रोम में बारह तख़्तियाँ लग गयी, और वर्ग-भेद खत्म हो गया? अगर यह इतना ही आसान था, तो आज तो तख़्तियाँ क्या, दर्जनों मोटे-मोटे संविधान दुनिया में हैं। हर संविधान में यह बात लिखी है कि जन्म के आधार पर भेद-भाव नहीं किया जाएगा। पिछड़े वर्गों के लिए विशेष कानून बने हैं। मगर यह भेद तो कायम ही है।
रोमन कुलीनों को उनकी कुलीनता विरासत में मिली, वे तो त्यागने से रहे। उन्होंने बहलाने-फुसलाने के लिए जनता को कुछ प्रतिनिधित्व दे दिए, लेकिन वह आम जनता रही अ-कुलीन (plebeian) ही। उनकी कुव्वत नहीं थी कि कुलीनों से ऊँचे स्वर में बात कर सकें, टोगा पहन सकें, या हाथी-दाँत की कुर्सी पर बैठ सकें।
एक उदाहरण देता हूँ। ईसा पूर्व पाँचवी सदी में रोम में भयंकर अकाल आया। उन्हें सिसली द्वीप से अनाज आयात करना पड़ा।
उस समय सिनेट में एक बुजुर्ग खड़े हुए और कहा, “हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि गरीबों को कम दाम पर या मुफ़्त अनाज मुहैया करायी जाए”
इस पर विमर्श चल ही रहा था कि एक कुलीन युवक कोरियोलैनस ने भड़क कर कहा, “क्यों? हमने क्या उनका ठेका ले रखा है? बल्कि यही मौका है उन्हें दबाने का। अनाज हमारे गोदाम में रहेंगे। वे खुद ही गिड़गिड़ाते हुए हमारे पास आएँगे। उस समय हम शर्त रखें कि उनका प्रतिनिधित्व खत्म किया जाए।”
“यह तुम क्या कह रहे हो? हमारे जन-प्रतिनिधि हमारे मध्य यहाँ बैठे हैं। तुम ऐसा सोच भी कैसे सकते हो?”
“मुझे यही बात तो खल रही है कि ये नीच लोग हमारे साथ बैठे हैं। निकाल बाहर करिए इन्हें।”
“बदतमीज़! वे कहीं नहीं जाएँगे। आज से तुम्हारी सदस्यता रद्द की जाती है। कभी यहाँ अपना मुँह मत दिखाना।”, सिनेटर ने भड़क कर कहा।
“जा रहा हूँ। लेकिन, जब लौटूँगा तो इस रोम और आप जैसे कायरों को खत्म कर दूँगा। राज वही करेंगे, जिनका वंश राजाओं का रहा हो।”
यह कह कर कोरियोलैनस न सिर्फ़ सिनेट, बल्कि रोम छोड़ कर चले गए, और पड़ोसी शत्रुओं ‘वॉल्सियन’ से मिल गए। कुछ वर्षों बाद उन्होंने एक बड़ी सेना लेकर रोम पर आक्रमण कर दिया।
कोरियोलैनस एक काबिल सेनापति थे, और रोम की सेना उनके सामने टिक नहीं पा रही थी। उनको मनाने के लिए पहले कुछ दूतों को भेजा गया, वह नहीं माने। पुरोहितों ने जाकर धर्म की दुहाई दी, मगर वह टस से मस न हुए।
लिवि वर्णन करते हैं कि जब कोरियोलैनस रोम को ध्वस्त करने के लिए आगे बढ़ रहे थे, एक स्त्री आकर उनके सामने खड़ी हो गयी। कोरियोलैनस रुक गए। आखिर यह स्त्री उनकी माँ वेचुरिया थी। वह भागते हुए अपनी माँ को गले लगाने पहुँचे, मगर उन्होंने हाथ झटकाते हुए कहा,
“मुझे छूने से पहले यह बताओ कि मैं अपने पुत्र से बात कर रही हूँ या शत्रु से? मैं तुम्हारी कैदी हूँ या माँ? क्या इस उम्र में मेरा यही भाग्य था कि अपने पुत्र को शत्रुओं के खेमे में देखूँ? तुमने अपनी मातृभूमि के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ी है, तो किस मुँह से अपनी माँ को गले लगाने आए हो? तुम मेरे पुत्र नहीं, एक गद्दार हो!
अगर मैंने तुम्हें जन्म नहीं दिया होता, तो आज रोम पर यह आक्रमण नहीं होता। मैं बिना पुत्र के मर जाती, लेकिन एक स्वतंत्र रोम में मरती।”
कोरियोलैनस शर्म से गड़ गया, और उसने सैनिकों को वापस लौट जाने कहा।
यह युद्ध तो टल गया, लेकिन रोमन गणतंत्र को अपनी कमजोरी का अहसास भी हुआ। इतने वर्षों में रोम ने अपना अधिक विस्तार नहीं किया था। उसकी सेना पड़ोसी सेनाओं के मुक़ाबले कमजोर थी। रोम को अब युद्ध न सिर्फ़ लड़ने थे, बल्कि जीतने थे। इसके लिए गणतंत्र को अपना वह पत्ता खोलना था, जो सिर्फ़ आपातकाल के लिए रखा गया था।
रोमन गणतंत्र ने तानाशाह (dictator) ‘चुनने’ का निर्णय किया।
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रोम का इतिहास (8)
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