राफेल विवाद पर अब प्रसिद्ध रक्षा विशेषज्ञ मारूफ रज़ा का बयान आया है और कल वायुसेनाध्यक्ष ने भी अपनी बात रखी थी। मारूफ रज़ा साहब का वीडियो बयान सोशल मीडिया पर है, उसके अनुसार,
* राफेल विमान खरीद का सौदा सरकार और सरकार यानी भारत सरकार और फ्रेंच सरकार के बीच का सौदा था। इसमे कोई मिडिलमैन यानी बिचौलिया नहीं था।
* पहले 126 विमानों के लिये समझौता था, लेकिन बातचीत चली पर यूपीए सरकार के समय मे यह सौदा तय नहीं हो पाया।
* फिर एनडीए सरकार ने 36 विमानों के बारे में समझौता किया।
* कीमतों पर उन्होंने कहा कि यूपीए के समय मे एक विमान की कीमत के बारे में उन्होंने कहा है कि यूपीए के समय इसकी कीमत 737 करोड़ और एनडीए के समय 670 करोड़ थी। पर सैन्य उपकरणों के बाद यह विमान यूपीए के समय मे 2000 करोड़ और एनडीए के समय मे 1600 करोड़ का पड़ा।
इस गणित से एनडीए ने यह विमान सौदा सस्ते में किया।
* लेकिन जब मारूफ रज़ा इसकी कीमत सार्वजनिक कर सकते हैं तो यही बात सरकार भी संसद में कह सकती है, फिर वह सीक्रेसी क्लाज़ का हवाला क्यों देती है ? अब तो कीमत सोशल मीडिया पर आ ही गयी है ।
* राफेल विमान की संख्या 126 से 36 पर कर दी गयी है, इस पर मारूफ रज़ा साहब को कुछ बोलना भी नहीं था और उन्होंने बोला भी नहीं। यह निर्णय सीसीएस कैबिनेट कमेटी ऑफ सिक्युरिटी का है। इसी ने पहले 126 की ज़रूरत के अनुसार मांग की थी। अब यह मांग कब और क्यों कम कर दी गयी यह बात भी सरकार को ही बतानी है।
* अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस को इसका ठेका देने के बारे में भी मारूफ रज़ा साहब ने कुछ नहीं कहा है और उन्हें इस पर कहना भी नहीं था, और उन्हें एक रक्षा एक्सपर्ट के रूप में कहना भी नहीं चाहिये।
वायुसेनाध्यक्ष का भी कल एक बयान आया है कि एचएएल के साथ तकनीकी हस्तांतरण का समझौता था। पर वह लगभग तय था। फिर वे राफेल की गुणवत्ता पर बोले और इसे एक बेहतरीन और शानदार जहाज बताया।
वायुसेनाध्यक्ष के बयान कि राफेल एक बेहतरीन और शानदार जहाज है पर तो कोई विवाद ही नहीं है। राफेल सबसे अच्छा और कीमतों में भी उत्तम था तभी तो एल1 श्रेणी में इसकी निविदा स्वीकार की गयी। इसमे तकनीकी हस्तांतरण की भी बात थी। यह हस्तांतरण एचएएल हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को होना था। 25 मार्च 2015 तक दसॉल्ट और एचएएल के बीच सारा करार लगभग तय हो गया था। केवल हस्ताक्षर की औपचारिकता शेष थी। 8 अप्रैल 2015 को विदेश सचिव जयशंकर का बयान भी है कि एचएएल के साथ बात चल रही है। फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीं का पेरिस दौरा होता है। उसी दौरान एचएएल जिसके पास विमान निर्माण का 60 साल से अधिक सालों का अनुभव है, सौदे से बाहर होती है और अनिल अंबानी की कंपनी जो उसी साल कुछ ही हफ्ते पहले मुम्बई में रजिस्टर्ड हुयी थी और जिसके पास विमान बनाने का कोई भी अनुभव था, यह सौदा पा जाती है। हालांकि वायुसेनाध्यक्ष ने एचएएल की लेट लतीफी पर भी टिप्पणी की है। हो सकता है उनकी बात सही हो। पर वायुसेना की ओर से किये गए ट्वीट में एचएएल की उपलब्धि और टर्नओवर की सराहना भी की गयी है। ट्वीट नीचे दे रहा हूँ।
पेरिस में ऐसा हुआ क्यों ? इसका राज मिडियापार्ट ने फ्रांक्वा ओलांद के बयान कि बस एक ही नाम अनिल अंबानी का भारत सरकार ने सुझाया था अतः जब कोई विकल्प नहीं था तो उसे ही स्वीकार करना पड़ा।
अब ओलांद की बात सच है या अपनी मित्र जूली के फ़िल्म निर्माण में अनिल अंबानी द्वारा फाइनेंस किये जाने के आरोप को भारत सरकार की तरफ मोड़ने की उनकी चाल है का उत्तर या प्रतिवाद हमारे प्रधानमंत्री ही दे सकते हैं।
मारूफ रज़ा साहब और वायुसेनाध्यक्ष के बयानों के बाद भी इस सौदे पर उठ रहे मुख्य सवाल अभी भी अनुत्तरित हैं। ये सवाल हैं,
* एचएएल को क्यों हटाया गया और अनिल अंबानी को क्यों लाया गया ?
* 126 से 36 विमान क्यों कम किये गए ?
* तकनीकी हस्तांतरण जो पहले से ही बातचीत में शामिल था वह अभी है या उसे हटा दिया गया है ?
* अगर है तो क्या वह तकनीकी हस्तांतरण अनिल अंबानी की कंपनी को होगा ?
* क्या अनिल अंबानी की कंपनी तकनीकी रूप से इतनी अनुभवी और दक्ष है कि वह इस तकनीकी हस्तांतरण को ग्रहण कर सकेगी ?
* एक लड़ाकू विमान की तकनीकी हस्तांतरण एक निजी कंपनी को देने से क्या उसके लीक हो जाने या दुरुपयोग होने की संभावना नहीं रहेगी ?
अब यह सरकार की जिम्मेदारी है कि संसद और जनता को इन सारे सवालों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करे। मारूफ रज़ा साहब और वायुCongratulationsसेनाध्यक्ष इन जटिल और उनसे असम्बद्ध सवालों का न तो उत्तर दे पाएंगे न उन्हें देना चाहिए, और उन्होंने इस पर कुछ कहा भी नहीं है। हो सकता है ये सारे सवाल उनके मन मे भी उठ रहे हों। एचएएल के बारे में वायुसेना का यह ट्वीट भी देखें।
" , Indian Air Force congratulates Hindu Hindustan Aironautics Limited ( HAL ) on a record turnover of over Rs 18000 crores ( provisional and unaudited for the year ending March 31, 2018."
© विजय शंकर सिंह
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