Tuesday 12 January 2021

शब्दवेध (66) मद

मद/मध/मधु/महु/मेद/मेध/मेह का अर्थ जल है।
मद का प्रयोग 1. मतवाले हाथी के गंड से बहने वाले द्रव, 2. नशा, 3. अहंकार, 4.आह्लाद,  5. मधुर, 6. तन्द्रा (मद-मत्त-मधुप)   के लिए किया जाता है।  मदिरा, मदिर,  मादक के अर्थ से हम परिचत हैं। ऋ. में कोमल के लिए म्रद का प्रयोग हुआ है।   उन्माद, प्रमाद, प्रमदा मदन, मेदिनी (धरती), मोद, मोदक, मृदु, मेदुर, की भी व्याख्या जरूरी नहीं।  विमद - निरहंकार ऐंद्र विमद वैदिक ऋषियों के नाम है।  अं. मड(mud), मैड(mad), मोड (mode), मूड (mood).

लालसा/लालच
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लाल/लार/लोर  - जल।  लस-रस।
लालसा - लस्ट (lust - pleasure, appetite, longing); लूसिड (lucid - shining,  transparent); लस्टी- लैस (lusty - vigorous);  लश्चर - तु. लसना  (lustre- gloss, brightness), ल्योर - लुभाना (lure - an enticement), लर्च तु. लचक, लोच) lurch - wait, ambush. 2. to roll or pitch suddenly forward or one side;  लर्क- ढूँका (lurk - to wait, to be concealed); लुशस - रसीला (luscious - sweet, delightful); लश - रस (lush - rich and juicy); लस्क - आलसी (lusk - lazy).  लग - तु. लग्गी (lug-to pull, to drag heavily).

स्नेह
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(स्न[1]/ स्र/स्ल/सन/सर/सल - जल/द्रव) -     
(क्षीरेण स्नातः कुयवस्य योषे; सो अस्नातृनपारयत् स्वस्ति ।; ऊर्ध्वेव स्नाती दृशये नो अस्थात् ।   )
स्नु (तं त्वा घृतस्नवीमहे),  स्नो(snow), स्नेक(snake), स्नीक (sneak - to go furtively o,r meanly)  स्नूप (snoop -to go about sneakingly) स्नेल(snail)  (snog- to kiss, embrace, to /love), (snob - cobbler, a person of ordinary or low rank. ही नहीं सन (sun- सूर्य, 2. धूप), सन (son- सुवन), सिन(sin), शाइन(shine), शाई (shy), सेन(sane, सिंक(sink), सिंसियर(sincere), सीनियर (senior), स्नीयर(sneer), स्निप (snip), स्नपर (snipper), स्नीयर(sneer)  स्नार्ल (snarl), स्लो slow, स्लाइड, स्ले (slay), स्लीक (sleak), स्लैक (slack)  स्लिम(slim), सलाइम (slime) स्लाइस(slice) स्लिक  slick) स्लिप (slip),स्लाइडर (slider) सिल्क(silk) आदि बड़े शब्दसमूह को और इनके रोमन, ग्रीक समरूपों को जल से व्युत्पन्न किया जा सकता है।  

 
जुगुप्सा
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गुप/गप किसी रोड़ी पत्थर के पानी में गिरने से उत्पन्न है।  इसके साथ चार भाव जुड़ते हैं - 1, लोप, 2. छिपाना/बचाना, 3. ग्रसना, 4. नाद विशेष जो कथन का ।  पानी का एक अन्य पर्याय है कल/खल/गल/घल। गुप्+गल से अ. गल्प  सं. गल्प/जल्प निकले हैं।  छिपाने से सं. गुप् - रक्षा करना/ शरण देना, (गुपू रक्षणे)।ं इससे रक्षक- गोप, और छिपा हुआ (गुप्त) दोनों निकले हैं। गोपन में दोनों समाहित हैं। गोपाल का अर्थ भले गोरू चराने/ पालने वाला हो पर गोप/गोपी दोनों का प्रयोग पुलिंग में रक्षक है।  ऋ. में अमृत का रक्षक, गोपामृतस्य;  विश  का रक्षक और धरती आकाश (दृश्य ब्रह्मांड)  का जनक,  विशां गोपा जनिता रोदस्योः;  हमारी संपदा सुरक्षित रहे,  ता नो वसू सुगोपा स्यातं;  ऋत का रक्षक, गोपा ऋतस्य  जैसे प्रयोग इसे स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त हैं।  इसे गुप्स मानें तो भी गुप्स, कुप्स, गुत्स जैसे प्रयाेग नहीं मिलते।  गुप् में तिरस्कार का भाव लगता है उसी तरह आया जैसे कुत्स - ज्ञानी मे (कुत/कित/चित - ज्ञान)।  ऋ. में कुत्स, पुरुकुत्स, कुत्स आंगिरस, कुत्सपुत्र का प्रयोग इसी आशय में हुआ है।  बाद में इसका अर्थ बदल कर क्या हुआ इसे कुत्सा और कुत्सित मे आज के प्रयोगों से समझ सकते हैं। कुत्सा का ही इतिहास गुप के साथ भी दुहराया गया। अंतर केवल यह कि गुप् के साथ स जुड़ गया।  जुगुप्सा का विच्छेद गुप्सा-गुप्सा है। जब शब्द आवर्ती होते हैं तो पहला प्रथमाक्षर रह जाती है। इस तरह गुप्सागुप्सा गुगुप्सा बना।  कवर्ग में जब आवृत्ति होती है तो एक और बदलाव होता है। वह अक्षर अपने समस्थानीय चवर्गीय अक्षर में बदल जाती है।  कार-कार .> ककार>चकार - किया।  क्रिया है तो यह भूतकालिक रूप हो गया।  विशेषण होने पर आवृत्ति से विशेषता पराकाष्ठा पर पहुँच जाती है।  गुप्स गर्हित,  जुगुप्स नितांत गर्हित।   

