Sunday, 16 January 2022

असग़र वजाहत का लघु उपन्यास - चहार दर (10)

सबसे पहले नवजोत आया और उसने सायमा का लटका हुआ मुँह देखा। फिर प्रदीप और सोनी आए। वे भी सायमा को देखकर कुछ हैरान हुए। बाद में नवीन, अल्का, सुखाँ, जसवीर आए...।
”यार, ये बात क्या है?“ अल्का ने सायमा से पूछा।
”क्या बात?“
”तेरा चेहरा?“
”अरे, वो कुछ नहीं।“
”नहीं, कुछ तो है।“ नवजोत बोला।
”कल लाहौर से रज़्ज़ाक साहब का फोन आया था। अभी उपाध्याय साहब आए थे...मुझसे कहा जा रहा है कि स्टोरी हो गई है। मैं फौरन वापस लौट जाऊँ।“
सब सन्नाटे में आ गए। सब खामोश।
”तो तू जाएगी?“ नवजोत ने पूछा।
सायमा खामोश रही।
”देख, पंजाब से...इंडिया वाले पंजाब से चार सौ मेल आए हैं।“ प्रदीप अपना लैपटाप खोलने लगा।
”बोल, तू जाएगी?“ अल्का ने फिर पूछा।
सायमा खामोश रही।
”बोलती क्यों नहीं?“ प्रदीप ने पूछा।
सायमा कुछ नहीं बोली।
”बोल दे...नहीं तो हम सब जा रहे हैं...‘रावी विरसा’ फिर किसी और सायमा का ‘वेट’ करेगा।“
”बता भी, हमें क्यों परेशान कर रही है?“ जसवीर बोली।
”नहीं...नहीं...नहीं...।“ सायमा चीख़ी।
”चक दे सायमा।“ नवजोत और प्रदीप ने सायमा को उठा लिया...और सोनी गिटार बजाने लगा।
...रवि और सुखाँ शेर अली वाला गीत गाने लगे।
आफिस जग गया। धड़ाधड़ ई-मेल जाने लगे। ड्राफ्ट बनने लगे। माँग है, ”शेर अली का फिर से पोस्टमार्टम कराया जाए।“
कमरे में घंटी बजी। अल्का ने दरवाज़ा खोला। सामने प्रो. रंधावा खड़े थे।
”सर...सतश्रीअकाल...।“
”सतश्रीअकाल...कैसे हो तुम लोग...स्टूडेंट जब बहुत मशहूर हो जाते हैं तो स्टार हो जाते हैं।“ वे हा-हा-हा करके हँसे।
”आओ जी बैठो।“ नवजोत ने सोफा खिसकाया।
”देखो जी...उपाध्याय जी से मुझे सब पता लग गया है...सायमा तू चिन्ता न कर..।“
”जिंदाबाद रंधावा सर...“ नवजोत ने नारा लगाया।
”जिंदाबाद।“ बाक़ी सब चिल्लाए।
”ओए रुक जाओ...इतना न गला फाड़ो...गल्ल ये है कि सायमा को मैं लेने आया हूँ...ये मेरे परिवार के साथ रहेगी...मेरी कोठी में...चलो सामान उठाओ।“
”सर अभी...।“ सायमा बोली।
”मुझे सब मालूम है...तेरे अख़बार वाले...तुझे अब पैसा नहीं देंगे...समझी...“
”कल आ जाऊँगी सर...।“
”चल ठीक है...दूसरे ये कि एक ‘स्कूप’ है तुम सबके वास्ते।“
”क्या जी।“ सायमा ने पूछा।
”पुलिस...शेर अली को दफन करने का फैसला ले चुकी है।“ वे बोले।
”अरे....‘पोस्टरमार्टम’ की डिमांड?“
”उसी से बचने के लिए।“
”पर ये तो बड़ी नाइंसाफी है।“
”और उन बंदों से क्या उम्मीद है।“
”सर हम पुलिस कमिशनर से बात करें।“
”हाँ-हाँ करो...पर ये समझ लो...फैसला बहुत ‘हाई लेवल’ पर हो चुका है।“
”तो अब?“
”देखो गल्ल ये है कि पुलिस ने बिना किसी को बताए, चुपचाप शेर अली को दफन कर दिया तो बस सिर पीटते रह जाओग...उसे कब्र से निकाल तो सकते नहीं...तो पहली बात ये कहो कि शेर अली लावारिस नहीं था...उसके लड़के हैं, औरत है...उन्हें लाश सौंप दी जाए या पुलिस उसके रिश्तेदारों के सामने दफन करे और कुछ नहीं तो कम-से-कम पहले बता दिया जाए कि शेर अली को कब दफन किया जाएगा।“ प्रो. रंधावा ने कहा।
 
