कश्मीर के संबंध में धारा 370 और 35 A को खत्म करने का वादा फिर जगह पा गया है। यह वादा नया नहीं है बल्कि पुराना है। भाजपा के हर संकल्पपत्र में यह वादा जगह पाता रहा है बस सरकार बन जाने के बाद यह वादा सरकार के बस्ता ए खामोशी में चला जाता रहा है। भाजपा का कहना है कि यह धारा एक राष्ट्र एक विधान की अवधारणा के विपरीत है। 370 जब जोड़ी गयी थी तब भी यह विवादों के घेरे में थी और अब भी विवादों के घेरे में हैं। बस यही कहा जा रहा है कि यह धारा कश्मीर को एक अलगाववादी स्वरूप देती है।
1999 से 2004 और 2014 से 2019 तक भाजपा के सरकार में रहने पर भी यह धारा क्यों नहीं हटायी गयी ?
क्यों नही सरकार ने कोई संशोधन इस धारा को हटाने के लिये संसद में पेश किया ?
क्यों यह सारा मुद्दा तभी उभरता है जब चुनाव आ जाता है और घोषणापत्र जारी करना एक मज़बूरी बन जाती है ?
क्यों जनता के रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य आदि मौलिक समस्याओं को दरकिनार कर एक ऐसा मुद्दा तुरन्त चुनाव के समय प्रासंगिक बना दिया जाता है जो जब तक सरकार रहती है तब तक टांड़ पर रखा रहता है ?
क्या यह जनता और अपने मतदाताओं को असल मुद्दों से भटकाने की चाल नहीं है ?
सरकार जब वादा कर रही है कि वह इन धाराओं को हटाएगी तो सरकार को यह भी बताना चाहिये कि उसने 1999 से 2004 और 2014 से 2019 के बीच सत्ता में रहते हुए भी इस धाराओं को हटाने के लिये क्या प्रयास किया ?
एक बात कही जा सकती है और अक्सर कही भी जाती है कि 1999 से 2004 की सरकार में भाजपा अपने दम पर नहीं थी। भाजपा के साथ जो अन्य दल थे उनकी धारा 370 और 35A के बारे में भाजपा से अलग राय थी। पर 2014 में तो यह स्थिति नहीं थी। भाजपा एनडीए सरकार के बावजूद अपने दम पर पूर्ण बहुमत में है। पर इन पांच सालों में इन धाराओं को हटाने के लिये सरकार ने क्या पहल की ?
अब यह कहा जा सकता है कि राज्यसभा में भाजपा का बहुमत नहीं था अतः सरकार ने पहल नहीं की।
लेकिन लोकसभा में यह संशोधन प्रस्ताव रखे जाने में सरकार को क्या दिक्कत थी ?
सरकार ने 2014 से 2019 के बीच इस धारा को हटाने के लिये कोई भी जतन नहीं किया। अगर लोकसभा में यह प्रस्ताव आया होता तो इस पर बहस होती, विभिन्न दलों के मत इस धारा के संबंध में लोगों को पता चलते। सरकार भी यह बताती कि आखिर कैसे यह धारा देश के एक राज्य जम्मू कश्मीर को अलगाववाद की ओर प्रेरित करती है। सभी तर्क वितर्क जनता के सामने आते।
एक बार प्रख्यात वकील राम जेठमलानी ने धारा 370 पर यह कहा था कि उन्होंने धारा 370 क्यों नहीं हटायी जा सकती है, यह बात प्रधानमंत्री मोदी जी को बता दी थी, उसके बाद फिर मोदी जी ने इस धारा को हटाने के लिये कोई चर्चा नहीं की। यह बात इसलिए सच लगती है कि 2014 के बाद अब तक इस धारा को हटाने के लिये सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं हुयी। हो सकता है राम जेठमलानी ने मोदी जी को इस धारा के हटाने से उत्पन्न खतरों को भी बता दिया हो। जनता में बोलने और ठंडे दिमाग से कोई निर्णय लेने में अंतर होता है। यह बात जो सरकार और तंत्र में रहे हैं बखूबी जानते हैं।
एक काम सरकार और कर सकती थी जो उसने नहीं किया। सरकार संविधान मर्मज्ञों और न्यायविदों का एक पैनल गठित कर सकती थी और उसे यह काम सौंपा जा सकता था कि वह पैनल इस धारा की ज़रुरत और वर्तमान परिस्थितियों में इन धाराओं 370 और 35A की आवश्यकता पर विचार करे। ऐसे एक्सपर्ट पैनल का सबसे बड़ा लाभ यह होता कि जनता को वास्तविक संवैधानिक और कानूनी स्थिति का अंदाज़ा भी लग जाता । लोगो का ज्ञान भी बढ़ता और अनावश्यक भ्रम नहीं फैलता। पर सरकार ने यह रास्ता भी नहीं अपनाया। क्या सरकार यह चाहती है कि वह सबको भ्रमित किये रहे ?
