Wednesday 25 September 2019

दीनदयाल उपाध्याय को याद करते हुये  /  विजय शंकर सिंह

दीनदयाल उपाध्याय, भारतीय जनता पार्टी के थिंक टैंक थे । वे संघ के राजनीतिक अवतार भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से रहे हैं। उन्होंने अपने चिंतन को अपनी एक पुस्तक एकात्म मानववाद में रूप दिया है। एकात्म मानववाद का सिद्धांत, समाज के सबसे निचली सीढ़ी पर खड़े व्यक्ति के उत्थान से है, जिसे गांधी अंत्योदय कहते हैं। गांधी के अंत्योदय, यानी अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति का उदय, का सिद्धांत भी उनकी मौलिक सोच का परिणाम नहीं बल्कि जॉन  रस्किन की 1860 में लिखी पुस्तक अन टू द लास्ट से प्रभावित थी। अंत्योदय की अवधारणा के उद्गम के लिये बाइबिल का यह अंश पढा जा सकता है,

The title is a quotation from the Parable of the Workers in the Vineyard:

I will give unto this last, even as unto thee. Is it not lawful for me to do what I will with mine own? Is thine eye evil, because I am good? So the last shall be first, and the first last: for many be called, but few chosen.

— Matthew 20 (King James Version)

मैथ्यू 20, किंग जेम्स की किताब में कहा गया है,
जो अंतिम है उसे प्रथम मानना होगा, अर्थात जो समाज के सबसे निचले स्तर पर उपेक्षा के सारे दंश झेल रहा है, उसका उत्थान किया जाना चाहिये।

इसी वैचारिक पीठिका पर गांधी का चिंतन था जो उनकी पुस्तक हिन्द स्वराज में आज से सौ साल से भी पहले स्पष्ट हुआ था। एकात्म मानववाद भी उसी सोच से उपजा है। जनसंघ और अब भाजपा दीनदयाल उपाध्याय के इसी चिंतन और दर्शन पर अपनी बात कहते हैं।

पर एक गम्भीर सवाल यहां यह भी उठता है कि उस अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति, जिसके उत्थान की बात बाइबिल में मैथ्यू से लेकर, जॉन रस्किन के अन्टू द लास्ट से होते हुये गांधी के हिन्द स्वराज से लेकर दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद में लगातार कही जा रही है उसका उत्थान कैसे हो, और वह कैसे, अंतिम पंक्ति में खड़े खड़े उदय का प्रत्यूष देखे ?
यही सवाल मुख्य है और इसका स्पष्ट निदान और उत्तर न तो बाइबिल देती है, न रस्किन, न गांधी और न दीनदयाल उपाध्याय।

दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु भी संदेहास्पद परिस्थितियों में हुयी थी । वे मुगलसराय जंक्शन जो अब उनकी स्मृति में ही दीनदयाल जंक्शन हो गया है पर रेलवे की पटरी पर मृत पाए गए। यह हत्या थी या दुर्घटना यह आज भी रहस्य है। जनसंघ के संस्थापकों में से  बलराज माधोक ने अपनी आत्मकथा "जिन्दगी का सफर" (भाग-3 पृष्ठ संख्या 25 ) में स्पष्ट उल्लेख किया हैं कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय मरे नही बल्कि मरवाएँ गए थे । अपनी इस अंदेशा के उन्होंने तीन कारण गिनाए थे ।

दीनदयाल जी की संदिग्ध मृत्यु के संबंध में जनता पार्टी के समय सीबीआई को जांच करने का आदेश भी दिया गया था, पर वह भी वापस ले लिया गया। कहते हैं कि मृत्यु की जांच के लपेटे में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी आ सकता था, इसलिए जांच की मांग खुलकर कभी नहीं की गयी। डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने ज़रूर कई बार इस मामले में जांच कर सत्य का अन्वेषण करने की मांग की है।

लेकिन भाजपा ने उन कारणों की तह में जाने और जांच कराने की कोई कोशिश ही नही की। यह भी एक दुःखद तथ्य है कि जनसंघ के दो संस्थापक सदस्यों डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय के असामयिक और संदिग्ध मृत्यु पर भाजपा काल मे भी न तो कोई जांच बैठी और न ही सत्य का अन्वेषण किया जा सका।

मैं दीनदयाल उपाध्याय और जिस विचारधारा से वे विकसित हुये हैं से सहमत नहीं रहता हूँ और उस विचार धारा के विपरीत विचार रखता हूँ। पर जो लोग दीनदयाल जी की विचारधारा के साथ हैं और उसमे प्रगति और उत्थान का मार्ग ढूंढते हैं, उन्हें चाहिये कि दीनदयाल जी की चिंतन प्रक्रिया में अंतिम व्यक्ति का उदय कैसे हो, उसे हम सब के सामने रखें। आज उनके जन्मदिन पर उनका विनम्र स्मरण।

© विजय शंकर सिंह

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