कोर्ट रोड पर प्रो. रंधावा की आलीशान कोठी है जो उनके पिता सरदार जगमोहन सिंह रंधावा, रिटायर्ड चीफ जस्टिस पंजाब हाईकोर्ट ने बनवाई थी। जगमोहन रंधावा बंटवारे से पहले लाहौर हाई कोर्ट के बहुत अच्छे वकीलों में गिने जाते थे। वे यूनियनिस्ट पार्टी के नेता भी थे। कोठी के सामने हज़ार गज का लाॅन है, पीछे किचन गार्डेन है और एक छोटा-सा बग़ीचा है। अब इस कोठी में बस दो बंदे रहते हैं। प्रो. और मैडम रंधावा, क्योंकि परिवार के तीनों बच्चे अमेरिका और कनाडा में हैं...अब शायद ही कभी कोई वापिस आए। सर्वेंट क्वाटरों में रंधावा साब के माली, ड्राइवर, बावर्ची अपने ख़ानदानों के साथ रहते हैं जिससे कोठी में कुछ चहल-पहल बनी रहती है।
प्रो. रंधावा ने सायमा को पूरा ग्राउंड फ्लोर दे दिया है। एक बड़ा-सा हाल जिसे कभी जस्टिस रंधावा अपने पब्लिक हाल या ‘दीवाने आम’ के तौर पर इस्तेमाल करते थे। इस हाल के दाएँ-बाएँ बने चार कमरे और अटैच बाथरूम, एक स्टडी, लायबे्ररी है। अब यहाँ ‘रावी विरसा’ गु्रप की बैठकें बड़ी आसानी से होती हैं। जब कभी कोई बहुत थक जाता है या रात में वापस लौटने से बचना चाहता है तो यहीं सो जाता है। खाने-पीने की कोई कमी नहीं है। भोला जिंदाबाद।
 
‘रावी विरसा’ गु्रप पुलिस कमिश्नर का इंटरव्यू करने गया था, लेकिन पुलिस कमिश्नर इस पर तैयार नहीं हुए। इन लोगों को सिर्फ़ पुलिस के पी.आर.ओ. से ही बात करके संतुष्ट जो जाना पड़ा। लेकिन इतना तय हो गया था कि अब पुलिस शेर अली को बिना बताए, छिप-छिपाकर दफन नहीं कर पाएगी। पहले यह कोशिश की जाएगी कि पाकिस्तान से उसके परिवार वालों को लाश दे दी जाए और अगर यह नहीं हो पाएगा तो अमृतसर में उसे दफन किया जाएगा।
इन हालात की जानकारियाँ ‘रावी विरसा’ लगातार पूरे मीडिया और अपने दोस्तों को दे रहा है। हर ई-मेल का बड़ी पाबंदी से जवाब दिया जाता है। दोनों तरफ के पंजाब में शेर अली को लेकर स्टूडेंट्स में बड़ा उत्साह है। सब ये चाहते हैं कि शेर अली ने जो सवाल उठाए हैं उनके जवाब दिए जाने चाहिए और शेर अली की  कुर्बानी बेकार नहीं जानी चाहिए।

