Thursday, 6 January 2022

प्रवीण झा - दक्षिण भारत का इतिहास (17)

            (चित्र: कुडीयारसू अखबार)

पेरियार और गांधी की उम्र में दस वर्ष का अंतर था। वायकौम सत्याग्रह से पहले गांधी अफ़्रीका और भारत में कई सत्याग्रह और एक असहयोग आंदोलन कर चुके थे। तिलक की मृत्यु के बाद उनका स्थान राष्ट्र के शीर्ष नेता रूप में स्थापित हो चुका था। पेरियार का करियर तो शुरू ही हो रहा था। वह पहले गांधी में भविष्य देखते थे। जब उन्हें हाड़-माँस में करीब से देखा और सुना, तो उन्हें कुछ निराशा हुई।

गांधी ने पेरियार और अन्य सत्याग्रहियों से कहा, 

“मैं स्वयं को एक सनातनी हिंदू मानता हूँ। मैं यह मानता हूँ कि जो भी सार्वजनिक सड़क है, उस पर किसी जाति, किसी धर्म के लोग चल सकते हैं। किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि मैं वर्णाश्रम का विरोध करता हूँ। मैं यह भी नहीं कहता कि हमें जबरन मंदिरों में प्रवेश करना चाहिए, दूसरे वर्णों में विवाह करना चाहिए, या इच्छा के विरूद्ध उनके साथ भोजन करना चाहिए। ऐसे प्रश्न बहुत नाज़ुक हैं। भविष्य में अगर ऐसी परंपरा बनती है, तो यह सहजता से किया जा सकता है। लेकिन, ज़बरदस्ती ऐसी माँग रखना अभी अनुचित है। 

अगर ब्राह्मण अपना निजी मंदिर, निजी विद्यालय बनाना चाहते हैं, तो उन्हें इसकी स्वतंत्रता है। इसी तरह अन्य जातियों और धर्मों को भी है। लेकिन, अगर यही मंदिर या विद्यालय सार्वजनिक है, तो वहाँ भेद-भाव न हो। 

मैं एक बात पर आजीवन अड़ा रहूँगा कि हमारे धर्म में कोई भी अछूत न हो। यह एक साधारण मानवीय चेतना है। अगर हमारे शास्त्रों में ऐसा कोई निर्देश रहा है, तो अब उसमें सुधार की ज़रूरत है।”

पेरियार ने जब यह सुना तो उन्हें यह स्पष्ट हो गया कि गांधी ब्राह्मणों या ब्राह्मणवाद के विरुद्ध नहीं है। बल्कि वह इसे स्थापित रहने देना चाहते हैं। फिर भी, गांधी आए थे, तो वह उनके साथ घूमते रहे। 

गांधी ने पेरियार से कहा, “रामास्वामी! मैं एक बार संत नारायण गुरु से मिलना चाहता हूँ”

पेरियार और राजाजी उन्हें लेकर नारायण गुरु के पास गए। नारायण गुरु को देख कर भी पेरियार को यही लगा कि वह दलितों को संस्कृत पढ़ा कर, शिव मंत्रोच्चार करा कर, उन्हें ब्राह्मण ही बना रहे हैं। इससे तो अंतत: ब्राह्मणवाद ही मजबूत होगा।

पेरियार ने उसी दौरान दलितों के मध्य एक भाषण में कहा, 

“अगर आपके पास कोई आर्य समाजी सुधारक आए, और कहे कि आपको जनेऊ पहनाया जाएगा, तो वह आपको बेवकूफ़ बना रहा है। आपको वह भविष्य के लिए एक शोषक बना रहा है। जिस जनेऊ ने आप पर इतना अत्याचार किया, क्या उसे ही आप धारण करेंगे?”

गांधी-नारायण गुरु संवाद के समय पेरियार वहीं बैठे थे।वह संवाद तो मैं पहले ‘रिनैशाँ’ पुस्तक में लिख चुका हूँ। एक प्रचलित किंवदंती यहाँ जोड़ देता हूँ। 

गांधी ने दो-चार पीपल के पत्ते तोड़ कर नारायण गुरु को दिखाए और कहा, “गुरु जी! ये पत्ते कितने भिन्न हैं। कोई बड़ा है, कोई छोटा। लेकिन ये सभी मिल कर एक वृक्ष बनाते हैं”

नारायण गुरु चूँकि संस्कृत ही समझते थे, उन्हें अनुवाद कर समझाया गया। उन्हें लगा कि गांधी यह कह रहे हैं कि ऊँची जाति और नीची जाति में अंतर रहेगा ही, जैसा इन पत्तों में है। 

उन्होंने कहा, “महात्मा से कहिए कि वह इन पत्तों को पीस कर चबा जाएँ, और फिर बताएँ कि बड़े और छोटे पत्तों के स्वाद में क्या अंतर है? कोई अंतर है भी या नहीं?”

नारायण गुरु से मिलाने के बाद पेरियार गांधी को लेकर त्रावणकोर की महारानी के पास गए। उन्होंने वादा किया कि मंदिर के रास्ते सभी जातियों के लिए खुल जाएँगे, सिर्फ़ प्रवेश वर्जित होगा। हालाँकि प्रवेश तो खैर गांधी को स्वयं नहीं मिल सका। कन्याकुमारी मंदिर में उनको पुरोहितों ने बाहर ही रोक दिया, क्योंकि वह इंग्लैंड यात्रा कर चुके थे। (डेढ़ दशक बाद इसी मंदिर में त्रावणकोर के महाराजा ने उनका स्वागत किया जब मंदिरों में सार्वजनिक प्रवेश का कानून बना।)

इस सत्याग्रह की शुरुआत से मोमेंटम बनाए रखने के लिए पेरियार को ‘वायकौम वीर’ की उपाधि मिली। उन्होंने गांधी के संसर्ग में शायद एक बात सीखी कि गांधी लिखते बहुत थे। उनसे मुलाक़ात के दो महीने बाद ही पेरियार ने अपने विचार लिखने शुरू किए। उन्होंने अपनी पत्रिका ‘कुडी आरसू (कुडीयारसु)’ निकालनी शुरू की, जिसका अर्थ था - गणतंत्र।

इस पत्रिका के माध्यम से एक नए आंदोलन के बिगुल बज रहे थे- स्वय मर्यदइ इयक्कम ( स्वाभिमान आंदोलन)। पेरियार ने अपनी मृत्यु से पहले 94 वर्ष की अवस्था में दिए आखिरी भाषण में कहा था- “इस आंदोलन का उद्देश्य पाँच  चीजों का नाश था- भगवान, धर्म, कांग्रेस, ब्राह्मण और…गांधी!”
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

दक्षिण भारत का इतिहास (16)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/01/16.html
#vss 

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