Wednesday 10 April 2019

वामपंथ असहज करता है तो छोडिये, जनता की मूल समस्याओं के बारे में सोंचें / विजय शंकर सिंह

वामपंथ जिन्हें आयातित लगता है वे इसकी बात बिल्कुल न करें। वैसे भी सैद्धांतिक वामपंथ से जुड़ा साहित्य उबाऊ भी है और वह सबके समझ मे जल्दी आता भी नही है। आजकल कॉपी पेस्ट से संक्रमित बौद्धिक जगत में जब पढ़ने की आदत कम और सोचने की आदत और भी कम हो रही है, तो विपुल और तार्किक वामपंथी साहित्य हममें से बहुतों को उबाऊ ही लगेगा।

आप बिलकुल वामपंथ की बात न करें। इस विचारधारा को छोड़ दें। पर सबको रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य की मूलभूत ज़रूरतें मिलें, इसकी बात करें। सामाजिक गैर बराबरी कम कैसे हो इस पर सोचें।  गरीब और अमीर के बीच की बढ़ती दूरी जो लगातार बढ़ रही है कैसे थमे और यह दूरी कम कैसे हो, इस पर विचार करें। सबसे अधिक तनख्वाह और एक अकुशल मजदूर की दिहाड़ी के बीच जो आकाश पाताल का अंतर है वह कैसे कम हो, इसका समाधान सुझाये। किसानों को इतनी अधिक संख्या मे आत्महत्या क्यों करनी पड़ रही है, इनकी बात करें।

वामपंथ इन्ही समस्याओ के हल के समाधान सुझाता है। हो सकता है वामपंथ के समाधान से आप की सहमति न हो। हो सकता है कल इन्ही समस्याओं के समाधान के लिये कोई नया पंथ आ जाय। मनुष्य के बौध्दिक विकास की दर तो सतत है। अगर वामपंथ शब्द किसी को असहज करता है तो भूल से भी उसका नाम न ले। पर ऊपर जो समस्याएं मैंने बतायी हैं, उनके समाधान की तो सोचें।

एक विपन्न, बिखराव और आपसी शत्रुता से भरा समाज के होते हुए कोई राष्ट्र कभी भी महान नहीं बनता। भारत भी अपवाद नहीं है। ज़रूरत इस विपन्नता और समाज मे बढ़ रही शत्रुता और बिखराव को रोकने की है। रोग से मुक्ति आवश्यक है चिकित्सा चाहे जैसी हो।

© विजय शंकर सिंह

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