‘रावी विरसा’ में गरमागरम बहसें होती हैं। ई-मेल पर लोग अपनी-अपनी राय भेजते हैं। ठीक है कि पार्टीशन के इतने साल हो गए हैं लेकिन कुछ सवाल अभी तक जवाब का इंतज़ार कर रहे हैं। उनके जवाब तलाश करने चाहिए। पंजाबी ज़बान और पंजाबी तहज़ीब इस पतली-सी लकीर पर कुर्बान तो नहीं की जा सकती? इंसनी जज़्बात और मिट्टी से मोह काग़ज़ पर खींची लकीर से ख़त्म नहीं हो सकते? माना कि अब ये हकीकत है लेकिन  इसको बरतने के सैकड़ों तरीके हो सकते हैं। हम कौन-सा तरीका अपनाना चाहते हैं? फिर दुनिया की तरफ निगाह उठाकर देखो।  योरोप के वे देश जिनकी जु़बानें अलग हैं, तहज़ीब अलग हैं, विरासत अलग हैं, वे अपनी सरहदों को ‘दोस्ताना सरहद’ बना रहे हैं...सरहदें हैं लेकिन दिलों को बाँटने वाली, इंसानों को तोड़ने वाली सरहदें नहीं हैं। योरोप के देश अपनी अलग पहचान के बावजूद एक हो गए हैं तो पूर्वी और पश्चिमी पंजाब के लोगों ने क्या ग़लती की है? ये तो एक ज़बान, एक तहज़ीब, एक विरासत, एक तारीख़ का मामला है, इसमें इतनी दूरी, इतना फासला?

अम्बाला से कुछ लड़कों ने लिखा है कि ये पुराने लोगों के लिए बिल्कुल जज़्बाती मामला था लेकिन हम लोगों के लिए ये जज़्बाती नहीं बल्कि सोशल, कल्वरल और बिज़नेस का मामला है। एक बड़ी ज़बान को बचाने का ही नहीं बल्कि बढ़ाने का मामला है। एक तहज़ीब को, पंजाबी  फिल्म इंडस्ट्री को परवान चढ़ाने का मामला है।
हिन्दुस्तान और पाकिस्तान से एक-दूसरे को बेहिसाब फायदा हो सकता है। इसलिए इस मसले पर ग़ौर करना हमारी जिम्मेदारी है। दुश्मनी खत्म होगी तो हथियारों और ऐटमिक धमाकों पर ख़र्च किया जाने वाला खरबों रुपया ‘डेवलपमेंट’ में लगेगा।

रात-रात भर गरमागरम बहस चलती रहती है। चाय चलती रहती है। ई-मेल आते रहते हैं। इधर का संगीत और गाने उधर जाते हैं और उधर से गाने और म्यूजिक इधर आते हैं। प्रो. रंधावा के बडे़ ड्राइंग रूम में पंजाबी लोक गीत बजते हैं। कभी प्रो. रंधावा और मैडम नीचे उतर आते हैं। प्रो. रंधावा थिरकने लगते हैं। कहते हैं, लगता है जी, लाहौर से नया गीत आया है।
 
एक रात जब सब जा चुके थे तो नवजोत ने सायमा से पूछा, ”सायमा, तूने आज तक अपने घरवालों के बारे में किसी को नहीं बताया?“
सायमा ने नवजोत को देखा, कुछ बोली नहीं। लैपटाप पर उंगली से हल्का-हल्का खटखटाती रही।
”क्यों सायमा?“
”देख जोत...मेरा कोई और नहीं है सिर्फ़ माँ है...माँ...“ वह चुप हो गई।
नवजोत उसे देखने लगा कि वह कुछ और बोलेगी। पर सायमा खामोश रही।
”कैसे सायमा?“
सायमा धीरे-धीरे बोलने लगी, ”मेरे वालिद मुहम्मद वल्लीउल्लाशाह सतघरा ज़िला ओकार के जमींदार थे...लंदन पढ़ने गए थे...वहाँ मेरी रसेल से मिले...जो मेरी माँ हैं...शादी हुई...बहुत ट्रेजिक...सतघरा के पुराने, कट्टर, रवायती और एंटी वीमेन टमघोंटू माहौल में मेरी माँ डिपे्रशन में चली गईं...अपने आपको एक कमरे में बंद कर लिया और किसी से नहीं मिलती थीं...पापा अपने पुरखों की तरह लाहौर की हाई सासोइटी में डूबते चले गए...मैं ओकाड़ा में पढ़ने जाती थी...अम्माँ के इलाज कराने के लिए उन्हें लंदन भेजा गया। मैं भी बी.ए. करने के बाद लंदन चली गई। माँ पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाई थी...मेरे साथ रहने से उन पर फ़र्क़ पड़ा...इधर सतघरा में पापा को जायदाद के एक मामले में उन्हीं के ख़ानदान वालों ने क़त्ल करा दिया...।“
”तुम्हारे भाई बहन...?“
”नहीं, कोई नहीं है।“
”कोई और?“
”मतलब?“
”रिश्तेदार?“
”बहुत हैं...लेकिन वो मेरे पापा के कातिल हैं।“ सायमा बोली।
”तुम सतघरा जाती हो?“
”हाँ...जाती हूँ...।“
नवजोत सोचने लगा, हर आदमी के अंदर कितने ज़ख़्म हैं...कितने दुःख हैं जो दिखाई नहीं देते...ऊपर से लगता है हरा-भरा जगंल है लेकिन नीचे कितने ज्वालामुखी दबे पड़े हैं, यह पता नहीं चलता।
 
