Saturday, 15 January 2022

प्रवीण झा - दक्षिण भारत का इतिहास - दो (8)

“हमें हमारे हिस्से का न्याय चाहिए। सरकार ने हमें 71 सीटें दी हैं, जो मुझे उचित लगती है”, अम्बेडकर ने कहा

(प्यारेलाल लिखते हैं कि अंबेडकर जोर-जोर से ‘I want compensation’ दोहरा रहे थे। यह जितना रूखा लग रहा था, उतना ही उनकी दृढ़ता को दर्शा रहा था)

“आपके अनुसार उचित है”, गांधी ने कहा

“इतना ही नहीं, हम आरक्षित सीटों के अतिरिक्त आम चुनाव में भी मत डाल सकते हैं। इससे बेहतर हमारे लिए क्या होगा? इसमें आपने भी हमारी सहायता की है।”

“मुझे आपसे पूरी हमदर्दी है। लेकिन, आपने लिखा था कि आप मेरे जीवन के लिए चिंतित हैं।”

“अगर आपने अपना जीवन हम दलितों के लिए अर्पित कर दिया, तो आप सदा के लिए हमारे नायक बन जाएँगे।”

“यह आपने बहुत प्यारी बात कही।”

“हमारे मध्य जो भी समझौता हो, उसमें हमें पूरा न्याय मिले। सिर्फ़ यह चाहता हूँ।”

तीन दिन के व्रत के बाद गांधी कमजोर लग रहे थे, और धीमा बोल रहे थे। मगर उनकी आवाज अब हल्की ऊँची हुई। 

“आपने अपनी बात बहुत स्पष्टता से कही। आपको न्याय तो मिलेगा ही, किंतु इस कानून से पहले मुक्ति पानी होगी। आपके अनुसार इन सीटों पर पहले एक दलित पैनल का चुनाव होगा। यह अगर अच्छी योजना है तो आप ऐसी योजना की माँग सभी सीटों पर रखिए। हर सीट पर, हर पिछड़ा वर्ग से पैनल तैयार हो। इससे सभी क्षेत्रों के दलितों को न्याय मिलेगा। आप जन्म से अछूत हैं, मैं मन से अछूत हूँ। मैंने अपने पहले राजनैतिक भाषण में कहा था कि मैं एक भंगी को कांग्रेस अध्यक्ष रूप में देखना चाहता हूँ। मैं जानता हूँ कि आपने जीवन में विष ग्रहण किया है, शोषण झेले हैं, इस कारण मैं स्वयं को आपके क्रोध का भागी समझता हूँ। 

मैं कभी नहीं चाहूँगा कि कोई भी हिंदू समुदाय मुझसे भिन्न कहलाए। हमें एक और अखंड रह कर जीना है। मैंने कहा है कि मैं इन चुनिंदा नहीं, सभी सीटों पर पैनल के लिए तैयार हूँ।”

यह सुन कर अम्बेडकर और डॉ. सोलंकी (उनके सहयोगी) आश्चर्यचकित रह गए। 

“मैं संयुक्त चुनाव के लिए तैयार हूँ। अब आप अगर सभी सीटों के लिए ऐसा करें, तो यह आपकी सहृदयता है।”

“हाँ। मैं तैयार हूँ। मगर पैनल में सिर्फ़ दो न चुने जाएँ। कम से कम पाँच चुने जाएँ, तो मुझे यह बात समझानी आसान होगी। कुछ और तकनीकी बातें होंगी जो आप लोग मिल कर हल निकालें।”

रात होने लगी थी, तो अम्बेडकर ने गांधी को विश्राम करने कहा और वे लोग वहाँ से वापस चले आए। इस मध्य जेल के बाहर यह अफ़वाह फैल गयी कि समझौता बिगड़ गया है। मदन मोहन मालवीय ने देशव्यापी अपील कर दी थी कि हर हिंदू प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखे कि यह कानून वापस लिया जाए। उन्हें शक था कि डॉ. अम्बेडकर कभी नहीं मानेंगे, लेकिन गांधी से मिलने के बाद स्थिति बदल गयी थी।

अगला दिन शुक्रवार था। पंडित मदन मोहन मालवीय के आवास पर एक संगमरमर की मेज के साथ कुर्सियाँ लगायी गयी। अम्बेडकर और उनके सहयोगियों का वहाँ स्वागत हुआ। चुनीलाल मेहता और मुकुंद जयकर ने काग़ज़ पर पहले से कुछ बिंदु और आँकड़े लिख रखे थे। राजगोपालाचारी, घनश्याम दास बिरला और तेजबहादुर सप्रू भी आकर अम्बेडकर के दूसरी तरफ़ बैठ गए।

(प्यारेलाल के अनुसार इनमें सबसे अनुशासित और केंद्रित डॉ. अम्बेडकर की टीम लग रही थी)

“प्रधानमंत्री ने 71 आरक्षित सीटें दी हैं। अगर हमें हिंदू क्षेत्र से चुनाव लड़ना है, तो हमें 191 सीटें मिलें।”, अम्बेडकर ने स्पष्ट माँग रखी

“हमें यह जनसंख्या के आधार पर देखना होगा। मैं आँकड़े लेकर आया हूँ। हम मिल कर एक बार गणना कर लें। मुझे सीटें कुछ ज्यादा लग रही है।”, एक साँख्यिकी विशेषज्ञ ए वी ठक्कर ने कहा

