Thursday, 11 October 2018

The Quint द क्विंट वेबसाइट के राघव बहल के यहां आयकर का छापा - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह

" अब कानून तो अपना काम करेगा ही। भला कानून कैसे नज़रअंदाज़ कर दे इन सब गड़बड़ियों को । "
बात तो आप दुरुस्त फरमा रहे हैं। पर जब सरकार के इन्ही दुरुस्ती की पड़ताल की जाती है और खोजी पत्रकार ढूंढ ढूंढ कर कुछ सार्थक पर सत्ता को असहज करने वाली खबरे लाने लगते  हैं तो, अक्सर कुंभकर्णी नींद में सोया हुआ कानून जाग जाता है। यह कानून की नियति है या कैफियत या विडंबना यह सब हम सब अपने अपने दृष्टिकोण से देखते सुनते और परखते रहते हैं। अकबर इलाहाबादी ने ऐसे ही थोड़े कहा था कि, जब तोप मुकाबिल तो अखबार निकालो। उन्हें पता था कि अखबार मज़बूत से मज़बूत, ठस, अहंकारी तथा खुदगर्ज सत्ता को भी धूल चटा सकते हैं। क्विंट जो छपता ही नहीं है बस हवा की तरंगों में रहता है  भी अचानक सरकार की सारी हवा गुम कर गया !

The Quint क्विंट एक खबरी वेबसाइट है। यह खबरें देती हैं। लेकिन यह सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ खबरें अधिक ढूंढती है, लिखती है और छापती है। सरकार को भला अपनी निंदा कैसे सुहाए ? वह सरकार ही क्या जो निंदक नियरे रखे ! सरकार तो पगड़ी छत्र चंवर के साथ भारत भाग्य विधाता है। अब उसका गुण फटा सुथन्ना पहने चाहे हरचरना गाये ( रघुवीर सहाय जी से क्षमा याचना सहित ) या 180 करोड़ रुपया रोज़ कमाने वाला मुकेश अंबानी। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है।  न्यूनतम मजदूरी सरकार ने क्या तय कर रखी है सरकार ने, मित्रों ? ज़रा उससे अनुमात लगाइएगा तो पता चलेगा कि विश्वगुरु कितना फटेहाल है। बस मिथ्या श्रेष्ठवाद का एक मुलम्मा है। और वह भी झीना सा। जगह जगह से मसका हुआ।

बहरहाल क्विंट के सरकार विरोधी रुख पर कानून अचानक जाग गया और सुबह की मीठी नींद छोड़ कर सीधे राघव बहल के घर नोयडा पहुंच गया। जिस कानून की नींद अमित शाह के बेटे की संपत्ति के एक लाख साठ गुना बढ़ जाने पर भी नहीं टूटी वही नींद क्विंट के लेखों से टूट गयी। सुबह सुबह बिना खरमेटाव किये आयकर के अधिकारी राघव बहल के घर कालाधन का पता लगाने पहुंच गए। हमारी सरकार को काले धन से बहुत नफरत है। वे नहीं चाहते कि काला धन कोई और रखे। सरकार के कुछ मालिक, चेले चापड़ और लगुये भगुए भले थोड़ा बहुत रखं लें पर और कोई और रखे तो तो मुश्किल होगी। बिल्कुल तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी जैसे प्रसिद्ध फिल्मी गीत की तरह। अब सभी लोग सरकार और सरकारी पार्टी को ही चाहने लगें यह तो नहीं हो सकता है न मित्र। सबके दिल, सबके दिमाग और सबके अंदाज़ भी तो अलग अलग होते हैं। और पसंदगी और नापसंदगी भी। कोई सरकार के साथ साथ है तो कोई सरकार के आमने सामने। यही तो खूबी है लोकतंत्र की।

राघव बहल के यहां छापे में क्या मिला क्या नहीं मिला यह तो अभी पता नहीं पर एक दो दिन में खबर इसकी भी मिल ही जाएगी। पर जब छापा पड़ा तो राघव बहल मुंबई में थे। उन्होंने अपने घर पड़े छापे के बारे में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया #ईजीआई #EGI को एक संदेश भेजा जो इस प्रकार है।

