Wednesday 28 September 2022

सच्चिदानंद सिंह / आइंस्टीन के शब्दों में सापेक्षता - रिलेटिविटी (9)

18. विशेष और सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत ~

अब तक हमने एकभाव गति (यूनिफार्म मोशन) की भौतिक सापेक्षता की बात की थी और उसे विशेष सापेक्षता का सिद्धांत कहा था. एक बार उसका पुनर्वलोकन करते हैं और देखते हैं कि इसे "विशेष" क्यों कहा जा रहा है. हम अपने पुराने उदाहरण को लेते हैं जिसमे एक ट्रेन पटरी पर चल रही थी. इसे दो तरह से हमने देखा था:
क) ट्रेन पटरी की अपेक्षा गति में है, और 
ख) पटरी ट्रेन की अपेक्षा गति में है.

क) में पटरी सन्दर्भ है जिसकी अपेक्षा ट्रेन गतिशील है और ख) में ट्रेन संदर्भ है जिसकी अपेक्षा पटरी गतिशील है. जिस सिद्धांत की हम चर्चा कर रहे थे उसके अनुसार किसी एक  को संदर्भ और दूसरे को गतिशील मान कर हम गति का वर्णन कर सकते हैं. यह स्वतः स्पष्ट है.

लेकिन सिद्धांत बस इतना ही नहीं कहता. इसके अनुसार, दो सन्दर्भ निकाय (रेफरेन्स सिस्टम) K और K' में निकाले गए (उत्पन्न किये गए) यांत्रिकी के नियम (और प्रकाश की गति का नियम) एक समान होंगे यदि K और K' एक दूसरे के साथ एकभाव गति (यूनिफार्म मोशन) में हों. अर्थात, K और K' में कोई ऐसा नहीं है जो इसके लिए (उन नियमों को निकालने के लिए) अधिक उपयुक्त है. इस बात की व्युत्पत्ति गति और सन्दर्भ निकाय की धारणा में नहीं है, यह उनसे नहीं निकाली जा सकती. इसकी सत्यता बस प्रयोग द्वारा जाँची जा सकती है.  

हमने सभी ऐसे सन्दर्भ निकायों को एक समान माना है. हमने एक ऐसे निकाय K से शुरुआत की थी जिसमे गलीलिओ का नियम लागू होता था: यदि किसी गतिशील वस्तु पर कोई बाहरी बल न लगे और वह दूसरी वस्तुओं से पर्याप्त दूरी पर हो तो वह वस्तु एकभाव गति से चलती रहेगी. इस सन्दर्भ निकाय K (जिसमे गलीलिओ का नियम लागू है) के साथ साथ यह नियम उन सभी सन्दर्भ निकायों K' में भी लागू रहेगा यदि ये निकाय K की अपेक्षा एकभाव, रैखिक गति में हों और उनमे कोई घूर्णन नहीं हो. हमारा यह सिद्धांत इन 'विशेष' निकायों पर ही काम करता है, इसी लिए यह विशेष सापेक्षता का सिद्धांत कहा जाता है.     

इसके विपरीत, सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत से हम यह समझना चाहते हैं: प्रकृति में देखे जा रहे सभी नियमों / घटनाओं के लिए (प्राकृतिक नियमों के सूत्रीकरण के लिए) सभी सन्दर्भ निकाय K, K' आदि समतुल्य हैं, चाहे उनकी गति की स्थिति कुछ भी हो! यह सूत्रण भी, हम आगे देखेंगे, स्पष्ट कारणों से कुछ अधिक अमूर्त /गूढ़ होगा. (उसके कारण भी उस समय स्पष्ट किये जाएंगे.)

