Tuesday, 16 October 2018

एमजे अकबर के खिलाफ सोलहवां मीटू बयान - तुषितापटेल का / विजय शंकर सिंह

पीड़ित को शर्मिंदा करने वाले प्रयास और अहम मूर्खतापूर्ण बयानों में तुम्हारे पश्चाताप विहीन, तुम्हारे झूठ, तुम्हारे हास्यास्पद तर्कों, तुम्हारी संवेदनहीनता के बारे में पढ़ रही हूं लेकिन चकित नहीं हूं। अगर मैं अब नहीं बोलती हूं तो ऐसा महसूस करूंगी कि मैं तुम्हारे अपराध में साझीदार हूं।

ये 1992 का कोलकाता था। मैं टेलीग्राफ में एक ट्रेनी थी। तुमने राजनीति के लिए पत्रकारिता छोड़ दी थी और तुम एक दौरे पर कोलकाता आए थे। मेरे सहकर्मियों का एक समूह तुमसे मिलने होटल जा रहा था। मुझसे पूछा गया कि क्या मैं अकबर से मिलना चाहूंगी। कौन नहीं चाहेगा? निश्चित। मैं भी साथ गयी। मैं तुमसे मिली। ये बिल्कुल मजेदार शाम थी। उस दिन के बाद तुमने मेरा नंबर हासिल कर लिया (किसी दूसरे से) और फिर लगातार मुझे फोन करना शुरू कर दिया। जिसमें तुम मुझे अपने होटल में मिलने के लिए कहते थे।

ये सब कुछ हमेशा काम से जुड़ी बातचीत करने की आड़ में करते थे। तुम्हारे ढेर सारे प्रस्तावों को नकारने के बावजूद आखिर में तुम मुझे झुकाने में कामयाब हो गए। खुद को पुराने फैशन वाली न बनने की बात को समझाते हुए मैं तुम्हारे होटल पहुंच गयी और दरवाजे को खटखटाया।

तुमने अंडरवीयर में ही दरवाजा खोला। मैं बिल्कुल चकित, डरी और सहमी दरवाजे पर खड़ी रही। तुम मेरे डर को अचरज भरी नजरों से देखते हुए एक वीआईपी की तरह वहां खड़े थे। मैं अंदर गयी और डर से निकलने के लिए तब तक बड़बड़ाती रही जब तक कि तुमने बाथरूम का गाउन नहीं डाल लिया।

उसके बारे में तुम क्या कहोगे, वो क्या था? क्या 22 साल की एक लड़की का स्वागत बिल्कुल नंगे होकर करना तुम्हारी नैतिकता की परीक्षा थी? क्या वो “कुछ करना” नहीं था? मेरे पास तुमको लेकर कुछ उसी तरह की सोच है। उस घटना के बाद एक विदेश मंत्री भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा है इस रूप में तुमको देख पाना बहुत कठिन है।

मुझको जब छुटकारा मिला

1993, हैदराबाद। तुम “डेकन क्रोनिकल” के एडिटर-इन-चीफ थे और मैं एक सीनियर सब एडिटर। तुम शहर में आए और मेरे पेजों के बारे में बातचीत करने की बात कह कर तुमने मुझे होटल में बुलाया। मुझे देर हो गयी थी (मुझे अपना पेज पूरा करना था।)। जब मैं तुम्हारे कमरे पर पहुंची तुम बहुत उदास थे, बैठकर बिल्कुल उखड़े मूड में चाय पी रहे थे। देर से आने के लिए और मेरे काम को लेकर तुमने मुझे डांटना शुरू कर दिया।

मैं बोलने की कोशिश में कुछ बड़बड़ा रही थी। एकाएक तुम उठ खड़े हुए, तुमने मुझे भींच लिया और तेजी से किस कर लिया- तुम्हारी चाय पीते वक्त ली जाने वाली सांस और चमकदार मूंछें आज भी मेरी पुरानी यादों के एक कोने में जिंदा हैं। मैं निकल कर बाहर भागी और तब तक दौड़ती रही जब तक रोड पर नहीं पहुंच गयी। उसके बाद एक आटो में कूद पड़ी और फिर जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया। एक अजनबी के आटो में खुलकर रोने के बाद कुछ रिलैक्स हुई।

अगली सुबह मैं दफ्तर आयी और खुद को एक कोने में छुपाकर पेज को फाइनल करने का प्रयास करने लगी। तुम्हारे साथ काम करने के दौरान एक जो दूसरी खास बात थी वो ये कि हम लोगों के पास कभी संसाधन नहीं हुआ करते थे। कर्मचारियों की संख्या हमेशा जरूरत से कम होती थी। तुम हमेशा हम लोगों को अखबार की भलाई के लिए अपनी साप्ताहिक छुट्टियों की बलि देने के लिए कहते थे और हम किसी भी दूसरी चीज के मुकाबले अपने काम से प्यार करते थे और इस तरह से महसूस करते थे जैसे ये सब कुछ सामान्य हो। जब तुमने मुझको नहीं पाया तो पूरे बदहवासी में एक खोजी दल को मुझे ढूंढने के लिए भेज दिया।

तब तक किसी ने मुझे देख लिया। अकबर साब तुमको याद कर रहे हैं। डर के साथ पूरे भारी मन से मैंने तब तक इंताजर किया जब तक तुम्हारी फ्लाइट का समय न हो जाए। फिर तुमसे दफ्तर में रिसेप्शन के पास एक बिल्कुल सार्वजनिक जगह पर मिली। तुमने मुझसे बिल्कुल गरमागरम अंदाज में पूछा कि “तुम कहां गायब हो गयी थी? मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा था- हमें तुम्हारे पेज को लेकर बातचीत करनी थी।” और उसके साथ  ही तुमने मुझे एक खाली कांफ्रेंस रूम की तरफ खींच लिया। फिर पक़ड़ कर किस कर लिया।

