Sunday 10 January 2021

शब्दवेध (65) मनोभाव

मन मस्तिष्क से अलग नहीं है, परन्तु हम युगों से इसे हृदय से जोड़ कर देखते आए हैं जिसका काम केवल रक्त संचार का है। यह नकली और गलत विभाजन इसलिए कि हम भावनाओं को विचारों से अलग रख सकें, यद्यपि भावना भी विचार शून्य नहीं होती। अंतर अनुपात का होता है। मस्तिष्क सृष्टि की सबसे विलक्षण रचना है जिसके विकास में मनुष्य - उसकी भाषा, उसके औजार और क्रिया व्यापार और सामाजिक संस्थाओं - का योगदान कम नहीं और सच कहें तो इसी ने उसे  विश्व के कल्पित स्रष्टा के समक्ष - कविः मनीषी परिभू स्वयंभू - कहते हुए खड़ा होने का अधिकारी बनाया। उसने इसे जीव जगत का सबसे दुर्बल प्राणी बनाया था, यह अपने मस्तिष्क का विकास करके अपने को सृष्टि का सबसे शक्तिशाली और खतरनाक और अपने लोभ और अहंकार के कारण सबसे कमीना और मूर्ख प्राणी बना लिया। 

ये लोभ और अहंकार भी उसी मस्तिष्क में पैदा होते हैं जिसमें उसके विचार। इनको नियंत्रित करने वाले कोने भले अलग हों।  विचार मे लिए प्रयत्न अपेक्षित होता इसलिए उन पर हमारा नियंत्रण होता है, इसलिए हम उन्हें दिशा दे सकते हैं, मनोभाव स्वतः उत्पन्न होते है और कई बार हम सोचते हैं वे गलत हैं और उन्हें नियंत्रित करना चाहते हैं, परंतु सफल नहीं होते।  वे इतने प्रबल होते हैं कि उनके दबाव में हम अपने प्राण तक दे सकते हैं। विचार विश्लेषित करते हैं, बिखराव और अस्थिरता पैदा करते है, प्रकाशित करते हैं,   मनोभाव जोड़ते हैं  संकल्प पैदा करते हैं और अंधकार पैदा करते है। आवेग पशुओं में मनुष्यों से अधिक प्रबल होता है,  या कहें मस्तिष्क के जिस विकास से विचार पैदा होता है उसके अभाव के कारण  उनमें केवल  भावनाएं ही होती हैं।  

जिन समुदायों को  किसी भी कारण से भावनाओं पर पाला जाता है  वे पशुओं के अधिक निकट होते हैं और पाशविक मूल्य उनके जीवन मूल्य होते हैं, आसानी से यूथबद्ध हो जाते हैं -  उनमें सामाजिकता  नहीं  यूथबद्धता  होती है,  और इसलिए हिंसक पशुओं की तरह संख्या में कम होते हुए भी वे अधिक खतरनाक होते हैं। सभी समाजों में ऐसे लोग रहे हैं जो अपने समाज को भावुक बनाकर, पशुओं का रेवड़ बना कर उनके रखवाले या चराने वाले की भूमिका अपने पास रखना चाहते रहे हैं और किसी भी समुदाय में जब तक ऐसे लोगों का वर्चस्व हो इंसानियत की बात करते हुए भी समाज इंसानों का समाज नहीं बन सकता।  

हम अपनी चर्चा में आवेगो को तो सम्मिलित करेंगे ही  उन सभी की जिनकी  पार्थिव से अलग भावसत्ता है, जिन्हें  हम देख नहीं सकते, कालबद्ध और स्थानबद्ध नहीं कर सकते, फिर भी हमारे ज्ञान जगत का सब कुछ उन पर निर्भर करता है।  इसी पृष्ठभूमि में, हम बहुत संक्षेप में, मनोभाव पर केवल इस दृष्टि से विचार करेंगे कि उनकी संज्ञा जल से किस रूप में संबंध है।
भाव < भू -  पू/ फू/बू/भू = जल,
पू - पूत -1. निकला हुआ (गभस्तिपूत) रस, 2. पुत्र, 3. पवित्र, 4. सड़ा हुआ, 5. विष (पूतना), 6. पोतल(=लीपल> लेप, लेपन,लिप्त)। 
पुर - 1.जल, 2. समूह, 3. बादल,  4.बस्ती/नगर;  पुरु- बहु; पूर्ण- पूरित,  भो. पुरनिया - बृद्ध,
गत > सं. पुरा/ पुरातन, हिं, पुराना।
पुस/ पूस; पुंस; पुष्कल, पुष्य- नक्षत्र विशेष, पोसल  > पोषण> पुष्टि - 1. पोषण की क्षमता/ क्रिया, 2. समर्थन, सत्यापन; purl- to flow with a murmuring sound  (तु. वै. पर्फर) ,  push (प्रेष/प, pull (पुर-) ,pour(पारना, डालना), pure(पूत) , purge(प्रच्छालन) , purism(पुनीतता), Puritan (पवित्रतावादी),  purport- substance (०प्रपत्ति, प्रतिपाद्य);  portico/ porch(तु. ओसारा, सायबान),  poor (तु.  रै>रंक), peurile (बोलोचित) , pile, pore- a minuite passage or interstice,  (porous) सूक्ष्मरंध्र, port (पत्तन), post (प्रस्थ), polis(पुर), polish (परिष्कार) आदि।. 

