Friday, 26 April 2019

सुविधा, इच्छा और ज़रूरत से खेती करने का अधिकार / विजय शंकर सिंह

पेप्सिको PepsiCo कम्पनी ने कुछ किसानों को एक विशेष प्रकार की आलू की फसल बोने के लिये, उनके खिलाफ अदालत में हर्जाने की कानूनी कार्यवाही की है। इस मल्टीनेशनल कंपनी का कहना है कि  उस विशेष नस्ल के आलू की पैदावार केवल वही कर सकते हैं, जिन्हें कम्पनी यह अधिकार देगी। अन्य किसी किसान को उस नस्ल का आलू उगाने का अधिकार नहीं है।

आलू की एक खास किस्म की खेती करने के आरोप में पेप्सिको इंडिया कंपनी ने गुजरात के कुछ किसानों पर मुकदमा दर्ज करा दिया है. जानकारी के मुताबिक पेप्सिको ने इन किसानों पर आलू के किस्म एफसी-5 की खेती और उसकी बिक्री करने के आरोप में मामला दर्ज कराया है. पेप्सिको इंडिया कंपनी का दावा है कि ‘2016 में उसने आलू के इस किस्म पर देश में विशेष अधिकार हासिल किया था'. दूसरी तरफ, पेप्सिको द्वारा मामला दर्ज करवाने के बाद 190 से अधिक कार्यकर्ताओं ने केंद्र सरकार को अनुरोध पत्र भेजकर वह कंपनी को किसानों के खिलाफ दर्ज इन ‘गलत' मामलों को वापस लेने का निर्देश दे.

Lays लेज़ चिप्स जो हम आप खरीदते और खाते हैं, वह यही पेप्सिको कंपनी बनाती है और जो आलू इसके लिये उपयोग में लाया जाता है वह जिस विशेष नस्ल का आलू है उसके बारे में कंपनी का कहना है कि उस विशेष नस्ल के आलू के बोने, खरीदने और बेचने पर उसका विशेषाधिकार है।

उस नस्ल का आलू कोई और न बो सके इसके लिये कम्पनी ने आपत्ति जताई है। 9 किसानों ने उस नस्ल को बोया तो वह कम्पनी उन 9 किसानों के खिलाफ डेढ़ करोड़ रुपये के हर्जाने के दावे हेतु  अदालत  चली गयी। कम्पनी का कहना है कि उस नस्ल के आलू बोने पर उसी मल्टीनेशनल कंपनी का ही अधिकार है। ज़ाहिर है किसान माफी मांग लेंगे और भविष्य में वह विशेष नस्ल न बोने की बात कह कर मुक़दमे से पिंड छुड़ा लेंगे। कम्पनी भी यही चाहती है कि इस नालिश का भय किसानों में फैल जाये और उनका उस नस्ल की खेती पर एकाधिकार हो जाये।

अदालत ने फिलहाल किसानों के फसल बोने पर स्थगनादेश दे दिया है। यह बहुराष्ट्रीय कंपनी निश्चित रूप से उन गरीब किसानों, जो भारतीय अर्थ व्यवस्था के मूलाधार हैं, के हित के विरुद्ध काम कर रही है जो खेती किसानी कर के अपना जीवन यापन करते हैं।

कृषि मंत्रालय को भेजे पत्र में 194 कार्यकर्ताओं के हस्ताक्षर हैं. इसमें किसानों के अधिकारों के संरक्षण और उन्हें वित्तीय मदद की मांग की गयी है. पत्र में कहा गया है, ‘‘पादप प्रजनन अधिकारों पर किसानों के खिलाफ चल रहे कानूनी मुकदमे को लेकर तथ्यों तथा अपनी चिंताओं को हम आपके संज्ञान में लाना चाहते हैं. इन्हें गुजरात के आलू उपजाने वाले किसानों के खिलाफ पेप्सिको ने दर्ज कराया है जो अमेरिका की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है. कंपनी ने पादप किस्म एवं किसान अधिकार संरक्षण (पीपीवीएफआर) कानून 2001 के तहत किसानों के खिलाफ यह मामला दर्ज कराया है'।

यह समस्या केवल उन 9 किसानों द्वारा पेप्सी आलू बोने या न बोने का नहीं है। यह किसानों को उनकी ज़रूरत तथा मौसम, मिट्टी और पानी की उपलब्धता के आधार पर कृषि कार्य करने के प्राकृतिक अधिकार का है। अगर फसल बोने और न बोने पर लगाया गया यह प्रतिबंध एक नियम और परंपरा बन गया तो किसान स्वतंत्र कृषक रहते हुए की कंपनी का एक गुलाम बन कर रह जायेगा। यह एक नए प्रकार का दासत्व होगा।

क्या बोना है, क्या नहीं बोना है, कैसे बोना है, कहाँ बेचना है, और कहां नहीं बेचना है यह सारे एकाधिकारवादी प्रतिबंध भारत के किसानों को सौ साल पहले निलहे किसानों की तरह इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों का दास बनाकर रख देगी। यह तो अभी प्रारंभ है। अगर इसे अभी नहीं रोका गया तो, किसान अपनी ज़मीन पर एक भी फसल अपनी सुविधा, इच्छा और आवश्यकता के अनुसार नहीँ उगा सकता है।

कानूनी प्राविधान और सरकारी तँत्र को भी इस विषय मे सचेत रहना चाहिये। हमें पेप्सिको के इस अधिनायकवादी कदम के खिलाफ और किसानों के पक्ष में खड़ा होना होगा। लेज़ चिप्स और पेप्सिको का बहिष्कार करना चाहिये। कोई भी कंपनी कितनी भी अधिकार सम्पन्न और पूंजी वाली क्यों न हो, उसे यह अधिकार नहीं दिया जा सकता है कि वह किसानों को अपनी मर्ज़ी से फसल बोने और न बोने के लिये बाध्य कर सके।

© विजय शंकर सिंह

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