Sunday, 30 January 2022

प्रवीण झा - दक्षिण भारत का इतिहास - तीन (3)



“अम्बेडकर तीस के दशक में मुसलमान बनना चाह रहा था। मैंने रामनाथन के माध्यम से उसे चिट्ठी लिख कर समझाया कि हड़बड़ी में यह फैसला मत लो। मुसलमान समझते हैं कि उनका धर्म इतना  सिद्ध है, कि उसमें किसी बदलाव की ज़रूरत नहीं। जब बदलाव ही नहीं होगा, तो तुम्हारे जैसे तर्कशील व्यक्ति के लिए किसी काम की नहीं।”

- पेरियार, 1956 (अम्बेडकर के बौद्ध धर्म धारण पर बोलते हुए)

राजाजी के मुख्यमंत्री काल (1952-54) में पेरियार का सबसे आक्रामक रूप नज़र आता है। वह समय ऐसा था, जब पेरियार और अम्बेडकर, दोनों ही बौद्ध धर्म से खिंचे चले जा रहे थे। लेकिन, दोनों के मार्ग भिन्न थे। पेरियार एक अराजक व्यक्तित्व थे।

अगस्त, 1952 को चेन्नई के त्रिप्लिकेन बीच पर पेरियार दल-बल लेकर संविधान जलाने आ गए। उन्होंने कहा,

“मैं संविधान जलाने आया हूँ। पूछिए क्यों? 

क्या अंग्रेज़ों से पहले द्रविड़ों की धरती पर किसी ग़ैर-द्रविड़ ने राज किया? आज इन अंग्रेज़ों ने कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा जोड़ कर, एक मुसलमानों से सुने नाम का देश बना दिया। इंडिया! खैर, अब जो बन गया, वह तो बन गया। मगर अब हम पर अपनी भाषा थोपोगे? इतनी तो मुगलों और अंग्रेज़ों ने भी ज़बरदस्ती नहीं की। 

संविधान बनाने वाले कौन हैं? पौने तीन हिस्से ब्राह्मण, पाँच हिस्से रईस, और बाकी उनके नौकर। क्या लाखों गरीबों की राय ली गयी? आपने कहा था कि पहले आम चुनाव के बाद संविधान बनाएँगे, जनता से पूछेंगे, वह भी नहीं किया। 

आपका संविधान हम द्रविड़ों के शोषण के लिए बना है। अभी-अभी हमने एक लड़ाई लड़ी, मगर कब तक यूँ एक-एक बिंदु बदलते रहेंगे। हमने रामायण, महाभारत जलाया, अब संविधान भी जलाएँगे। ऐसा हर ग्रंथ जलाएँगे, जो हमारे शोषण के हथियार बनेंगे।”

मगर संविधान-निर्माता रूप में तो एक दलित नेता अम्बेडकर का ही नाम सभी की जबान पर है, फिर पेरियार ने ऐसा संविधान किस तर्क से जलाया? अम्बेडकर का ही मत लिया जाए। 

अगले वर्ष अम्बेडकर ने राज्यसभा में कहा, “लोग मुझ पर इल्जाम लगाते हैं कि मैंने संविधान बनाया। मैं यह स्पष्ट करना चाहूँगा कि अगर संविधान जलाया जाएगा, तो सबसे पहले मैं जलाऊँगा”

इसका एक अगले भाषण में स्पष्टीकरण देते हुए उन्होंने कहा, “संविधान जलाने की बात मैंने क्यों कही? आप एक मंदिर बनाते हैं, वहाँ देवता स्थापित करते हैं। अगर देवता से पहले वहाँ राक्षस आकर बस जाए, तो उस मंदिर का क्या करेंगे? मैं चेतावनी दे रहा हूँ कि यह संविधान ऐसे ही राक्षसों का हथियार बनता जा रहा है।”

पेरियार का अगला कार्यक्रम इससे भी अधिक भड़काऊ था। मगर मैं इस इतिहास को सेंसर कर दूँ, तो बात पूरी न होगी। 1953 में पेरियार ने तीन महीने का नोटिस देकर सार्वजनिक रूप से पिल्लयार (गणेश) की मूर्ति तोड़ने का ऐलान किया। उन्होंने कहा,

“हमें उन देवताओं को समाप्त करना ही होगा, जो किसी को ब्राह्मण तो किसी को शूद्र बनाते हैं। शूद्र दिन-रात पसीना बहाते हैं, और ये ब्राह्मण मूर्तियों को दीप दिखा कर धन कमाते हैं। पिल्लयार से शुरुआत इसलिए कर रहा हूँ, क्योंकि सभी शुभ कार्यों की शुरुआत इन्हीं से होती है। 

जब मैं मूर्ति तोड़ने की बात करता हूँ, तो यह स्पष्ट कर दूँ कि मैं किसी मंदिर प्रांगण में प्रवेश नहीं कर रहा। न ही किसी स्थापित मूर्ति को हानि पहुँचाऊँगा। हम यह मूर्तियाँ स्वयं बनवा कर लाएँगे। यह कार्य हम अपने खर्च पर, प्रतीकात्मक रूप में कर रहे हैं। किसी भी मंदिर को तनिक भी हानि नहीं पहुँचायी जाएगी।” 

27 मई, 1953 को ‘बुद्ध पूर्णिमा’ के दिन मूर्ति तोड़ते हुए पेरियार ने कहा, “मैं उस प्रतीक को तोड़ रहा हूँ, जिसने मुझे जन्मजात शूद्र बनाया”

1956 में अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। पेरियार कभी बौद्ध नहीं बने। शायद वह किसी धर्म के लिए बने ही नहीं थे। 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha

दक्षिण भारत का इतिहास - तीन (2)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/01/2_29.html 
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