यदि चवर्गीय शब्द की आवृत्ति होती तो पहले अक्षर की ध्वनि नहीं बदलती - जानजान > जजान, चारचार >चचार। इसका यह अर्थ भी है कि मुख्यधारा में प्रवेश करने वाला यह वर्ग बहुत प्रभावशाली था।

ईर्ष्या 
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ईर- जल, इरावती/इरावदी - सुजला;  ईर्म - चिकना, इरण - गमन, प्रवाह, ईरताम -लाओ।  इसका जल से संबंध तो निर्विवाद है पर इसकी निर्मिति में ईर-रिष (मा देवा मघवा रिषत् ) से है या ईर-इष से। रिष का अर्थ सायण ने हिंसा किया है, परंतु संदर्भों रुष्ट या अप्रसन्न अधिक समीचीन लगता है जिस अर्थ में इसका प्रयोग भोजपुरी में आज भी होता है। 

काम/ कामना
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कं/गं- जल। काम का व्यापक अर्थ आकांक्षा ही लगती है जिसका अर्थसंकोच काम भावना (कामातुर) में हो गया। काम्य में मूल आशय सुरक्षित है। कं से ही कमनीय, कम्र - सुंदर E. काम (calm), कॉम- com-,   कॉमिटी (comity),  कोर्ट/ कर्टियस (courteous), कमेमोरेट (commemorate), बिकम - शोभा देना (become), कॉमर्स (commerce), कॉमेली (comely), कॉमेन्स (commence), कंफर्ट (comfort),  कॉमेंड (commend) आदि कं से सूत्रबद्ध हैं। , 

राग/अनुराग/विराग
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रज- जल,> फा. रंज, हिं. रंग,  सं. राग - आसक्ति, प्रेम, बां. नाराजगी,  E.  रेज - विक्षोभकारी प्रेम या आक्रोश (rage- madness; overpowering passion of any kind, as desire or anger) में पाया जा सकता है।

विषाद
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सत/सद - जल,  1.भाव, 2. सत्ता, . विविध उपसर्गों के प्रभाव से -  उत्साद, प्रसाद, अवसाद, निषाद, विषाद ।   
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[1]एक समय में मारिस ब्लूमफील्ड  से आर्यों के शीत प्रधान क्षेत्र से ऊष्म में आने का प्रमाण यह बनाया था कि स्न स्नो के निकला है। उनको न तो स्नेक(snake- सरकने वाला का ध्यान आया न  स्नीक (sneak) स्नेल,(snail)  स्नाउट (snout) का जिससे उनका निष्कर्ष उलट जाता। ये मामूली विद्वान नहीं थे,  इन्होंने वैदिक संस्कृत में  जो काम किए हैं वे आज भी कीर्तिमान हैं :  “The Atharva-Veda” (1899); “Cerberus, the Dog of Hades,” (1905); “A Concordance of the Vedas” (1907); “The Religion of the Veda” (1908); “Rig-Veda Repetitions” (1916) Atharva-Veda  परन्तु जिस पूर्वाग्रह से काम किया उससे उनका पाठ खुली नजर से ही किया जा सकता है। 
*प्रवाह/गति, खाद्य/पेय/, आनंद, प्रकाश, ज्ञान, सम्मान, सुख, दुख, संपत्ति, विपन्नता, ऊपर, नीचे, सभी के द्योतक शब्द जल की ध्वनि या पर्याय से निकले हैं। 

भगवान सिंह
( Bhagwan Singh )


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