जुलाई,7, 2016 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सरकार की फ्लैगशिप योजना 'नमामि गंगे' को मंजूरी दे दी। इस योजना के तहत गंगा नदी को समग्र तौर पर संरक्षित और स्वच्छ करने के कदम उठाए जाएंगे। इस पर अगले पांच साल में 20 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाने थे। गंगा को स्वच्छ करने के लिए पिछले 30 साल में सरकार की ओर से खर्च की गई राशि से यह रकम चार गुना है। उल्लेखनीय है कि भारत सरकार 1985 से चल रहे इस काम के लिए कुल चार हजार करोड़ खर्च कर चुकी है।
इस महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत वाराणसी और हरिद्वार से एक साथ 231 परियोजनाओं के साथ हुई। गंगा की कुल लम्बाई 2525 किलोमीटर, गंगा का बेसिन 1. 6 मिलियन वर्ग किलोमीटर का है। गंगा का कुल जल स्रोत देश के जल स्रोत का 25. 2 प्रतिशत भाग है। इसके बेसिन में 45 करोड़ की आबादी बसती है। 2014 में न्यूयॉर्क में मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था, “अगर हम इसे साफ करने में सक्षम हो गए तो यह देश की 40 फीसदी आबादी के लिए एक बड़ी मदद साबित होगी। अतः गंगा की सफाई एक आर्थिक एजेंडा भी है”। इस सोच को कार्यान्वित करने के लिए सरकार ने गंगा नदी के प्रदूषण को समाप्त करने और नदी को पुनर्जीवित करने के लिए ‘नमामि गंगे’ नामक एक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन का शुभारंभ किया। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नदी की सफाई के लिए बजट को चार गुना करते हुए पर 2019-2020 तक नदी की सफाई पर 20,000 करोड़ रुपए खर्च करने की केंद्र की प्रस्तावित कार्य योजना को मंजूरी दे दी और इसे 100% केंद्रीय हिस्सेदारी के साथ एक केंद्रीय योजना का रूप दिया।
जब नरेंद मोदी वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिये तशरीफ़ ले आये तो कहा था, " मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है। " मां ने बुलाया तो मां ने कृपा भी की। पर मां को क्या मिला। वैसे भी मां को चाहिये भी कुछ नहीं। बस एक स्वच्छ और अविरल प्रवाह जिसका भी लाभ हमीं लेते हैं। कुपुत्रो जायेद क्वचिदपि कुमाता न भवति ! एक मंत्री उमा भारती जो साध्वी हैं, संसार से विरक्त, माया मोह से मुक्त पर सरकार से युक्त, ने कहा कि 2018 तक अगर गंगा साफ नहीं हुयी तो मैं जल समाधि ले लूंगी। अब कुछ पूछने पर कहती हैं गडकरी जी से पूछिए।
गडकरी जी का आलम यह है कि जहां प्रधानमंत्री जी झूठ बोलते हैं वहां ये सच बोल देते हैं। स्वामी सानन्द, प्रो जीडी अग्रवाल ने जब उनसे बात करके गंगा एक्ट लाने का अनुरोध किया तो गडकरी जी ने कह दिया तो तुम अब मर ही जाओ, ( एक मित्र के अनुसार यह कहा गया कि, आप की जो इच्छा हो करें )। यह क्यों नहीं गडकरी जी ने कहा कि आप अनशन तोड़िये हम आप की बात पर विचार करेंगे। इन संत द्वारा कितने पत्र पीएमओ को लिखे गये पर पीएम ने एक का भी जवाब नहीं दिया। जब गडकरी को पता था कि यह संत 112 दिन से अनशन पर है तो यह कहना कि जो मन हो वह करो क्या दर्शाता है ? क्या सारी संवेदनशीलता बस मित्र पूंजीपतियों के लिये ही है ? क्या यह बयान एक जिम्मेदार मंत्री का है ? अगर मन्त्री खुद या कोई उच्च स्तरीय डेलिगेशन भेज देते और एक आश्वासन दे देते कि एक्ट पर हम एक लीगल कमेटी बना कर विचार करेंगे तो संभव है यह अनशन टूट जाता और डॉ जीडी अग्रवाल बच जाते। पर दर्प और अहंकार अक्सर विवेक तथा संवेदना हर लेता है।
बेचारे भूखे प्यासे डॉ अग्रवाल अविरल गंगा का स्वप्न लिए लिए, स्वर्ग सिधार गये। एक विडंबना यह भी कि, उनका शव आज तक अंतिम दर्शन के लिये मयस्सर नहीँ हुआ, उनके मित्रों, शुभचिन्तकों और शिष्यों को। यह मामला भी जेरे अदालत है। कितनी असंवेदनशील और कठकरेज सत्ता होती है। है न ।
अब गंगा की ताजा हालत और नमामि गंगे की यह हक़ीक़त भी पढ़ लें।
द वायर न्यूज़ वेब साइट को सूचना का अधिकार के तहत मिली जानकारी के मुताबिक पहले की तुलना में किसी भी जगह पर गंगा साफ नहीं हुई है, बल्कि साल 2013 के मुकाबले गंगा नदी कई सारी जगहों पर और ज्यादा दूषित हो गई हैं. जबकि 2014 से लेकर जून 2018 तक में गंगा सफाई के लिए 5,523 करोड़ रुपये जारी किए गए, जिसमें से 3,867 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं.
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन आने वाली संस्था केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा आरटीआई के तहत मुहैया कराई गई सूचना के मुताबिक साल 2017 में गंगा नदी में बीओडी (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) की मात्रा बहुत ज़्यादा थी. इतना ही नहीं, नदी के पानी में डीओ (डिज़ॉल्व्ड ऑक्सीजन) की मात्रा ज़्यादातर जगहों पर लगातार घट रही है.
आखिर गंगा के प्रति हमारी इतनी उदासीनता क्यों। गंगा हमारी संस्कृति और सभ्यता में क्या स्थान रखतीं है इसे जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में पढिये,
" मैने सुबह की रोशनी में गंगा को मुस्कराते, उछलते-कूदते देखा है, और देखा है शाम के साये में उदास, काली सी चादर ओढ़े हुए, भेद भरी, जाड़ों में सिमटी-सी आहिस्ते-आहिस्ते बहती सुंदर धारा, और बरसात में दहाड़ती-गरजती हुई, समुद्र की तरह चौड़ा सीना लिए, और सागर को बरबाद करने की शक्ति लिए हुए। यही गंगा मेरे लिए निशानी है भारत की प्राचीनता की, यादगार की, जो बहती आई है वर्तमान तक और बहती चली जा रही है भविष्य के महासागर की ओर। "
© विजय शंकर सिंह
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