद्दों पर सवाल उठाते हैं, और सरकार से सवाल पूछते हैं। देशद्रोह एक ऐसा भावुक आरोप है कि मज़बूत इच्छा शक्ति वाला व्यक्ति भी एक मिनट के लिये झटका खा जाता है। इस चुनाव में हर बात देशप्रेम और देशभक्ति की ओर मोड़ दी जा रही है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार पर एक शब्द नहीं बोला जा रहा है। यह शातिर अदा मुद्दे भटकाने की है। यह मुद्दाबदल योजना है। इन मुद्दों पर कभी सरकार को उनके ही वादे याद दिलाइये, उनके ही वादों की फेहरिस्त उनके ही संकल्पपत्र 2014 से ढूंढ कर उन्हें ही दिखाइए, तो उस पर वेे कुछ भी नहीं बोलेंगे। उनकी बात पाकिस्तान से शुरू हो  हिन्दू मुसलमान तक ही जाएगी।

देश की रक्षा आवश्यक है। देश की संप्रभुता ,एकता और अखंडता भी बनी रहे, यह भी आवश्यक है। पर इन सबके लिये युवाओं को रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य मिले यह सबसे अधिक ज़रूरी है। विपन्नता की दहलीज पर खड़ा देश अपनी रक्षा कर ही नहीँ सकता है। पर जो दल रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य के इस मौलिक मुद्दे पर कभी भी कोई बात नहीं करता है, अपने उन्ही वादों पर भी कभी बात नहीं करता जो उन्होंने 2014 में जनता से किया था, अपने उन्ही कालजयी मास्टरस्ट्रोक कारनामों, नोटबंदी, जीएसटी आदि पर बात नहीं करता हैं, जिनका कभी खुल कर नाम लिया जाता था तो यह आशंका होने लगती है कि यह सब वादे खोखले और चमड़े मढ़े नगाड़े की तरह हैं जहां केवल ध्वनि है और शेष खोखलापन है। समाज और जनता को डरा कर देश का नेतृत्व नहीं किया जा सकता है ।

सरकार के समर्थक शायद ही कभी सरकार या सत्तारूढ़ दल से यह सवाल पूछने का साहस कर पाएं कि स्मार्ट सिटी, 2 करोड़ प्रतिवर्ष रोज़गार, स्टार्ट अप, स्टैंड अप, आदि आदि खूबसूरत और कशिश भरी नाम वाली योजनाओं का क्या हुआ ?.कभी कभी जब उनमें से कुछ   इन असहज करते हुए सवालों को पूछते हैं तो उन्हें इनका जवाब नहीं मिलता है । उन्हें एक नारा थमा दिया जाता है कि वे उस झुनझुने को बजाते रहें। उसी की ध्वनि में आत्ममुग्ध से पड़े रहें।  बढ़ती बेरोजगारी सरकार के लिये एक बड़ा ख़तरा बन सकती है। सरकार इससे अनभिज्ञ भी नहीं है। ऐसे खतरे से निपटने के लिये ही अंधराष्ट्रवाद का जाल फैलाया जा रहा है ताकि देश खतरे में हैं सदैव यही दिखे। पर अंधराष्ट्रवाद अंततः रपराष्ट्रभंजक ही बनता है। 

दुनिया का कोई भी देश जब तक अपनी आर्थिक स्थिति और सामाजिक एकता नहीं सुदृढ़ रखता, तब तक सुरक्षित नहीं रह सकता है। बेरोज़गार युवाओं की बढ़ती फौज, एक दूसरे से अनायास सशंकित रहता हुआ समाज, हर वक़्त उन्माद के पिनक में पड़ा हुआ मस्तिष्क, सदैव दुश्मनी की कल्पना में दरवाजे की हर आहट पर गाली दे कर चौंक जाने वाला व्यक्ति किसी भी स्वस्थ समाज की पहचान नहीं है। यह बीमार होते हुए समाज के लक्षण हैं। चुनाव में जनहित के मुद्दे उठायें और सभी दलों को जो आप के दरवाजे पर वोट लेने आ रहे हैं उनसे पूछें कि रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य के बारे में क्या किया गया है और क्या इरादा है।

© विजय शंकर सिंह

No comments:

Post a Comment