अगले दो घंटे तक अम्बेडकर, ठक्कर और बाखले मिल कर इन आँकड़ों से गणना करने लगे, और 160 सीटों तक बात पहुँची। 

“पैनल में कितने लोग हों?”, सप्रू ने पूछा

“मैंने दो कहा है। गांधी पाँच कहते हैं। मैं तीन के लिए राजी हूँ।”, अंबेडकर ने कहा

“चार के पैनल पर सहमति रखी जाए।” सप्रू ने काग़ज़ पर नोट किया

अम्बेडकर कहीं से भी झुकने वाले नहीं लग रहे थे। वह एक-एक बात पर अपने अधिकारों के लिए सचेत थे। इसलिए यह दलील ग़लत है कि उन्हें ‘ब्लैकमेल’ कर कोरे काग़ज़ पर हस्ताक्षर कराए गए। 

“डॉ. अम्बेडकर! आपने लिखा है कि दस वर्ष बाद यह प्राथमिक चुनाव खत्म कर दिया जाएगा, और पच्चीस वर्ष बाद एक जनमत होगा कि आरक्षित सीटें भी खत्म की जाएँ।”, राजागोपालाचारी ने एक काग़ज़ पढ़ते हुए कहा

“हाँ। मेरा यही सुझाव है कि दलितों को जब बेहतर प्रतिनिधित्व मिल जाएगा, तो इसकी जरूरत नहीं रहेगी। लेकिन मैं स्पष्ट नहीं हूँ कि सैकड़ों वर्ष का शोषण पच्चीस वर्षों में खत्म होगा। इसलिए जनमत की बात कही।”

“पच्चीस वर्ष बहुत ज्यादा हैं। एक समय बाद चीजें रूढ़ हो जाती हैं। आप इसे घटा कर पंद्रह वर्ष कर दें। स्वयं प्रधानमंत्री के कानून में बीस वर्ष लिखा है।”

“दलित शोषित समाज की कोई भी माँग ज्यादा नहीं है। लेकिन, मेरा मानना है कि बीस वर्षों तक परिश्रम कर हमें ऊपर उठना ही होगा, और इससे मुक्ति पानी होगी। जनमत सिर्फ़ इसलिए कि सवर्ण हिंदू भी सहयोग करें, अपना व्यवहार बदलें, ताकि यह आरक्षित प्रतिनिधित्व हट सकें”

शाम ढलने लगी थी, और अब भी बात चल ही रही थी। इतने में देवदास गांधी उस मीटिंग में आए, और सीधे अम्बेडकर के पास पहुँचे, “डॉक्टर साहब! मैं अभी बापू से मिल कर आ रहा हूँ। उनकी स्थिति अब अच्छी नहीं। आपलोग अगर अपने निर्णय जल्दी ले लें, तो बहुत उपकार होगा।”

9 बजे रात को अम्बेडकर दुबारा जेल पहुँचे। जेल के सुपरिंटेंडेंट भंडारी ने किसी भी आगंतुक को अब मिलने से मना कर रखा था, लेकिन इस निर्णय पर तो पूरे देश की नज़र थी। उन्होंने उन्हें अंदर आने दिया। 

“महात्माजी! आपको हमारी मदद करनी ही होगी। आपके मित्र जनमत करने पर प्रश्न उठा रहे हैं।”

“मैं तो जनमत के लिए सदैव तैयार हूँ। किंतु दस, पंद्रह या पच्चीस वर्ष क्यों? आप मुझे कम समय दें। मैं सवर्ण हिंदुओं के हृदय-परिवर्तन का प्रयास करुँगा। आप हर पाँच साल में एक जनमत कराएँ। जब भी आपके समाज को संतुष्टि मिले, तब आप आगे की निर्णय लें।”

“मैं दस वर्ष के लिए तैयार हूँ, अगर जनमत दोहराया जाए”

“मुझे आशा है कि सवर्ण हिंदू भाई ऐसी स्थिति नहीं आने देंगे कि जनमत दोहरानी पड़े। मेरा प्रयास रहेगा कि वे आपको पूरा सहयोग दें।”

इतने में डॉ. मेजर मेहता ने अम्बेडकर के पास आकर कहा कि अब रात अधिक हो गयी है। गांधी जी का रक्तचाप अधिक है, तो उन्हें आराम करने दें। अम्बेडकर ने गांधी से जाने की आज्ञा माँगी, और अगले दिन सुबह से फिर चर्चा शुरू हुई।
(क्रमशः)

नोट: अम्बेडकर ने अपने आख़िरी साक्षात्कार (यूट्यूब पर उपलब्ध) में कहा था कि उन्होंने गांधी को कभी महात्मा नहीं कहा, न ही माना। किंतु प्यारेलाल के इस ट्रांसक्रिप्ट और महादेव देसाई के पूर्व ट्रांसक्रिप्ट में यह शब्द आया है। यह संभव है कि उन्होंने सिर्फ़ संवाद को रूप देने के लिए ‘महात्माजी’ का प्रयोग किया हो।

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

दक्षिण भारत का इतिहास - दो (7)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/01/7_15.html 
#vss

No comments:

Post a Comment