Thursday, 11 April 2019

स्मृति ईरानी द्वारा झूठा हलफनामा दायर करना एक दंडनीय अपराध है / विजय शंकर सिंह

अमेठी से राहुल गांधी खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ रहीं केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने गुरुवार को चुनाव आयोग को दिए गए हलफनामे में घोषित किया कि वे 'ग्रेजुएट' नहीं हैं । यह पहली बार है जब उन्होंने अपने चुनावी हलफनामे में साफ लिखा कि उन्होंने तीन साल की डिग्री कोर्स पूरा नहीं किया.

रिटर्निंग अधिकारी को दिये हलफनामे में शिक्षा के कॉलम में स्मृति ईरानी ने लिखा- दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग (पत्राचार) से 'बैचलर ऑफ कॉमर्स पार्ट-1.' इस कोर्स कोर्स का वर्ष उन्होंने 1994 लिखा है. इसका अर्थ है कि उन्होंने इस साल यह डिग्री कोर्स शुरू किया था लेकिन इसे पूरा नहीं किया. उन्होंने कोष्टक में लिखा है कि 'तीन साल की डिग्री कोर्स अपूर्ण.'  हलफनामे के अनुसार ईरानी ने 1991 में हाईस्कूल की परीक्षा पास की, 1993 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की.     

इंटर पास सांसद मानव संसाधन विकास मंत्री जब बनेगा तो शिक्षा नीति तो भिक्षा नीति में बदल ही जाएगी। पिछले पांच साल में सबसे अधिक नुकसान शिक्षा क्षेत्र का हुआ है। ऐसा लगता है जैसे पढ़ाई लिखाई से संघ और भाजपा वालों को पुराना बैर है ।

खुद भाजपा में भी पढें लिखे योग्य लोगों की कमी संसद में तो थी नहीं। अगर कोई नया नहीं मिल रहा था तो डॉ मुरली मनोहर जोशी तो थे ही। वे तो इस पद पर रह भी चुके हैं। फिर एक झूठा हलफनामा देकर स्मृति ईरानी को पांच साल देश का कैबिनेट मंत्री बनाये रखने की क्या मज़बूरी थी यह तो प्रधानमंत्री ही बता सकते हैं, क्योंकि मंत्रिमंडल में कौन रहेगा और कौन नहीं रहेगा यह तो उन्ही का विशेषाधिकार था।

2014 में दिए हलफनामा के अनुसार स्मृति ईरानी बीए में है । अब वे केवल इंटर पास है। कम से कम इन पांच सालों में कॉरेस्पॉन्डेंस कोर्स से ही ग्रेजुएशन कर लेतीं तो हम भी कहते कि हमारी मंत्री ग्रेजुएट थीं। पर ऐसा नहीं हो सका। आप को उनकी डिग्री लहराती फ़ोटो याद है, जिसमें उन्होंने जैसे कोई नेपथ्य से अचानक रंगमंच पर प्रगट होते हुए हाँथ में एक डिग्री थामें उन्होंने कहा था कि, यस आई एम ए येल ग्रेजुएट ! आज न येल की बात है और न दिल्ली यूनिवर्सिटी की। बात केवल यह है कि यह एक झूठा हलफनामा देकर देश को गुमराह करने वाली महिला हैं ।

अब 2019 के ही हलफनामा के अनुसार स्मृति ईरानी केवल इंटरमीडिएट हैं। इस प्रकार इसी हलफनामे से यह प्रमाणित होता है कि 2014 में इन्होंने एक फ़र्ज़ी हलफनामा दायर किया था। क्या यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिये शर्मनाक नहीं है कि एक सांसद बड़ी ही ढीठाई ने फ़र्ज़ी और झूठे हलफनामे पर पांच साल देश की सबसे बड़ी पंचायत में बना रहा, देश की सरकार का एक अहम हिस्सा भी था, भारत भाग्य विधाता के रूप में अहम फैसलों में हिस्सेदार भी रहा और फिर दुबारा वह तमाम सुभाषितों को कहते सुनते सांसद बनने की लालसा लिये हमारे बीच है।

मंत्री या सांसद बनने के लिये किसी डिग्री या शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता नहीं होती है। यह एक मासूम तर्क है जिसे हम भी जानते हैं। पर बात यहाँ हलफ उठा कर झूठ बोलने की है। अगर कोई निरक्षर है तो है । यह कोई अपराध नहीं है। यह तो समाज और सरकार का अपराध है कि आज सत्तर साल आज़ादी के बाद भी कोई निरक्षर क्यों है ? पर यहां मामला ही झूठ बोलने का है। झूठा हलफनामा देकर जनता को गुमराह करने का है।

झूठा हलफनामा देना एक दंडनीय अपराध है। यह अपराध निर्वाचन कानून जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में भी दंडनीय है। ऐसे झूठे हलफनामा देने वाले को 6 साल तक चुनाव लड़ने से अयोग्य भी ठहराया जा सकता है। पर यह निर्णय केंद्रीय निर्वाचन आयोग को लेना है। आयोग को चाहिये कि वह 2014 में दायर गलत हलफनामे पर जांच करा कर स्मृति ईरानी की सदस्यता रद्द कराए और अगले छः साल तक चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य ठहरा दे।  झूठा हलफनामा देने के अपराध में स्मृति ईरानी पर मुक़दमा चलाया जाना चाहिए।

© विजय शंकर सिंह

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