‘रावी विरसा’ की इमरजेंसी मीटिंग बुलाई गई है जिसमें चंडीगढ़, पटियाला, जालंधर, लुधियाना और दूसरे शहरों के मीडिया कोर्सेज के लड़के- लड़कियाँ शामिल हैं। मुद्दा यह है कि पुलिस ने शेर अली को दफन किए जाने की ‘डेट’ दे दी है। यह भी कहा है कि पाकिस्तान में शेर अली के किसी वारिस का पता नहीं चल सका है। ऐसी सूरतेहाल में क्या किया जाना चाहिए?
कई घंटे के बहस मुबाहिसे के बाद तय पाया कि शेर अली के जनाज़े में बड़े पैमाने पर शामिल होना चाहिए। और उसी मौके पर अपनी माँगें दोनों सरकारों यानी भारत और पाकिस्तान सरकार के सामने रखनी चाहिए। अपनी माँगें और आंदोलपन को आगे बढ़ाने की पूरी रणनीति तैयार करनी चाहिए। पूरी दुनिया में फैले ‘रावी विरसा’ के दोस्तों को फौरन ख़बर दी जानी चाहिए कि शेर अली को दफन किया जा रहा है, उसके पोस्टर्माटम की माँग सरकार ने नामंजूर कर दी है। इस बारे में सब लोग पंजाब के मुख्यमंत्री को ई-मेल करें। अख़बारों और न्यूज एजेन्सियों को भी डिस्पैच भेजे जाएँ।

पच्चीस-तीस लोगों का आफिस रात-दिन काम कर रहा है। सबके पास लैपटाप है। पूरी दुनिया से लगातार सम्पर्क बना हुआ है। यूरोप, अमेरिका और कनाड़ा के पंजाबी ग्रुप्स  के साथ लाइव काटैक्ट बना हुआ है...पूरा माहौल बहुत गरमाया हुआ है। प्रशासन को यह पता चल गया है कि बड़ी तादाद में पंजाब के स्टूडेंट्स इस आंदोलन से जुड़ गए हैं इसलिए पुलिस और पैरामिल्ट्री फोर्सेज का इंतिज़ाम किया जा रहा है। ‘रावी विरसा’ ने काॅल दी है कि जिस दिन शेर अली को दफन किया जाएगा उस दिन पूरा अमृतसर बंद रहेगा...पाँच जीपों पर लाउड स्पीकर लगाए लड़के पूरे शहर में अपील कर रहे हैं...
 
प्रशासन शहर के चारों तरफ बैरीकेट लगा रहा है ताकि बाहर के लोगों को रोका जा सके। प्रो. रंधावा तैयारियों में इतने डूबे हैं कि पिछली रात सो भी नहीं सके हैं। उन्हें डर है कि पुलिस अपने पुराने हथियार से काम लेगी...वे सबको समझा रहे हैं...जानते हैं कि नया ख़ून जल्दी जोश मारता है...कह रहे हैं किसी भी सूरत में पुलित से भिड़ना नहीं चाहिए...उनसे भिड़ने का मतलब है उनकी जीत...अख़बारों के ज़रिए लगातार कहा जा रहा है कि ‘रावी विरसा’ एक शान्तिपूर्ण पहल है इसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है, यह किसी राजनैतिक दल का मुद्दा नहीं है, यह जवान लोगों के दिलों की आवाज़ है, यह सांस्कृतिक मुद्दा है। प्रशासन पर लगातार ज़ोर डाला जा रहा है कि शेर अली के जनाजे़ में शामिल होने जो लोग आ रहे हैं उन्हें आने दिया जाए...सब पूरी तरह शान्तिपूर्ण रहेगा।
 