370 पर जम्मू कश्मीर के बड़े नेताओं नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारुख अब्दुल्ला और पीडीपी की महबूबा मुफ्ती के बयान आये हैं। दोनों ही नेताओ ने एक महत्वपूर्ण बात कही है कि अगर 370 हटता है तो जेके का भारत मे विलय समाप्त हो जाएगा और वह एक आज़ाद रियासत बन जायेगा। यह बात कहां तक सही है यह तो संविधान के जानकार ही बता पाएंगे। पर जिनका यह वादा है कि वे यह धाराएं हटाएंगे उन्हें तुरंत इस बयान पर कानूनी पक्ष स्पष्ट करना चाहिये कि जेके के उपरोक्त नेता सही बात नहीं कह रहे है हैं। धारा 370 के जोड़ने के बारे में सोशल मीडिया पर बहुत कुछ लिखा पढा जा रहा है पर उसमे कितना कानून सम्मत है कितना नहीं यह पता लगाना मुश्किल है। पर एक बात साफ है इस धारा के हटाये जाने को लेकर किसी भी संविधान विशेषज्ञ ने सहमति की राय नहीं दी है। जब यह धारा बनी थी तभी इसके धीरे धीरे खत्म हो जाने की भविष्यवाणी की गयी थी, और वह सही भी हुयी। आज भारत का संविधान जेके के संविधान से ऊपर है, जो भी संशोधन संविधान में होते हैं वे ही जम्मू कश्मीर के संविधान में भी लागू हो जाते हैं, सुप्रीम कोर्ट का क्षेत्राधिकार पूरे जेके पर है, आल इंडिया सेवाएं और सेंट्रल सेवाओं के अधिकार क्षेत्र में है, राज्यपाल, हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है, यानी वह सब अधिकार जो केंद्र का राज्य पर होना चाहिये वह जम्मू कश्मीर में भी लागू है।
एक बात अक्सर कही जाती है कि बाहर के लोग यहां ज़मीन नहीं खरीद सकते हैं। यह बंदिश तो देश के कई भूमागो में हैं। हिमाचल, उत्तराखंड के कुछ भागों, नार्थ ईस्ट के कुछ हिस्सों में भी यह बंदिश है। मेघालय में तो वहां की लड़की से शादी करने पर संपति उस लड़की की ही होगी। जम्मू कश्मीर को ही विशेष राज्य का दर्जा नही है बल्कि संविधान में और भी धाराएं हैं जो अलग अलग राज्यों को विशेष दर्जा देती हैं।
जब भारत आज़ाद हुआ और संविधान लागू क्या गिया तो ऐसा पाया गया के कुछ क्षेत्र जो के विभिन्न वजहों से भारत के अन्य इलाक़ों के मुक़ाबले पीछे रह गये है| उन क्षेत्रों में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता हैं उस के लिए संविधान में संशोधन कर एक नई धारा 371 लागू की गयी। जो के महाराष्ट्र के कुछ इलाक़े (विधर्भ, मराठवाडा, और बचे हुआ महाराष्ट्र) तथा गुजरात के कुछ इलाक़े (सौराष्ट्र, कच्छ और बचा हुआ गुजरात) शामिल है इस के तहत उन क्षेत्रों में विशेष ध्यान देने के लिए लागू की गयी। इसी क्रम में धारा 371A लागू की गयी जो नागालेंड राज्य के रहने वाले नागाओं के पारंपरिक मूल्यों की रक्षा के लिए था | इसी प्रकार धारा 371B, 371C, 371D के तहत क्रमश: असम, मणिपुर, आंध्राप्रदेश को विशेष प्रावधान दिए गये हैं | धारा 371E के तहत आंध्राप्रदेश में केंद्रीय विश्वविधयालय खोलने का प्रावधान है| धारा 371F, 371G, 371H, 371I के तहत क्रमश: सिक्किम, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश, गोआ को विशेष अधिकार प्राप्त हैं| धारा 371J के तहत कर्नाटक राज्य के हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के सशक्तिकरण के लिए विशेष अधिकार दिए गये| यह बंदिशें, स्थानीयता को बनाये रखने के लिये है। एक्सपर्ट पैनल इसका भी परीक्षण कर सकता है।
धारा 35A एक राष्ट्रपति की अधिसूचना है जो धारा 370 के अंतर्गत एक प्रशासनिक आदेश के तहत ,जारी की गयी है। यह नागरिकता के संबंध में है। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर है। धारा 35A कहती है,
" दूसरे राज्यों का कोई भी नागरिक जम्मू-कश्मीर में ना ही संपत्ति खरीद सकता है और ना ही वहां का स्थायी नागरिक बनकर रह सकता है. साथ ही अगर जम्मू-कश्मीर की कोई लड़की बाहर शादी करती है तो उसे भी संपत्ति से हाथ धोना पड़ता है। "
SC में दायर याचिका में इस विशेषाधिकार को खत्म करने की मांग की गई है। अभी यह मुक़दमा चल रहा है। अब सरकार को सुप्रीम कोर्ट में अपनी बात कहनी चाहिये कि यह धारा कैसे संविधान सम्मत नहीं है और इसे क्यों हटाया जाना चाहिये।
सरकार और भाजपा खुद भी धारा 370 और 35A को लेकर स्पष्ट मत की नहीं है। वे खुद भ्रमित हैं। बस वह यह जानते है कि उसे वोट देने वाले तबके को 370 को खत्म करने का वादा पसंद है तो वह उन्हें अपने संकल्पपत्र मे डाल देते है और फिर भाजपा को यह भी पता है कि सत्ता में आते ही इसे भूल जाना चाहिये तो वह भूल भी जाती है। यही भाजपा जब जेके में पीडीपी के साथ महबूबा मुफ्ती सरकार में मंत्रिमंडल में शामिल होती है तो न केवल इन वादों को भूल जाती है बल्कि पीडीपी के साथ जो संयुक्त पत्र जारी करती है उसमें वह 370 के न हटाने के पक्ष में रहती है। यही नहीं राष्ट्रवाद और आतंकवाद के विरोध पर खुद को देशभक्त दिखाने का दावा करने वाली पार्टी 10,000 पत्थरबाज़ों पर से मुक़दमे वापस ले लेती है। जब ये वादे बार बार संकल्पपत्र के हिस्सा बनेंगे और सत्ता में आने पर चुप हो बैठ जाएंगे तो यह सवाल उठेंगे ही ।
© विजय शंकर सिंह
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