Wednesday 4 September 2019

मिर्जापुर - मिड डे मील में नमक रोटी और पत्रकार पर मुक़दमा / विजय शंकर सिंह

" पत्रकार प्रिंट मीडिया का था, उसे फ़ोटो खींचना चाहिये था, न कि वीडियो बनाना। "
मिर्जापुर के डीएम का यह सुभाषित, बचपन मे पढ़ी गयी एक भेड़िए और मेमने की कहानी स्मरण करा गया जिसमें भेड़िए ने मेमने से कहा था, तुमने पानी जूठा कर दिया जबकि भेड़िया ऊपर और मेमना झरने के नीचे था।

प्रिंट वाले को, वीडियो नहीं और वीडियो वाले को प्रिंट में खबर नहीं देनी चाहिये। यह एक नया हुक्मनामा है।
अब अगर इस नए हुक्मनामा को मान भी लिया जाय तो यह सच भी कलक्टर साहब बहादुर को सार्वजनिक करना चाहिये कि क्या बच्चों को उस दिन मिड डे मील में नमक रोटी परोसी गयी थी या नहीं ?
अगर परोसी गयी थी तो इसे उजागर करना कौन सा जुर्म हुआ ?

सीबीआई, राज्य सतर्कता और केंद्रीय सतर्कता आयोग सहित सभी सरकारें भ्रष्ट आचरण करने वाले अधिकारियों और संस्थानों के खिलाफ जनता से सूचनाएं देने की बात करती हैं, उन्हें प्रोत्साहित करती हैं। अपने सम्पर्क नम्बर सबको बांटती हैं, मुखबिर भी गोपनीय रूप से नियुक्त किये जाते हैं जो सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार के बारे में जानकारी दें। यह बात भी सही है कि गलत सूचनाओं पर दंड का भी प्राविधान कानून में है। फिर अगर यह नमक रोटी वाला वीडियो किसी गोपनीय सूचना पर ऐन वक्त पर पहुंच कर शूट किया गया है तो यह कौन सी साज़िश है ? यह साजिश नही बल्कि भ्रष्टाचार को उजागर करना है। साज़िश तो मिड डे मील का ठेकेदार और ग्राम प्रधान कर रहा है।

भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले हर उस व्यक्ति और तँत्र को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। अगर डीएम साहब को यह लगता है कि यह भ्रष्टाचार उजागर वीडियो उनके प्रशासन के खिलाफ है तो उन्हें यह सोचना चाहिये कि भ्रष्टाचार को उजागर करना उनकी प्रशासनिक क्षमता पर प्रश्न चिह्न नहीं लगाता है बल्कि भ्रष्टाचार उजागर होने पर खीज मिटाने के लिये उक्त भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई कार्यवाही न करना और अनाप शनाप तर्क दे कर उस पत्रकार के ही खिलाफ मुक़दमा दर्ज करा देना, उनकी प्रशासन क्षमता पर सवाल ज़रूर उठाता है।

जब यह वीडियो वायरल हुआ तो तत्काल जिला प्रशासन ने कार्यवाही की। कुछ अध्यापक हटे। प्रधानाध्यापक के खिलाफ कार्यवाही हुयी। अगर यह वीडियो और नमक रोटी की खबर गलत थी तो उक्त अध्यापकों के विरुद्ध यह कार्यवाही क्यों की गयी ? क्या यह कार्यवाही बिना जांच के की गयी है ? क्या यह कार्यवाही वायरल हुये वीडियो को तत्काल ठंडा करने के लिये की गयी थी ? अक्सर ऐसी कार्यवाही एहतियातन भी की जाती है ताकि जनाक्रोश थोड़ा थमे और मौसम साफ हो। ऐसी कार्यवाहियां अक्सर पुलिस में बहुत होती है। पर वह एक अनुशासित महकमा है तो पुलिसजन ऐसी कार्यवाही को नियति समझ स्वीकार भी कर लेते हैं। अगर स्कूल के अध्यापकों के खिलाफ, यह कार्यवाही बिना किसी जांच के झोंक में ही कर दी गयी है तो यह दंड भी गलत है।

मूल शिकायत बच्चों को मिड डे मील के समय नमक रोटी परोसने की है। मिड डे मील का ठेका निकलता है और ठेके जिस प्रकार से दिए जाते हैं, यह भी वैसे ही दिया जाता है। ठेका लेने वाले को यह पता होता है कि उसे खाने में क्या देना है, बस बच्चों को यह पता नहीं होता है कि उन्हें क्या भोजन मिलेगा। हो सकता है खाने का मेन्यू भी बनता हो। पर प्राइमरी के बच्चे जिन परिवारों से आते हैं वे दोपहर का भोजन पा जाते हैं, यही राज कृपा बहुत है।

जांच इस बात की होनी चाहिये कि क्या उस दिन निर्धारित भोजन दिया गया था या नहीं और निर्धारित भोजन के बजाय नमक रोटी दिया गया था या नहीं, तो कार्यवाही इस जांच के आधार मिड डे मील के ठेकेदार, ग्राम प्रधान आदि पर की जानी चाहिये थी, तो मुक़दमा पत्रकार पर कायम हो रहा है और आरोप यह लगाया जा रहा है कि वह प्रिंट मीडिया का है, उसने वीडियो बनाया क्यों ? और बनाया तो वायरल किया क्यों ?

जिला मैजिस्ट्रेट को यह बात भी समझनी होगी कि भले ही यह निर्णय उन्होंने अपने विवेक से लिया हो पर लोग यही समझेंगे कि ऐसा निर्णय सरकार के दबाव में ही लिया गया होगा। ऐसे निर्णय से डीएम साहब का कुछ बिगड़ना तो है नहीं, पर सरकार के प्रति लोगों में विपरीत क्षवि बनती है। अगर नमक रोटी ही परोसा गया था, और तब उस ठेकेदार और प्रधान के खिलाफ कार्यवाही होती तो सरकार के पक्ष में एक सकारात्मक ही सन्देश जाता।

© विजय शंकर सिंह

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