पूरा अमृतर ठहर गया है। चारों तरफ से बस शब्द कीर्तन की आवाज़ आ रही है।
हज़ारों लोग पता नहीं कहाँ से आ गए हैं। शहर के अंदर पैर रखने की जगह नहीं है। पूरी रात शहर में आवाजाही रही है। पंजाब के दूसरे शहरों से जीपों के कारवाँ अमृतसर में दाखिल होकर कम्पनी बाग़ में ठहर गए हैं। हर लड़के के पास मोबाइल है जिस पर कंट्रोल रूम से हर पंद्रह मिनट बाद मैसेज आ रहा है।
 
मेडिकल काॅलिज से पुलिस ने जब शेर अली की लाश निकाली और गाड़ी सड़क पर आई तो उसके सामने पचास मोटर साइकिलें दो लाइनों में आगे-आगे चलने लगी। मोटर साइकिलों की रफ़्तार धीमी है और उन्हें क्रास करके गाड़ी आगे नहीं जा सकती। लाश गाड़ी के पीछे कोई सो जीपों पर स्टूडेंट्स बैठे हैं। हर जीप पर ‘रावी विरसा’ के झंडे लगे हैं...लेकिन कोई आवाज़ नहीं है। बिल्कुल पिन ड्राप साइलेंस। जीपों के पीछे टी.वी. चैनलों की ओ.वी. वैनें चल रही हैं...कैमरे शूट कर रहे हैं। यह एक अजीब किस्म का जुलूस है...जुलूस धीरे-धीरे विरका चैक से आगे बढ़कर बटाला रोड पर आ गया...यहाँ कुछ लोग रुककर देखने लगे कि ये क्या हो रहा है। ब्रजभूषण चैक को पार करता ये कारवाँ वाल्मीकि चैक की तरफ आगे बढ़ा...वहाँ से कोट आत्मा सिंह रोड पर आ गया...घने शहर की आबादी शुरू हो गई...जहाँ तमाशा देखने वाली भीड़ जमा हो गई...सर्कुलर रोड पर पहुँचते-पहुँचते ये जुलूस और लम्बा हो गया...वहाँ से ये सुल्तान विंड रोड पर आ पहुँचा...सुदर्शन नगर पहुँचा और ईदगाह मियाँ सम्दूशाह कब्रिस्तान पर आकर रुक गया...लाश गाड़ी अंदर चली गई और सड़क पर दूर तक खुली जीपें खड़ी हो गईं...
कब्र तैयार है। पुलिस चाहती है जल्दी-से-जल्दी लाश दफन कर दी जाए। मौलवी साहब मौजूद हैं। मैय्यत को गु़सल दिया गया। कफन दिया गया। कब्र के पास रख दी गई। नमाजें जनाज़ा पढ़ाई गई। कोई पचास-साठ लोग खड़े हो गए...उसके बाद दो आदमी कब्र में उतरे और शेर अली के जनाजे़ को कब्र में उतार दिया गया। पटरे लगाए गए। पटरों के बीच की दरार बंद करने के लिए बेरी की लकड़ियाँ लगाई गईं और मिट्टी दी जाने लगी...मिट्टी देना शुरू ही हुआ था कि पुलिस पार्टी वहाँ से ग़ायब हो गई...मिट्टी देनेवालों की तादाद इतनी ज़्यादा थी कि लाइन लगा दी गई। करीब एक घंटे में लाइन ख़त्म हुई...कब्र पर पानी डालकर मिट्टी को जमा दिया गया।
क़ब्रिस्तान के मैदान में सब जा हो गए। मीटिंग शुरू हो गई।

