मैंने बार्सिलोना में सड़क किनारे बिकते मूर्ति देखी- एक काले भेड़िया का दूध पीते दो शिशु। पत्थर के बने दिखे और लकड़ी के बने भी। ये शिशु बाद में रोम के संस्थापक बने। उसे देख कर मेरे मन में प्रश्न उठा कि भेड़िया क्यों, बाघ या शेर क्यों नहीं?
शायद इसलिए कि भेड़िये का ‘सर्वाइवल इंस्टिंक्ट’ बेहतर है। वह साम, दाम, दंड, भेद में निपुण है। आखिर जो कहानी रोम से शुरू हुई, वही तो यूरोप से लेकर अमेरिका तक पहुँची। ग्रीस खत्म हुआ, मिस्र खत्म हुआ, खत्म तो रोम भी हुआ लेकिन उसके बीज आज दुनिया पर अप्रत्यक्ष सत्ता रखते हैं। इसके लिए भेड़िया-बुद्धि चाहिए।
अब मिथक पर ग़ौर किया जाए। यह कहानी आपने किसी और रूप में, भारतीय कथाओं में भी सुनी होगी।
राजा नुमितोर के साथ छल कर के उनके भाई अमुलियस ने गद्दी हथिया ली। उस समय अविवाहित राजकुमारी रिया को स्वयं भगवान मार्स ने गर्भवती कर जुड़वाँ पुत्र दिये।
जब राजा को पता लगा कि उनके काल बन कर उनके भाँजे जन्म ले चुके हैं, तो उन्हें मारने के लिए अपने सिपाही भेजे। उन जुड़वाँ शिशुओं को एक टोकरी में डाल कर टाइबेरिया नदी में बहा दिया गया। उस नदी के देव ने उनकी रक्षा की, और एक गुफा में छोड़ दिया। वहाँ एक मादा भेड़िया ने उन्हें दूध पिला कर जीवित रखा।
उसके बाद फॉस्तोलस नामक एक गड़ेड़िए ने उन्हें अपने पुत्र की तरह पाला। वे दोनों भाई रोम्युलस और रेमस भेड़ चराते हुए बड़े हुए।
यह कथा आपने कहाँ सुनी है? राजा, भाँजे, नदी में टोकरी बहाना, किसी पशुपालक द्वारा पाला जाना और उसके बाद समुद्र तट पर नगर बसाना!
उस समय पूरी दुनिया एक जैसी थी। सभी मूर्तिपूजक थे। सभी के लगभग एक जैसे ही भगवान थे, एक जैसी कथाएँ। वृष्टि के देव, समुद्र के देव, वायु के देव, अग्नि के देव, युद्ध और विनाश के देव, प्रजनन की देवी। आज के इटली और ग्रीस में दूध, चावल आदि लेकर पूजा करते हुए बलि चढ़ाए जाते। तंत्र-मंत्र होते। हर युद्ध से पहले पूजा की जाती। इन सबके लिए मिथकों, पर्वों और व्यवहारों का एक पूरा ताना-बाना था।
आज की इटली, जो किसी उंगली की तरह यूरोप के मानचित्र से निकली हुई है, वहाँ कुछ लातिन (लैटिन) मूल के, कुछ ग्रीक मूल के, और कुछ एत्रुस्कान मूल के लोग रहते थे। सभी की भाषा-संस्कृति कुछ अलग थी, लेकिन वे साथ ही खेती-बाड़ी और व्यापार कर जीवन-यापन करते। यह बताने की ज़रूरत नहीं कि ग्रीस, उत्तरी अफ्रीका, या भारत की अपेक्षा वे गरीब थे। उनके घर मिट्टी के बने होते, जिस पर फूस की छत होती। उस समय तो किसी को अंदेशा भी नहीं था कि ये रोमन कहलाएँगे, और महाशक्ति में तब्दील होंगे।
खैर, आगे कथा यह है कि रोम्युलस और रेमस ने स्थान चुना जहाँ वह नगर बसाएँगे। लेकिन, दोनों ने जो पहाड़ियाँ चुनी, वह भिन्न थी। उन्होंने आकाश में देखते हुए ईश्वर से कहा कि अपना निर्णय दें।
पहले रेमस की पहाड़ी के ऊपर छह गिद्ध मंडराए, तो उन्होंने विजयी मुस्कान देकर कहा कि निर्णय उनके पक्ष में है। तभी रोम्युलस की पहाड़ी के ऊपर बारह गिद्ध मंडराने लगे, और पासा पलट गया। अंतत: दोनों में लड़ाई हुई, और रोम्युलस ने अपने जुड़वाँ भाई रेमस को मार डाला।
भेड़िये का दूध पीकर अपने भाई के रक्त से सींच कर रोम्युलस ने रोम की स्थापना की। मिथक अभी खत्म नहीं हुआ।
इस नए नगर रोम में समस्या थी कि इसमें सिर्फ़ पुरुष ही थे, स्त्रियाँ नहीं थी। रोम्युलस ने इसकी एक तरकीब निकाली। उन्होंने उत्तर की पहाड़ियों में बसे सबाइन मूल के लोगों के लिए पार्टी आयोजित की। उनको खूब खिलाया-पिलाया, नृत्य किए; उसके बाद उनकी जितनी भी स्त्रियाँ थी, सबको बंदी बना लिया। मिथक के अनुसार रोम का वंश इन बलात्कारों से जन्मे शिशुओं से बढ़ा।
मुझे लगा कि ऐसी कथाओं को यूरोपीय कहीं छुपा कर रख देंगे, या लीपा-पोती कर देंगे। कह देंगे कि एक बकवास मिथक है। मगर वे वाइन पीते हुए मुस्काते हुए कहते हैं- ‘एक विश्व-शक्ति बनने के लिए तो रोम को यह करना ही था’।
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रोम का इतिहास (1)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/04/blog-post_4.html
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