Thursday, 27 January 2022

प्रवीण झा - दक्षिण भारत का इतिहास - दो (19)

(चित्र: अन्ना, करुणानिधि, एम जी आर, पेरियार)

तमिलों को आज़ाद भारत में क्या स्थान मिला? पहला तो यह कि भारत के पहले और एकमात्र भारतीय गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचार्य बने। वल्लभभाई पटेल के देहांत के बाद वह अल्पकालिक गृहमंत्री भी बने। वहीं, एन. गोपालस्वामी आयंगार को कश्मीर मंत्रालय मिला, और उन्होंने धारा 370 तैयार किया। लेकिन, ये दोनों तमिल ‘ब्राह्मण’ थे। जॉन मथाई भी केंद्रीय मंत्री थे, और वह मद्रासी ईसाई थे।

जिस तरह अम्बेडकर या श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे विरोधियों को महत्वपूर्ण स्थान मिला, उस तरह एक प्रमुख द्रविड़ आंदोलन नेता को स्थान क्यों नहीं मिला? पेरियार या अन्नादुरइ को जगह देने से क्या स्थिति बेहतर होती? जगह देना तो दूर, उनका दमन किया गया। 

गांधी की मृत्यु के बाद मद्रास के प्रधानमंत्री रामास्वामी रेड्डियार ने काले कुर्तों पर प्रतिबंध लगा दिया। उसके ठीक बाद एक पुराना जख्म कुरेदा गया। पेरियार से बिना किसी मंतव्य के हिंदी को अनिवार्य भाषा रूप में लागू कर दिया गया। कांग्रेस ने पिछला हिंदी-विरोधी आंदोलन देखा था, तो इस बार पहले विमर्श कर सकती थी। 

अन्नादुरइ और पेरियार ने अपने झगड़े भुला कर फिर से आंदोलन की कमान पकड़ी। जब गवर्नर जनरल राजगोपालाचार्य अगस्त, 1947 में मद्रास दौरे पर आए, तो उनका काले झंडे से स्वागत किया गया। उन्होंने अन्ना और पेरियार, दोनों को कुछ दिन जेल भिजवा दिया। आंदोलन नहीं रुके। 

उसी वर्ष अक्तूबर में इरोड में एक बैलगाड़ी पर बिठा कर अन्नादुरइ को लाया गया। उनके साथ सत्तर वर्ष के पेरियार अपनी लाठी लिए पैदल चल रहे थे। पेरियार ने अन्ना के कंधे पर हाथ रख कर घोषणा की,

“अब वक्त आ गया है कि यह बूढ़ा बाप अपनी चाभी बेटे को सौंप दे”

अन्ना ने इस ज़िम्मेदारी का स्वागत किया और पिछले आंदोलन के अंदाज़ में ही इस बार भी खूब हंगामा किया। आखिर हिंदी की अनिवार्यता रद्द कर दी गयी। पेरियार और अन्ना ने विजय-घोष किया, लेकिन जल्द ही एक विचित्र घटना हुई।

14 मई, 1949 को गवर्नर जनरल राजगोपालाचार्य तिरुवनमलइ में मंदिर भ्रमण पर आए। उस दिन उनके परम मित्र और राजनैतिक शत्रु पेरियार एक सहयोगी स्त्री के साथ उन्हें मिले। जब यह खबर अखबार में छपी, तो अन्नादुरइ गुस्से में पेरियार के पास पहुँचे,

“आप हमसे बिना विमर्श किए राजगोपालाचार्य से मिलने क्यों गए?”