फू- फूल, फुलफुल,फुलाइल,  फूर, फुरवावल, फूट> स्फुट, फोरल, फोकट, flow (प्र-वह), fluid (तरल), flux (प्रवाह) Lfluxus (प्रवहमान)( <L. fluere- to flow (प्रवण);  flood, fluvial ( (नद्य, नदी से संबेधित)- belong to rivers, L. fluvius-river (०प्लावित);  flush -a sudden flow (पूर),   flash (चमक) , fish (मत्स्य),  fluster - to fuddle with a drink (पिलाना, गले उतारना), fuddle - to stupify, to drink to excess (धुत्त होना/करना ),  flute (प्रवाही, सुरीली (वंशी), fly (मक्षी, उड़ना), foam (फेन), fame (प्रसिद्धि), folk(जन), fog(कुहा), focus(दृष्टिबिंदु), follow (अनसरण), fool (मतिमंद), foul- a spring of water,- filthy, dirty (ओगरा, मलिन, दूषित);  fount (उत्सेक), , for (प्रति), fore(पुरः), front (मुख), force (०पर्श, वेग) , ford (हेलना), foster(पोष-),  fill(भरना), full(भरा), fall(प्रपात, पतन),  flit (विचरण), float- (प्लव, प्लवन), flop (पतन, विफलता), fail, fallacy(सत्याभास) ,  fallow (परती, ऊसर), false(असत). frog (मंडूक), frolic- gaiety (मंडूकवत उछलकूद, fro(ततः) , frown(क्रुध्) , frost(तुषार), frustrate(प्रतिहत), fulsome(भरा-पूरा) इत्यादि। , 
 
बू - गंद/गंध,  बूँद,  भो. बुल्ला- हिं. बुलबुला,  फा. बलबला, E, bub - a strong drink (origin unknown), bubble (बुल्ला) , < Sw. bubbla, Du. bubble),  bona/ bon- good,  budge- to move or stir (बजबजाना, बजबज- स्थाननाम)  bucket - बाल्टी, bottle, bull (), bully, bullion, bud, bulk, bulla - a bubble shaped knob, bold, bowl, bulge, bunch,  बुध,  बुद्धि, बूझना,  बुकवा,  बुताना - बुझाना, बुरा, फा. बुनियाद, बुजुर्ग, बुजदिल,
 
भू> 1.  (हो) ना (दुर्मतिर्विश्वाप भूतु दुर्मतिः) ,  2. भू (मि), 3. समग्र सत्ता या भूत पदार्थ, 4. भवन, 5. भुवन >(भूप/ भूपति), 6. भूत,  7. भूति - संपन्नता, 8.  भव - (क) संसार, (ख) सांसारिक भोग, दुख (भवसागर), 9. भूमा,  भूख,  भावना, भूष (परि भूषसि व्रतम् ), भूरि, भूयस् /भूयिष्ठ (आपो भूयिष्ठाः),   भूर्णि - भरण/ आपूर्ति करने वाला,  भूमना - बहुत्वेन।   

यहां हम  दो बातों की ओर ध्यान देना चाहेंगे।  पहली यह कि जिसे हम ध्वनि परिवर्तन के रूप में पहचानते रहे और उनकी व्याख्या के लिए ध्वनिनियमों की बात करते रहे हैं वे एक ही ध्वनि का तत तत बोलियाँ बोलने वालों द्वारा अनुश्रवण और अनुनादन रहा है। इसमें होने वाले बदलाव समाज रचना में बड़े पैमाने पर हुए बदलाव का परिणाम है। 

दूसरा यह कि   ध्वनि संकुल और अर्थ संकुल को सामने रखते हुए ध्वनि विचलन आर अर्थ विचलन की छूट देते हुए  ग्रीक, रोमन, जर्मन, अंग्रेजी,  संस्कृत, फारसी सभी भाषाओं का शब्दावली का सही व्युत्पादन  हम एक ही नियम से कर सकते है। इससे पहले के तरीके सभी में लंगड़े रहे हैं क्योंकि वे यह नहीं बता पाते कि ध्वनि में वह अर्थ कैसे पैदा हुआ।

भगवान सिंह 
( Bhagwan Singh )


No comments:

Post a Comment