Thursday 5 September 2019

सितंबर, भगत सिंह का महीना - 1 - पिता को उनका पत्र / विजय शंकर सिंह

शहीदे आज़म भगत सिंह पर यह सीरीज पहले भी आप सबसे साझा की जा चुकी है। उसी सीरीज से कुछ पुराने और नए लिखे  लेख पुनः साझा किये जा रहे है। यह लेख दुबारा साझा किया जा रहा है। यह पत्र भगत सिंह ने अपना घर छोड़ने के पहले अपने पिता जी को लिखा था। भगत सिंह एक रूमानी क्रांतिकारी नायक ही नहीं थे। वे एक गम्भीर अध्येता और मेधावी राजनीतिक चिंतक भी थे।  यह पत्र भगत सिंह के बजगत सिंह बनने की भूमिका की कथा है।

भगत सिंह का अपने पिता के नाम घर छोड़ने के पूर्व लिखा गया पत्र - घर को अलविदा ।

भगत सिंह (जन्म: 27 या 28 सितम्बर 1907 मृत्यु: 23 मार्च 1923 ) नेशनल कालेज, लाहौर के विद्यार्थी थे। जन-जागरण के लिए ड्रामा-क्लब में भी भाग लेते थे। वही उनका संबंध क्रांतिकारी छात्रों और अध्यापकों से  जुड़ गया था। भारत को आजादी कैसे मिले, इस बारे में लम्बा-चौड़ा अध्ययन और बहसें तब जारी थीं। असहयोग आंदोलन की वापसी के बाद का निराशाजनक दौर था। राजनीतिक गतिविधियां लगभग ठप थी। गांधी की पकड़ अभी बहुत नहीं बन पायी। भगत सिंह के घर के वातावरण में उनकी शादी की बात चलनी शुरू हो गयी थी। भगत सिंह विवाह बंधन में बंधना नहीं चाहते थे। पर घर मे अपनी दादी की ज़िद के चलते उन्होंने घर से निकल जाने का निर्णय किया। अपने पिता को एक पत्र लिख कर वह लाहौर से कानपुए आ गये। कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी जो एक महान पत्रकार और क्रांतिकारी आंदोलन के केंद्र विंदु थे , प्रताप नामक एक अखबार निकाला करते थे। भगत सिंह ने उस अखबार में काम करना शुरू कर दिया। वहीं उनकी मुलाकात बटुकेश्वर दत्त, शिव वर्मा, विजय कुमार सिन्हा आदि क्रांतिकारी साथियों से हुयीं जो बंगाल में चल रहे भूमिगत क्रांतिकारी आंदोलन से बहुत ही प्रभावित थे।  उनका कानपुर पहुँचना क्रांति के रास्ते पर एक बड़ा कदम बना। पिता जी के नाम लिखा गया भगतसिंह का यह पत्र घर छोड़ने सम्बन्धी उनके विचारों को स्पष्ट करता है।
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पूज्य पिता जी,
नमस्ते।

मेरी जिन्दगी मकसदे आला यानी आज़ादी-ए-हिन्द के असूल2 के लिए वक्फ ( दान ) हो चुकी है। इसलिए मेरी जिन्दगी में आराम और दुनियावी खाहशात (सांसारिक इच्छाये ) बायसे केे कशिश ( आकर्षक ) नहीं हैं।

आपको याद होगा कि जब मैं छोटा था, तो बापू जी ( भगत सिंह के दादा, जो लाला लाजपत राय के अनुयायी थे और आर्य समाजी भी ) ने मेरे यज्ञोपवीत के वक्त ऐलान किया था कि मुझे खिदमते वतन  के लिए वक्फ कर दिया गया है। लिहाजा मैं उस वक्त की प्रतिज्ञा पूरी कर रहा हूँ।

उम्मीद है आप मुझे माफ फरमाएँगे।

आपका ताबेदार,
भगतसिंह

( विजय शंकर सिंह )

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