“यह कोई राजनैतिक नहीं, निजी मामला था। मुझे उनकी सलाह चाहिए थी”

यहाँ यह भी चर्चा कर दूँ कि गांधी के व्यक्तिगत और पारिवारिक मामलों में भी राजगोपालाचार्य सलाह देते थे, और कुछ गंभीर मामलों में उन्होंने गांधी को लिखित फटकार भी दी थी। 

पेरियार ने उस वक्त अन्ना को कुछ नहीं कहा, लेकिन अगले महीने एक पत्र लिखा, “अपने गिरते स्वास्थ्य के मद्देनज़र मैंने अपने उत्तराधिकारी चुनने का निर्णय लिया है, जो मेरी संपत्ति और द्रविड़ कड़गम संभाल सके। मैं उसी सिलसिले में विमर्श के लिए आचार्य से मिलने गया था।”

अन्ना यह सुनते ही आग-बबूला हो गए। आखिर कुछ ही महीनों पहले उन्हें चाभी देने की बात हुई थी। अब यह कौन तीसरा आ गया? 

28 जून, 1949 को पेरियार ने कहा, “मैं अपना उत्तराधिकारी ट्रस्ट स्थापित कर रहा हूँ, और ज़िम्मेदारी मैं मनिअम्मइ को दे रहा हूँ। उसने पिछले पाँच वर्ष में मेरी और इस पार्टी की बहुत सेवा की है। चूँकि स्त्री होने के नाते उसे मेरी संपत्ति पर क़ानूनी अधिकार नहीं, इसलिए…मैं उससे विवाह कर रहा हूँ।”

यह खबर तो पार्टी में खलबली मचा गयी। सत्तर वर्ष के पेरियार एक बत्तीस वर्ष की युवती से विवाह कर रहे थे। पेरियार ने समझाया कि यह विवाह नहीं, एक तरह का दत्तक-पुत्र चुनना है। कानूनी तौर पर वह पुत्री को दत्तक उत्तराधिकारी नहीं बना सकते, इसलिए विवाह। 

अन्नादुरइ ने ‘द्रविड़ नाडु’ पत्रिका में लेख लिखा,

“आखिर एक तर्कशील आंदोलन के नेता को संपत्ति का लोभ कब से हो गया? एक लोकतांत्रिक दल में उत्तराधिकार का क्या अर्थ है? नारी अधिकारों के लिए लड़ने वाले पेरियार आज एक युवती का जीवन क्यों नष्ट कर रहे हैं? उनकी तानाशाही तो पहले से थी, अब जंगल राज भी शुरू हो गया।”

तमाम विरोधों के बावजूद 9 जुलाई, 1949 को उन्होंने विवाह किया। सितंबर में अन्नादुरइ ने पेरियार से अलग अपना दल ‘द्रविड़ मुनेत्र कड़गम’ बनाने की घोषणा करते हुए कहा,

“अपने मतभेदों के बावजूद हम पेरियार के आदर्श पर चल कर उनके संकल्प की पूर्ति की प्रतिज्ञा लेते हैं।”

पेरियार ने कहा,

“जीवनंदन मुझे छोड़ कर गया। पोलंबनार गया। बालसुब्रह्मण्यम गया। आज अन्ना भी चला गया। जाओ! जिसे जहाँ जाना है। मैंने यह लड़ाई अकेले शुरू की थी। अकेला ही काफ़ी हूँ।”

इस विभाजन के साथ ही तमिल राजनीति का नया अध्याय शुरू हुआ। अन्नादुरइ ने फ़िल्में बनानी शुरू की थी। दो उसी वर्ष रीलीज़ हुई। जल्द ही एक अभिनेता उनके बायें हाथ और स्क्रीनराइटर उनके दायें हाथ बनने वाले थे। एक का नाम था एम जी रामचंद्रन, और दूसरे का एम करुणानिधि। 

फ़िल्मी क्लाइमैक्स की तरह अन्ना के ये दो हाथ भी भविष्य में एक-दूसरे के शत्रु बन गए। 

(द्वितीय शृंखला समाप्त लेकिन अभी यह क्रम तीसरी शृंखला के रूप में जारी है)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

दक्षिण भारत का इतिहास - दो (18)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/01/18_26.html
#vss 

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