Sunday, 10 April 2022

शंभूनाथ शुक्ल / कोस कोस का पानी (40) जिम कार्बेट के राजा

कुछ भी हो बाघ अगर देखने हों तो जिम कार्बेट और अमानगढ़ सबसे उम्दा अभयारण्य हैं। दिल्ली से जिम कार्बेट जाने का सबसे सुगम रास्ता है वाया गजरौला,  मुरादाबाद और राम नगर होकर। रामनगर में रात बिताकर सुबह आप जिम कार्बेट में प्रवेश ले सकते हैं। जिम कार्बेट के अंदर वन विभाग के रेस्ट हाउसेज हैं पर उनमें बुकिंग पहले से करानी पड़ती है क्योंकि आम तौर पर वे फुल ही रहते हैं। 

धनगढ़ी गेट से प्रवेश लेकर आप ढिकाला पहुंच सकते हैं वहां पर फारेस्ट के रेस्ट हाउसेज के अलावा एक गेस्ट हाउस भी हैं उसमें कई रूम मिल जाते हैं। इसके अलावा रामनगर-धनगढ़ी रूट में रामगंगा के किनारे बहुत सारे प्राइवेट होटल और रिजॉर्ट भी हैं। रामनगर में भी होटल बेहतर हैं। अभयारण्य के भीतर सिर्फ फारेस्ट के गेस्ट हाउस हैं। वहां पर निजी होटल खोलने की अनुमति नहीं है। दिल्ली से जिम कार्बेट की दूरी 245 किमी है तो लखनऊ से 450 किमी। दोनों ही राजधानियों से रेल सेवा भी है और बस सेवा भी। निजी गाडिय़ों से भी पहुंचा जा सकता है। दोनों ही स्थान से हाई वे कामचलाऊ हैं। लखनऊ से एनएच-24 के जरिए आप बरेली आ सकते हैं और वहां से पंतनगर होते हुए जिम कार्बेट पहुंचा जा सकता है। यह एनएच-24 बस सीतापुर तक ही बेहतर है और फोर लाइन है जबकि दिल्ली से मुरादाबाद तक एनएच-24 फोर लेन का है। आगे का रास्ता आप सामान्य जिला पंचायत व स्टेट हाई वे पर चलते हुए पूरी करते हैं। गजरौला के सिवाय खाना-पीना रास्ते में नहीं मिलेगा इसलिए बेहतर रहे कि गजरौला के मिडवे पर ही भोजन या ब्रेकफास्ट कर लें. मुरादाबाद शहर में जाने की कोई जरूरत नहीं है। इसी तरह लखनऊ से आने वालों के लिए बेहतर स्थान हाई वे होटल हैं या फिर बरेली के होटल-रेस्त्रां।

जिम कार्बेट में आप अपनी गाड़ी नहीं ले जा सकते इसलिए आपको जंगल सफारी ही बुक करानी पड़ेगी। जंगल सफारी के लिए जो जीप मिलती है वह आम तौर पर जिप्सी है और खुली हुई तथा पेट्रोल से चलने वाली। जंगल के अंदर डीजल गाडिय़ों का प्रवेश निषेध है। जंगल सफारी के लिए आप शेयर टैक्सी भी ले सकते हैं और पूरी जिप्सी भी बुक करा सकते हैं। यह सब कुछ वन विभाग के नियंत्रण में ही है। यहां पर एलीफेंट सफारी का आनंद भी ले सकते हैं। सुबह-सुबह ढिकाला से आप हाथी बुक करा सकते हैं और तड़के चार बजे से ही हाथी अपनी सवारियों को लेकर निकल जाते हैं। वैसे आमतौर पर मृगराज के मिलने की संभावना एलीफेंट सफारी से ही अधिक होती है। हाथी से बाघ भी दूर की नमस्कार पसंद करता है और हाथी भी अपने प्रतिद्वंदी का उतना ही आदर करता है मगर यदि टस्कर टकरा जाए तो न तो आपको लेकर जाने वाली हथिनी की खैर और न ही बाघ की। ऐसे मौकों को महावत आमतौर पर टालने का प्रयास करते हैं अथवा फारेस्ट गार्ड को आवाज देकर टस्कर को ट्रंक्वालाइजर  से बेसुध करवाते हैं। पर जिप्सी के शोर से जानवर आमतौर पर दूर रहते हैं। हालांकि जंगल में रहने वाले जानवर अब जिप्सी के शोर के आदी भी हो चुके हैं।

