Saturday, 23 April 2022

प्रवीण झा / रोम का इतिहास (4)

           चित्र: जूपिटर मंदिर के अवशेष

राजतंत्र हो या गणतंत्र, सत्ता के लिए छल-कपट विश्वव्यापी रहा है। जैसे वंशवादी राजतंत्र में भाइयों के मध्य षडयंत्र और हत्यायें। रोम में शुरुआत वंशवादी राजतंत्र से नहीं हुई। वहाँ राजा चुना जाता था। रोम इतना छोटा था कि यह किसी ग्राम पंचायत के सरपंच चुनने
जैसी प्रक्रिया थी। 

रोम की स्थापना के बाद कुछ आधे दर्जन चुने हुए राजा आए। उनका दरबार खुले आसमान में बैठ कर लगता। आज की जो अंग्रेज़ी की लिपि लैटिन है, वही उनकी लिपि थी। इस कारण रोम के ढाई हज़ार वर्ष पुराने शिलालेख सुविधा से पढ़ लिए जाते हैं। किसी युद्ध में मारे गए सैनिक की काँसे की टोपी मिली तो उस पर उसका नाम अंग्रेज़ी में लिखा मिल जाता है। यह एक कारण है कि वहाँ का इतिहास लिखने में लोगों को सुविधा हुई।

रोम का इतिहास लिखने की औपचारिक शुरुआत ईसा पूर्व दूसरी सदी में ही हुई। उस समय तक रोम गणतंत्र बन चुका था। जिस इतिहासकार ने भी इतिहास लिखा, उसने पिछली पाँच सदियों का इतिहास सुने-सुनाए क़िस्सों से या कुछ वार्षिक दस्तावेजों (annals) से लिखा। उनमें से कई दस्तावेज ग्रीक भाषा में थे, क्योंकि लैटिन लिखने-पढ़ने की स्थापित भाषा नहीं थी। ग्रीक को भारत के संस्कृत के समकक्ष कहा जा सकता है, जो विद्वानों की भाषा थी। जबकि लैटिन इटली में बोल-चाल की भाषा थी।

मुझे एक ईसा पूर्व इतिहासकार लिवि की किताब सुविधा से मिल गयी। पेंग्विन प्रकाशन ने उनकी पाँच किताबों को जोड़ कर एक किताब बना दी है।

उस किताब में मैं सीधे लिए चलता हूँ आखिरी राजाओं में एक बड़े टारक्विन (Tarquinn The Elder) के राज में, जो ईसा पूर्व 616 में शुरू हुआ। उन्होंने रोम को वह रोम बनाया, जो हम फ़िल्मों में देखते हैं। वह रोम में एक अद्भुत खेल लेकर आए, जिसमें मनुष्य की लड़ाई शेर और जंगली जानवरों से होती। यह कहलाया- ग्लैडिएटर! 

खेल के साथ-साथ उन्होंने ग्रीक देवताओं के मंदिर भी बनाने शुरू किए। रोम के अपने राज्य-देवता बने- जूपिटर।

मिथक यह था कि सैटर्न (Saturn) अपने सभी पुत्रों (नेप्च्यून, प्लूटो आदि) को खाते जा रहे थे। जब जूपिटर पैदा हुए, तो उनको कहीं छुपा कर पाला-पोसा गया। आखिर, जूपिटर ने अपने पिता को युद्ध में हरा कर सभी खाए हुए पुत्र उगलवाए और स्वर्ग पर कब्जा किया।

खैर, मेरी रुचि मिथक में नहीं, इससे जन्मी प्रवृत्ति से है।

हुआ यूँ कि राजा टारक्विन ने अपनी एक दासी के पुत्र सर्वियस को अपना उत्तराधिकारी चुना। संसद ने भी अनचाहे मन से इस पर सहमति दे दी। मगर थे तो सर्वियस एक दास-पुत्र। भला यह अति-पिछड़ा वर्ग का राजा रोमनों को क्यों भाता? 

राजा सर्वियस के लिए सबसे बड़ा खतरा टारक्विन के दो पुत्र राजकुमार लुसियस और आर्नियस थे। उन्होंने राजकुमारों को अपने खेमे में लेने के लिए अपनी बेटियों का विवाह उनसे करा दिया। इस तरह अपनी सूझ-बूझ से उन्होंने लगभग चार दशक तक राज किया। 

मगर राजकुमार लुसियस राजगद्दी को अपना पैतृक अधिकार समझते थे। इसके लिए वह किसी हद तक जा सकते थे।

उन्होंने अपनी पत्नी और भाई, दोनों की हत्या कर दी, और इस षडयंत्र में शामिल अपनी भाभी टुलिया से विवाह कर लिया। ध्यान रहे कि उनकी भाभी भी राजा सर्वियस की ही बेटी थी, लेकिन अब वह अपने पिता को मार कर रानी बनना चाहती थी।

राजमहल में घुस कर लुसियस सीधा राजगद्दी पर बैठ गये। जब राजा सर्वियस ने देखा तो भड़क कर पूछा, “यहाँ बैठने की तुम्हारी जुर्रत कैसे हुई?”

लुसियस उन्हें लात मार कर घसीटते हुए बाहर सड़क पर ले गए और कहा, “तुम दास हमारी जूती के बराबर हो! तुम्हारी यही जगह है। राजगद्दी पर बैठने का हक़ सिर्फ़ हम कुलीनों को है”

लुसियस के कुलीन मित्रों द्वारा राजा सर्वियस को रोम की सड़क पर पीट-पीट कर मार डाला गया। रानी टुलिया नए राजा के साथ एक बग्घी पर बैठ कर, अपने पिता के रक्तरंजित शव को रौंदते हुए गयी। लुसियस टारक्विन सुपरबस प्राचीन रोम (गणतंत्र से पूर्व) के पहले राजा थे, जो चुने नहीं गये और बलपूर्वक गद्दी पर बैठे। 

वही आखिरी राजा भी थे। 
(क्रमशः) 

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

रोम का इतिहास (3)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/04/3.html
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