एक सफारी गाड़ी की छत पर हाथ में माइक लेकर सायमा खड़ी हो गई और बोलने लगी। उसकी आवाज़ मैदान में गूँजने लगी-हम सब जानते हैं कि अभी क्या हुआ...शेर अली चोर-उचक्का, स्मग्लर, आतंकवादी नहीं था...वह अपना घर, अपने खेत देखने आया था...क्या आज भारत और पाकिस्तान में ये हक नहीं है कि आदमी ऐसा कर सके? उसे गोली मार दी गई...मैं पूछती हूँ...ये बार्डर क्या ‘सिविलाइज़्ड बार्डर’ नहीं हो सकता? यूरोपियन यूनियन ने बार्डर खोल लिए हैं...ऐसे मुल्कों के दरम्यान बार्डर खुल गए हैं जो एक-दूसरे की जु़बान नहीं जानते तो यहाँ वई पंजाबी इधर बोलते हैं वई उधर...तो फिर...
अब पटियाला से आया सुरेन्द्र शर्मा खड़ा हो गया, ”ऐसा है जी, हरमिन्दर साहब के चार दर खुले रहते हैं...अरे, मैं कहता हूँ, तुम लोग तीन सौ किलोमीटर के बार्डर में एक दर नहीं खोल सकते?“ जोर की तालियाँ बजती हैं...”स्मग्लरों और आतंकवादियों के लिए सब कुछ खुला है...शेर अली के लिए बंद है...क्यों बंद है?“
चंडीगढ़ से आई सोनिया ने कहा, ”मेरे दादा लाहौर रटते-रटते मर गए...दादी लाहौर देखने की हसरत लिए अंधी हो गई...क्या है ऐसा कि पचास किलोमीटर का सफर नहीं हो सकता? अब पुरानी दुश्मनियों का ज़माना नहीं है...करोड़ों का माल तो आता-जाता है, पर आदमी के लिए बंदिशें हैं...बनाओ जी इसे साफ्ट बार्डर...हमारी यही माँग है।“
अम्बाला से आए बिल्लू ने कहा, ”हम जी और आशिकों को इस बार्डर पर नहीं मरने देंगे।“

बयानों के बाद सौनी चावला ने ‘आशिक दी बिरादी’ गीत सुनाया...लुधियाना के गायक ने अपना गीत ‘रावी विच इक लाश तैर दी’ सुनाया...गीत की लाइनों में रावी के बीच पड़ी लाश की तस्वीर उभरने लगी...दसियों साल हो गए हैं...रावी में एक लाश तैर रही है...इस लाश को दादा जी नहीं निकाल सके, पिताजी भी नाकाम हो गए...यह लाश रावी के पानी को ज़हरीला कर रही है...सुनहरी मछलियाँ मर रही हैं...रावी का पानी पाँचों नदियों के पानी में मिल रहा है...पाँचों नदियों का पानी पंजाब की धरती में...सोख रहा है...ज़हर के रेगिस्तान में जिंदगी क्यों काट रहे हो...रावी के विच जो लाश पड़ी है, वो निकालो...
राय यह बनी कि ‘रावी विरसा’ की एक बैठक बिल्कुल रावी के किनारे होनी चाहिए...जिसमें रात भर गीत संगीत और भांगड़ा शांगड़ा होना चाहिए...इस मीटिंग में उधर से भी लड़के-लड़कियाँ रावी के किनारे आएं इधर से भी पहुँचे। मिलकर इकट्ठे गीत गाए जाएँ...तारीख़...सुनो जी 23 मार्च शहीद भगतसिंह का शहादत दिवस है...दस दिन रह गए हैं...वही दिन तय कर लो...
 
