Tuesday, 2 April 2019

राफेल पर एस विजयन की किताब का विमोचन रोका गया / विजय शंकर सिंह

चुनाव आयोग ने राफेलघोटाला राफेलसौदा मामले पर द हिन्दू द्वारा लिखी किताब के विमोचन पर रोक लगा कर दो बातें प्रमाणित कर दी हैं।
1. आयोग निष्पक्ष रेफरी नहीं है बल्कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त जिस उद्देश्य से आयोग में लाये गये थे, उसे पूरा करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
2. राफेल मामले में जितना सोचा और पाया जा रहा उससे अधिक कुछ न कुछ गड़बड़ है।

राफेल घोटाले पर आज भारती पब्लिकेशन मद्रास में एस विजयन की लिखी किताब जारी करने वाला था, लेकिन चुनाव आयोग ने फ़ंक्शन को रोक दिया और वहाँ से 142 किताबों को ज़ब्त कर लिया है । तमिल में लिखी किताब का नाम नाट्ठाई उलुक्कम राफेल बेरा उज़्हाल  (the Rafale scam that is rocking the country), है । किताब रिलीज़ का फ़ंक्शन जो पहले स्कूल में था बाद में स्कूल द्वारा आयोजन से इनकार करने पर , भारती पब्लिकेशन ने अपने कार्यालय में यह समारोह रख लिया था।

कमाल की बात यह है कि 12 अप्रैल को नरेन्द्र मोदी जी के जीवन पर बनी फिल्म जिसे को रिलीज करने की अनुमति आयोग ने दे दी है। आयोग का तर्क है कि फ़िल्म के प्रतिबंधित किये जाने से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात होगा।

पर एस विजयन की किताब पर रोक से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बाधित नहीं होगी। अजीब तर्क है आयोग का। फ़िल्म को इस लिये अनुमति दी गयी है कि उस फ़िल्म में मोदी जी की प्रशंसनीय क्षवि दिखायी गयी है, जबकि इस पुस्तक में राफेल सौदे में हुयी अनियमितताओं पर सवाल उठाए गए हैं। जो आदमी अपनी आलोचना और अपने ऊपर उठे सवालों को गाली देना समझता है वह अपनी आलोचना सुन कैसे सकता है ? उसके कारकुन हर उस ज़ुबान और उंगली की ओर झपट पड़ेंगे जो सवालिया निशान लिये खुलती और उठती है। आयोग अब कारकुन बन गया है।

आयोग को संविधान में असीमित ताकत दी गयी है। चुनाव की घोषणा होने के बाद देश या प्रदेश जहां भी चुनाव हो रहा है उसका सारा प्रशासन तँत्र आयोग के अधीन आ जाता है। आयोग से पूछे किसी भी अधिकारी का न तो तबादला हो सकता है और आयोग द्वारा किये गए तबादलों पर सरकार कुछ कर भी नहीं सकती है। इस अपार वैधानिक शक्ति से सम्पन्न जब वरिष्ठतम नौकरशाह लिजलिजपापन दिखाते हैं तो उनके चरित्र और आचरण से वितृष्णा होती है।

कल्याण सिंह का भाजपा के समर्थन में खुल कर बयान देना, ए सैट के नाम पर उपलब्धि का प्रचार करना, सेना को एक व्यक्ति की सेना बताना आदि आदि उदाहरण आयोग की क्लीवता को ही उजागर करते हैं। पीएम, गवर्नर, सीएम ये सभी राजनीतिक व्यक्ति होते हैं, और सभी राजनीतिक व्यक्ति चुनाव जीतने के लिये किसी भी स्तर तक जा सकते है और जाते हैं। पर आयोग एक संवैधानिक संस्था है। उसका एक तय कार्यकाल और सुरक्षित सेवा शर्ते हैं। वह कौन सा एहसान उतार रहा है ?

अब तो प्रधानमंत्री के भाषणों में खुल कर आदर्श आचार संहिता के विपरीत साम्प्रदायिक आधार पर बातें कही जा रही है पर आयोग की इतनी भी हिम्मत नहीं कि वह नोटिस जारी कर सके। स्टील फ्रेम में जंग इसे ही कहते हैं।

© विजय शंकर सिंह

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