अंदर से पस्त, अपमानित महसूस करते हुए आंख में भरे आंसुओं ने मुझे लगभग अंधा कर दिया था। मैं तब तक रूम में बैठी रही जब तक कि रोना नहीं बंद कर दिया। मैं तुम्हारे बिल्डिंग छोड़ने का इंतजार किया। फिर बाथरूम में गयी और अपने चेहरे को धोया और फिर पेज को पूरा करने में जुट गयी।

“अब हम लोगों के बोलने का समय है”

इसलिए कृपया झूठ बोलना बंद कीजिए। “एशियन एज” वाले अपने केबिन में प्लाईवुड और ग्लास के बारे में झूठ बोलना बंद करिए। गजाला वहाब अकेली महिला नहीं थीं जिसका उस केबिन में आपने यौन उत्पीड़न किया था। दूसरी पीड़ित भी हैं जिन्हें तुमने बिल्कुल तोड़ दिया है और अपनी हवस और सत्ता की हनक में बिल्कुल बरबाद कर दिया। वो भी नाराज हैं और वो भी बाहर आएंगी।

और अब कानूनी धमकी बहुत हो गयी- हम लोग भी तुमको अदालत में देख सकते हैं। उसी तरह का बहनापा जो हमारे काले दिनों के दौरान था फिर से सिर्फ इसलिए जिंदा हो जाएगा क्योंकि तुम लगातार बेशर्मी दिखा रहे हो। हम भ्रम में नहीं हैं, न किसी झगड़े-झंझट में हैं और न ही बहुत ज्यादा कमजोर। अब हमारे बोलने का समय आ गया है- किसी के द्वारा सुनवाई से पहले हमें भागकर पुलिस स्टेशन शिकायत दर्ज कराने के लिए नहीं जाना है।

तुम जानते हो हम लोग कौन हैं। जब बैरिकेडों पर देखोगे तो तुम हमें पहचान लोगे।

कुछ पश्चाताप दिखाओ। तुम्हे मदद की जरूरत है।

(तुषिता पटेल “एशियन एज” लांच करने वाली टीम की सदस्य थीं। उन्होंने 2000 में इस्तीफा दिया था। ये लेख मूलत: अंग्रेजी में स्क्रोल पोर्टल पर प्रकाशित हुआ था।)
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अंंग्रेज़ी भाग
16 th MeTooStory

It was 1992, Calcutta. I was a trainee in the Telegraph. You had left journalism for politics and had come to visit Calcutta. A group of my colleagues was going to meet you at your hotel. I was asked if I’d like to meet MJ Akbar. Who didn’t? Sure. I went along. I met you. It was a fun evening. After that day, you found out my home phone number (from someone else) and started calling me incessantly, asking me to come and meet you at your hotel, always under a thin veil of some work-related discussion. After trying to deflect several of your advances, you finally wore me down. Telling myself to not be old-fashioned, I rang your doorbell.

You opened the door dressed only in your underwear. I stood at the door, stricken, scared and awkward. You stood there like the VIP man, amused by my fear. I did go in and carried on blabbering out of fear till you finally put on a bathrobe. What would you say that was? Does greeting a 22-year-old in a state of undress pass your test of morality? Is that not “doing” something? I have visions of you like that. After that it’s a bit hard to imagine you as the minister of external affairs representing India.

‘I wriggled out’

1993, Hyderabad. You were the editor-in-chief of the Deccan Chronicle, I was a senior sub-editor. You came in to town and summoned me to your hotel to discuss my pages. I was late (I had to finish my pages). When I reached your room, you were sullen, sitting there drinking tea and in a vile mood. You started yelling at me about being late, about my work. I was trying to mumble some words. Suddenly you got up, grabbed me and kissed me hard – your stale tea breath and your bristly moustache are still etched in the recesses of my memory. I wriggled out and ran till I reached the road, jumped into an auto rickshaw and started crying. There was comfort in crying in an open auto being driven by a sympathetic stranger.

The next morning I came to the office and tried to hide in a corner and finish my page. The other thing about working for you is that we never had any resources. We were always short-staffed, you always got us to sacrifice our off days for the greater cause of the paper and we loved our jobs above all else and felt it was normal to do this. When you couldn’t find me, you desperately sent out a search party. At some point, someone found me. Akbar saab is looking for you. Heavy with dread, I waited till it was almost time for your flight and met you at the most public of areas in the office – near the reception. You said chirpily, “Where did you disappear? I’ve been looking for you – we have to discuss your page.” And with that you ushered me into the empty conference room, grabbed me again and kissed me.

‘Our time to speak up is now’

So please stop with the lying. Stop lying about your plywood and glass cabin in the Asian Age. Ghazala Wahab is not the only woman to have been molested in that cabin. There are other victims who you almost broke and destroyed with your lust and power trip. They are enraged too, and they will come out.

And enough with the legal intimidation – we can see you in court too. The same sisterhood of solidarity that held our hands through the darkest times of our lives will come out only because you continue to be brazen. We are not confused, conflicted or vulnerable any more. Our time to speak is now – when we don’t have to run to a police station to lodge a complaint before anyone would give us a hearing.

You know who we are. You’ll recognise us when you see us at the barricades.

#metoo

Tushita Patel was a part of the team that started the Asian Age. She resigned in 2000.
#scroll

https://scroll.in/article/898460/mj-akbar-stop-with-the-lying-you-sexually-harassed-me-too-your-threats-will-not-silence-us

( विजय शंकर सिंह )

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