Saturday 23 January 2021

शब्दवेध (87) लिपि और लेखन के जनक

लंबे समय तक इस विषय में लगभग  सहमति बनी रही कि वैदिक ऋषि लेखन कला से परिचित नहीं थे।   भारतीय पंडितों की दृष्टि में वे मंत्रद्रष्टा थे, लेखक  तो थे नहीं। वैसे मंत्रद्रष्टा सभी कवि और लेखक होते है, रचना लिखित रूप में उपस्थित नहीं होती। मनोलोक में उत्पन्न होती है और उसके बाद ही लिपिबद्ध होती है। मैक्समूलर ने  वेद का पता चलते ही  इसे मानवता के शैशव का काव्य  घोषित कर दिया था।  शिशु  साक्षर तो हो नहीं सकता।  

ज्ञान के क्षेत्र में सबसे ऊंची चोटी को आप इडियट पॉइंट (मूढ़ता का शिखर) कह सकते हैं  जहां दो पक्षों के ज्ञानी और अभिमानी लोग अपनी महिमा  सिद्ध करने के लिए आपस में हाथ मिलाते हैं, और एक ही कथन से उल्टे अर्थ निकाल लेते हैं।   मैक्समूलर हिंदुओं  को यह समझाना चाहते थे  कि ईसाइयत उसी विश्वासधारा की प्रोढ़ावस्था है जिसका शैशव ऋग्वेद में पाया जाता है। ध्वनि यह कि हिंदुओं को परिपक्वता का परिचय देते हुए अपना धर्म छोड़कर ईसाई बन जाना चाहिए।  अपनी असाधारण चालाकी में वह  स्वयं बचकानी हरकत कर रहे थे, क्योंकि भारतीयों के लिए उसी कथन का अर्थ था कि अब पश्चिम के विद्वान भी इस बात के कायल हैं कि वेद प्राचीनतम हैं और दूसरी सभी सभ्यताएँ उनके समक्ष शिशुवत हैं इसलिए वेद की खोज हो जाने के बाद उन्हें वैदिक धर्म अपना लेना चाहिए। अकेले दयानन्द सरस्वती थे जो मैक्समूलर को वैदिक ज्ञान के मामले में मूर्ख समझते थे।

हमने अपने अध्ययन  (1987; 1995) में वेद और वैदिक समाज के विषय में पूर्व और पश्चिम दोनों के नए पुराने सभी अध्येताओं को भटका हुआ पाया और जिसके विस्तार में जाने का अवकाश नहीं।  पर जिस समस्या पर हम विचार कर रहे हैं उसके संदर्भ में हमने इस बात के निर्णायक प्रमाण  दिए कि वैदिक काल से भी बहुत पीछे -  वाणी को दृश्य अंकनों से व्यक्त करने कीचित्रलेखन तक जाने वाली,  परंपरा थी और  उन चरणों को सांस्कृतिक प्रतीकों के माध्यम से सुरक्षित रखने का प्रयत्न भी किया गया;  कि  वैदिक समाज लेखन से अपरिचित नहीं था, बल्कि  वह टंकलिपि  और हस्तलिपि  दोनों मे दक्ष था।  पहली के लिए धातु के नुकीले यंत्र का प्रयोग किया जाता था जिसे आरा  कहा जाता था  और दूसरे के लिए  पंख के मूल का प्रयोग होता था जिसके कारण उसका एक नाम पक्ष्या भी था। मैंने इसके साथ ही यह भी निवेदन किया था वैदिक कवि अपनी रचनाओं को भी लिपिबद्ध करते थे,  और चित्रलेखन से आरंभ होकर  हड़प्पा काल  के बाद के काल तक लेखन का चलन भारत से कभी समाप्त नहीं हुआ।  हड़प्पा से ले कर ब्राह्मी के चलन तक लेखन के प्रचलन के संकेत प्राचीन कृतियों में मिलते हैं।  
 
ब्राह्मी और सामी लिपिचिन्हों में समानता पाए जाने और सिंधु-सरस्वती लिपि से परिचय के बाद लगातार यह विवाद का विषय बना रहा है कि ब्राह्मी का उद्भव कैसे हुआ।
 
सिंधु-सरस्वती सभ्यता से परिचय से पहले से ही यह बलवती धारणा रही है कि ब्राह्मी लिपि सामी से निकली है।
An origin in Semitic scripts (usually the Aramaic or Phoenician alphabet) is accepted by all script scholars since the publications by Albrecht Weber (1856) and Georg Bühler's On the origin of the Indian Brahma alphabet (1895). Bühler's ideas have been particularly influential, though even by the 1895 date of his opus on the subject, he could identify no fewer than five competing theories of the origin, one positing an indigenous origin and the others deriving it from various Semitic models. 
(विकीपीडिया)। 

कतिपय भारतीय विद्वान (गौरीशंकर हीराचंद ओझा, डी.सी. सरकार, चन्द्रबली पांडे) इसका प्रतिवाद करते रहे पर अहमद हसन दानी (Indian Paleography) ने लगभग निर्णायक रूप में यह प्रतिपादित कर दिया कि  ब्राह्मी लिपि सामी से प्रेरित है।