पंजाब एसेंबली में अपोज़ीशन के लीडर बलजीत सिंह समराला यह आश्वासन लेकर आए हैं कि उनकी पार्टी ‘रावी विरसा’ के साथ है। वे छात्रों की मदद करना चाहते हैं। मीटिंग में पचास-साठ लड़के-लड़कियाँ मौजूद हैं। बलजीत सिंह समराला छोटा-सा वक्तव्य देते हैं...वे लोग तो पंजाब के कल्चर और लोगों को एक-दूसरे के करीब लाना चाहते हैं।’ समराला फिर अपनी बात रखते हैं।
सुखां उनसे पूछती है, ”सर तुसी पाॅलीटीशियन हो न?“
”हाँ जी हैं...देश दी सेवा करदे हैं।“
”तो जी तुसी देश की सेवा करदे रहो...मरीज दी हालत तो लगातार बिगड़ती जा रही है और सेवादार...“ जस्सी कहती है। समराला उसे हैरत से देखते हैं।
”सर जी, तुसी लोगों से वोट माँगते हो न?“
”हाँ जी...इलेक्शन में वोट माँगते हैं।“
नीतू कहती है, ”सर, हम किसी से वोट नहीं माँगते।“
”वो तो जी ठीक है...पर तुसी सपोर्ट चांहदे हो न?“
”हमें जी पूरी स्पोर्ट मिल रही है...पूरी दुनिया से मिल रही है...हज़ारां ई-मेल देख सकदे हो।“ अल्का ने कहा।
”बहुत चंगा है जी...तुसी देखो हमारी ही पार्टी ने बार्डर विच व्यापार शुरू कराया था...“
”सर जी...बहुत अच्छा कीता सी...हम चान्दे हैं बार्डर विच, इंसान आ-जा सके...तेल, साबुन, कपड़ा, सीमेंट, आलू-गोभी से हमें कोई मुखालफत नहीं है।“ नवीन गिल ने कहा।
”तुसी बिल्कुल ठीक कैंदे हो...साडा और त्वाडा उद्देश्य एक ही है।“
”नहीं जी, नहीं...“ सोनी चावला बोला।
”कैसे जी?“
”तुसी वोट मंगदे हो...असी वोट नहीं मंगदे।“ प्रदीप बोला।
”तो जी वोट माँगने में क्या बुराई है?“
”तुसी वोट लेके सत्ता में आते हो...सरकार बनाते हो...“
”हाँ जी, हाँ।“
”क्यों जी?“
”सारी बुराइयाँ दी जड़ है जी...“
”तुसी डेमोक्रेसी को बुराई समझदे हो?“
”हाँ जी, त्वाडी डेमोक्रेसी जो है न...उसे कुछ और नइ कै सकदे।“ रवि अरोड़ा ने कहा।
”चलो जी, सौ की एक गल्ल है।“ नवजोत बोला।
”क्या?“ समराला ने पूछा।
”तुसी हमारे आंदोलन में आओ...पर जी वायदा करो कि किसी से वोट नहीं माँगोगे...इलैक्शन नहीं लड़ोगे।“ जोत ने जवाब दिया।
”नइ जी...ये क्या बात हुई।“
 
