Sunday 24 April 2022

प्रवीण झा / रोम का इतिहास (5)



चित्र: Lucius Junius Brutus [यह जूलियस सीजर के समय के Marcus Junius Brutus के पूर्वज थे।

कूटनीति सफल साम्राज्यों की कुंजी थी। अन्यथा यूरोप के सबसे ताकतवर और खूँखार ‘जर्मैनिक’ थे, जिन्हें असभ्य (barbarians) कहा जाता। उनका रहन-सहन, खान-पान रोम की तरह व्यवस्थित नहीं था। वे कई अर्थों में बाद में आए मंगोलों और वाइकिंगों के समकक्ष थे। उनकी चर्चा आगे करूँगा कि किस तरह उन्होंने सदियों तक यूरोप से अफ़्रीका तक धौंस जमा कर रखी। 

लेकिन, आज हम जानते हैं कि भविष्य न तो मंगोलों, न वाइकिंगों और न जर्मैनिक असभ्यों के हाथ में था। वह रोमनों के हाथ में था। इस प्रक्रिया को समझने की ज़रूरत है। 

राजा टारक्विन सुपरबस के साथ पहली समस्या थी कि वह लातिन नहीं, एत्रुस्कन जाति के थे। वह तो खैर उनके पिता भी थे। एत्रुस्कन कुछ टेक्निकल दिमाग के लोग थे, जो खेती-बाड़ी की तकनीकों से लेकर नगर-संरचना में निपुण थे। वहीं लातिन कलात्मक लोग थे, जिन्हें मानवीय मूल्यों, ग्रीक दर्शन आदि में अधिक रुचि थी। आज के शब्दों में कहें तो एक साइंस स्ट्रीम के, दूसरे आर्ट्स। जहाँ लातिन पारंपरिक पूजा करते, एत्रुस्कनों में औघर तंत्र-मंत्र और बलि की उपयोगिता अधिक थी।

टारक्विन ने इन दो भिन्न गुणों वाली जातियों को मिला कर आगे बढ़ना चाहा। राजतंत्रों में विवाह अक्सर समझौतों का माध्यम था। उन्होंने सबसे पहले अपनी बेटी का विवाह एक संभ्रांत लातिन परिवार में किया।

वहीं, एत्रुस्कनों को नाला-निर्माण, सड़क निर्माण और मंदिर निर्माण के ठेके दे दिए, जो वे बेहतर जानते थे। उन्हें यह लगा कि ग्रीक संस्कृति के विस्तार के मूल में धर्म है। उन्होंने विश्व के विशालतम मंदिर बनाने का निर्णय लिया। उनके पिता का अधूरा जूपिटर मंदिर उन्होंने इतना विशाल बनाया कि एक आगार ही फुटबॉल मैदान जितना बड़ा था। 

मगर इन तमाम निर्माण कार्यों का अर्थ था रोमन सर्वहारा का शोषण। उन्हें उनके खेतों से निकाल कर मामूली रकम पर ईंट ढुलवाए जाते, नींव खुदवायी जाती, सुरंग बनवाए जाते। वे अब या तो पलायन कर रहे थे, या आत्महत्याएँ। कइयों को बीच सड़क पर चाबुक से मारा जाता, कई को मार दिया जाता।

लातिनों के मुखिया टर्नस ने मानवीय मूल्यों का हवाला देकर राजा से मिलने की ख़्वाहिश रखी। राजा ने उन्हें आमंत्रित किया, लेकिन पूरे दिन लातिन प्रतीक्षा करते रहे और राजा की कहीं खबर नहीं। आखिर जब शाम को राजा आए, तो लातिन चिढ़ चुके थे।

राजा टारक्विन ने कहा, “एक पिता-पुत्र के विवाद निपटाने में फँस गया था”

टर्नस ने गुस्से में कहा, “यह विवाद तो एक क्षण में निपटाया जा सकता है। आपने पूरा दिन लगा दिया? पुत्र को कहिए कि पिता की आज्ञा मान लें।”

यह कह कर टर्नस वहाँ से निकल गए। राजा ने अपनी इस बेइज़्ज़ती का बदला लेने की ठानी। उन्होंने अपने गुलामों को भेज कर टर्नस के घर में हथियार रखवा दिए, और आरोप लगाया कि वह जन-क्रांति करने का षडयंत्र कर रहे हैं। इस कथा में यह मुमकिन है कि वाकई टर्नस ऐसा कर रहे हों, और सर्वहारा हिंसक क्रांति की योजना बना रहे हों।

जो भी हो, उन्हें पत्थरों से बाँध कर एक ऊँचाई से नदी में गिरा दिया गया। ऐसी सजाएँ अब रोम-वासियों को अत्याचार लग रही थी। एक दिन उनके बड़े भांजे भड़क गए और बुरा-भला कहा। नतीजा यह हुआ कि उन्होंने भांजे को बंदी बना कर मार डाला। 

सिर्फ़ छोटे भांजे को हँसते हुए यह कह कर छोड़ दिया, “यह ब्रूटस है। इसको क्या मारना? हमारे परिवार में एक यही तो हास्य-विनोद का पात्र है।”

ब्रूटस का अर्थ है मूर्ख। वाकई ब्रूटस की हैसियत एक बेवकूफ़ की ही थी। किंतु यही लुसियस यूनियस ‘ब्रूटस’ रोमन इतिहास के सबसे बड़े कूटनीतिज्ञों में एक सिद्ध हुए। वह ‘लो प्रोफ़ाइल’ में रह कर बदले का मौका तलाश रहे थे। आखिर एक दिन उन मूर्ख ब्रूटस ने अपने मामा के इस आततायी राजतंत्र को उखाड़ फेंका। 

वह रोम में गणतंत्र के सूत्रधार बने। 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

रोम का इतिहास (4)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/04/4.html 
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