पर दो समस्यायें दानी को भी उलझन में डाल रही थीं। एक तो यह कि सामी के सभी चिन्ह सिन्धु-सरस्वती लिपि के किसी न किसी चिन्ह से मिलते हैं। दूसरे सामी  वर्णिक  लिपि है,  जबकि सिंधु-सरस्वती लिपि से लेकर भारत की आज तक की सभी लिपियाँ मात्रिक हैं। मात्रिक से वर्णिक लिपि निकल सकती है, इसके विपरीत विकासक्रम को उलटने जैसा है। 

इसी संदर्भ में इथियोपिया में बसे भारतीयों की भूमिका निर्णायक हो जाती है। इनके विषय में हमारी जानकारी बहुत स्पष्ट नहीं रही है। हमें  केवल इस बात का पता था मिस्र की रानी  Hatshepsut (15वीं शताब्दी ई.पू.) ने दो जहाज  इथियोपिया के व्यापारिक अड्डे (पुंत) को भेजे थे और उन पर  जो माल लद कर मिस्र पहुंचा था उसका उद्गम स्थान भारत था - इनमें  हाथीदाँत, चंदन, मोर, बन्दर, मसाले, गंधद्रव्य, गन्ना और इसके साथ ही कुछ कारीगर शामिल थे। इथियोपिया की लिपि के विषय मैं विलियम जोंस ने जो टिप्पणी की थी उसे मूल रूप में देना जरूरी है:
That the written Abyssinian language, which we call Ethiopick, is a dialect of old Chaldean, and a filter of Arabick and Hebrew, we know with certainty, not only from the great multitude of identical words, but (which is a far stronger proof) from the familiar grammatical arrangement of the several idioms: we know at the same time, that it is written, like all the Indian characters, from the left to the right, and that the vowels annexed, as in Devnagari,  to the consonants; with which they form a syllabick system extremely clear and convenient, but disposed in a lefts artificial order than the system of letters now exhibited in the Sanskrit grammar; whence it may justly be inferred, that the order contrived by Panini and his disciples is comparatively modern; and I have no doubt, from a cursory examination of many old inscriptions on pillars and caves, which have obligingly been sent to me from all  parts India, that Nagari and Ethiopic had a similar form.  
( विलियम जोन्स, आठवां व्याख्यान, एशियाटिक रिसर्चेज, खंड 3, पृ. 4 )

इस पर हम अपनी ओर से केवल यह जोड़ना चाहेंगे कि मात्रिक लिपि सिंधु-सरस्वती लिपि, ब्राह्मी और उसके प्रभाव में विकसित भारत , तिब्बत, बर्मा, मलेशिया, जावा, सुमात्रा, कंबोज की लिपियों, ईरान की प्राचीन लिपियों को छोड़कर केवल सूडान (इथियोपिया में पाई जाती है) इसलिए इनको भारतीय लिपि का प्रसार मानने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं। इथियोपियो के फिनीशियनों के ही भूमध्य सागर तटीय बंधुओं ने कीलक लिपि के उस परिवेश में, उस लिपि का विकास किया था, जिसे सामी लिपि कहा जाता है, और जिसके चिन्ह ब्राह्मी से मिलते हैं।

इस संदर्भ में अमेरिकी नृतत्वविदा सुजान रेडालिया के  लेख के एक अंश को पुनः समय और स्थान सीमा के कारण मूल में देने की बाध्यता है:
Linear Elamite was a writing system from ancient Persia, contemporary with Indus script, and resembling it strongly. There was a bilingual monument called the Table of the Lion in the Louvre museum, in Akkadian, a known writing system, and with the same text in Linear Elamite, still undeciphered. 
Because of this bilingual monument, scholars gained knowledge of the sound values for a handful of Linear Elamite signs. Already having compiled a list of Indus script signs from examples of Indus seal photos at the website of Dr. Srinivasan Kalyanaraman, I compared Indus signs to Linear Elamite, and found matches; a broken line (na) and a triple S (shu). Then I compared Brahmi script to my Indus sign list, and was shocked to find more than a dozen similar or identical signs; a, o, ka, ga, da, dha, ja, nya, tha, ta, tha, pa, ba, ma, la, ya, and sa.(Cracking The Indus Script: A Potential Breakthrough: Suzanne Redalia.

हम उनके द्वारा तैयार किए और अपनी ओर से पठित लिपिचिन्हों की तालिका कापी पेस्ट करना चाहते थे पर उसकी अनुमति नहींं है।

अब हम जिस नतीजे पर पहुँचते हैं वह यह कि चीनी और तत्सम  लिपियों के अतिरिक्त विश्व की सभी लिपियाँ वैदिक या सिंधु-सरस्वती लिपि से निकली हैं। यह हम नहीं, प्रमाण अपने अकाट्य स्वर में कहते हैं।

भगवान सिंह
( Bhagwan Singh )


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