हमलोग अपने पुराने उदाहरण को फिर से देखते हैं. ट्रेन पटरियों पर एकभाव गति से जा रही है. उसके अंदर बैठे यात्री को गति का कोई भान नहीं होता. वह समझ रहा है कि पटरियाँ, पूरा रास्ता पीछे की ओर भाग रहा है. और विशेष सापेक्षता का सिद्धांत कहता है कि इस तरह सोच कर भी वह अपनी गति के विषय में सही गणना कर सकता है. अब मानिये कि ट्रेन की एकभाव गति नहीं रहती है: ट्रेन की रफ़्तार अचानक धीमी हो जाती है. तब अंदर बैठे यात्री को अचानक एक झटका लगेगा, आगे की तरफ. अब वह यात्री नहीं सोच सकता कि ट्रेन स्थिर है और रास्ता पीछे जा रहा है. धीमी हो रही गति का प्रभाव हर जगह दिखेगा. वस्तुओं के यांत्रिक व्यवहार (मैकेनिकल बेहेवियर) अब भिन्न हो गए हैं. और इस कारण यह सम्भव नहीं लग रहा कि जो यांत्रिक नियम पहले लागू हो रहे थे वे अब भी, जब एकभाव गति नहीं है, लागू होंगे. 

स्पष्टतः गैलिलिओ का नियम उस गाड़ी पर लागू नहीं होगा जो एकभाव गति से नहीं चल रही. इस कारण से एकभाव गति से नहीं चलने वाले सन्दर्भ निकाय को अभी हम एक ऐसी भौतिक यथार्थता देने को बाध्य हो  रहे हैं जो सापेक्षता के सिद्धांत से बेमेल है. आगे हम देखेंगे कि यह निष्कर्ष सही नहीं है.

(नोट: विशेष सापेक्षता का सिद्धांत आइंस्टीन का बहुत मत्वपूर्ण किन्तु अपेक्षाकृत एक छोटा काम था. भौतिकी को समझने की दिशा में उनका अगला काम, सामान्य साक्षेपता का सिद्धांत आया जिसके मुख्य अवयव उन्होंने नवम्बर 1915 सिद्ध कर लिए थे. विशेष सापेक्षता सिद्धांत के रचनात्मक पक्ष पर आइंस्टीन को करीब डेढ़ महीने काम करने पड़े थे. यदि 1905 में उन्होंने इसे प्रतिपादित नहीं किया होता तब भी इसी या शायद कुछ भिन्न रूप में यह सिद्धांत आ जाता. इसके आधारभूत समीकरण लॉरेंज़ और पॉइनसारे दोनों ने स्वतंत्र रूप से प्रतिपादित कर लिए थे. उन समीकरणों की उनकी समझ, उनके निर्वचन आइंस्टीन के निर्वचन से भिन्न थे. दूसरी तरफ सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत को विकसित करने में आइंस्टीन को सात वर्ष लगे थे; जिनमे अंतिम दो-तीन वर्ष के काम अत्यंत कठिन थे. कोई दूसरे भौतिकविद उनके विचारों के निकट भी नहीं थे. यदि आइंस्टीन ने इस सिद्धांत को नहीं खोजा होता तो शायद आज भी सामान्य सापेक्षता का सिद्धांत हमारे बीच नहीं होता. 

आइंस्टीन का यह सिद्धांत एक अर्थ में क्लासिकी है - क्लासिकी मतलब जो क्वांटम सिद्धांत के पहले का हो. यह सिद्धांत अपने पहले और अपने बाद आये सिद्धांतों से बिलकुल अलग है.  यह 'बल' (फ़ोर्स) की विवेचना ज्यामिति से करता है और अंततः हमें बिलकुल चकित कर देने वाली अभिधारणाएँ देता है: कृष्ण विवर (ब्लैक होल), दूसरे ब्रह्माण्ड, उन तक जाने वाले 'पुल', और काल-यात्रा (टाइम ट्रेवल) की संभावना भी! बल के सभी अन्य सिद्धांत क्वांटम सिद्धांत की छतरी के नीचे छुप गए हैं, सामान्य सापेक्षता नहीं.  आधुनिक भौतिकी की सबसे कठिन और सबसे महत्वपूर्ण पहेली है सामान्य सापेक्षता और क्वांटम सिद्धांत को एक साथ ला पाना.)
....क्रमशः

सच्चिदानंद सिंह
Sachidanand Singh
 
आइंस्टीन के शब्दों में सापेक्षता - रिलेटिविटी (8) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/09/8.html 

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