भूमध्य सागर के बीचों-बीच पाल्मा नामक द्वीप पर क्षितिज निहारते हुए मैं सोच रहा था कि एक तरफ़ यूरोप है, दूसरी तरफ़ अफ़्रीका। कौन अधिक समृद्ध है? आज का सच तो हम जानते हैं, ढाई हज़ार वर्ष पूर्व उत्तरी अफ़्रीका का पलड़ा भारी था।
ई. पू. 146, कार्थेज (वर्तमान ट्यूनिशिया, उत्तरी अफ़्रीका)
जब रोम के रईस समुद्र के दूसरी ओर कार्थेज (वर्तमान ट्यूनिशिया) का वैभव देखते, उनकी आँखें चौंधिया जाती। मोतियों की माला पहने व्यापारी। सोने के गहने पहने स्त्रियाँ। ऊँचे पक्के मकान। चौड़ी सड़कें। दो युद्धों के बाद भी यह नगर पूरी तरह रोम के हाथ नहीं लगा था।
आखिर एक कनिष्ठ रोमन कमांडर टाइबेरियस यह किला भेदने में सफल हुए। रोम ने अपनी ईर्ष्या को बुझाने के लिए उस पूरे नगर को नेस्तनाबूद कर दिया। एक ऐतिहासिक संस्कृति हमेशा के लिए खत्म हो गयी। कार्थेज खून से सन गया और इस तरह भूमध्य सागर के दोनों किनारों पर रोम का कब्जा हो गया।
भूमध्य सागर से बात शुरू हुई तो कहानी भी रोमन इतिहास के मध्य से शुरू हो गयी। इसका एक ठोस कारण भी है। पहले मैं कार्थेज के नायक टाइबेरियस के लोकनायक बनने की कहानी कहने जा रहा हूँ।
उन दिनों रोम में अगड़ा या कुलीन वर्ग (patrician) के पास शक्ति और संपत्ति केंद्रित थी। एक बड़ा सर्वहारा वर्ग (plebeian) रोम के वैभव से कोसों दूर था। तमाम सैनिक सर्वहारा वर्ग से ही थे, जो अन्यथा सामंतों की ज़मीन पर खेती-बाड़ी करते।
टाइबेरियस इसी सर्वहारा वर्ग से थे। वह युद्धों में सैनिकों की स्थिति और रोमन साम्राज्य की गरीबी देख कर चिंतित थे। लेकिन एक सेना के कमांडर के हाथ में ऐसी चीजें थी नहीं।उन्होंने चुनाव लड़ने का फ़ैसला लिया, और गाँव-गाँव जाकर कहा कि वह ज़मींदारी खत्म कर देंगे। वह भारी मतों से ‘ट्रिब्यून’ (सर्वहारा प्रतिनिधि) चुन लिए गए। संसद पहुँचते ही उन्होंने ज़मींदारी समाप्ति का प्रस्ताव रख दिया।
उन्होंने कहा, “एक पशु के पास भी रहने के लिए गुफा होती है, लेकिन आज रोम के गरीबों के सर पर छत नहीं है। अपनी ज़मीन नहीं है। और यहाँ इस संसद में बैठे लोग वैभव से जी रहे हैं। क्या हम अपने जमीन का हिस्सा गरीबों को नहीं दे सकते?”
कुलीन वर्ग को यह प्रस्ताव तनिक भी नहीं भाया। संसद द्वारा टाइबेरियस पर अभियोग लगाया गया कि वह सर्वहारा के समर्थन से एक तानाशाह राजा बनना चाहता है। उनका कहना था कि उसके कारण गणतंत्र खतरे में है।
टाइबेरियस और उनके तीन सौ सहयोगियों को पकड़ कर, पीट-पीट कर मार डाला गया।
उनके छोटे भाई गेयस अगला चुनाव जीत कर आए। उन्होंने टाइबेरियस के प्रस्ताव को अधिक क्रांतिकारी अंदाज़ में आगे रखा। उन्हें मारने के लिए भी कुलीन वर्ग के लोगों ने अपने गुर्गे भेज दिये। उनके पहुँचने से पहले उन्होंने आत्महत्या कर ली। ज़मींदारी कायम रही।
टाइबेरियस सेंपोनियस ग्रैकस संभवत: यूरोप या दुनिया के पहले समाजवादी कहलाते, मगर उस समय समाजवाद और मार्क्सवाद जैसे भारी-भरकम नाम उपजे ही नहीं थे।
प्रश्न तो यह है कि एक सामंतवादी समाज में भला राजा से समस्या क्या थी? इतनी समस्या कि कोई राजा न बन जाए, इस कारण उसे पीट-पीट कर मार डाला गया। रोम के साथ ऐसा क्या हुआ था कि उसने राजतंत्र के बजाय गणतंत्र बनना चुना?
इस प्रश्न के उत्तर के लिए अब कहानी के मध्य से निकल कर वहीं लौटना होगा, जहाँ से कहानियाँ शुरू होती हैं। ग्राउंड ज़ीरो से। रोम कब बना?
ई. पू. 753 में रोम की स्थापना युद्ध के देवता मार्स के जुड़वाँ पुत्र रोम्युलस और रेमस ने की, जिनका पालन-पोषण एक मादा भेड़िया ने अपना दूध पिला कर किया था। ऐसे बेतुके मिथक से मैं यह कहानी कैसे शुरू करता?
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रोम का इतिहास - भूमिका
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