सोशल मीडिया पर प्रतिरोध की ताकत देखिये। दोपहर में भाजपा ने अभियुक्त प्रज्ञा ठाकुर के हेमंत करकरे पर उनके श्राप वाले बयान से, उनका निजी बयान कह कर के पल्ला झाड़ लिया और अब प्रज्ञा ठाकुर ने अपना श्राप वाला वह बयान भी वापस ले लिया। प्रज्ञा ठाकुर का टाइम्स ऑफ इंडिया में छपा यह ताज़ा बयान पढिये।
"He (Hemant Karkare) died from the bullets of terrorists from the enemy country, he is certainly a martyr,"
( वह ( हेमंत करकरे ) दुश्मन देश के आतंकियों की गोली से मरे थे। वे निश्चित ही एक शहीद हैं। )
प्रज्ञा ठाकुर ने अपने बयान के लिये माफी भी मांगी है। दिन भर सोशल मीडिया पर उन भाजपा के मित्रो या बेहतर यही होगा कि उन्हें मोदी भक्त ही अब कहा जाय का तांता लगा रहा जो इस बेहद शर्मनाक बयान का भी बचाव करते रहे। सोशल मीडिया पर अनेक गणमान्य जन भी इस बेहद शर्मनाक बयान के बचाव में अजीब अजीब तर्क दे रहे थे। आप अब भी देख सकते हैं।
ऐसे तर्क देने वाले अधिकतर संघ और भाजपा से जुड़े लोग हैं। ये अंग्रेजो के पिछलग्गू और मुखबिर परम्परा के हैं। ये तो गांधी को भी देशद्रोही और गोडसे को देशभक्त साबित करने की जुगत में लगे रहते हैं तो फिर, हेमंत करकरे क्या चीज़ हैं। पुलवामा की सुरक्षा चूक पर जिनमें 40 सीआरपीएफ के जवान शहीद हो गए हैं पर किसी प्रकार जिम्मेदारी लेने के बजाय उस हमले पर वोट मांगे जा रहे हैं, इसी से आप इनके सोच का अंदाज़ा लगा सकते हैं।
प्रज्ञा ठाकुर की यह बयान वापसी, यह पश्चाताप की अभिव्यक्ति नहीं है बल्कि यह उस दबाव और तीखी आलोचना का परिणाम है जो कल से ही प्रज्ञा ठाकुर के बयान के बाद सोशल मीडिया पर छा गयी थी। इस बयान से दुनियाभर में हमारी क्षवि को बहुत नुकसान होता। सरकार को संकीर्णता से नहीं सोचना चाहिये। यह बयान भी राजनीतिक उद्देश्य से था और अब उसी उद्देश्य से वापस भी लिया गया है। मुझे लगता है कि भाजपा अब उनको शायद टिकट भी न दे। सच तो यह है कि इन्हें अपने कुकर्मों का कोई अफ़सोस नहीं पर क्या करें केवल अन्तर्राष्ट्रीय छवि बनाए रखने के लिए यह क़दम मज़बूर होकर इन्होंने उठाया है वरना शीघ्र ही आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों में शामिल हो सकते है ।
सरकार के हर उस कदम, भाजपा या जो भी दल हो उसके हर उस कदम का प्रतिरोध औऱ आलोचना निडर होकर कीजिये जो भारतीय संस्कृति, सभ्यता, संविधान और अनेकता में एकता की मूल आत्मा के विरोध में उठता है। उन्माद और खीज में वैसे भी विवेक पंगु हो जाता है। कभी कभी मुझे लगता है वे बौद्धिक विकलांगता को प्राप्त हो गए हैं। वे बहस ही नहीं कर सकते। गाली गलौज अपशब्द, भले ही दे लें। हम एक बेहतर, सामाजिक सद्भाव से भरे और प्रगतिशील भारत के लिये उठें। संकीर्णता, उन्माद,घृणा से मुक्त होकर प्रगतिपथ पर अग्रसर हो।
© विजय शंकर सिंह
No comments:
Post a Comment