सबके अपने अपने मसूद अजहर जैसे रोल मॉडल होते हैं। यह वैचारिक और राजनीतिक दरिद्रता का परिणाम होता है। आप मालेगांव धमाका कांड की अभियुक्त साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और असीमानन्द को सराह कर मसूद अजहर और हाफ़िज़ सईद को नहीं कोस सकते हैं। महाराष्ट्र के मालेगांव में साल 2008 में हुए बम विस्फोट में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर एक आरोपी हैं. वह फिलहाल ज़मानत पर बाहर हैं.
उन्होंने अपने धर्मरक्षक को प्रश्रय दे रखा है और आपने अपने धर्मरक्षक को धर्म बचाने की जिम्मेदारी दे रखी है। आतंकवाद का जितना समर्थन और आतंकवाद से जितना लगाव सरहदपार की सरकार को है, उससे कम लगाव लगता है, हमारी इस सरकार और सत्तारूढ़ दल को नही है।
बस फर्क यह है कि पाकिस्तान में आतंकवादी गिरोहों के खिलाफ वहां की अवाम अभी खुल कर सामने नहीं आयी है, और हमारे यहां की जनता आपको अपना एजेंडा लागू नहीं करने दे रही है। आप इसकी जिम्मेदारी बेशक जवाहरलाल नेहरू पर डाल सकते हैं।
प्रज्ञा ठाकुर को अगर कुछ विस्फोटों जिसमे निर्दोषों की जान गयी है, जैसी आतंकी घटनाओं में ट्रायल कोर्ट से बरी भी मान लिया जाय तो भी यह एक संघ प्रचारक के हत्या में भी शामिल रही हैं। ट्रायल कोर्ट के फैसले में बहुत सी कमियां हैं। सरकार और एनआईए ने हाईकोर्ट में अपील करने से मना कर दिया है। उसे पता है हाईकोर्ट में यह फैसला पलटेगा और इन्हें सज़ा होगी। प्रज्ञा ठाकुर असीमानन्द के बारे में भाजपा अपने मंत्री आरके सिंह से ही पूछ ले कि सच क्या है।
95 साल के संघ के इतिहास जिसने सभ्यता, संस्कृति, शुचिता, की बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं, उसके राजनीतिक शाखा में क्या कोई भी ऐसा नहीं है कि वह भोपाल से दिग्विजय सिंह जी के खिलाफ चुनाव लड़ सके ? इतना वैचारिक दारिद्र्य ! यह इसलिए है कि दिमाग का साफ्टवेयर ही एकांगी हो गया है। उसे वायरस से मुक्त कीजिये। जिस हिंदू धर्म की झंडाबरदारी की सोते जागते उठते बैठते बराबर हिमायत करने का दंभ भरा जाता है, उसी के सबसे पूज्य ग्रन्थ ऋग्वेद की यह ऋचा भी पढ़ लें,
आ नो भद्रा कृतवो यन्तु विश्वतः
( विश्व के समस्त सद्विचारों को मेरे मस्तिष्क का आमंत्रण है। )
भाजपा के बारे में मेरी यह धारणा थी कि, वह अपराधियो से दूर रहती है। पर इधर जो टेक्टोनिक शिफ्ट हुआ है उसका कारण खुद भाजपा के अनापराधिक लोगो को सोचना होगा । आखिर क्यों आपराधिक मानसिकता के लोग कर्णधार बनते जा रहे हैं ? चाल चरित्र चेहरा और पार्टी विद द डिफरेंस को अब क्यों आपराधिक पृष्ठभूमि के नेताओ से कोई परहेज नहीं रहा ? यह परिवर्तन अटल आडवाणी जोशी के नेपथ्य में चले जाने से आया है या कोई और कारण है, कहा नहीं जा सकता है ।
डॉ हेगडेवार, एमएस गोलवलकर, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीन दयाल उपाध्याय, अटल बिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, नरेंद मोदी, अमित शाह से होते हुए संघ और भाजपा की विकास यात्रा प्रज्ञा ठाकुर तक तो पहुंच ही गयी है। अब बस बाबू बजरंगी ही बचा है।
राजनीति में उन सभी माफिया गिरोहों के सरगनाओं का विरोध कीजिए चाहे वे किसी भी धर्म या जाति के रोल मॉडल बन गए हों या किसी भी राजनीतिक दल के हों, अन्यथा संसद कुछ गिरोहों का पनाहगाह बन कर रह जायेगी।
© विजय शंकर सिंह
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