Thursday 14 January 2021

शब्दभेद (72) मनोभावों के लिये कुछ शब्द

पिपासा
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क्या कोई यह सोच सकता है कि जिस मनोभाव त्रास के लिए सं. में तृषा से संज्ञा पाई उसी के लिए अं, ने पिपासा से।  पस- जल, पेश - रूप, सौदर्य;  पसीना > प्रस्वेद;  पोस/पोष- आहार, पशु - त. गाय, पश/ स्पश - लोगों के आचरण पर नजर रखने वाले।  यदि इसे पुलिस, या पुरवासियों की  गतिविधियों पर नजर रखने का संकेत माना जाए तो ऋग्वेद में पुलिस पंरबंधन का सबसे पुराना साक्ष्य  मिलता है। इसी पस से   passion - the suffering on the Cross and death of Christ,  suffering a painful body ailment,  strong feeling or agitation of the mind, L. passus - to suffer.  passive - suffering,  acted upon not active,  (see also.  pass, passage, passenger,  

तृष्णा 
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जिस तृ से तृषा निकली है (पानी  से प्यास का निकलना तो जल बिच मरत पियासा वाली दशा हुई),  त्रास और संत्रास निकला है उसी से जल की उत्कट कामना - तृष्णा। उसी से तर्पण, तरसना, तरसाना और तृप्ति। इसी से अंग्रेजी का thirst- uneasiness caused by want of drink. > 2, eager desire for anything. 

परन्तु यह याद दिलाना जरूरी है कि भारतीय भाषाओं में  बोलियों से ले कर भिन्न परिवारों में परिगणित भाषाओं में संगत शब्दों से  जो तार दिखाई देता है उससे एक ध्वनि संकुल से जुड़े अर्थ संकुल को समझना आसान होता है। यूरोपीय बोलियों और भाषाओं में निचला स्तर नहीं मिलता इसलिए कड़ी नहीं जुड़ पाती।  शब्द और अर्थ आकाश पतित से लगते हैं।  tree की व्युत्पत्ति daru से दिखाई गई है, होने को तो दारू भी होता तो आपत्ति न थी  पर तरु के रहते  दारु से संबंध कुछ हट कर है। दारु का timber, से और इसमें आए टिम का  तिम/टिम से वही नाता है जो tree से तृ/तर का। टिंबर timber- wood suitable for building or carpentry. OE. zimmer - building - room के साथ संबंध दिखाना जरूरी तो है पर समझा पाना आसान नहीं क्योंकि हम जो कुछ कह आए हैं उसे बार बार दुहराना संभव नहीं।  आवास के लिए प्रयुक्त शब्दों का अर्थ छाया न हो कर आकाश, प्रकाश  आदि होता है इसे बक ने लक्ष्य किया था पर यह समझना संभव न था कि कुहरे और बादलों के घटाटोप से ले कर प्रकाश तक  सभी जल के गुण हैं।  

कृपा
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कर - जल,  भो. करमोना - भिगोना> कृ=जल> करंभ - दही में मिला सत्तू:  करंक-  कमंडलु,  >कृपा, करुणा, कृमि  - E. creek- small inlet or bay, creed- (L. credo), credence- belief, trust; credit- , creep- to move with the belly on or close to the ground, , crime- a violation of law, crisp - having a wavy surface, crib - a manger or fodder receptacle।
  
दया 
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ती/दी- 1. जल, 2. मीठा,  3.प्रकाश, 4. आग।  तिल जिसमें आर्द्रता हो। तेल - द्रव, जल >तेल जिसे ‘शुद्धता-प्रेमी’ तैल लिख दिया करते हैं, जब कि इसका अर्थ है ‘तेल का’।   ऋ. मेंं दया का अर्थ देना लगता है - महो धनानि दयमान ओजसा विश्वा धनान्योजसा । दिल्ली के नामकरण को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जाती रही हैं।  हमें ऐसा लगता है इसका नामकरण नदी के तट पर होने के कारण  दिल्ली पड़ा। हम पहले कह आए हैं तटीय नामों में अधिकांश जलवाची शब्दों से आरंभ होते हैं। नदी नाम तो जलपरक होने को बाध्य हैं ही।

लोभ 
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रप/रिप/रुप,लप/ लिप/ लुप, रभ/ रिभ//लभ/लिभ/लुभ - जल, लाभ-०जल की प्राप्ति, भो. लभेरल -फेटल। ऋ. में लभ, लिभ, लुभ, लोभ में से किसी का प्रयोग नहीं हुआ है।  रभ(चोदयेन्द्र राये रभस्वतः; गोरभसम् - गो पय बलं), ऋभु, रेभ (मधुच्छन्दो भनति रेभ इष्टौ), को प्रयोग देखने में आता है।  इसका अर्थ है इस समय तक रभ आदि का स्थान नहीं लिया था। लकार प्रेमी समुदाय वैदिक समाज में मिला भी था तो पार्श्विक महत्व का था। सायण की व्ययाख्या  यज्ञ और कर्मकांड से प्रेरित थी इसलिए वह व्यावसायिक और वाणिज्यिक गतिविधियों की अपव्याख्या करते हैं। हम जानते हैं कि रभ ने ही लभ का रूप लिया है  यद्यपि रभ कुछ शब्दों में (प्रा-रब्ध), आरभ/आरंभ, बाद में भी बचा रह गया, पर लभ और लाभ इसी के रूपभेद हैं।  रभ, रभस् का प्रयोग गति (दधानः शुक्रा रभसा वपूंषि, सा. वेगवन्ति), शक्ति (अन्नै रभसं दृशानम् । सा.- बलं), कांति(रभसासो अंजयः), वृष्टि, (स्तनयदमा रभसा उदोजसः । सा.  वृष्ट्यर्थं उद्युंजाना), ध्वनन (अभि सं रभन्ते  - शब्दं कुर्वते),  लाभ (तन्नु वोचाम रभसाय जन्मने) आदि आशयों में हुआ है जो जल की विशेषताएँ हैं।

उल्लास 
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के लिए आ उपसर्ग  के साथ लस्/रस
उत्(जल)+रस/रास> लस/लास> 

आह्लाद 
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(हर/ह्र/हल/ह्ल - जल,  ह्रद- जलाशय >ह्लाद - तरंगित/ उद्वेलित होने का भाव) >आह्लाद, 

आसक्ति
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 सक/सख/सग/संग/संघ/ सह/सच =साथ (साक, सखा, संगति, संघाती, संहति, सचिव, सचा), सेक/सेचन, सिक्त/सिंचित;  सक्ति-लगन, आसक्ति - गहन लगाव।  

विरक्ति 
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 (राग - रक/ रग/रज - जल, राग -०लालिमा, मधुर नाद, प्रेम, पर रंग  - रंज, बां. राग) रक्ति- आसक्ति; विरक्ति- रक्तिहीनता, विराग भाव। 

उपेक्षा 
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इष-1.जल, 2. रस, 3. चमक आदि; >E. eye, ice, ease, etc.; अक्षि, ईक्षण, वीक्षण, इच्छा,  E. vision, wish, wise आदि। ईक्षा- देखना, उपेक्षा - अवहेलना।

भगवान सिंह 
( Bhagwan Singh )


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