आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार ने कहा जम्मू कश्मीर में धारा 370खत्म होने के बाद ही होगा कश्मीरी पंडितों का पुर्नवास।
इंद्रेश कुमार को यह भी पता नहीं है कि धारा 370 कश्मीरी पंडितों को बसाने में कोई बाधा नहीं है। कश्मीरी पंडित तो कश्मीर के मूल बाशिंदे हैं। उनके गांव, खेत, शहरों में मकान, आदि संपत्तियां आज भी हैं। बस नहीं है तो उनकी आबादी नहीं है। यह धारा और धारा 35A अकश्मीरियो के लिये बाधा बनती है, न कि कश्मीरी पंडितों के लिये।
1990 में जब आतंकवाद अपने चरम पर था। आईएसआई को यह पूरी उम्मीद थी कि अब कश्मीर घाटी में वही इतिहास दुहराया जा सकता है जो भारत ने बांग्लादेश निर्माण के समय दुहराया था। बेनज़ीर की कश्मीर की अवाम मांगती है आज़ादी, की चीखती हुयी मुद्रा टीवी स्क्रीन पर अक्सर तैर जाया करती थी। जगमोहन तब जम्मू कश्मीर के राज्यपाल बने थे। उसी समय कश्मीर से पंडितों का पलायन हुआ। यह कानून एवं व्यवस्था की विफलता तो थी ही भारत के विचारधारा आइडिया ऑफ इंडिया को भी एक चुनौती थी। 1947 के बंटवारे के बाद धर्म के आधार पर भारत में यह दूसरा विस्थापन और पलायन था।
1991 में कांग्रेस सत्ता में आयी । कश्मीर को संभलने में समय लगा। 10 साल लग गए कश्मीर को थोड़ा स्वस्थ होने में। कश्मीरी पंडितों का जो समूह जम्मू और दिल्ली आकर बस गया था वह धारा 35A के अंतर्गत जेके का असल बाशिंदा होने के बावज़ूद वहां जा नहीं पा रहा था।
1998 से 2004 तक भाजपा की सरकार थी और अब 2014 से अब तक भाजपा की सरकार है। कश्मीरी पंडितों का मुद्दा बार बार उठा पर दोनों ही सरकार जो इसे कोर मुद्दा मानती है ने कश्मीरी पंडितों को वापस उनके वतन भेजने के लिये क्या प्रयास किया, यह सरकार से पूछा जाना चाहिये। टीवी चैनलों पर, सेमिनार और गोष्ठियों में अक्सर यह बात उठती है कि कश्मीर में पंडितों को बसाना चाहिये, पर बसाने के लिये किया क्या गया यह न सरकार बताती है और न प्रवक्ता।
अगर सरकार वास्तव में कश्मीर के पंडितों के पुनर्वासन पर गंभीर होती तो वह निश्चित ही एक योजना या रोड मैप बनाती। उन गांवों और इलाक़ो को चिंहित किया गया होता जहां से पलायन हुआ है। उनकी सम्पत्ति पर किसी का अवैध कब्जा तो नहीं है ? अगर कुछ परिवार बच गए हैं तो उनकी सुरक्षा की क्या व्यवस्था है ? फिर पंडितों ने भाग कर जहां वे फिलहाल रह रहे हैं से यह पूछा जाता कि उन्हें वहां वापस जाने में क्या परेशानी है ? उन परेशानियों को दूर किया जाता। लेकिन तीन साल तक राज्य सरकार में साझी सरकार चलाने के बाद भी कश्मीरी पंडितों के मुद्दे पर अगर कुछ नहीं किया जा सका तो ऐसे वादे जुमले ही कहे जाएंगे।
अब इंद्रेश कुमार पंडितों को कश्मीर में उनके गांव में बसाने के लिये धारा 370 की आड़ ले रहे हैं। जब कि यह धारा कश्मीरी पंडितों को अपने गांव जाने में कोई बाधा नहीं है। बाधा है भय। बाधा है कानून व्यवस्था। बाधा है कमज़ोर इच्छाशक्ति। बाधा है सामाजिक समरसता टूटे कैसे । तीन साल जब केंद्र और राज्य में बराबर भाजपा की सरकार रही तो क्या कोई कार्ययोजना कश्मीरी पंडितों को बसाने के लिये बनी ? शायद नहीं। 10,000 पत्थरबाज़ों के खिलाफ दोनों सरकारे, केंद्र और राज्य की मिल कर आपराधिक मुक़दमे वापस ले सकती हैं, पर कश्मीर के पंडितों को बसाने पर कोई कार्ययोजना नहीं बनायी जा सकती है !
दरअसल, यह मुद्दा भी राम मंदिर, धारा 370 को हटाने और कॉमन सिविल कोड की तरह ध्रुवीकरण में इस्तेमाल किये जाने वाला मुद्दा बन कर रह गया है। भाजपा खुद इस मुद्दे पर स्पष्ट नहीं है कि वह पंडितों को घाटी में पुनः वापस कैसे लाएगी। उसे यह काम करना भी नहीं है। न तो उसे 370 और 35A धाराएं हटानी हैं, न अयोध्या के राममंदिर का मामला हल करना है और न कश्मीरी पंडितों को अपने घर बसाना है। बस इन मुद्दों पर सामाजिक सद्भाव तोड़ कर ध्रुवीकरण की राजनीति करनी है जो उसकी जीवन दायिनी है।
© विजय शंकर सिंह
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