बात बनी नहीं। दो घंटे की मीटिंग में यही बहस होती रही। समराला उठ कर चले गए।
‘रावी विरसा’ फेस्टिबल में सिर्फ़ दो दिन रह गए हैं। नाटक की पाँच टोलियाँ आने के लिए तैयार हैं। छः-सात लोग गायक आ रहे हैं। उधर लाहौर में भी तैयारियाँ पूरी हैं। सायमा को मिनट-मिनट पर ई-मेल आ रहे हैं। इधर से डिस्पैच जा रहा है अब तक वह जगह नहीं तय हो पाई है जहाँ दोनों तरफ के लोग रावी के किनारे जमा होंगे...जगह ऐसी होनी चाहिए जहाँ तक पहुँचा जा सके और एक-दूसरे को कम-से-कम फासले से देखा जा सके। सबसे बड़ी बात ये है कि पुलिस और बी.एस.एफ. पूरी तरह कोशिश करेगी कि ये फेस्टिबल न होने पाए। उसका कैसे मुकाबला किया जाएगा।
”हैलो...“ सायमा ने फोन स्क्रीन पर नाम और नम्बर देखा। उधर से मिस्टर रज़्ज़ाक काॅल कर रहे हैं।
”सलाम अलैकुम रज़्ज़ाक साहब।“ 
”वालेकुम सलाम...कैसी हो सायमा।“
”जी बिल्कुल ठीक।“
”आपको हमारे डिस्पैच तो मिल रहे हैं न?“
”हाँ, दिन में दो बार...बड़ा अच्छा मोबाइलजे़शन हो रहा है।“
”रज़्जाक साहब, ये कमाल का फेस्टिबल होगा।“
”हाँ...रोज़ तुम्हारी लिस्ट बढ़ रही है।“
”अभी-अभी लंदन से मेल आया है...वहाँ से पाँच लोग आ रहे हैं।“
”बहुत अच्छा...मैं तुम्हें ये बताना चाहता हूँ कि गवर्नमेंट आफ इंडिया तुम्हारे काम को पसन्द नहीं कर रही है।“
”क्यों?“
”उसका मानना है कि तुम पाॅलीटिकल एक्टिविटी कर रही हो।“
”पाॅलीटिकल?...अरे, हमने भी अभी-अभी पंजाब सरकार में अपोज़ीशन के लीडर को बैरंग लौटाया है।“
”जो कुछ भी हो भारत सरकार...इसे पाॅलीटिकल एक्टिविटी मान रही है।“
”मेरी समझ में नहीं आ रहा कि...“
”सुनो...“ वे उसकी बात काटकर बोले, ”मुझे होम सेक्रेटरी मिस्टर चौधरी ने बुलाया था...उन्होंने बताया कि भारत सरकार के फाॅरेन आफिस ने दिल्ली में हमारे एम्बैस्डर को बुलाकर नाराज़गी ज़ाहिर की है...पुलिस ने जो तुम्हारी फाइल तैयार की है उसकी काॅपी भी दी गई है...“
”लेकिन...“
”सुनो...भारत सरकार का फोरन आफिस कह रहा है कि तुम्हारी इस कार्रवाई से दोनों मुल्कों के अच्छे रिलेशन्स खराब हो सकते हैं।“
”ये तो कोरी बकवास है।“
”सरकारें और क्या करती हैं।“ रज़्ज़ाक साहब हँसकर बोले।
”फिर आपने क्या कहा?“
”मैंने कहा सायमा वहाँ न्यूज़ स्टोरी कर रही है...बाकी जो काम है, वहीं के लोग...भारत के शहरी कर रहे हैं...उन पर भारत सरकार जो कार्रवाई चाहे कर सकती है।“
”बिल्कुल ठीक कहा आपने।“
”लेकिन चैधरी साहब ने ये कहकर बातचीत ख़त्म कर दी कि भारत सरकार ने अगर सायमा का वीज़ा कैंसिल कर दिया तो उसे वापस आना पड़ेगा।“
”वीज़ा कैंसिल?“ सायमा डर गई। फेस्टिबल में सिर्फ दो दिन रह गए हैं और बहुत काम बचा पड़ा है।
”हाँ... किसी भी सरकार को ये हक है।“
”वीज़ा कैंसिल...के बाद?“
”उसके बाद तुम्हें पुलिस बाई फोर्स...मुल्क से बाहर निकाल देगी...“
”ये तो बड़ी ज़्यादती होगी।“
”जो कुछ भी हो...हालात यही हैं...मुझसे कहा गया है कि मैं तुम्हें वापस बुलाने की कोशिश करूँ...“
”तो क्या आप...“
”नहीं...मैं तुम्हारे ऊपर कोई ज़ोर नहीं डालना चाहता...बस तुम्हें हालात से आगाह कराना चाहता हूँ।“ रज़्ज़ाक साहब ने हमदर्दी से कहा।
”आपकी क्या राय है रज़्ज़ाक साहब।“
”खु़द फैसला करो।“
 
अगले दिन सायमा के वीज़ा कैंसिल कर दिए जाने की ख़बर सभी अख़बारों और चैनलों में आ गईं। इतना तो तय था कि भारत सरकार उसे ‘रावी विरसा फेस्टिवल’ में हिस्सा नहीं लेने देगी। बल्कि उसके न रहने से शायद ‘फेस्टिवल’ ही न हो सके। हर घंटे दिल की धड़कने तेज़ हो रही हैं और उसी तेज़ी से काम भी आगे बढ़ रहा है। भारत के बुद्धिजीवियों ने सरकार से अपील की है कि सायमा का वीज़ा कैंसिल न किया जाए। पाकिस्तान में इसे लेकर अख़बारों में एडीटोरियल लिखे जा रहे हैं...लेकिन सरकार का रुख कड़ा है।
...और फिर वही हुआ। रज़्ज़ाक साहब ने एस.एम.एस. किया ‘सायमा तुम्हारा वीज़ा कैंसिल हो गया है।’
(जारी)

© असग़र वजाहत 

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