हालांकि मैं निजी तौर पर एनएच-24 के जरिए वाया मुरादाबाद, काशीपुर, रामनगर का रास्ता पकडऩे की बजाय मेरठ, मवाना, बिजनौर का रास्ता पकडऩा पसंद करता हूं इसके जरिए हम कालागढ़ गेट से जिम कार्बेट में प्रवेश करते हैं। अथवा यूपी के अमानगढ़ फारेस्ट रेस्ट हाउस में रात बिताकर अगले रोज जिम कार्बेट में जाता हूं। अमानगढ़ के जरिए जाने पर उत्तर प्रदेश वन विभाग आपके लिए उत्तराखंड वन विभाग से विशेष अनुमति लेता है। इस रास्ते के दो लाभ हैं। एक तो इसके जरिए हम उस भीड़-भड़क्का व प्रदूषण से बच जाते हैं जो दिल्ली के शौकिया पर्यटक फैलाया करते हैं। दूसरे इसी बहाने एशिया के सबसे ऊँचे मिट्टी के बांध को भी देख लेते हैं जो कालागढ़ से सात किमी ऊपर है। और असली फायदा तब होता है जब इस या तो कालागढ़ के जंगल में अथवा अमानगढ़ के सघन वन प्रांतर में वनराज दिख ही जाते हैं। अब जिम कार्बेट का नाम भले हो मगर वनराज पर्यटकों की हायतौबा से घबराकर यूपी के जंगलों की तरफ खिसक लिए हैं। कालागढ़ का जंगली प्रांतर भी यूपी में पड़ता है। मैं आमतौर पर सुबह छह बजे निकलता हूं और साठ किमी मेरठ तथा वहां से 85 किमी बिजनौर का रास्ता तय कर बाद में 75 किमी और गाड़ी भगाता हूं तथा 12 बजे दोपहर तक अफजलगढ़ पहुंच जाता हूं। वहां पर द्वारिकेश चीनी मिल है जिसके कार्मिक प्रबंधक हैं अनिल कुमार सिंह पवार। वे इस कदर मेहमान-नवाज हैं कि आगंतुक अतिथि को एक दिन तो अपने यहां रोकेंगे ही तथा मिल दिखाते समय अपनी बड़े दाने की सुस्वादु चीनी का स्वाद अवश्य चखाएंगे। अनिल भाई बागपत के मशहूर गाँव ककड़ीपुर के हैं। वही ककड़ीपुर, जहां की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री महिम चौधरी है। वे जाट हैं और वैसे ही भले और पक्की दोस्ती रखने वाले प्यारे इंसान भी।  हम यहां से दो रास्तों पर जा सकते हैं। एक तो सीधे कालागढ़ जाया जाए जो यहां से दस किमी है। दूसरा सीधे यूपी के अमानगढ़ फारेस्ट में प्रवेश कर लिया जाए। 
अमानगढ़ जाने के लिए द्वारिकेश चीनी मिल से निकलते ही जंगल का कच्चा रास्ता पकड़ लेना पड़ता है और वहां पर चूंकि अपनी गाड़ी ले जा सकते हैं इसलिए बेहतर रहे कि वन विभाग के दो बंदूकधारी गार्ड भी साथ में ले लें। जंगल का कोई भरोसा नहीं कब कौन-सा जानवर मिल जाए तब ये गार्ड उन्हें हवाई फायर से डरा सकते हैं अथवा ट्रैक्वालाइजर के चलते कुछ क्षणों के लिए उन्हें बेसुध कर सकते हैं। किसी भी रिजर्ब फारेस्ट में आप कोई भी हथियार लेकर नहीं प्रवेश कर सकते हैं। यहां तक कि अपना लाइसेंसी हथियार भी वन विभाग में जमा कराना होगा। अमानगढ़ में यूपी फारेस्ट का एक गेस्ट हाउस है। और रुकने की बेहतर व्यवस्था। वहां पर स्थानीय रेंजर के जरिए आप सुइट बुक करा सकते हैं। पर दो दिक्कतें हैं। एक तो भोजन का इंतजार करना होगा. वहां का चौकीदार भोजन बना तो देगा मगर आटा, दाल, चावल, सब्जी लानी होगी. दूसरे यदि रात को लाइट चली जाए तो जेनसेट के लिए डीजल का प्रबंध भी आपको ही करना पड़ेगा। बहरहाल यहां जंगल घना है और मृगराज या गजराज के दर्शनों की संभावना खूब है. अफजलगढ़ से दूसरा रास्ता वाया कालागढ़ है। कालागढ़ का मशहूर डैम व हाईडिल का पावर हाउस देखने के बाद आप जिम कार्बेट में उत्तराखंड फारेस्ट डिपार्टमेंट से अनुमति लेकर तथा निर्धारित मूल्य चुका कर आप प्रवेश ले सकते हैं. वैसे कालागढ़ के जंगल में भी हाथी या बाघ आपको मिल ही जाएंगे। 
(जारी)

© Shambhunath Shukla

कोस कोस का पानी (39)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/04/39.html 

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