" I have a matter of great concern to share with the guild while I was in Mumbai this morning dozens of IT officials descended on the my residence and The Quinn's office for a ' survey '. We are a fully tax compliant entity , and will provide all access to all appropriate financial documents  However, I have just spoken to the officer on my premises , one Mr  Yadav , and requested him , strongly , to not try and pick up or see any other mail/ document which is likely to contain very serious/sensitive journalistic material. If they do that then we shall see extremely strong recourse. I do hope the EG will back us on this and thereby set a precedent for any such exercise that may happen on any other journalistic entity in the future. They should also not misuse there smartphones to take unauthorised copies of this material. I am now on my way back to Delhi.
Warm regards.

( हिंदी अनुवाद )
मेरे पास आप (एडिटर्स  गिल्ड ऑफ इंडिया ) से साझा करने के लिये एक बड़ी चिंताजनक खबर है। जब मैं मुम्बई आया हुआ था तो आज सुबह ही कई दर्जन आयकर विभाग के अधिकारी मेरे आवास और द क्विंट के कार्यालय में सर्वे के लिये अचानक पहुंच गए। हम पूरी तरह से सभी करों का भुगतान करते हैं और कर कानून को मानने वाले प्रतिष्ठान हैं और आवश्यकता पड़ने पर हम सभी उचित वित्तीय अभिलेख प्रस्तुत करेंगे। हालांकि मैंने अभी अपने परिसर में उपस्थित एक अधिकारी यादव से बात की है, और उनसे दृढ़ता से अनुरोध किया है कि वे कोई भी मेल या दस्तावेज न तो उठाएं और न ही देखें, क्यों कि हो सकता है उनमें कुछ पत्रिकारिता से जुड़ी गम्भीर और संवेदनशील सामग्री हो। यदि वे ऐसा करेंगे तो हम इस पर गम्भीर प्रतिक्रिया करेंगे। मुझे आशा है कि एडिटर्स गिल्ड इस प्रकरण पर हमारे साथ खड़ा रहेगा और वह यह भी देखेगा की भविष्य में किसी भी पत्रकारिता संस्थानों के विरुद्ध ऐसी कार्यवाही न हो। उन्हें अपने स्मार्टफोन का दुरुपयोग दस्तावेज़ों की फ़ोटो लेने की कार्यवाही से भी बचना चाहिए। मैं अब दिल्ली के लिये वापस आ लौट रहा हूँ। )

आयकर छापे और सर्वे गोपनीय होते हैं। पर जब वे सेलेक्टिव तौर पर डाले जाने लगते हैं तो उनपर सन्देह उठना स्वाभाविक है। मैं यह नहीं जानता कि एक करदाता के रूप में राघव बहल की क्या क्षवि है और उनपर क्या देनदारी है। केवल एक मीडिया हाउस होने के नाते जो सत्ता प्रतिष्ठान के विपरीत राय रखता हो,  पर छापा न पड़े यह भी अनुचित ही होगा। ऐसी इम्म्युनिटी किसी को भी नहीं दी जानी चाहिये।  पर आयकर विभाग अपने छापों में कितना निष्पक्ष रहता है यह तो विभाग खुद ही जानता होगा। पर एक बात तय है कि क्विंट एक सत्ता प्रतिष्ठान विरोधी वेबसाइट है। राफेल, नोटबंदी, अर्थ जगत आदि अनेक विषयों पर क्विंट की पैनी नज़र रही है। सरकार को गलत कदम पर इसने कई बार पकड़ा है और टोका भी है। सरकार और सरकार के समर्थकोँ को क्विंट के लेख और सामग्री असहज करती है। अगर यह छापा असहज होने के कारण एक खीज का परिणाम है तो यह न केवल निंदनीय है बल्कि एक आयकर विभाग जो एक कानून लागू करने वाली एजेंसी है का और कानून का दुरुपयोग है।

© विजय शंकर सिंह

No comments:

Post a Comment