Monday 9 September 2019

अनुच्छेद 370 के हटने का लाभ सबसे पहले जम्मूकश्मीर की जनता को बताया जाना चाहिये / विजय शंकर सिंह

अनुच्छेद 370 के हटाने और जम्मूकश्मीर राज्य पुनर्गठन बिल 2019 के लाभ श्रीनगर में राज्य की जनता को या तो जनसभा कर के या टीवी चैनलों के माध्यम से प्रसारण कर के सरकार को बताना चाहिये। जहाज से सरपंचों को लाद कर के दिल्ली बुला कर लाभ हानि गिनाना सरकार के आत्मविश्वास को प्रतिबिंबित नहीं करता है। यह एक खबर ज़रूर बन जाय, पर इससे पूरे राज्य की जनता आश्वस्त हो जाएगी यह संभव नहीं है।

अनुच्छेद 370 अस्थायी है। यह आतंकवाद को पोषित करता था। यह अलगाववाद को बढ़ाता था। यह विकास को रोके हुये था। इसने 1947 के बाद आये पाकिस्तान के लोगों को उनके नागरिक अधिकारों को देने में बाधा पहुंचायी थी। इसने कश्मीर को अलग थलग कर रखा था। अब सब ठीक हो गया है। यह साहस इसी सरकार में है कि वह कश्मीर की जनता के हित में, ऐसा बोल्ड निर्णय ले सकती है। सरकार की यह सारी बातें हमने मान ली। पर हमारे मानने से ज़रूरी है कि जम्मूकश्मीर की वह जनता जो घरों में निरुद्ध है, वह इसे माने। उसने मान लिया तब तो कोई बात ही नहीं है, और उसने कहीं नहीं माना तो बात ही बात है।

दुनियाभर को सरकार बता रही है कि यह एक घरेलू निर्णय है। यह घरेलू निर्णय है भी। पर जिनके लिये यह बोल्ड निर्णय हुआ है वह भी तो इस फैसले के पक्ष में खड़े दुनियाभर को दिखें। दुनिया बड़ी बेरहम है। वह गले भले मिल ले, इनाम इकराम भले दे दे, हमारे मुंह पर भले ही हमारी बात कर दे, पर वह यह सवाल भी उठाती रहेगी कि अभी मरीज ठीक नहीं हुआ क्या भाई। अभी भी आईसीयू में है। महीना बीत गया, कैसा ऑपरेशन है यह ?

सरकार, आप के साहस को सलाम। पर यह बोल्ड निर्णय आपने जिसके हित के लिये लिया है, पहले उसे तो बताइये। डॉक्टर भी सबसे पहले मरीज को ही बताता है कि अब तुम खतरे के बाहर हो, और ऑपरेशन ठीक हो गया है। कुछ ही दिन में टहलने घूमने लगोगे। फिकर नॉट।

पर यहां ऑपरेशन की सफलता के किस्से, मरीज को छोड़ कर गांव भर को पता है। मरीज अभी भी ऑपरेशन बाद की समस्याओं में घिरा है। अब भी उसे आईसीयू में ही रखा गया है। किसी को भी उससे मिलने जुलने की इजाज़त नहीं है। कुछ वीआईपी टाइप के लोग शीशे से भले उसे देखकर खुश हो जांय तो यह अलग बात है। हम सब तो जो भी कुछ बता दे रहा है वही मान ले रहे हैं। जब खबरें प्रतिबंधित होती हैं तो अफवाहें फैलती ही हैं।

© विजय शंकर सिंह

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