Wednesday 10 October 2018

सरकार का प्रचार पर व्यय और बढ़ता गोएबेलिज़्म - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह

यह एक पुरानी कथा है। एक बड़ा सा शंख जो भी चाहो वही देने का वादा करता है। पर अंत तक देता कुछ भी नहीं है। इसी कथा पर संस्कृत की एक उक्ति बनी, बदामि च ददामि न। बोलता तो बहुत है पर देता कुछ भी नहीं है। सरकार के वादे भी बहुत कुछ इसी प्रकार के हैं।

2014 में अवतार सरीखे त्राता स्वरूप अवतरित होने वाले नरेंद मोदी जी की एनडी एसरकार ने साढ़े चार सालों में अपने प्रचार और विज्ञापन पर 5000 करोड़ रुपये  ख़र्च किए । यह जानकारी  द वायर को सूचना का अधिकार RTI आवेदन के जरिए लोक संपर्क और संचार ब्यूरो  (बीओसी) से मिली है।

#मोदीसरकार में विज्ञापन पर ख़र्च की गई राशि #यूपीएसरकार के मुकाबले दुगुनी से भी अधिक है. यूपीए ने अपने दस साल के कार्यकाल में विज्ञापन पर औसतन 504 करोड़ रुपये सालाना ख़र्च किया था, वहीं मोदी सरकार में हर साल औसतन 1202 करोड़ की राशि ख़र्च की गई है ।

सरकार जब एक कॉरपोरेट घराने की तरह एक कॉरपोरेट एजेंडे के अंतर्गत एक कॉरपोरेट टाइप राजनीतिक दल के दफ्तर से कॉरपोरेट की तरह ही प्रचार करने के लिये नियुक्त अल्पवेतन भोगी युवाओं द्वारा, खट्टा मीठा झूठा सच्चा फ्री स्टाइल प्रचार तँत्र खड़े करेगी तो बस प्रचार ही होगा और हवा ही बनेगी। पर हवा तो किसी की भी नहीं होती है। गोएबेल की भी नहीं हुयी। सरकार चलाना सीखि एसरकार ! यह तो शासन न करने की कला है।

© विजय शंकर सिंह

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